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पद्य

ज़िन्दगी दे मौका
कविता

ज़िन्दगी दे मौका

सपना आनंद शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ऐ ज़िन्दगी दे मौका फिर से जीना चाहते हैं। वही माँ की गोद पिता का कंधा चाहते हैं। भाई का हाथ, बहन का उम्र भर साथ चाहते हैं। ऐ ज़िन्दगी दे मौका फिर से जीना चाहते हैं। वहीं मस्त हवाओ का झोंका, पेड़ो की टहनीयों पर बंधे झूले फिर खुली हवा में बहना चाहते हैं। ऐ ज़िन्दगी दे मौका फिर से जीना चाहते हैं। फिर वहीं मस्त हो दोस्तों के साथ पल बिताना चाहते हैं, भूल हर ग़म ज़िन्दगी के खिलखिलाकर ठहाके लगाना चाहते है। ऐ ज़िन्दगी दे मौका फिर से जीना चाहते हैं। परिचय :- सपना आनंद शर्मा निवासी - इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
उम्मीदों की भोर …
गीत

उम्मीदों की भोर …

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** कष्टों की काली रजनी का, आया अंतिम छोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।। घूम रही है हवा विषैली, बन कर काला नाग। खुशियों के घर जला रही है, श्मशानों की आग।। कानों में घोला है दुख ने, त्राहि माम का शोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।१ डोल गया है बुरे वक्त में, लालच का ईमान। श्वासों का सौदा करते हैं, पग-पग पर शैतान।। काट रहे हैं चाँदी निर्मम, भूखे आदमखोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।२ एड़ी ऊँची कर पूरब में, झाँक रही सब बाम। कोई सूरज आकर बाँचे, खुशियों के पैगाम।। विरह वेदना की खबरें तो, बिखरी हैं चहुँओर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।३ हाथों थामे रखना 'जीवन', धीरज की पतवार। स्वागत करने बैठे तट पर, करुणा के उद्गार।। सरक रहा है धीरे-धीरे, अपने ओर अँजोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।...
पड़ाव
कविता

पड़ाव

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उठ गए पड़ाव छीन गई छाया जैन से ना कोई आया ना कोई गया धूप, धूप पड़ती है हरदम पड़ती रहे धो कन्नी चलती है चलती रहे हरदम गरम मौसम गर्म रेत गरम गाड़ियों के द्वार आया कोई चला गया कोई उठ गया किसी पड़ाव में जिंदगी का पडाव छोड़ गए माटी कोई जन परिजन की आ गया लेकर कोई खुशी न येजीवन की हर पलाश हर दूब का तिनका परिचित है इनके शौर्य श्वेद रिस गया इनका कण-कण माटी में रिसे रिसे पसीने ने फिरकी गुहार बिछ गए पड़ावछनक गई चूडियां झनक उठी झांझरे मुकुल भी महक उठा हर कोई थिरक रहा मालव की माटी पर परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेव...
कोई मुझ पर झुकाव कब देगा
ग़ज़ल

कोई मुझ पर झुकाव कब देगा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** कोई मुझ पर झुकाव कब देगा। उम्र भर का लगाव कब देगा। अब रहूँ दूर या पास में उसके, इश्क़ इसका चुनाव कब देगा। आ गया हूँ मैं फिर यहाँ बिकने, वो मुझे भाव-ताव कब देगा। इस जमीं के लिए घटाओं को, ये समन्दर बहाव कब देगा। रब मुझे मेरी हर इबादत पर, चैन का रख-रखाव कब देगा। रोग पसरा है इन हवाओं में, वक़्त इससे बचाव कब देगा। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने ...
वात्सल्य सुख
कविता

