दरदर का बना दिया जिसको
अख्तर अली शाह "अनन्त"
नीमच
********************
दरदर का बना दिया जिसको,
बेघर वो मजा चखाएगा।
धरने पर बैठा अब तक जो,
हलधर वो मजा चखाएगा।।
सर्दी की ठिठुरन से खेला,
मौसम का कहर बहुत झेला।
टप-टप टपका जो दर्दों का,
छप्पर वो मजा चखाएगा।।
खुरदरे वक्त के पत्थर ने,
नादानो धार जिसे दी है।
मिलते ही मौका देखोगे,
खंजर वो मजा चखाएगा।।
तूफान समेटे रहता है,
मत खेलो गहरे दिल से तुम।
उफना तो मातम पसरेगा,
सागर वो मजा चखाएगा।।
बच्चों की खुशियों के आगे,
हर बाधा बोनी होती है।
जो शपथ उठाई है उसका,
हर अक्षर मजा चखाएगा।।
जिद की सत्ता ने सड़कों पे,
इतिहास लिखा खूँ से अक्सर।
घायल दिल को जो चीरगया,
नश्तर वो मजा चखाएगा।।
अभिमान नहीं अच्छा होता,
उड़ने वालों ना भूलो ये।
पगड़ी जब जूतों में होगी,
मंजर वो मजा चखाएगा।।
कमजर्फ जिसे तुमने समझा,
पर काट अपाहिज कर डाला।
"अनंत" देखना तुम्हें कभी,
बेपर वो मजा चखाएगा।...