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पद्य

मतदान
कविता

मतदान

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** दान की परम्परा का एक बार फिर निर्वहन करते हैं, आइए! साथ चलकर मतदान करते हैं। मतदान हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है, परंतु देश के नागरिक हैं इसलिए कर्तव्य भी। बस यही याद रखिए कर्तव्य की बलिबेदी पर खुद को न बेंचिए, राष्ट्र, समाज और खुद के लिए मत दान से पहले खूब सोचिए, बिचारिए, किसी के बहकावे में कभी न आइए। खुद ही फैसला कीजिए सही क्या है? अपना ही नहीं राष्ट्र का भविष्य जिन्हें सौंप रहे हैं, उनके बारे में भी तनिक विचार कर लीजिये फिर मतदान कीजिए। क्योंकि तब पाँच साल सिर्फ़ पछताना न पड़ेगा, सब ओर खुशियों का परचम जो फहरेगा । परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, ज...
नहीं हो तुम मगर
कविता

नहीं हो तुम मगर

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** कठिन बड़ी डगर, नहीं हो तुम सगर, बोल रहे हर- हर, नहीं हो तुम मगर। चले हैं हम सफर, लगता नहीं है डर, गये थे हम घर घर, नहीं हो तुम मगर। अकेले हमें चलना, घर छोड़ निकलना, प्रकृति होती सुंदर, प्रकृति में ही पलना। सांझ जरूर ढलती दिन फिर निकलता, कभी खुशियां मिले, कभी दिल मचलता। कौन साथ जग देता, क्यों दर्द व्यर्थ लेता, जिंदगी गुलगुनाइये, कहते आये हैं वेत्ता। कभी खुशी मिलती, कभी मिलते हैं गम, कभी दर्द सह- सह, आंखें हो जाती नम। प्राण बेशक जाते हैं, साहस नहीं छोडऩा, अपने भी पराये होते, पराये जन खोजना। जिंदा दिल इंसान को, सारा जगत ही पूजता, हिम्मत हारे जन को, कुछ भी नहीं सूझता। धन दौलत की चाह, जन को दे जाए दर्द, बिन पैसे के जीना है, कहलाता है वो मर्द। वक्त के साथ चलो, वक्त साथ देता रहे, वक्त को छोड़ देना, मृत्यु के सम कहे। आया जन जाएग...
जल ही है जीवन
कविता

जल ही है जीवन

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** जल ही है जीवन, जल है अनमोल बन्धु जीवनदायी जल दिए प्रभु कृपासिंधु अहो मानव! इसे बूँद बूँद बचाइए पृथ्वी का हिस्सा तीन है जल से भरा उसमें दो भाग बर्फ ग्लेशियर है धरा बचे एक हिस्से को जतन से सँभालिए पेयजल संकट से त्राहि-त्राहि हैं लोग चरणामृत सा कर इसका कृपण उपयोग कर जल का दुरुपयोग संकट न बढा़इए जल के जो हैं विविध स्रोत प्रकृति प्रदत्त तृप्त होंगे धरा के जीव-जंतु समस्त पयस्विनी सलिला में उच्छिष्ट न बहाइए बरसे है जो अमृत आसमा से धरा पर स्वच्छ गुणवत्तापूर्ण वर्षा जल छतों पर तत्क्षण ही गढ्ढे में उस पय को जुगाइए नीचे भूजल के स्तर को भी सुधारिए हिमगिरि-संजीवनी लिय सुरसरि बचाइए जल बिन जीवन नहीं, हर मूल्य बचाइए परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाण...
विश्व जल दिवस
गीत

