हरिभक्ति
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, म.प्र.
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अँधियार चारों ओर बिखरा, सूझता कुछ भी नहीं।
उजियार तरसा राह को अब, बूझता कुछ भी नहीं।।
उत्थान लगता है पतन सा, काल कैसा आ गया।
जीवन लगे अब बोझ हे प्रभु, यह अमंगल खा गया।।
हे नाथ, दीनानाथ भगवन, पार अब कर दीजिए।
जीवन बने सुंदर, मधुरतम, शान से नव कीजिए ।।
भटकी बहुत ये ज़िन्दगी तो, नेह से वंचित रहा।
प्रभुआप बिन मैं था अभागा, रोज़ कुछ तो कुछ सहा।।
प्रभुनाम की माया अनोखी, शान लगती है भली
सियराम की गाथा सुपावन, भा रही मंदिर-गली
जीवन बने अभिराम सबका, आज हम सब खुश रहें।
उत्साह से पूजन-भजनकर, भाव भरकर सब सहें।
हरिगान में मंगल भरा है, बात यह सच जानिए।
गुरुदेव ने हमसे कहा जो, आचरण में ठानिए।।
आलोक जीवन में मिलेगा, सत्य को जो थाम लो।
परमात्मा सबसे प्रबल है, आज उसका नाम लो।।
भगवान का वंदन करूँ मैं, है यही बस कामना।
प्र...