वात्सल्य सुख

अन्नपूर्णा गुप्ता  "सरगम" मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** गंगा घाट की सीढ़ियों पे बैठ पैरों को पानी मे लटका कर उगते सूरज को देखना। काफी लम्बे समय की प्रतीक्षा का परिणाम था ये। हृदय हर्षाया सा एक टक निहार रहा था उस सिंदूरी सूरज को। जिसकी किरणें मचल रही थी माँ गंगा के आँचल पर मानो कोई छोटा बच्चा धूल मिट्टी से खेल लौटा हो। और अपनी माँ से लिपट-लिपट उसे वात्सल्य सुख दे रहा हो। साथ ही उसके शरीर से चिपकी धूल मिट्टी माँ के आँचल से लग कर साफ हो रही हो। मैंने देखा सूरज की तरफ वो भी धीरे-धीरे अपने देह से लिपटे सिंदूरी रंग को गंगा माँ के आँचल में पोंछ अपने सुनहरे स्वरूप में प्रकट होता जा रहा था। पानी में होती हलचल देख मैं समझ गयी माँ मुस्कुराती हुयी अपने आँचल को सहज झाड़ कर साफ कर रही है सिंदूरी रंग।। परिचय :- श्रीमती अन्नपूर्णा गुप्ता  "सरगम" जन्म : ०७/०७/१९८४ निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र) शिक्ष...
सुन मेरे छंद मेरे गीत
ग़ज़ल

सुन मेरे छंद मेरे गीत

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सुन मेरे छंद मेरे गीत सुन लो मेरी ग़ज़ल हर पल साथ रहें खिले जीवन में कमल। कभी डूबें कभी तैरें झील से नयनों में तेरे खुशनुमा माहौल जिंदगी आये ऐसा पल। में तेरा फरियाद मजनू तेरा शाहजहां मेरी सीरी मेरी लैला मेरी मुमताज महल। तुझ पे कुर्बान छोटी सी कायनात मेरी तेरी हर राह पे डाले हैं फूल चुन कर। अखिल कहता सारी फिजां तुझी से है नहीं जो तू तो जहां बेजान और गुल। सुन मेरे छंद मेरे गीत सुन लो मेरी ग़ज़ल हर पल साथ रहें खिले जीवन में कमल। परिचय :- अखिलेश राव सम्प्रति : सहायक प्राध्यापक हिंदी साहित्य देवी अहिल्या कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय इंदौर निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...
प्यार के उत्सव की नई नूतन आशा
कविता

प्यार के उत्सव की नई नूतन आशा

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** दुआयें देने के लिए, उठती थीं, सदा ही जिनकी हथेलियाँ, आज वही नम हो, भरे दिल से, अब दे रहे हैं श्रद्धांजलियां, आज कलम लिखने को उठती ही नहीं, कैसे करू आगाज़ सच लिखूं, कैसा भी, सच में, सत्ता वाले हो जाएंगे नाराज़। बरसों से बसी बस्ती की, यूँ ये हालत, अब देखी नहीं जाती, अनगिनत जलती लाशों के बीच में, मैं कितना करूँ विलाप, उनको कहो, आकर देखें, क्या इसीलिये सम्भाली थी बागडोर, नारों से भले महका लो बगिया, आओगे फिर भी हमारी ओर। तुम खास, मैं आम, अब आम जनता की क्या बची है औकात, चैन की साँस कहाँ, अब तो साँस बचाने में ही साँसे फूल रहीं, तुम कहते सब ठीक, ये तो हुई वही बात, कि राजा ने कहा रात, मंत्री संतरी भी कह उठे रात, पर थी तो ये, सुबह-सुबह की बात। दर्द में डूबे दिल को दे दिलासा, समझनी है नम आंखों की भाषा, सब सहम कर बैठ जायेंगे, कौन रखेगा म...
‘दम्भ अपार’- पहेली बूझो तो जानें
कविता

