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पद्य

खेलन को होली
ग़ज़ल

खेलन को होली

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************************** खेलन को होली आज तेरे द्वार आया हूँ। खाकर के गोला भांग का मैं यार आया हूँ।। मानो बुरा न यार है त्यौहार होली का। खुशियाँ मनाने अपने मैं परिवार आया हूँ।। छिपकर कहाँ है बैठा जरा सामने तो आ। पहले भी रंगने तुझको मैं हर बार आया हूँ।। चौखट पे तेरे आज भी रौनक है फाग की। शोभन में पाने प्यार मैं सरकार आया हूँ।। होली निज़ाम खेल के मस्ती में मस्त है। कुछ तो करो कृपा तेरे दरबार आया हूँ।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां,...
शरमा जाते है
कविता

शरमा जाते है

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** रोज सजने संवरने को दर्पण के समाने आते हो। देख कर तेरा ये रूप दर्पण खुद शरमा जाता हैं।। रोज बन संवरकर तुम घर से जब निकलते हो। देख कर कुंवारे लड़के बहुत शरमा जाते हैं।। अपने आँखो से तुम जब निगाहें घूमाती हो। तब कुंवारों का दिल डगमगाने लगता है।। हँसते हुए चेहरे पर जब चश्मा लगाती हो। देखकर ये अदाये तेरी लड़को की आँखे शर्माती है। होठों की तेरी लाली तेरे चेहरे पर खिलती हैं। बोलती हो तुम कुछ भी मानो फूल झड़ रहे हो जैसे। खूबसूरती में तुम मेनका जैसी सुंदर लगती हो। तभी तो विश्वामित्रों की तपस्या भंग हो जाती हैं।। जिस पर भी तुम अपना ये हुस्न लूटाओगी। उसको साक्षात जन्नत जिंदगी में मिल जायेगी।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर ...
विजय मार्ग
कविता

विजय मार्ग

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** धर विजय मार्ग पर पग, कर्मवीरों का यह जग! रख धीर औ मन मे आस, बस कर पुनः पुनः प्रयास देख सदा स्वप्न चरम के, औ रच अम्बर में नव मग, धर विजय मार्ग पर पग!.... छू चलते हुए सितारों को, ले आगोश में सब तारो को, हो जोश तुझमे इतना कि मचले बिजली तेरे हर रग! धर विजय मार्ग पर पग! .... प्रारब्ध ने तो इतना जाना, बुन कर्मो का ताना बाना, अर्जुन सा तू कर संधान रखकर मीन के दृग पर दृग, धर विजय मार्ग पर पग!..... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी ...
आपके श्रृंगार को
ग़ज़ल

आपके श्रृंगार को

अनूप कुमार श्रीवास्तव "सहर" इंदौर मध्य प्रदेश ******************** रूप का जादू होतुम जादुई मिज़ाज है कितनें दर्पन तरसतें आपके श्रृंगार को। गीत इतनें वावलें नमन के लिए किस विरही वेदना के उपहार को। मूक हो जाता मौसम यूं कैसीं छटा इंद्र धनुषीं परिकल्पना मनुहार को। एक तुम अनभिज्ञ सीं अंजान सीं एक ये विवशता मन में उदगार को। देर तक नींदे लुटाई दोनों ने दोनों तरफ बाद में इलज़ाम आया तन्हा दीवार को। उस दिन भी सहमें बादल थें नयन में अश्रु पूरित क्षण मिलें थें पुरस्कार को। मूक हो जाता मौसम यूं कैसीं छटा इंद्र धनुषीं परिकल्पना मनुहार को। एक तुम अनभिज्ञ सीं अंजान सीं एक ये विवशता मन में उदगार को। देर तक नींदे लुटाई दोनों ने दोनों तरफ बाद में इलज़ाम आया तन्हा दीवार को। उस दिन भी सहमें बादल थें नयन में अश्रु पूरित क्षण मिलें थें पुरस्कार को। इश्क़ किस तरंह से सर चढ़ता है सौंप दी आशिकी जैसें बुखा...
वो याद आये इतना
कविता