विश्व जल दिवस

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** नदिया न पिये, कभी अपना जल। वृक्ष न खाए, कभी अपना फल। सभी को देते रहते, सदा ही फल जल। नदिया न पिये कभी...।। न वो देखे जात पात, और न देखे छोटा बड़ा। न करते वो भेद भाव, और न देखे अमीरी गरीबी। सदा ही रखते समान भाव, और करते सब पर उपकार। नदिया पिये कभी.....।। निरंतर बहती रहती, चारो दिशाओं में नदियां। हर मौसम के फल देते, वृक्ष हमें सदा यहां। तभी तो प्रकृति की देन कहते, हम सब लोग उन्हें सदा। नदिया न पिये कभी...।। जय जिनेन्द्र देव संजय जैनविश्व जल दिवस* विधा : गीत नदिया न पिये, कभी अपना जल। वृक्ष न खाए, कभी अपना फल। सभी को देते रहते, सदा ही फल जल। नदिया न पिये कभी...।। न वो देखे जात पात, और न देखे छोटा बड़ा। न करते वो भेद भाव, और न देखे अमीरी गरीबी। सदा ही रखते समान भाव, और करते सब पर उपकार। नदिया पिये कभी.....।। निरंतर बहती रहती, चारो दिशाओं मे...
जल जीवन
कविता

जल जीवन

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जल से जीवन पाते हैं। हो रहा प्रकृति पर जो, अत्याचार देख... आंखों में नीर आ जाते हैं। जल से जीवन पाते हैं। बूंद-बूंद बचाएं #पानी की, ना व्यर्थ करें पानी को, नहीं मिलता जब पानी, आंखों से नीर भी सूख जाते हैं। जल से जीवन पाते हैं। खुशियों की चौखट पे जब मां वारी-वारी जाती हैं। बिन वारि के खुशियां भी अधूरी रह जाती हैं। जल से जीवन पाते हैं। इसी पय से प्यास का अर्थ पाते हुए, अंतिम तृप्ति पा, इसी में लीन हो जाते हैं। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
मैं गौरैया नन्ही जान
हाइकू

मैं गौरैया नन्ही जान

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आधुनिकता परवान चढ़ी है तरु गुम हैं। पर्यावरण हुआ संतप्त गौरैया अस्त। कटते वृक्ष बनती इमारतें क्या करें हम? छीन ली मेरी चहचहाती सी धुन क्यों न तू सुन? हौंसले मेरे आसमान से ऊंचे समझ ले तू। रूठी प्रकृति ढहेगा तेरा नीड मिटाया हमें। आया समय कर तू संरक्षण मैं भी सृष्टि का अंग।। परिचय :- संजू "गौरीश" पाठक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके ह...
ख्वाब नही आते अब रातों में
ग़ज़ल

ख्वाब नही आते अब रातों में

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ख्वाब नही आते अब रातों में असर तो है आपकी बातों में लड़ता भिड़ता हूँ हालात से थक के चूर सोता हूँ रातों में जीने का सबक सिखा गया हँसते-हँसते, बातों-बातों में आओ आज जुर्म करते है लोगो के दर्द चुराते है रातों में काश की तू मुझे समझ पाता तुझे यकीन लोगो की बातों में सच हमेशा मीठा नही होता तू घिरा रहा मीठी-मीठी बातों में आओ मिल कर ढूढ़ते है उसे जो खोया हमने कड़वी बातों में नफरतों से भरे पड़े है सब प्यार ही नही किसी खातों में अंधेरा हर सिम्त पसरा है दोस्त दहलीज़ पर दिया जलाए रातों में तेरी याद शिद्दत से आती है देखता हूँ जब सितारें रातों में मुंतज़िर हूँ लौट आ, धैर्यशील, रूठा जो तू मुझसे बातों-बातों में परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के...
मैं और मेरी तन्हाई
कविता

मैं और मेरी तन्हाई

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** मैं और मेरी तन्हाई! अक्सर बातें करती है। वह मुझसे सवाल करती और मैं सवालों की गठरी लिए जवाबो की शहर पहुँचता पर जवाब ढूंढ न पाता ये सिलसिला जारी है... कई दफा सोचता हूँ रिश्ता ही तोड़ दूँ अगले ही पल जेहन में फिर एक सवाल रिश्ता जोड़ा कब? मैं और मेरी तन्हाई! अक्सर बातें करती है। परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टा...
होली कैसे मनाएं
कविता

होली कैसे मनाएं

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** रेत के कच्चे घरों की ढह गई संवेदनाएं इन तनावों के नगर में होली कैसे मनाएं सारे संबंध अब तो स्वप्न जैसे हो गये देह मिट्टी का खिलौना सोच पैसे हो गये रक्त सारा हृदय का कच्चे रंगों सा धुल गया झूठे आश्वासनों का रंग देखो सब पर चढ़ गया भावनाएं बर्फ़ की चट्टान जैसी जम गई और सारी सोच निश्चित दायरे में थम गई चारों ओर सन्नाटा, चारों ओर खौफ है इन तनावों के साथ हम होली कैसे मनाएं? परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर (छत्तीसगढ़) जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह...
विरह गीत
गीत