‘दम्भ अपार’- पहेली बूझो तो जानें

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** पहेली का उत्तर आप नीचे दिए गए प्रतिक्रया कॉलम (कमेंट्स बॉक्स) में अवश्य दें ...🙏🏻 अनगढ़-मनबढ़ एक चलत गजराज करत हुड़दंग, दंभ से चूर उलीचत धूर मूढ़ बिरझात चिंघाड़त। शक्ति सम्पन्न देह नहीं धीर भरे घरमण्ड, कहत निज काज राज कै ख़ातिर क्रोध प्रचंड। उजाड़त बाग छांव जस बाँस-साँस भ्रम पाल, बनो महीपाल खींच जयमाल स्वयं मय स्वयं उघारत। समुझत पालनहार जिला कै धीश झुकावत शीश, डरे सब लोग बियाहत जोड़-तोड़ मण्डप से भागत। मूरख करत बखान है 'अनुपम' ज्ञान राज विपदा ना आवत, जे विवेक के हीन बौद्धि जिम बाज मीन से शान बतावत। लीलत पग झषराज खींच मुख फाड़ नक्र जस नाच नचावत, उतरत गर्व अपार क्षमा पुनि माँग हृदय तब नाथ पुकारत। गजराज-हाँथी.. झषराज, नक्र- मगर.. परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम साहित्यिक उपनाम - अर्चना अनुपम मूल निवासी - जिला कटनी, मध्य प्रदेश वर्तमान निवा...
हाय रे ये कोरोना
कविता

हाय रे ये कोरोना

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** कोई कहे ऐसा करोना, कोई कहे वैसा करो ना। कोई कहे यहाँ आओ ना, कोई कहे वहाँ जाओ ना। कोई कहे ये अब खाओ ना, कोई कहे ये आप पीओ ना। कवि कहे प्रकृति पर करे विश्वास, सभी लगाये प्रकृति से सम्पूर्ण आस। ये प्रकृतिक पेड़-पौधे है हमारी साँस, पेड़-पौधों पर आप सभी करे विश्वास। प्रकृति ही है सम्पूर्ण जीवन की आस, पीपल, अशोक, तुलसी से मिले साँस। पेड़-पौधे दे सबको आंक्सीजन मुफ्त, ये सम्पूर्ण शिष्टि के लिए होते उपयुक्त। ये जीवन यदि हम सभी को है बचना, हर एक को मात्र एक पौधा है लगाना। पेड़-पौधे को लगाने की ले जिम्मेदारी, तब जाकर जीवन बच पायेगी हमारी। चाहे कोई नर हो या कोई हो वो नारी, सभी ले मात्र एक पौधे की जिम्मेदरी। जिन्दगी को सभी करने चले बेहतर, पेड़-पौधे को काट बनाये अपना घर। अब सता रहा सबको जीवन का डर, चाहे वो गाँव हो या हो वो कोई शहर। चारों तरफ...
खरी खरी
कविता

खरी खरी

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कमी नही सफिनो की कमी नही कमीनो की लाशो पे कर रहे सौदे ऐसे शफाखानो की उखड़ती साँसे है नफा कमालो खूब इस दफा जिस्मो में पड़ेंगे कीड़े ऊपरवाला होगा खफा नेता तेरा भी उड़ेगा तोता आदमी नही रहेगा सोता ऊंची नीची देना बंद कर सभी को छोड़ा तूने रोता किस पर रखू भरोसा प्रभु तू ही भला भलासा दुर्जन कर रहे है तांडव कर मर्दन दे हमे दिलासा इंसान इंसान के काम आ समय समय पे काम आ आ मेरे रब अब तो आ बन रहीम आ बन राम आ परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
मोहब्बत ने सीखा दिया
कविता

मोहब्बत ने सीखा दिया

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** तेरी मोहब्बत ने मुझे, लिखना सीखा दिया। लोगों के मन को, पढ़ना सीखा दिया। बहुत कम होंगे जो मुझे, पढ़ने की कोशिश करते है। क्योंकि जमाने वालो ने तो, मुझे पागल बना दिया था। न धोका हमने खाया है, न धोका उसने दिया है। बस जिंदगी ने ही एक, नया खेल खेला है। जो न कह सकते है, और न सह सकते है। बस बची हुई जिंदगी को, जीने की कोशिश कर रहे है। और लोगों को मोहब्बत की परिभाषा समझा रहा हूँ।। चिराग जलाया करते थे, अंधेरों में रोशनी के लिए। तभी तो जिंदगी ने अब, अंधेरा कर दिया। देखकर रोशनी को, अब हम डर जाते है। की कही अंधेरों से भी, अब नाता न छूट जाये।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं र...
अगर दिल में मेरे
कविता