वो याद आये इतना

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घटाए छाने लगी शाम होने लगी हवा के संगीत पर फूलों की शाखें झूमने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। दीदार हो उनका गुंचो ने आँखे खोली निकल आया आफताब फ़िज़ाये महकने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। खिजा आती है इसलिए टूट कर गिराने को पत्ते रूठ जाएगा मेरा महबूब गर उसके पैरों में धूल लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। उसे डर किस बात का वो खुद ही खुर्शीद है आने के आसार है उसके सितारों की रौशनी कम होने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। फलक हो या हो जमीन तू है कहा नही सुर्खी है तू फूलों की रोशनी है सितारों की कायनात तेरे दम पर इठलाने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी। तू वो शायरा जिसने लिखी ये रूमानी ग़ज़ल तेरे नक्शेकदम पर चल मेरी शायरी जवां होने लगी वो याद इतना आये की शबनम बरसने लगी शबनम बरसने लगी। परिचय :- धैर्यशील य...
रहती हूँ खोई-खोई
कविता

रहती हूँ खोई-खोई

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** क्यों बढ़ाते हो दूरियाँ जब तुम मे रहती हूँ खोई-खोई अपना बनाकर अपने को क्या ऐसे तड़पाता है कोई। जब तुम कभी समझना ही नही चाहते जज्बातों को तुम्ही बताओ फिर भला कैसे तुमको समझाए कोई। बार-बार तुम्हे मनाने वाला मुझसा नही मिलेगा कोई इसका एहसास तुम्हे तब होगा जब तुमसे रुठेगा कोई। थोड़ा सा वक्त दिया करो अपने रिश्ते को कभी-कभी फासले यदि बढ़ ही जायें उसकी नही फिर दवा कोई। दर्द सहते रहने की अब हो चुकी है अपनी आदत अब दर्द ना मिले तो दर्द होता है तुझे बताए कोई। परिचय - श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी - अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र - मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी ...
बस इतनी सी बात
कविता

बस इतनी सी बात

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** बस इतनी सी बात तुम मेरी लो जान किसी को लगे रूचिकर या लगे किसी को नागवार पर मेरे स्वविचार रखने के अधिकार की रक्षा से नहीं करोगे अंगीकार सब के समक्ष रख लोगे थोड़ा मेरी बात का भी मान तो मन, वचन, कर्म से दूँगी तुम्हें सम्मान बस इतनी सी बात तुम मेरी लो जान व्यस्त रहो चाहे तुम करने में सबकी सेवा-काज पर कभी एक पल के लिए सुन लेना मेरे भीे मन की आवाज़ चाहे किसी से भी करो अपने सुख-दुख का आदान-प्रदान पर पहले हक से मुझे कहो, अजनबी समझ के न रहो कोशिश कर निकालेंगे समस्या का निदान, समाधान अर्धांगिनी हूँ तुम्हारी, नहीं हूँ मैं कोई अंजान बस इतनी सी बात तुम मेरी लो जान स्वयं के घर में मिटने न दोगे कभी मेरा अस्तित्व जीवन सफर में कम न समझोगे मेरा महत्व तो रहेगा मेरे दिल पर हमेशा हमेशा तुम्हारा स्वामित्व बनोगे अगर मेरे लबों की मुस्कान तो हर जन्म में ...
होली
गीत

होली

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** कहा छिपे हो मोरे कान्हा, होरी खेलो रे होरी खेलो रे ....(२) कान्हा होली खेलो रे ...(२)... चार कोस मे चल कर आई कहां छिपे होरे कान्हा कहा छिपे होरे पिचकारी लाओ रंग उराओ । होरी खेलो रे होरी खेलो रे कान्हा होली खेलो रे ...(२)... लाज शरम सब छोड़, आई पीचकारी लाई रे पीचकारी लाई रे कहां छिपे हो मोरे कान्हा पीचकारी लाई रे......। तोहरे रंग मे रंगने आई कहां छिपे हो रे कहां छिपे हो रे होली खेलो रे ..... होली खेलो रे नंदलाला, होली खेलो रे (२)... सास ससुर सु बचकर आई होली खेलो रे होली खेलो रे होली खेलो रे नंदलाला होली खेलो रे चूड़ी टूटी चोली भीगी ओर भीगे सब अंग ओर भीगे सब अंग जम कर रंग उड़ाओ कान्हा बचन पाए कोई रंग बचन पाए कोई रंग इतना ड़ारो रंग की मुझ पर दिखे न कोई अंग दिखे न कोई अंग। कहां छिपे हो मोरे कान्हा खेलो मोरे संग खेलो मोरे संग र...
सोच बदलो गाँव बदलो
गीत