विरह गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** बन गया बैरी सुखद अनुराग है! जल रही अविरल विरह की आग है! सजन-पथ सूना पड़ा है। क्लेश माथे पर चड़ा है। नयन भी पथरा गए हैं, लग रहा हर क्षण बड़ा है। देह को डसता प्रतीक्षा-नाग है! जल रही अविरल विरह की आग है! कहीं आहट है न दस्तक। पत्र भी आया न अब तक। मानता है मन नहीं कुछ, राह देखें नयन कब तक। भ्रमित क्यों करता निरन्तर काग है! जल रही अविरल विरह की आग है! निकेतन,छत,डगर,परिसर। जी नहीं लगता कहीं पर। पर्व या त्यौहार कोई, रुलाते हैं दुखद बनकर। उदासी है सतत फीका फाग है! जल रही अविरल विरह की आग है! तन नहीं श्रृंगार करता। मन हमेशा आह भरता। ढंग कोई भी जगत का, वेदना को नहीं हरता। कर चुका मनवा सभी सुख त्याग है! जल रही अविरल विरह की आग है! परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म...
कविता क्या है
कविता

कविता क्या है

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** कविता क्या है यह एक माया है शब्दो का झाल कलम की माला दिल का प्यार मधु की हाला समझ जाए तो यह मधु शाला प्रेमियो मे पैगाम भक्तो की काया बंद जुबा मे यह एक इशारा उम्र -ए-हदो पर जीने का सहारा कवीवर के लीये सरस्वती का जाया इतिहास जानो तो इसमे हे खुशिया नव रसो का संगम मोहन ने पाया दिल के जज्बातो कई एक ज्वाला जो समझे वो पाया न समझे वो पगला परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं...
मै क्या करूँ
कविता

मै क्या करूँ

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** मै क्या करूँ, समझ नहीं पा रहा हूं, आखिर क्यों मै इतना सोचता हू, मै इतना जीवन के सपने देखता था, मै क्यों इतना पागल होता हूं, दिल मे हमेशा दर्दो का महफिल लगा होता है, आंखों में हमेशा आंसू भरा रहता है, आखिर क्यों ऐसा मेरे साथ ही होता है, जब भी अकेला होता हूं, आंखों में पानी भर जाता है, दिल करता है, मै स्वयं को समाप्त कर लू, ऐसा क्यों होता है, शायद मेरी जिन्दगी की आखिरी शब्द हो, या शायद मै ही आखिरी हू, अब इस दर्द से मुझे रहा नहीं जा रहा है, आखिर क्यों मै अलग महसूस करता हू, स्वयं को मै डिप्रेशन में महसूस कर रहा हूं, कुछ सोच नही पाता हू, दुनिया की दुनियादारी, समाज की मजबुरी, मुझे ना जीने देती है ना मरने देती है, मै क्या करूँ, कोई बताए मुझे, या आत्म को स्वयं मे लिप्त कर दू, मुझे इस नश्वर दुनिया में, सिर्फ अशांति ही अशांति, जी करता है जोगी ही...
हृदय का अंतस्
कविता

हृदय का अंतस्

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** विश्व कविता दिवस की अशेष मंगलकामनाएँ! हृदय का अंतस् जब छटपटाता हो और उस बेचैनी से पाने को मुक्ति जब चल पड़ती है निर्झरिणी सी लेखनी तो बन जाती है कविता! जब आकुल-व्याकुल हो मन-मस्तिष्क तो पीड़ा से बिलबिलाते क्षणों में जो चल पड़ती है लेखनी अवश हो तो बन जाती है कविता! अवचेतन मन में स्थायी भाव से पैठा रागतत्त्व जब छेड़ता है राग मालकौश और भोगावती-सी हहा उठती हैं भावनाएँ तो बन जाती है कविता! किसी के दुख और तकलीफों को देख जब टीसने और टभकने लगता है हृदय और आह से फूट पड़ती है भावों की सरिता तो बन जाती है कविता! किसी के अन्याय अत्याचार शोषण उत्पीड़न के विरुद्ध जब आँखों से निकलने लगती हैं चिनगारियां और क्रांति-सिन्धु हुंकार उठता है मानस का तो बन जाती है कविता! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय...
फागुन
कविता