अगर दिल में मेरे

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** अगर दिल में मेरे चाहत का पारावार न होता मिलन का आप से सपना कभी साकार न होता हमें एक सूत्र में चुन चुन पिरोती भावनायें हैं वरन् उल्लास से पूरित कभी संसार न होता अभी भी जाति भाषा में उलझ जाती है ये दुनिया मज़हबी आग में रह रह धधक जाती है ये दुनिया अगर अनुचित उचित में फ़र्क़ हम सीखे हुए होते कोई शातिर हमारे शहर का सरदार न होता ज़माने को चराने की कभी जुर्रत नहीं करना छकाने के लिए उसको कोई हिकमत नही करना तुम्हें ये रौब रुतबा सम्पदा मुमकिन नहीं होती दुवाओं का तुम्हारे पास यदि भण्डार न होता अगर तुम आदमी हो आदमी सा काम भी करना किसी का दर्द बाँटों इस तरह का काम भी करना हमारे मन में भी पशुता पल्लवित हो गई होती अगर माता पिता सा साथ पहरेदार न होता तनिक परहित सदाशयता से रिश्ता जोड़ना सीखो ख़ुशी की राह मजलूमों के ख़ातिर खोलना ...
पेड़ लगाये… भविष्य संवारे
कविता

पेड़ लगाये… भविष्य संवारे

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** इंसान को कितना कौन समझाये समझकर भी अनजान बनता है । यदि प्रकृति को समझ जाये तो वह इंसान भगवान बनता है ।। बुद्धिमान होकर भी आदमी नासमझ और बेईमान बनता है । सभी प्राणियों में ही सिरमौर है वह मानव का आज पहचान बनता है ।। यदि प्रकृति को समझ ........ ..... कहते है वृक्ष आस है वृक्ष सांस है वृक्ष से कई औषधि बनता है । पेड़ लगाओ भविष्य संवारो वृक्ष से ही तो ऑक्सीजन बनता है।। यदि प्रकृति को समझ ......... ..... आओ मिलकर कर आज ही शपथ ले पर्यावरण संरक्षण का समझ बनता है। प्रकृति के तत्वों को आज जान ले पर्यावरण प्रेमी श्रवण बनता है ।। यदि प्रकृति को समझ ......... ..... परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़ कार्यक्षेत्र : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हू...
वक्त गुजर जाएगा
गीत

वक्त गुजर जाएगा

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** अब तक लाखों को रुला चुका, अब नहीं रुलाने पाएगा, वक्त गुजर जाएगा।। चिंता की कोई बात नहीं, हरदम रहती है रात नहीं। क्या वक्त कहीं पे रुकता है, क्या आता रोज प्रभात नहीं।। डर जाएगा फिर क्यों तन मन, क्यों नहीं प्रभाती गाएगा, वक्त गुजर जाएगा।। अब प्राणवायु उसके घर से, आ पहुँची है रहमत बरसे। अब कमी नही ऑक्सीजन की, मन खुशियों से अब क्यों तरसे।। खुशियों के आँसू आँखों में, अब होंगे कौन रुलाएगा, वक्त गुजर जाएगा।। संक्रामित रोज बढ़े जाते, विष कोरोना का फैलाते। पर अब टीका मैदां में है, हम देख रहे राहत पाते।। "अनंत" कोरोना भागेगा, विषधर कैसे डस जाएगा, वक्त गुजर जाएगा।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) घोषणा...
कुछ अच्छा नहीं लगता
कविता