सोच बदलो गाँव बदलो

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** अपने-अपने गांवों से हम बहुत प्रेम करते हैं। इसलिए पड़ लिखकर हम गाँव में रहने आये।। अपने गाँव को हम सम्पन्न बनाना चाहते हैं। जिसे कोई भी गाँव वाले रोजगार हेतु शहर न जाये।। गाँव वालो से मिलकर हम कुछ ऐसा काम करें। ताकि अपने गांव को आत्म निर्भर बना पाये।। खुद के पैरों पर गाँव अपना खड़ा हो जाये। छोड़कर शहरों की जंजीरो को युवक गांवों में वापिस आये।। आत्म निर्भर अपने गाँव को करके हम दिख लाये। जिसे देखने को शहर वाले अपने गाँव में आवे।। गाँव के घर घर में काम अब सब करते हैं। गाँव की वस्तुये खरीदने को शहर वाले गांवों में आते है।। गाँव के सभी लोगों को शिक्षित किया जा रहा। बच्चें और बूड़े आजकल सभी स्कूलों में साथ पड़ते है।। गांधीजी के स्वच्छय भारत के सपनों को हम मिलकर पूरा कर रहे हैं। और गाँवों की संस्कृति को शहरो से जोड़ रहे हैं।। गाँव को हम अ...
आईना
कविता

आईना

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** सबने मुझे दिखाया आईना, और, खुद न देखा उनने आईना। पर, रूप मेरा निखार दिया, दिखा, दिखा कर सबने आईना।। जब मन में होता कोई चोर, तब न भाता तनिक आईना। पर, जब मन हो जाता निर्मल, तब मन ही अपना होता आईना।। सब कुछ भरा है मन के अंदर, नित होता भले बुरे का सामना। पर अगर मांज ले मन अपना, तब, खिल जाए मन का आईना।। देखो काँच का टुकड़ा दर्पण, हमको सिखलाता यह भावना। यह चूर-चूर हो जाये फिर भी रूप दिखाता हमें आईना।। आओ इससे हम यह सीखें अपनी पीड़ा को पी लेना। और, औरों को देने खुशियाँ, निर्मल कर लें मन का आइना।। विशेष :- आईना टूट कर बिखर जाता है पर अक्स दिखाना नही छोड़ता जो इसका गुण है। इसी तरह मनुष्य को चाहिए कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपने गुणों को नही छोड़े। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्...
भगोरिया का रंग है
कविता

भगोरिया का रंग है

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* नाक सुआसी शोभती, खिलते लाल कपोल। आंखन अंजन आंझके, नैना बने अमोल।। हंस उड़ा बागन चला, ले मोतिन की आस। नगनथ देखो नाकको, मन मे होत उदास।। नदी नाव संजोग से, बहती पानी धार। नाविक नदिया एकसे, म्यान फँसी तलवार।। तोता मैना बोलते, चिड़ियां करती चींव। कोयल मीठा गा रही, सखी संग है पीव।। कामदेव सेना चली, करती चुनचुन वार। भगोरिया का रंग है, करता है इजहार।। मदन धनुष को धारके, तकतक मारे बाण। फूलकली बरषा करे, घायल होते प्राण। केरी रस से भर गई, मिठू मारे चोंच। रस बरसे रस आत है, मैना कर संकोच।। कमल पांखुड़ी खिलगई, भंवरों की ले आस। चम्पा चटकी पीतसी, सरिता सरवर पास।। कपोत कसके रातभर, मुरगा बोले भोर। मोर मोरनी छुप गये, नैना होते चोर।। पलाश भी अब दहकते, बिछुड़ी करें तलाश। चूड़ियां भी खनक उठी, मंगल मोती आस।। क्वारों की टोली चली, ले कं...
भक्ति गीत
गीत