फागुन

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** होली प्रीत का त्यौहार, हम सब मिलकर डा़ले, फागुन मे रंगो की बौछार। लाल गुलाबी रंग के छीटे, तनमन सब रंग मे भीजे, ऐसा रंग स्नेह का गहरा, जीवन मैं कभी न छूटे, दिल से दिल रंग जाये, कभी न छूटे। प्रेम और सौहार्द बढे़, द्वेष भाव की दीवार मिटादें। स्नेह संचित जोत जलायें, सकारात्मक सोच बढ़ायें। लेकर अबीर गुलाब रोली, खेलें हम हमजोली। तन मन मे तरंग मन, में उमंग, जीवन हो सतरंगी। रंगो से रंगीन हो दुनियाँ हमारी, होली की शुभकामना हमारी। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता...
नफरत
कविता

नफरत

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** इतनी नफरत क्यों है मन में, क्या इसका है परिणाम जानना। एक अकेला जब बचेगा तू, तब होगी तुझे असह्य वेदना।। स्वर्ण महल में बैठ कर भी, नही मिलेगी तुझे शीतलता। व्यग्र रहेगा हर पल तब तू, जब तुझे सतायेगी नीरवता।। मेवों, मिष्ठानों, पकवानों से, कभी न मिटती क्षुधा उदर की। मिटती क्षुधा सदा अन्न से, और तृप्ति भी मिलती मन की।। नफरत तो है जहर इक ऐसा, जिससे रिश्तों में बढ़ जाए दूरी। और अतृप्ति के आ जाने से, कभी न हों इच्छायें पूरी।। अतः मिटाये अब हम नफरत, और सब में बांटे अपना प्यार। नफरत से बढ़ती है नफरत, और प्यार से बढ़ता प्यार।। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
नई उर्जा नया संबल
ग़ज़ल

नई उर्जा नया संबल

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** नई उर्जा नया संबल, तेरी मुस्कान देती है। खुशी के यूँ मुझे दो पल, तेरी मुस्कान देती है।। तुझे बस देखने से दिल, मेरा तस्कीन पाता है। समंदर में नई हलचल, तेरी मुस्कान देती है।। उदासी दूर करती है, नए अरमां जगाती है। रवानी खून में अविरल, तेरी मुस्कान देती है।। तेरे रुखसार पे लाली, बनी जब धूप छाती है। मुझे गर्मी ए दिल निश्चल, तेरी मुस्कान देती है।। तेरे मादक नयन जिस दम, मये उल्फत पिलाते हैं। दवा तब होश की चंचल, तेरी मुस्कान देती है।। अकेला हार कर जब मैं, सभी हथियार रखदेता। अचानक ढेर सारा बल, तेरी मुस्कान देती है।। मुझे संजीवनी दे दे, जरा पर्दा उठा जालिम। "अनंत" कोये जीवन जल, तेरी मुस्कान देती है।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पत...
जल
कविता

जल

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** प्राणों का आधार जल है। आज जल है तो कल है। जल नहीं तो कल नहीं, जब जीवन रक्षक जल है। पंच तत्त्व की काया को, परिपूर्ण करता जल है। सत्य बात आप पहचाने, प्रकृति का सृजक जल है। बिन पानी दुनिया न बनती, ईश्वर का वरदान जल है। कुएं बावड़ी सागर नदियां, इन सब का स्वरूप जल है। प्रकृति का मानक तत्त्व, फसलों का लहलहाना जल है। बिन पानी अन्न नहीं उपजे, वृक्ष पुष्प पर्ण कानन जल है। अमृत नीर जगत का सानी, पृथ्वी पर जीवन दानी जल है। सब इसे बचाने को करें जतन, जब अनमोल संपदा जल है। जल ही जीवन सत्य है, प्राकृतिक सौगात जल है। मत बहाओ मुझे बेकार, जल भी करता पुकार है। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिक...
पल्लों के हैं आर-पार
कविता

