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पद्य

प्यार के किस्से
कविता

प्यार के किस्से

धीरेन्द्र पांचाल वाराणसी, (उत्तर प्रदेश) ******************** मिले थे कल जो तुमसे हम, उसी बाजार के किस्से। लिखूंगा आज कागज पर, हमारे प्यार के किस्से। पलटकर देखता था मैं, इरादे नेक थे अपने। थोड़ी शैतानियां भी थी, थोड़े एहसास थे अपने। तलाशा अंजुमन में भी, तेरे दीदार के किस्से। लिखूंगा आज कागज पर, हमारे प्यार के किस्से। हसरतें मिटती कहाँ थीं, मामला तब दिल का था। बोतलें टिकती कहाँ थीं, कश्मकश महफ़िल में था। कह रहा था नाव से मझधार के किस्से। लिखूंगा आज कागज पर, हमारे प्यार के किस्से। तड़पना लाजमी था पर, मुझे मालूम था इतना। सफर कांटों का भी होगा, गुलाबों का जतन जितना। तबियत से लिखूंगा मैं तेरे रुख़सार के किस्से। लिखूंगा आज कागज पर, हमारे प्यार के किस्से। परिचय :- धीरेन्द्र पांचाल निवासी : चन्दौली, वाराणसी, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक ...
पुलवामा के वीर सपूत
कविता

पुलवामा के वीर सपूत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** पुलवामा के वीरों से, घात करें थे घाटी में। बैठे गोडसे दिल्ली में, जयचंद पावन माटी में। गीदड़ पहुंचे शेरों तक, छल कर तेरी गोदी में। हंसते-हंसते शहादत पाये, नगराज की चोटी में। गंगा-यमुना चीख उठी, सिंदूर मिली जब माटी में। भेंट चढ़ थी कितनी राखी, जन्नत तेरी छाती में। बेबस बूढ़ी आंखें छलकी, इन वीरों की यादों में। बिलख-बिलख मां रोई, उम्मीदे बिखरी लाशों में। नन्हीं-नन्हीं परियां चीखी, सपने मिल गये माटी में। हिंदुस्तानी धरती रोये, इन शेरों की शहादत में। कदम उठा लो अंतिम, गोली दागो दुश्मन में। अब मत खोजो मानवता, इन नरभक्षी गिर्द्धो में। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेर...
हर तरफ यार का तमाशा है
कविता

हर तरफ यार का तमाशा है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** खिलखिलाकर वो हँस रहे, मन से हटी सब निराशा हैं, लो हम सभी हँसे खुलकर, हर तरफ यार का तमाशा है। मंजिल के करीब पहुंच गये, नय कह रहे अजब भाषा है, नहीं कभी हम यूं पीछे हटेंगे हर तरफ यार का तमाशा है। खेल रहे हम मिल बागों में, जीत की मन लिये आशा है, आखिर बाजी जीत ही लेंगे, हर तरफ यार का तमाशा है। नयन मिले जब दोनों के तो, समझ गये नैनों की भाषा है, प्रेम आलिंगन नजर आये वे, हर तरफ यार का तमाशा है। चांद पर जरूर कदम रखेंगे, पहुंच गये सीधे यूं नासा है, आखिर चांद को छू लें हम, हर तरफ यार का तमाशा है। हमने क्या खोया विगत वर्ष, लो करते आज खुलासा है, नये वर्ष में होंगे काम सुंदर, हर तरफ यार का तमाशा है। हंसना चाहिए दिनरात सदा, क्यों बैठ गये अब उदासा है, निठल्ले बैठ पाप लगता चूंकि हर तरफ यार का तमाशा है। पा जाये विश्व ज्ञान एक दिन, चूंकि दिल...
बेटी
कविता

बेटी

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** आधुनिक बेटीयाँ पढ़ लिखकर छू रही आसमान, बेटी किसी की भी हो उनका करो हर समय सम्मान। आधुनिक समाज में दानव बनता जा रहा दहेज, दहेज का बढ़ता जा रहा कलयुग में तेजी से क्रेज। दुल्हन को सदा समझे पढ़े-लिखे युवा दहेज, अपने समाज से दहेज के दानव को दे दूर भेज। बेटियाँ होती सदा हर घर-परिवार का गहना, बेटियाँ मानती सदा परिवार के सभी सदस्यों का कहना। सभी बेटियाँ होती बहुत ही कीमती व अनमोल, समाज बेटियों को दहेज के रूप में दूसरों को देता तोल। शादी के बाद वही बेटी दूसरे परिवार में बहू बन के जाय, नित्य प्रतिदिन ससुराल में भी सबको पिलाये वह चाय। सभी बहु-बेटियों का समाज में करे मान सम्मान, दहेज के कारण किसी भी बेटी का न जाने पाये जान। देश, समाज की बेटीयों को बचाओ! मानव सृष्टि विलीन होने से बचाओ! परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस...
साथ मेरी जो राह कर लेता
ग़ज़ल