भक्ति गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** आदि-अंत से परे निरन्तर, गुण में अपरम्पार हो। कहलाते जगदीश तुम्हीं हो, तुम ही पालनहार हो। जड़-चेतन के हो निर्माता, ॠणी सकल संसार है। धन्य नहीं है कौन सृष्टि में, कहाँ नहीं आभार है। दीन दयाल न तुम-सा कोई, करुणा-पारावार हो। कहलाते जगदीश तुम्हीं हो, तुम ही पालन हार हो। वेद-पुराण भागवत गीता, ग्रंथ और क़ुरआन में। पावन पद या कथन व्यस्त्त हैं, तेरे ही गुणगान में। कुछ कहते हैं निराकार हो, कुछ कहते साकार हो। कहलाते जगदीश तुम्हीं हो, तुम ही पालन हार हो। तुम हो एक सभी के स्वामी, लेकिन नाम अनेक हैं। होना एक तुम्हारा फिर भी, जग में धाम अनेक हैं। कहीं भक्त हैं कहीं नास्तिक , सबके तारनहार हो। कहलाते जगदीश तुम्हीं हो, तुम ही पालन हार हो। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•...
मित्र और मित्रता
कविता

मित्र और मित्रता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** मित्रता का अपना-अपना उसूल होता है, मित्रता के अनुभव भी बहुत खट्टे-मीठे होते हैं। सच तो यह है कि मित्र बनाये नहीं जाते बन जाते हैं, हम चाहें या न चाहें बस दिल में उतर जाता है। न जाति धर्म मजहब न ही स्त्री या पुरुष का भाव बस वो अपना सिर्फ अपना ही नजर आता है। उसका हर कदम,हर भाव उसकी सोच, उसकी चिंता अपनेपन का बोध कराता है। उसके हर विचार रूठना, मनाना, डाँटना, समझाना, और तो और अधिकार समझना गुस्से में लाल तक हो जाना भी, तो कभी-कभी आँसू बहाना हमारे दुर्व्यवहार को भी शिव बन पी जाना, माँ, बाप, बहन, भाई, मित्र जैसे रिश्ते निभाना, हमारी खुशी के लिए सब कुछ सहकर भी हँसकर टाल जाना, पूर्व जन्म के रिश्तों का अहसास दे जाना सच्चे मित्र की पहचान है। उम्र का अंतर मायने नहीं रखता क्योंकि हमें खुद बखुद उसके कदमों में झुक जाने का मन भी करत...
रंग का त्यौहार आया
ग़ज़ल

रंग का त्यौहार आया

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** रंग का त्यौहार आया, खेलने दे यार रंग। भर रहा चाहत के नक्शे, में नया फिर प्यार रंग।। अपने रुखसारों को रंगने, दे मुझे भी प्यार से। हसरतों का दिल की मेरे, कर सके इजहार रंग।। प्यार के बीमार को, रंग दे तू अपने रंग में। यार यह एहसान कर दे, डाल दे एक बार रंग।। आज फिर रंगीन कर दे, इस तरह जीवन मेरा। याद सदियों तक रहे, यूं खेलना पल चार रंग।। मुस्कुराहट जिंदगी की, हमसफ़र बन जाएगी। आप जो खेलेंगे मेरे, साथ में सरकार रंग।। हम हुए शोला बदन, जैसे हो जंगल में पलाश। राख हो जाने से पहले, खेल लें दिलदार रंग।। तू मुझे उस रंग में अब, भीग जाने दे "अनन्त"। जो मोहब्बत घोलकर, तूने किया तैयार रंग।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पता : नीमच जिला- नी...
मेरी उसकी बातें
ग़ज़ल

मेरी उसकी बातें

अनूप कुमार श्रीवास्तव "सहर" इंदौर मध्य प्रदेश ******************** मेरी उसकी बातें होती, कमरे में वीरानी हैं । चौखट से लौटा के आएं, शहर के सब पहचानें चेहरे। अंजाना अब खुद में हूं, आइने की निगरानी हैं। बिखरीं बिखरीं कविताएं, ग़ज़लें, नज्में सब भींगी भींगी, आंखों से अब बह निकलेंगे, किस बरसात का पानी हैं। स्याह दीवारों के साये में, तुम आये भी मुस्कायें भी। जहां छनकती हो पायल, दिल रोयें तो बेईमानी हैं। ख़त उसने लिखें कितनी दफें, कितनें तह तह करके फेकें। इक लफ्ज ने जादू कर डाला, इतनी राम कहानी हैं। परिचय :- अनूप कुमार श्रीवास्तव "सहर" निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच प...
महुए के हर अंग पर
दोहा