कुछ अच्छा नहीं लगता

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** रोज़ के अख़बार नौकरी या व्यापार, गाड़ी-घोड़े कार नगद और उधार, कुछ अच्छा नहीं लगता। सुबह या फिर शाम, काम या विश्राम, मान और सम्मान, प्रसिद्धि या नाम, कुछ अच्छा नहीं लगता। सब टीवी चैनल बोर, केवल कोरोना का शोर, हैं चीत्कार चंहु ओर, टूटती सांस,जीवन डोर, कुछ अच्छा नहीं लगता। बस अपनों की फ़िक्र, और एक ही ज़िक्र, ज़िंदगी का चक्र, कितना विचित्र, कुछ अच्छा नहीं लगता। सब मापदंड ध्वस्त, कोई नहीं है मस्त, इक रोग से परस्त, हैं कोविड से त्रस्त, कुछ अच्छा नहीं लगता। ये अंधकार और हार, क्षमता से अधिक भार, संभव कहाँ उपचार, विस्मृत हुए उपकार, कुछ अच्छा नहीं लगता। सभी मंदिर मस्ज़िद बंद, अस्पतालों में कुप्रबंध, अंदर छुपे हुए जयचंद, नेताओं के मुँह बंद, कुछ अच्छा नहीं लगता। कोरा विपक्षी हल्ला, बिन पतवार मल्लाह, लूट खुल्लम खुल्ला,, शिकवा, शिकायत गिला, कुछ अच्...
है समय बड़ा अनमोल
कविता

है समय बड़ा अनमोल

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** आंक सके तो आंक ले बन्दे, है समय बड़ा अनमोल। तय सांसे बस तुझे मिली हैं, अब तोल तोल तू बोल।। कितना जीवन व्यर्थ गंवाया, खाने, पीने और सोने में। औ, कितनी सांसे व्यर्थ गंवाई, बतियाने और रोने में। क्या तनिक बैठकर सोचा तूने, मिला है क्यों यह मानव तन। कुछ तो होगा उद्देश्य तेरा, क्या मोह भरा बस अपनापन।। अपने बच्चों का पालन तो, कर लेते हैं मूक पशु भी। पर क्या तू उनसे श्रेष्ठ नही, यह बात समझ न पाया अब भी।। अरे! तुझको है पाना परम् तत्व को, जो बसा है तुझमें चेतन रूप। और दया भाव की ऊष्मा से सबमे पाना वही स्वरूप।। जब ऐसे होंगे भाव तेरे, तब सिद्ध हो जीवन का मोल। फिर पल पल लगें तुझे कीमती, तब तू समझे समय का मोल परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ क...
शर्मसार मानवता
कविता

शर्मसार मानवता

रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** यहीं मानवता शर्मसार हो रही। कहावत कोई मरे कोई मौज करे की जो चरितार्थ हो रही। कालाबाजारी चरम पर है। भ्रष्टाचारी का जतन हर है। इंसानी खाल में भेड़ियावतार है, खुले आम कर रहा मौत का व्यापार है। त्रस्त जनता,सो रही सरकार है। उसे भी तो केवल अपने वोटों से सरोकार है। सुबह न्यूज़ पढ़ी डॉ गिरफ्तार है, जीवन प्रदत दवा का करते व्यापार है। जब रक्षक ही बन बैठे भक्षक हैं, तब कहो क्यों न डूबे गर्त में संसार है। कोई पूछे उस व्यापारी से किया क्या उसने आरक्षित अपनी सांसो का संसार है। या ये दुनिया उसकी जागीर उसी की खिदमत गा र है। या फिर कर ली उसने अपने कफ़न में जेब तैयार है। तभी तो मद में चूर हो कर रहा यूँ मानवता को शर्मसार है। परिचय :- रश्मि लता मिश्रा निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना,...
रोटी
कविता