साथ मेरी जो राह कर लेता

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** साथ मेरी जो राह कर लेता। मैंभी उससे निभाह कर लेता। मानता मैं नहीं भले अपनी, साथ उसके सलाह कर लेता। गीत कोई जो गुनगुनाता वो, मैं उसे अपनी आह कर लेता। देखकर पास से कहीं उसको, रोज़ कोई गुनाह कर लेता। चाँद जो हाथ में नहीं आता, मैं सितारों की चाह कर लेता। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्...
हुआ दर्द से प्यार
गीत

हुआ दर्द से प्यार

महेश चंद जैन 'ज्योति' महोली ‌रोड़, मथुरा ******************** तुम्हीं बताओ कैसे तोड़ूँ किये हुए अनुबंध? आँखें खोलीं, मिली पाॅव को दलदल की सौगात, सीख लिया तब से नयनों ने जगना सारी रात, पीर महकने लगी उठी आँसू से मधुर सुगंध। पथरीली राहें पाॅवों में पड़ी अनेकों ठेक, संघर्षों का साॅझा चूल्हा रहा उन्हें था सेक, जुड़ा पसीने का पीड़ा से मिसरी सा संबंध। साथ चले फिर गये छोड़कर नदिया के मॅझधार, जैसे-तैसे बाहर आये बैठे हैं इस पार, अब कुछ झुके हुए से लगते तने-तने स्कंध। और वज़न कुछ बढ़ा शीश पर लेता दर्द हिलोर, कितनी दूर और रजनी से होगी सुंदर भोर, साॅसें थोड़ी इनी-गिनी सी टूटेगा फिर बंध। साथ पुराना दर्द लगे अब अपना मुझको यार, टीस उठे तो लगता उसने जतलाया है प्यार, अंत समय तक साथ निभेगा अनुपम किया प्रबंध। परिचय :- महेश चंद जैन 'ज्योति' ...
बसंत ऋतुराज है आया
कविता

बसंत ऋतुराज है आया

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कहीँ भौरो की गुंजन है कही कोयल की कूके है कही बौराये है जो आम कही महकी हुईं हर शाम कभी आलस्य ने घेरे है खालीपन कही छाया कही सूनी है दुपहरी कही अति धूप कहीं छाया कही कुछ छूटा सा लगता कही कुछ खोया सा लगता पहेली लाख सुलझा लौ मगर उलझा हुआ लगता चिड़ियों की मस्ती भी झलकती साफ ऐसी है सामने आईना रख दो झपटती गिद्ध जैसी है खेतों में खलिहानों में आबादी में वीरानों में इधर देखो उधर देखो बसंत ऋतुराज है आया सभी ऋतुओं में उत्तम है असर इसका कुछ ऐसा है चले जहाँ बात जब इसकी तो चलती सांस मद्धम है सुनहरी गेहूँ की बाली पलाश और टेसू की लाली मदमस्त कर डाली बसंती बयार निराली परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कव...
मै आदत से लाचार हूँ
कविता

मै आदत से लाचार हूँ

ममता रथ रायपुर ******************** बहुत कोशिश करती हूँ जमाने के साथ चलने की दिखावे की चादर ओढ़ने की पर क्या करू यारो मै आदत से लाचार हूँ बहुत कोशिश करती हूँ खुद मे बदलाव करने की बड़ी - बड़ी बातें करने की छोटो को नजर अंदाज करने की मगर हो नही पाता क्या करू यारो मै आदत से लाचार हूँ बहुत कोशिश करती हूँ सिर्फ अपनी तारीफ करूँ किसी के दुख मे खुश होऊँ किसी की परवाह किए बगैर खुद मे ही व्यस्त रहूँ मगर हो नही पाता क्या करू यारो मै आदत से लाचार हूँ बहुत कोशिश करती हूँ सब जगह दिखावे का दान करूँ फायदे देखकर बात करूँ अपने कर्तव्यों को भूलकर सिर्फ वाहवाही के लिए काम करूँ मगर हो नही पाता क्या करू यारो मै आदत से लाचार हूँ परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्...
बसंती मोसम
कविता