महुए के हर अंग पर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** महुए के हर अंग पर, चढ़ा नशीला प्यार। हुरियारा किंशुक कहे, सुंदर हो संसार।।१ श्याम राधिका की तरह,प्रीत करें नर नार। कान्हा के ब्रजधाम सा, सुंदर हो संसार।।२ इस धरती पर प्रीत की,मधुरिम बहे बयार। कष्ट रहित हो जीव सब, सुंदर हो संसार।।३ अंतस में सौहार्द का, भरा रहे उद्गार। नष्ट फसल हो द्वेष की, सुंदर हो संसार।।४ संस्कृति में सौंदर्य के, चाँद लगे हों चार। सबको दे सम्मान सब, सुंदर हो संसार।।५ सबके सपनों को मिले,उन्नति का आधार। हो कुटुम्ब वसुधैव तब, सुंदर हो संसार।।६ गया न कोई स्वर्ग में, झूठा है हरिद्वार। सच तो खजुराहो कहे, सुंदर है संसार।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
सास बहू का रिश्ता
कविता

सास बहू का रिश्ता

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बहू सास का रिश्ता मैं तुम को समझता हूँ। हर घर की कहानी तुम को मैं सुनाता हूँ। सुनकर कुछ सोचना, और कुछ समझना। सही बात यदि मैंने कही हो तो बता देना।। सास बहू का रिश्ता बड़ा अजीब होता है। बहू सास को माँ कहे तो रिश्ता प्यारा होता है। सास अगर बहू को बेटी कहके पुकारे तो। ये रिश्ता मां और बेटी जैसा बन जाता है। सास बहू का रिश्ता बड़ा अजीब होता है। सास बहू को बहू ही समझे तो खटा होता है। बहू सास को सास माने तो झगड़ा होना है। न तुम न हम कम फिर घर अशांत होना है।। इन दोनो के तकरार में बाप बेटा पिसते है। बहुत दिनों तक दोनों मौनी बाबा बने रहते हैं। पर जिस दिन भी ये सब्र का घड़ा फूटता है। और उसी दिन से दो चुहलें घर में हो जाते है।। घर का माहौल सास बहू पर निर्भर करता है। सास को माँ और बहू को बेटी जैसा मानती है। वो घर द्वारा स्वर्ग जैसे स्वंय ही बन जाते है।...
सब ठीक है
कविता

सब ठीक है

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** सब ठीक है, सब अच्छा है थकी हुई हूं पर हारी नहीं हो अभी तक, "थकान" का अर्थ आज जा के समझ आया मीलों चले हैं, मगर थकान" अब जा के हुई है शायद जिंदगी की परिभाषा में ये नया शब्द उभर कर आया है कोई पूछे, थकान क्यूं है? कैसे परिभाषित करूं इस शब्द को!!! कभी कठोर शब्दों की बारिश भी तो थका देती है। बारिश की बूंदें जितना सुकून देती हैं, "थकान" की बूंदें उतनी ही विरक्ति भर देती हैं तपती धूप में कोसों चलता है ये जीवन दर बदर की भटकन को साथ लिए। मगर तब भी न जाने क्यूं "थकान" महसूस नही होती जिंदगी की परिभाषा भी अजीब उलझने पैदा करती है, कभी जन्नत तो कभी थका सा महसूस करती हैं कभी तमाशा बन जाती है तो कभी तमाशबीन की तरह दूर खड़े हो कर खिलखिलाती है उम्र, हालात, समय, बदल जाते हैं, अच्छाइयां इंसान की कमजोरी बन ज...
होली गीत
कविता