पल्लों के हैं आर-पार

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** फासले मिलों के हैं वहां, होते हैं तय भर पल में, विचारों को मिलता हैं सुकू, उजालों संग विचरने में... अंकों का वहां कोई मोल नही, जाती हैं पलक झपकने में, बिन हवा ही बह जाते हैं हम, रूहानी उस शून्य जहान में... नही जिस्मों का कोई काम हैं, प्रतिरुप प्रतिम्बित तारों में, परिलक्षित होते वो पास पास, होता हैं भम्र झिलमिलाने में... ऊँचाई हो या हो गहराई, नाप नही कोई, उस पार में, बसी हैं सूक्ष्म-सोच-सीमित, बंद पल्लों के, इस पार में... धूल धसरित परतों के बीच, रौशनी ही टिमटिमाती हैं, कहने को है अबोल जुबा, पर नजरों से बतियाती हैं... क्या मायने है, उन शब्दों के, जो सिर्फ, कहे सुने जाते हैं, निर्वातमय हैं जहां तो क्या, मन-मन के करीब रहते है... रौशनी सी, गति इस मन की, परे मगर, नही ध्वनि मेल हैं, झांक के देखो पल्लों के पार, स्याह नही, परतों...
खेलन को होली
ग़ज़ल

खेलन को होली

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************************** खेलन को होली आज तेरे द्वार आया हूँ। खाकर के गोला भांग का मैं यार आया हूँ।। मानो बुरा न यार है त्यौहार होली का। खुशियाँ मनाने अपने मैं परिवार आया हूँ।। छिपकर कहाँ है बैठा जरा सामने तो आ। पहले भी रंगने तुझको मैं हर बार आया हूँ।। चौखट पे तेरे आज भी रौनक है फाग की। शोभन में पाने प्यार मैं सरकार आया हूँ।। होली निज़ाम खेल के मस्ती में मस्त है। कुछ तो करो कृपा तेरे दरबार आया हूँ।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां,...
शरमा जाते है
कविता

शरमा जाते है

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** रोज सजने संवरने को दर्पण के समाने आते हो। देख कर तेरा ये रूप दर्पण खुद शरमा जाता हैं।। रोज बन संवरकर तुम घर से जब निकलते हो। देख कर कुंवारे लड़के बहुत शरमा जाते हैं।। अपने आँखो से तुम जब निगाहें घूमाती हो। तब कुंवारों का दिल डगमगाने लगता है।। हँसते हुए चेहरे पर जब चश्मा लगाती हो। देखकर ये अदाये तेरी लड़को की आँखे शर्माती है। होठों की तेरी लाली तेरे चेहरे पर खिलती हैं। बोलती हो तुम कुछ भी मानो फूल झड़ रहे हो जैसे। खूबसूरती में तुम मेनका जैसी सुंदर लगती हो। तभी तो विश्वामित्रों की तपस्या भंग हो जाती हैं।। जिस पर भी तुम अपना ये हुस्न लूटाओगी। उसको साक्षात जन्नत जिंदगी में मिल जायेगी।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर ...
विजय मार्ग
कविता

विजय मार्ग

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** धर विजय मार्ग पर पग, कर्मवीरों का यह जग! रख धीर औ मन मे आस, बस कर पुनः पुनः प्रयास देख सदा स्वप्न चरम के, औ रच अम्बर में नव मग, धर विजय मार्ग पर पग!.... छू चलते हुए सितारों को, ले आगोश में सब तारो को, हो जोश तुझमे इतना कि मचले बिजली तेरे हर रग! धर विजय मार्ग पर पग! .... प्रारब्ध ने तो इतना जाना, बुन कर्मो का ताना बाना, अर्जुन सा तू कर संधान रखकर मीन के दृग पर दृग, धर विजय मार्ग पर पग!..... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी ...
आपके श्रृंगार को
ग़ज़ल

आपके श्रृंगार को

अनूप कुमार श्रीवास्तव "सहर" इंदौर मध्य प्रदेश ******************** रूप का जादू होतुम जादुई मिज़ाज है कितनें दर्पन तरसतें आपके श्रृंगार को। गीत इतनें वावलें नमन के लिए किस विरही वेदना के उपहार को। मूक हो जाता मौसम यूं कैसीं छटा इंद्र धनुषीं परिकल्पना मनुहार को। एक तुम अनभिज्ञ सीं अंजान सीं एक ये विवशता मन में उदगार को। देर तक नींदे लुटाई दोनों ने दोनों तरफ बाद में इलज़ाम आया तन्हा दीवार को। उस दिन भी सहमें बादल थें नयन में अश्रु पूरित क्षण मिलें थें पुरस्कार को। मूक हो जाता मौसम यूं कैसीं छटा इंद्र धनुषीं परिकल्पना मनुहार को। एक तुम अनभिज्ञ सीं अंजान सीं एक ये विवशता मन में उदगार को। देर तक नींदे लुटाई दोनों ने दोनों तरफ बाद में इलज़ाम आया तन्हा दीवार को। उस दिन भी सहमें बादल थें नयन में अश्रु पूरित क्षण मिलें थें पुरस्कार को। इश्क़ किस तरंह से सर चढ़ता है सौंप दी आशिकी जैसें बुखा...
वो याद आये इतना
कविता

वो याद आये इतना

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घटाए छाने लगी शाम होने लगी हवा के संगीत पर फूलों की शाखें झूमने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। दीदार हो उनका गुंचो ने आँखे खोली निकल आया आफताब फ़िज़ाये महकने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। खिजा आती है इसलिए टूट कर गिराने को पत्ते रूठ जाएगा मेरा महबूब गर उसके पैरों में धूल लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। उसे डर किस बात का वो खुद ही खुर्शीद है आने के आसार है उसके सितारों की रौशनी कम होने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। फलक हो या हो जमीन तू है कहा नही सुर्खी है तू फूलों की रोशनी है सितारों की कायनात तेरे दम पर इठलाने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। तू वो शायरा जिसने लिखी ये रूमानी ग़ज़ल तेरे नक्शेकदम पर चल मेरी शायरी जवां होने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी शबनम बरसने लगी। परिचय :- धैर्यशील य...
रहती हूँ खोई-खोई
कविता

रहती हूँ खोई-खोई

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** क्यों बढ़ाते हो दूरियाँ जब तुम मे रहती हूँ खोई-खोई अपना बनाकर अपने को क्या ऐसे तड़पाता है कोई। जब तुम कभी समझना ही नही चाहते जज्बातों को तुम्ही बताओ फिर भला कैसे तुमको समझाए कोई। बार-बार तुम्हे मनाने वाला मुझसा नही मिलेगा कोई इसका एहसास तुम्हे तब होगा जब तुमसे रुठेगा कोई। थोड़ा सा वक्त दिया करो अपने रिश्ते को कभी-कभी फासले यदि बढ़ ही जायें उसकी नही फिर दवा कोई। दर्द सहते रहने की अब हो चुकी है अपनी आदत अब दर्द ना मिले तो दर्द होता है तुझे बताए कोई। परिचय - श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी - अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र - मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी ...
बस इतनी सी बात
कविता

बस इतनी सी बात

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** बस इतनी सी बात तुम मेरी लो जान किसी को लगे रूचिकर या लगे किसी को नागवार पर मेरे स्वविचार रखने के अधिकार की रक्षा से नहीं करोगे अंगीकार सब के समक्ष रख लोगे थोड़ा मेरी बात का भी मान तो मन, वचन, कर्म से दूँगी तुम्हें सम्मान बस इतनी सी बात तुम मेरी लो जान व्यस्त रहो चाहे तुम करने में सबकी सेवा-काज पर कभी एक पल के लिए सुन लेना मेरे भीे मन की आवाज़ चाहे किसी से भी करो अपने सुख-दुख का आदान-प्रदान पर पहले हक से मुझे कहो, अजनबी समझ के न रहो कोशिश कर निकालेंगे समस्या का निदान, समाधान अर्धांगिनी हूँ तुम्हारी, नहीं हूँ मैं कोई अंजान बस इतनी सी बात तुम मेरी लो जान स्वयं के घर में मिटने न दोगे कभी मेरा अस्तित्व जीवन सफर में कम न समझोगे मेरा महत्व तो रहेगा मेरे दिल पर हमेशा हमेशा तुम्हारा स्वामित्व बनोगे अगर मेरे लबों की मुस्कान तो हर जन्म में ...