बसंती मोसम

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** आ गया बसंती मोसम सुहाना, गा रहा मन तराना। मिली राहत जिंन्दगी को, चेन दिल को आ गया, प्यार की अमराहयों से, गीत याद आ गया , आज अपने रंज गम को, चाहता हैं गम भुलाना, आ गया बसंती मोसम सुहाना। बाग की हर शाक गाती, झूमती कलियाँ दिवानी, पात पीले मुस्कुराते, मिली जैसे है जवानी, हर तरफ ही लुट रहा है, आज खुशियों का खजाना , आ गया बसंती मोसम सुहाना। सब मगन मन गा रहें है, आ गई ऐसी बहारें, प्राण बुन्दी मुक्त मन, दिलों की टूटी दिवारें, बहुत दिन के बाद उनका, आज आया है बुलावा, आ गया बसंती मोसम सुहाना। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख ल...
कोरोना के कोहरे
कविता

कोरोना के कोहरे

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** कोरोना की घने कोहरे की वीरानगी में छिपी दुबकी जिंदगी सूर्य की प्रखर किरणों की ताप से उल्लासित,सुवासित,मुखरित हो उठी है। विधालयो में पुनः मै देखता हूं कि छात्र -छात्राओं की संख्याओ में बेतहासा बृद्धि समृद्धि सी हो गई है। खिले धूप में फिर से पढन-पाढन आरम्भ हो गई है पढन से उत्साहित छात्र छत्राए एक नई जीवन की उम्मीद बांध एक नईं स्फूर्ति के साथ नये वर्ग में माँ सरस्वती की आराधना में अपने आपको सतर्कता के साथ संलग्न कर। जिन्दगी की डोर को स्नेह और करुणामयी याचना के साथ इस कोरोना के कालखण्ड में। ओत प्रोत हो माँ शारदे कि कर कमलों में समर्पित अर्पित कर रहा है अपना सब कुछ। कोरोना के घने कोहरे की वीरानगी में छिपी दुबकी जिंदगी ,उल्लासित,सुवासित फिर से मुखरित हो उठी है। वैक्सिन के लिए अपने राष्ट्र के महान वैज्ञानिको को धन्यवाद ज्ञापित कर रहे है। पर...
बीच राह में छोड़कर
ग़ज़ल

बीच राह में छोड़कर

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** बीच राह में छोड़कर जाने के लिए शुक्रिया दर्द दे दे के मुझको रुलाने के लिए शुक्रिया। मंजिल मुझे मिल ही गई जैसे-तैसे ही सही मेरी राह में कांटे बिछाने के लिए शुक्रिया। समय से सीख रखी थी तैराकी मैंने कभी साजिशन मेरी नाव डुबाने के लिए शुक्रिया। मेरा सबकुछ लुटा हुआ है पहले से ही यहां मेरे घरौंदे में आग लगाने के लिए शुक्रिया। दुख दर्द तुम न देते तो कलम चलती नहीं ग़म-ए-घूँट मुझको पिलाने के लिए शुक्रिया। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि...
इतना मत डूबो…
कविता

इतना मत डूबो…

संजय जैन मुंबई ******************** देखकर दर्द को कठोर से कठोर। इंसान का पत्थर दिल भी पिघलता है। और हमदर्दी के दो शब्द उसे बोलता है। जिससे उसका दर्द थोड़ा कम होता है।। दौलत के नशे में इतना मत डूबो। की समाने तुम्हें कुछ दिखे ही नहीं। क्योंकि रास्ते हमेशा सीधे सीधे नहीं होते। इसलिए उन्हें देख कर ही चलना पड़ता है।। मिट गई हस्तियां बड़े बड़े साहूकारों और जमीरदारो की। फिर भी ये संसार आज तक चल रहा है। और अपनी-अपनी करनी का वो फल भोग रहे है। और संसार चक्र में उलझकर अपना जीवन जी रहे है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते र...
पीपल
कविता