होली गीत

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** इस साल की होली हम नये अंदाज में मनायेगे, झूमेगे-गायेगे गाल पर गुलाल सस्नेह व प्यार से लगायेगे। इस साल की होली हम नये अंदाज में मनायेगे, भिन्न-भिन्न प्रकार के स्वादिष्ट पकवान भी बनवायेगे। मित्रों के गाल पर रंग व गुलाल स्नेह व प्यार का लगायेगे, इस साल की होली हम नये अंदाज में मनायेगे। फूलों वाली होली मनाने राधे-कृष्ण के बरसाने हम जायेगे, इस साल की होली के त्यौहार को नये अंदाज में मनायेगे। झुमेगे-गायेगे, गोझिया-गुलगुला खायेगे और मित्रों को खिलायेगे, सभी मिल खुशी-खुशी होली को यादगार हम सब बनायेगे। इस साल की होली के त्यौहार को हम नये अंदाज में मनायेगे, झुमेगे-गायेगे रंग-गुलाल गोरे गाल पर प्यार से लगायेगे। इस बार की होली हम नये अंदाज में मनायेगे, इस साल की होली हम नये अंदाज में मनायेगे। परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी...
सफल जन्म
कविता

सफल जन्म

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सफल जन्म मेरो भायो मानव जीवन पाकर। धन्य हुआ मानव जीवन माँ बाप के संग रहकर। कितना कुछ वो किये मुझे पाने के लिए। अब हमारा भी फर्ज बनता है उनकी सेवा आदि करने का।। सफल जन्म मेरो भायो मानव जीवन पाकर।। सब कुछ समर्पित किये वो लायक मुझे बनाने के लिए। कैसे अब में छोड़ दूँ उनको उनके हाल पर। नहीं उतार सकता मैं कर्ज उनका मरते दम तक। पर कुछ ऋण चुका सकता उन की औलाद बनकर।। सफल जन्म मेरा हो जायेगा पुत्र धर्म को निभाकर।। जब तू भी माँ बाप बनेगा पुन: यही दोहराया जायेगा। तेरे किये अच्छे कर्मो का तुझे फल यही मिल जायेगा। मात पिता से बड़कर इस जग में और कुछ हैं नहीं। ये बातें औलाद समझ जायेगी फिर ईश्वर की तरह तुझे पूजेगी।। सफल जन्म हमारा तब ये मानव जीवन हो जायेगा। ये मानव जीवन हो जायेगा।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई मे...
प्रथम पूज्य नारी
कविता

प्रथम पूज्य नारी

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** प्रथम पूज्य नारी कहलाई आदि अनंत तुम शक्ति कहलाई थी कायनात की रचयिता वो शिव गामीनी कहलाई नही अबला थी नहीं आज की नारी पूज्य बन कर नारी शक्ति कहलाई बडे बडे दैत्यों का कर संहार वो वैश्व पालन वो शक्ति कहलाई बन सरस्वती ब्रह्मणी, रूप लक्ष्मी मै नारायणी ओर शिव वरदाई कहलाई यश गाऊ मै नारी का, गा नहीं पाऊगा माॅ बनी है बहन बनी, वाम अंग समाई जन कल्याण मे त्रिशूल उठा कर महिषासुर मर्दिनी कहलाई कष्ट निवारणी दया की देवी आज तू अन्तः मन से शिवकल्याणी कहलाई कैलाश वासिनी पूछता हूॅ तुझसे मै तेरा ही ये रूप ले माॅ दुर्गे कहलाई मनमोहन अब बतादो इन सबको तूम नारी जग मे रूप मेरा कहलाई परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता ह...
जुनून
कविता

जुनून

रश्मि नेगी पौड़ी (उत्तराखंड) ******************** जोश सा था, मेरे अंदर मेरा जोश, मेरा जुनून बन गया रास्ते में मेरे आई कई रुकावटें मेरे जुनून ने उनका डटकर सामना किया लाखों लोगों ने कोशिश की मेरे हौसलों को दबाने की मेरे जुनून ने मेरे हौसलों को दबने न दिया जोश सा था, मेरे अंदर मेरा जोश, मेरा जुनून बन गया हुई कभी हताश, हुई कभी परेशान मेरे जुनून ने मुझे व्यर्थ की चिंता त्यागने को कहा लाख चाहा कुछ लोगों ने मुझे गिराना, मेरे जूनून ने मुझे गिरने न दिया जोश सा था, मेरे अंदर मेरा जोश, मेरा जुनून बन गया हुई जब भी मैं निर्बल, मेरा जुनून साथी बनकर मेरे साथ रहा न होने दिया निराश, न होने दिया उदास हमेशा मुझे आगे बढ़ने को प्रेरित किया कैसे करूं मैं धन्यवाद उस जुनून का, जिसने हर कदम पर मेरा साथ दिया जोश सा था, मेरे अंदर मेरा जोश, मेरा जुनून बन गया परिचय : रश्मि नेगी निवासी : पौड़ी उत्तराखंड शिक्षा : ए...
पायल छनक गई
गीत

