ऋतुराज बसंत में
मनोरमा पंत
महू जिला इंदौर म.प्र.
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बसंत में शब्द भी रंग जाते हैं,
बाँसती रंग में,
दिन चढते चढते आ जाते
तरंग में
महक उठते हैं, मौलसिरी
की गंध से,
साँसों में बस जाते हैंं
छंदों के अनुराग से
एक एक अक्षर बदल
जाता मधुमास में,
टेसू के फूल बन बिखर
जाते पी के संदेश में
मन के भाव उमड़ जाते,
कोयल की तान में,
छलक जाते आँसू बन
विहरणी के दर्द में,
कानों में रस घोलते
संवेगो के आवेग से,
बिखर बिखर पत्तो से
रचते स्वर्णिम विहान
रह रह मचल जाते,
करते कविता का अभिसार
परिचय :- श्रीमती मनोरमा पंत
सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल
निवासी : महू जिला इंदौर
सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ
उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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