पीपल

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैं एक वृक्ष पीपल का अनेक झंझावात झेल आज खड़ा हूँ सुद्रढ़ तना व गहरी जड़ो के साथ। दीर्घ जीवन का प्रतीक हूँ प्राणवायु उत्सर्जन ही मेरा कर्मयोग है कच्चे धागों से बंध मैं खड़ा हूँ जीवन के साथ। मैं विश्वास भी हूँ और आस्था भी जड़ हूँ पर चेतन भी मैं गतिमान हूँ निष्काम भाव के साथ। तुझ सी सुकोमल लता के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है मेरा सुद्रढ़ तना मेरा भाग्य तय करेगा की तुम पुष्प पल्लवित लता बन मुझे महकाती हो या छा जाओगी मेरे ऊपर अमरबेल सी अपनी नियति के साथ। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्...
वसंत गीत
कविता

वसंत गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** मधुर भूतकालीन क्षणों को, मानस पट पर लाता है। मन में प्रेम हिलोरें लेता, जब वसंत आ जाता है। जब मन प्रिय की यादों में खो, मौन-मुखर संवाद करे। अनुरागी अंतर का उपक्रम, तन-मन का संताप हरे। नयन चमकते हैं उत्साही, हर्षित उर इठलाता है। मन में प्रेम हिलोरें लेता, जब वसंत आ जाता है। हृदय कल्पना लोक लीन है, धड़कन 'प्रिय-प्रिय' गाती है। हवा वही परिचित प्रिय सौरभ, सांसों में भर जाती है। अभिलाषा-सागर अंतर में, बार-बार लहराता है। मन में प्रेम हिलोरें लेता, जब वसंतआ जाता है। आदिकाल से प्रीति धरा पर, दिशा-दिशा में छाई है। मनुज ही नहीं जड़-चेतन ने, इसकी महिमा गाई है। सुखद प्रेम का धरा-गगन से, युगों-युगों से नाता है। मन में प्रेम हिलोरें लेता, जब वसंत आ जाता है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान...
जिंदगी का सफर
कविता

जिंदगी का सफर

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** अगर जिंदगी है तो मुश्किलें आती रहेंगी, अगर आगे बढ़ना है तो मुश्किलें आती रहेंगी... जैसे नदियां बहती जाती है, पर्वतों को काटकर, जैसे सूरज निकलता है रोज, अंधेरे को मिटाकर।। जैसे चंदा बढ़ता पूनम को, अमावस को पारकर, वैसे ही मन्ज़िल को पाना है, तो मुश्किलों को हराकर।। हार कर यूं बैठ जाना किसी समस्या का हल नहीं, ऐसे मुश्किलों से घबराना, जिंदगी का मक़सद नही।। थककर बैठने वालों को मंजिल कहा मिलती है, और कोशिश करने वालो की कभी हार नही होती है।। अगर जिंदगी है तो मुश्किलें तो आती ही रहेंगी, तू मुश्किलों का सामना कर, और कर्म पथ पर बढ़ता चल, बढ़ता चल।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी...
आँसू
कविता

आँसू

ममता रथ रायपुर ******************** बड़े मासूम से होते है आँसू मेरे दोस्त दिखते है मोतियो से पर पानी से होते है दुख हो या सुख, भावनाओं के रूप मे बहते है कह जाते है वो भी जो बातें अनकहे होते है जीवन के सूनेपन मे ये दोस्त बन जाते है आँखों से ये पतझड़ के पत्तों के तरह गिरते है आँसू की बरखा मे जो भीगते है वही जीवन का मधुर गीत सीख पाते है बहुत तकलीफ देते है वो जख्म जो बिना कसूर के मिलते है परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी क...
आत्म चिंतन सूत्र
कविता

आत्म चिंतन सूत्र

संजय जैन मुंबई ******************** चार रोटी हजम कर लेते हो तो। किसी की चार बातें भी हजम करना सीखो। कह गये कड़वे शब्दो पर मौन रहकर विचार करो। और समय का इंतजार करो उन्हें अपनी की करनी का फल इसी भव में मिल जायेगा। इसलिए अपनी शक्ति को यू ही बर्बाद मत करो।। अमीरी दिलसे होती है धन से नहीं। सुखकी प्राप्ति दान से होती है धन संग्रह से नहीं। पाप की नींव पर पुण्य का महल खड़ा नहीं होता है। इसलिए धर्म को चुने और परिग्रह से बचे।। कोई भी संकट मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं। हारा वही, जो संकट से लड़ा नहीं। इसलिए अपने कर्म पर यकीन करो। और वेबजह की चिंता करना तुम छोड़ दो।। धन से सुविधायें तो जुटाई जा सकती हैं। किंतु आत्म सुख सन्तोष नहीं। क्योंकि साम्राज्य की अपेक्षा सम्यग्दर्शन अधिक मूल्यवान है। इसे प्राप्त करने की अपने जीवन में कोशिश करो।। जितने की आवश्यकता है उतने का उपयोग करे। बाकी का उन्हें दे जिन्हें ...
मेरी कलम नहीं मेरे वश में
कविता