पायल छनक गई

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** बहुत संभाले रखा मगर अवसर क्या पाया, चंचल मना वो बावली पायल छनक गई।। मैं नहीं चाहती मन के, पट धड़कन खोले, मैं नहीं चाहती पायल, की रुनझुन बोले। मैं नहीं चाहती सोचो, में हो खलल कोई, मैं नहीं चाहती प्रीतम, का तन मन डोले।। पर क्या करती पग फिसला, बेबस हुए कदम, सागर लहराया अखियां, मेरी छलक गई। बहुत संभाले रखा मगर अवसर क्या पाया, चंचल मना वो बावली पायल छनक गई।। वो मेरी ही यादों में शायद खोए थे, मनहर वो ख्वाब मिलन के कई संजोए थे। मैं खुशियों की सौगातें लेकर आई थी, सावन प्यासे अधरों पर साजन बोए थे।। तड़पी थी मैं आलिंगन, में उस पल उनके, दिल बहका मेरा मेरी, सांसें महक गई। बहुत संभाले रखा मगर अवसर क्या पाया, चंचल मना वो बावली पायल छनक गई।। यूं दर्ज समय के पृष्ठों पर पल हुए विकल, मन में थी मीठी दोनों तरफ बहुत हलचल। बातें होती थी आंखों की तब आं...
अपने हिस्से की भूख
कविता

अपने हिस्से की भूख

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** परहित में जीना है बड़ा, हित में जाता गला सूख, दूसरे को नहीं दे सकता अपने हिस्से आई भूख। भूख सभी को लगती है, जिसने जन्म यहां लिया, पर भूख खत्म हो जाये, भलाई नामक रस पिया। कैसी विडंबना इस जग, शांत नहीं हो जन भूख, हड़प लेते हैं निर्धन का, उल्टे सीधे रखता रसूख। निज भूख जो कम माने, दूसरे की भूख माने अति, पुण्य कर्म में जीवन बीते, जग में हो उसकी सद्गति। गरीब को भूख लगती है, कोई पूछता नहीं है हाल, कितने निर्धन चले गये हैं, जग से काल के ही गाल। खाने की भूख नहीं लगे, धन दौलत पर यूं मरते हैं, अमीर लोग बात अजब, भोजन खाने से डरते हैं। भूख के रूप अनेकों होते, बिन भूख के मिलते कम, भूख देखते गरीब जन की, आँखें खुद हो जाती नम। नहीं मिट सकती इस जहां, भूख अजब निराली होती, कुछ को रोटी भूख सताये, कुछ को भूख हो हीरे मोती। नहीं बाट सकता कोई यहां...
माँ तारा
कविता

माँ तारा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** तू हो समर्पिता, अर्पिता तू हो सृष्टि की मूल बिंदु तुम्ही हो। माँ तू हो अनय की सृंखला बनी तू हो भोग की ग्रहिका बनी। तू हो धरा पर अर्चिता, गर्विता अनादि अनन्त तू विभु सम्पन हो। प्रचंड मार्तण्ड की सुप्त किरणों से तू शशि सम्पन्न धरा करती हो। माँ तू मनु की सतरूपा अनादि अभिन हो जब भी धारा पर गहन अंध छाता है मां तू महा ज्योति प्रभा बनकर आती मां तारा तू अनादि अनन्त हो मातेश्वरी तू प्रीति संपन्न हो पुरुरवा की मेनका रमभा तुम्हीं हो साहचर्य सहगामनी सत्य सनातनी हो महाभोगनी फिर भी योगिनी हो कुंडलिनी सर्पनी तू महआभैरवी हो धधकती चिताय महाश्मशान में जीवन की नश्वरता चिंता की रेखाएं। जीवन की कोलाहल में मृत्यु की निरव शांति में मातेश्वरी तारा तुम्ही छुपी हो। इस जीवन की संध्या में मां तू अपूर्व लालिमा हो। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय ...