फूलों की बगिया
शिव कुमार रजक
बनारस (काशी)
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फूलों की बगिया महकी है,
चिड़िया चह - चह चहकी है
एक फूल डाली से लटका,
अंबर वसुधा देख रहा
प्रेम दीवाना एक पागल
मुझे तोड़न को सोच रहा
मुझको तोड़ दिया हाथों में
मन से पुलकित लड़की है ।
एक फूल माँ की गोदी से
दूर कहीं ससुराल चली
प्रेम पुष्प टूटा डाली से
नयन अश्रु टपकाय चली
अश्रु सिमट गए उन नयनों के
वह बन गयी जब लक्ष्मी है।
एक फूल कविता गीतों का
शब्द शब्द से खेल रहा
कलमकार के गीत ग़जल का
जग में सबसे मेल रहा
मिलन विरह की पीड़ाओं को
लिखकर मैंने कह दी है।
कहि इन्हीं में से एक तो नहीं?
परिचय :- शिव कुमार रजक
निवासी : बनारस (काशी)
शिक्षा : बी.ए. द्वितीय वर्ष काशी हिंदू विश्वविद्यालय
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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