मेरी कलम नहीं मेरे वश में

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरी कलम नहीं मेरे वश में मुझे ‘क’ से कविता लिखनी थी, कविता के लिए कविता लिखनी थी। बड़े शब्द सँजोए थे मैंने, एक प्रेम धार जो बहनी थी। पर ‘क’ से कातिल दिखा गई जो खाते हैं झूठी कसमें... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘ख’ से खुश मिजाज होकर मुझको, कुछ गीत खुशी के लिखने थे, बोली मुझसे खामोश रहो, तुम कुछ तो धीरज धरा करो। जो खास तुम्हारे बनते हैं, धोखा है उनकी नस-नस में... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘ग’ से गर्वित होकर मैं कुछ क्षण, अपने गणतंत्र पे इतराया। बोली चौकन्ने रहो सदा, बुन रहा जाल काला साया। जो पाक नाम से दिखते हैं, है ज़हर भरा उनके मन में... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘घ’ से घर लिखना चाहा तो, बोली घमंड किस बात का है? माँ-बाप रहें वृद्धाश्रम में, बेटा-बंगले में सोता है! ऐसा हर घर वो खाल...
मुश्किल राहें
कविता

मुश्किल राहें

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** मुश्किल राहे लग रही, आज बनी हालात, कहीं किसान आंदोलन, चलती दर्द बारात, नहीं पता किस मोड़ पर, ले जाएंगी ये राहें, बैर भाव सब त्याग दो, देश फैला रहा बांहें। मुश्किल राहें लग रही, युवा खड़ा है दोराहे, उल्टी सीधी बातें करे, होकर खड़ा चौराहे, युवा वर्ग के चेहरे पर, चिंता की लकीरें है, चलना चाहिए तेज गति, चलता धीरे-धीरे है। मुश्किल राहें आज हैं, रोजगार है बदहाल, चपड़ासी की नौकरी, लाखों बजा रहे ताल, बेरोजगारी, भुखमरी, दे रही जमकर दुहाई, आज गर बदहाल है, भविष्य का क्या हाल। मुश्किल राहें लग रही, भविष्य की इंसान, छोटी उम्र में जा रही, देखो जान पर जान, फास्ट फूड और मांसाहार, बना खास खाना, दूध, दही, घी,मक्खन, किसी ने न पहचाना। मुश्किल राहें लग रही, निर्धन जन संसार, नंगे भूखे मर रहे, उनको दो रोटी से प्यार, गरीब गरीब बन रहा, नहीं दे रहा है...
नूतन वर्ष
कविता

नूतन वर्ष

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बिखेरीं रश्मियां रवि ने, करो स्वागत सभी मिलकर। उषा की लालिमा सा तेज, बिखराओ कहे दिनकर।। अमावस निशि स्याह चाहे, चांद पूनम उजाला है। अटल हैं यह समझ लो तुम, प्रकृति का क्रम निराला है।। ना होता चाहने से कुछ, अथक श्रम तो जरूरी है। सफलता फिर कदम चूमे, हर एक अभिलाष पूरी है।। करो तुम कर्म अपना बस, नहीं चिंता करो फल की। समय खुद पथ-प्रदर्शक है, न यह चर्चा किसी बल की।। करो आगाज वर्ष नूतन, विचारों के नए किसलय। नयी सुर तान छेड़ो फिर, रखो गतिमान जीवन लय।। जा बेटा है तुझे सलाम।। परिचय :- संजू "गौरीश" पाठक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
बेवजह रोने की वजह बता
ग़ज़ल

बेवजह रोने की वजह बता

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बेवजह रोने की वजह बता मत छुपा घुटन बता बता जुल्म सहता ही चला गया कोई है जो इसकी खता बता वो जिया सिर्फ तेरी आस में वादा पूरा किया तूने बता बता नाजुक होती है यकीन की डोर तुझ पर किया यकीन खता बता किसी से इतना न खेलिए जनाब मौत पूछने लगे उसका पता बता टूट टूट के बिखरा, धैर्यशील, वो पूछे क्या बचा है बता बता परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
मन का गीत
कविता

मन का गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** दृश्य सुहाने देख-देखकर, राहों में ही अटक रहा। असमंजस में मेरा मन, गंतव्यों से भटक रहा। मन पर निर्भर हैं अच्छे फल, मन से सब कुछ संभव है। मन से होती महा विजय है, मन से सुख है वैभव है। जीवन की सब गतिविधियों में, मन निर्णायक घटक रहा। असमंजस में मेरा मन, गंतव्यों से भटक रहा। कभी इधर है कभी उधर यह, रहता है बेचैन सदा। आवारा बन घूमा करता, तन में रहता यदा-कदा। धरती से नभ तक हर पल ही, विचलित होकर सटक रहा। असमंजस में मेरा मन, गंतव्यों से भटक रहा। मनमानी करता अक्सर मन, कभी नहीं मेरी सुनता। अपनी ही धुन में रहता है, जाने क्या-क्या है बुनता। पता नहीं क्या भाव सँजोए, मन चंचल नित मटक रहा। असमंजस में मेरा मन, गंतव्यों से भटक रहा। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाष...
बसंत
कविता

बसंत

ममता रथ रायपुर ******************** नव जीवन का उपहार है बसंत भंवरे और कलियों की पुकार है बसंत धरती सजी है सरसों की पीली चादर ओढ़कर प्रकृति का यही श्रृंगार है बसंत कोयल की आवाज गूँज रही है वन में उसे सुन मन मे उठी झंकार है बसंत चारों ओर आम बौराया हुआ है महुआ की मादकता का नाम है बसंत परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
मैं सुगन्ध हूँ
गीत

मैं सुगन्ध हूँ

महेश चंद जैन 'ज्योति' महोली ‌रोड़, मथुरा ******************** मैं सुगन्ध के झोंके जैसा, महक रहा हूँ गुलशन में। बसा हुआ हूँ मैं पुष्पों में, खिलती कलियों के मन में।। कैसे आया मैं फूलों में इसका मुझको ज्ञान नहीं, महकाता केवल दुनियाँ को और न जाता ध्यान कहीं, मैं बचपन के भीतर चहकूँ दहकूँ उफने यौवन में।.... भोर हुए नवजीवन पाता साँझ ढले मुरझाता हूँ, झरता है जब पुष्प डाल से कहाँ किधर खो जाता हूँ, रंगों से क्या लेना मुझको देना सीखा जीवन में।..... मेरे रूप हजारों महकें विदुर गुणी इन्सानों में, नहीं भूलकर रह पाता हूँ हैवानों शैतानों में, पाँखुरियों में घर है मेरा नहीं मिलूंगा कंचन में।.... मुझसे प्यार करो तो आओ अपना मुझे बना लेना, थोड़ी देकर जगह मुझे तुम अपने हृदय बसा देना, महका दूंगा अंतर्मन को गंध उठे ज्यों चन्दन में।... परिचय :-महेश चंद जैन 'ज्योति' निवासी : महोली ‌रोड़, मथुरा घोषणा पत्र : मैं ...
दरदर का बना दिया जिसको
ग़ज़ल

दरदर का बना दिया जिसको

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** दरदर का बना दिया जिसको, बेघर वो मजा चखाएगा। धरने पर बैठा अब तक जो, हलधर वो मजा चखाएगा।। सर्दी की ठिठुरन से खेला, मौसम का कहर बहुत झेला। टप-टप टपका जो दर्दों का, छप्पर वो मजा चखाएगा।। खुरदरे वक्त के पत्थर ने, नादानो धार जिसे दी है। मिलते ही मौका देखोगे, खंजर वो मजा चखाएगा।। तूफान समेटे रहता है, मत खेलो गहरे दिल से तुम। उफना तो मातम पसरेगा, सागर वो मजा चखाएगा।। बच्चों की खुशियों के आगे, हर बाधा बोनी होती है। जो शपथ उठाई है उसका, हर अक्षर मजा चखाएगा।। जिद की सत्ता ने सड़कों पे, इतिहास लिखा खूँ से अक्सर। घायल दिल को जो चीरगया, नश्तर वो मजा चखाएगा।। अभिमान नहीं अच्छा होता, उड़ने वालों ना भूलो ये। पगड़ी जब जूतों में होगी, मंजर वो मजा चखाएगा।। कमजर्फ जिसे तुमने समझा, पर काट अपाहिज कर डाला। "अनंत" देखना तुम्हें कभी, बेपर वो मजा चखाएगा।...