रोटी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** भूख में स्वाद जाने क्यों बढ़ जाता रोटी का झोली/कटोरदान से झांक रही रख रही रोटी भूखे खाली पेट में समाहित होने की त्वरित अभिलाषा ताकि प्रसाद के रूप में रोटी से तृप्त हो ऊपर वाले को कह सके धरा पर रहने वाला तेरा लख-लख शुक्रिया। रोटी कैसी भी हो धर्मनिर्पेक्षता का प्रतिनिधित्व करती भाग -दौड़ भी रोटी के लिए करते फिर भी कटोरदान धरा पर रहने वालों को नेक समझाइश देता कटोर दान में ऊपर-नीचे रखी रोटी मूक प्राणियों के लिए होती सदैव सुरक्षित। दान के पक्ष के लिए रखी एक रोटी की हकदारी से भला उनका पेट कहाँ से भरता ? रोटी की चाहत रोटी को न मालूम रोटी न मिले तो भूखे इंसान की आँखें रोती यदि रोटी मिल जाए ख़ुशी के आंसू से वो गीली हो जाती बस इंसान को और क्या चाहिए ऊपर वाले से किन्तु रोटी की तलाश है अमर। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी व...
बोझ
कविता

बोझ

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** सागर की गहराई से भी अधिक सहनशीलता उसके अंदर है.... हुनर पाया है उसने एक ऐसा, पलकों पर भी रखती वो समंदर है.... देखों सारी जिम्मेदारियों को उसने अपने जुडें में बांधा है.... पैरों में पायल है, मगर घुघरूओं को बंधनों ने जकड़ा है.... रखती है पाई-पाई का हिसाब, मगर रहता खुद की उम्र का भी नहीं है जिसें होश.... नाम जिसका रखा है दुनिया ने बोझ..... नाम जिसका रखा है दुनिया ने बोझ..... कभी किसी की बेटी है.... तो कभी किसी की पत्नी है.... कभी किसी की माँ है.... तो कभी किसी की सास है.... अनेक है, अलौकिक है, अनंत है उसके रूप.... सब को आँचल की छाया में बिठाकर, खुद सहती है धूप.... समझ लेती है सभी को अपने ऐसा, एक यही भी है उसमें दोष.... नाम जिसका रखा है दुनिया ने बोझ..... नाम जिसका रखा है दुनिया ने बोझ..... कतल कर देती है.... अपनी सारी इच्छाओं का, लग...
जरा ठहरों…
कविता

जरा ठहरों…

निशा कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** जरा ठहरों.....जरा ठहरों..... इस भाग -दौड़ की जिंदगी में, तुम कहाँ भागे जा रहे हों.... हरदम तुम क्यों बैचेन रह रहे हों कहि तुम खुद को तो भूलते नहीं जा रहे हों.... जरा ठहरों....जरा ठहरों..... और एक बार तुम सोचों कहि तुम इस भाग-दौड़ के जिंदगी में, अपनों को तो नहीं खोते जा रहे हों.... जरा ठहरों....जरा जरा ठहरों.... तुम इस तरह दिमाग में टेंशन लेकर जैसे-तैसे जिए जा रहें हो... क्या तुम अपनों के साथ, बैठ कर दो पल प्रेम की बातें कर रहें हों..... जरा ठहरों.... जरा ठहरों.... चार दिन की इस जिंदगी को जिंदादिली से जिओ.... जो पीछे छूट गए हैं उसे साथ लो खुद हँसो, दूसरों के भी जिंदगी में खुशियों लाओ, ये न सोचों की तुम अपने जीवन में पीछे छूट रहें हो..... जरा ठहरों....जरा ठहरों..... इस भाग-दौड़ की जिंदगी में तुम कहाँ भागें जा रहें हों.... हरदम तुम क्...
एक विनती
कविता

एक विनती

शोभा सोनी बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** न रूठिए अब अपनों से न गुस्सा करिए अपनों से। करती मौत तांडव जमीं पे पल पल में बिछड़ रहे हम अपनों से।। न जाने कौन सा मेसेज आखिरी हो न जाने कौन सा कॉल आखिरी हो वो प्यार वो रिश्ता आखिरी हो अब टूटती हैं सांस सांसों से सभी गलत फहमियां मिटा लो आज फिर अपनों को मनालो बुझ रहे है हर पल दिए एक बार अपनो से रिश्ता निभालो।। सब गलतफहमियां मिटा दो, दिलों को जीत लो, प्यार दिखा दो, कही कोई हसरत ना रह जाए, एक बार सभी को अपना बना लो।। परिचय :- शोभा सोनी निवासी : बड़वानी (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
जहरीली हवा
कविता

जहरीली हवा

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** जहरीली हवा बह रही। हमसे यूं कह रही।। जीना है तुम्हें गर। अपनों के साथ घर।। खुद को नजर बंद कर दो। ताले में बंद कर लो।... घूमने का ख्याल छोड़ो। व्यर्थ के सवाल छोड़ो।। जिंदगी रहे सलामत, होटलों की दाल छोड़ो।। मेहफिल ना जाने का, इरादा बुलंद कर लो।।... खुद को नजर बंद कर दो। ताले में बंद कर लो।... मौत का पैगाम लेके। आये है तूफान ऐसे। लड़ने तैयार हैं हम, हार जायें मान कैसे।। निश्चय खदेड़ देंगे, ऐलान-ए-जंग कर दो।।... खुद को नजर बंद कर दो। ताले में बंद कर लो।... मुश्किल है आन पड़ी। आफत में जान पड़ी। महामारी फैल रही, आई विकराल घड़ी।। निराशा के आंगन में , उत्साह, उमंग भर दो।।... खुद को नजर बंद कर दो। ताले में बंद कर लो।... परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालव...
नशा
कविता

नशा

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** नशा तुम करते हो भुगतना परिवार को पड़ता है गलती तुम्हारी होती है पर भूखे सोना तुम्हारे बच्चो को पड़ता है कह-कह कर थक जाती है तुम्हारी पत्नी पर तुम तो उन्हे मारने पड़ते हो। ये आदत बुरी है तुम भी जानते हो पर दोस्तो के साथ मे तुम भी बड़े मजे से पीते हो जीवन में तुम्हे क्या करना है तुम नहीं सोचते हो बच्चे पत्नी को छोड़ कर तुम दोस्तो की बाते मानते हो। तुम्हारे बाद क्या होगा घर का तुम तो शौक से पीते हो और जनाब हर रोज पीकर तुम खुद को ही बर्बाद करते हो उसे खाने या पीने से पहले पढ़ तो लिया करो ना आए पढ़ना तो चित्र तो देख लिया करो। तू नशा कितनो की जिंदगियां बर्बाद करेगा किसी के मांग का सिंदूर छीन लिया तो किसी के सिर से पूरी कायनात छीन ली किसी के सहारे को खत्म कर दिया तो किसी को अपने ही घर से बेदखल कर दिया...
वो यादें
कविता

वो यादें

सुप्रिया चतुर्वेदी रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** वो यादें बचपन की, उस आंगन मे थी। जहां मेरा जीवन का, एक हिस्‍सा बीता था। वो हसना मेरा, वो रोना मेरा। सब उसकी दीवारों में, एक तस्‍वीर के फ्रेम जैसे सजा था। वो चार दिवारों का कमरा नही, मेरी यादें से सजा हुआ मेरा घर था। वो यादें बचपन की, उस आंगन मे थी। जहां मेरा जीवन का, एक हिस्‍सा बीता था। परिचय :- सुप्रिया चतुर्वेदी निवासी : रायपुर छत्तीसगढ़ घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल)...
उसे क्या गिला है
ग़ज़ल

उसे क्या गिला है

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहा है बताओ उसे क्या गिला है जहाँ में अकेला मुझे वो मिला है मुझे देख गाते उसे भी बुलाया खुले में गवाओ उसे जो मिला है जवानी दिवानी बनी है कहानी मुझे जो दिया है वही तो मिला है शमा के उजालो मुझे साथ लेलो उजाला दिखाने यही तो मिला है लगाया जिसे है गले से हमारे वही आज तेरे घरों से मिला है नही है भरोसा जिसे जो मिला है जहाँ में हमारे सभी को मिला है परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरच...