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पद्य

पिताजी का महत्व
कविता

पिताजी का महत्व

रागिनी मित्तल कटनी, मध्य प्रदेश ******************** पिता के साथ वो बाजार जाना। आगे-आगे उछल के थोड़ा जल्दी आना। हर चीज की तरफ उंगली दिखाना। पापा का चुपचाप दिलवाना। बाजार में हम खुद को समझते सम्राट थे। जब पिताजी थे तो बड़े ठाट बाट थे। पाठशाला में जब पिता के साथ जाते। अध्यापक जी मेरी शिकायत लगाते। आंखों ही आंखों में मुझको धमकाते। पर हम तब नहीं आंखें झुकाते। क्योंकि, पिता जो होते हमारे साथ थे। जब पिताजी थे तो बड़े ठाट-बाट थे। भाई बहनों में होती लड़ाई थी। मैं उससे कभी नहीं जीत पाई थी। वह मुझ को मार कर भाग जाता था। पापा से ना कहना वह धमकाता था। लगे ना लगे मैं तब तक रोती थी, जब तक ना आ जाएं पिता जी पास थे। जब पिताजी थे तो बड़े ठाट-बाट थे। थी नौकरी छोटी सी, फरमाइशें सबकी। पूरा करते थे फिर भी ख्वाइशें सबकी। कोशिश करते थे कोई रह ना जाए। इसीलिए स्कूल के साथ वो ट्यूशन पढ़ाएं। काम कर-कर उनके खस्त...
रिश्ते … 2
कविता

रिश्ते … 2

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** रिश्ते तरह-तरह के कुछ दूर के, कुछ पास के और कुछ आसपास के कुछ निभाए जाते है मिलकर तो कुछ दूरभाष से है जीवित कुछ रहते हमेशा साथ भले ही उनमे न हो मिठास अब क्या कहूं रिश्तों की परिभाषा इन पर ही टिकी रहती सबकी आशा जिस रिश्ते में जितनी आशा अक्सर मिलती वही निराशा जहाँ जितना अंध विश्वास वही आ जाती है खटास कुछ रिश्ते है बड़े रसीले कभी है खट्टे कभी है मीठे ऐसे रिश्तों से टिका परिवार सारा इनके बिना न जीवन गुजारा लेकिन एक रिश्ता है अटूट जिसमे चलता कभी न झूठ वो रिश्ता है आत्मा का परमात्मा से और अपना अपनी अंतरात्मा से बस यही रिश्ता है अनमोल अगर समझ सको इसका मोल परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया ह...
शरद ऋतु
कविता

शरद ऋतु

सपना दिल्ली ******************** शरद ऋतु आते ही सूरज दादा भी खेलें हमसे आँख मिचोली देर से आते जल्दी चल बनते, कभी रहते दिन भर गायब.... दिन निकलता पर होता नहीं उजाला चारों ओर रहता अंधेरा छाया ऐसा लगता मानो कोहरे का आतंक सब पर है भारी..... उस पर सर्द हवाएं, शीत लहर से कट कट करते दांत बजते रोज़ नहाना होता बेहाल पानी भी बन जाता  दुश्मन देखते ही इसे भागते सब दूर दूर... कबंल, रजाई छोड़ उठने की न अब हिम्मत होती गर्म कपड़े डालो जितना फिर भी ठंड से राहत नहीं उस पर भी जुकाम, खांसी सबको लेते अपने घेरे में होठ, पैर सब फट जाते मानो जैसे रुखापन जीवन में बस जाता... गली, मुहले  में अब न होती पहली वाली रौनक सब घर के अंदर दुबके है मिलते चारों ओर बस सन्नाटा छाया रहता..... रहम करो अब तो हम पर सूरज दादा चीर इस कोहरे को अपनी किरणों से तुम फिर से अपना परचम लहराओ ठिठुरते जीवों को आकर तुम राहत दो...! परिचय :-...
सरकारी स्कूल
कविता

सरकारी स्कूल

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** सरकारी स्कूलां दी क्या रीस पैअलिया ते आठुंईयां तक बिल्कुल नी लगेया दी फीस। दपेहरें जेबे लगेया दी पुख आदी छुट्टिया री कन्टी बाज्जदेई खाणा देउंई एम,डी, एम री कुक। पैअलिया ते बारुंईयां तक दो-दो बरदियां एकदम मुफत। दो सौ रपईया नाल सलाई हिमाचले दी सरकारे ऐ बड़ी खरी योजना चलाई। दसुंईयां तक कताबां फ्री ऐते करिके बोलदे- सरकारी स्कूलां दी क्या रीस। बेटियां दी नी लगदी ट्युशन फीस सरकार देयादी पांति-पांति रे सकौलरसिप। खरे पढाकुआं जो मिलदे लैपटोप बोरड़ मैरिटा च आणे आलेआं जो रपईया मिलदा दस हजार। ऐते करिके हूंदी सरकारी स्कूलां दी जय-जयकार। हर बच्चे दी सेअत जांच हपते बाअद फॉलिक एसिड गोली साला च दो बार डी वर्मिंग गोली जवान बच्चियां जो सैनेटरी नेपकिन फ्री बस पास री सुबिदा खास। पैअली, तिजी, छेउंई, नउंईं कलास फ्री स्कूल चौअले मिलदे खास। ईकॉ फ...
अभी अधूरा अभिनन्दन है
गीत

अभी अधूरा अभिनन्दन है

महेश चंद जैन 'ज्योति' महोली ‌रोड़, मथुरा ******************** दीपक अभी नहीं जल पाया, माँ के मन की आशा का। अभी अधूरा अभिनन्दन है, अपनी प्यारी भाषा का।। यों तो सिंहासन पर हमने, लाकर इसे बिठाया है, पर अपने ही हाथों से, विष प्याला इसे पिलाया है, टूट गया है कच्चा धागा, इसकी मन अभिलाषा का। अभी अधूरा अभिनंदन है, अपनी प्यारी भाषा का।।(१) बड़े अनूठे अक्षर अनुपम, अद्भुत शक्ति भरे प्यारे, अनुस्वार लगते ही करते, ब्रह्मनाद मिलकर सारे, हर अक्षर है एक योगिनी, अंत न ज्ञान पिपासा का। अभी अधूरा अभिनंदन है, अपनी प्यारी भाषा का।।(२) अब तक मान दिया है थोथा, फिर भी तो मुस्काते हैं, देख रहे दुर्दशा मौन हम, मन में नहीं लजाते हैं, दूर करो अँधियार आवरण, तोड़ो धुंध कुहासा का। अभी अधूरा अभिनंदन है, अपनी प्यारी भाषा का।।(३) छंद गीत कविता मल्हार का, नीर अमिय सम पिलवायें, रसिया राग रागिनी के फल, मेवा व्यंजन खिलवायें,...
शशि सम तेजस्विनी हिंदी
कविता

शशि सम तेजस्विनी हिंदी

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** भाषाओं के नभ में शोभित शशि-सम तेजस्विनी हिंदी संस्कृत इसकी दिव्य जननी यशश्विनी इ दुहिता हिंदी राष्ट्र की संस्कृति-वाहक भारत की सिरमौर हिंदी सरस्वती वीणा से झंकृत देववाणी है यह हिंदी व्याकरण इस का वैज्ञानिक परिष्कृत प्रांजल है हिंदी हर अभिव्यक्ति में सक्षम सशक्त सरल संप्रेषणीय हिंदी स्वर-व्यंजनों से सुसज्जित अयोगवाह अलंकृत हिंदी रस छंद अलंकार से मंडित बह चली सुर-सरिता हिंदी विश्वस्तरीय औ कालजयी साहित्य-सृजन-सक्षम हिंदी तुलसी सूर मीरा निराला के हृदय की रानी हिंदी हिंद की साँस में बसती यह जन जन की प्यारी हिंदी कश्मीर से कन्याकुमारी श्वास-श्वास-बसी हिंदी बहुभाषा भाषी हैं हम, तो सबको मान देती हिंदी सभी भाषाओं को एक ही सूत्र में पिरोती हिंदी दोनों ही बाँहें फैलाए सभी को अपनाती हिंदी अंँग्रेजी उर्दू सब बोली को बिन दुर्भावना वरे हिंदी...
चांदनी के पैरहन
कविता

चांदनी के पैरहन

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** चांदनी के पैरहन लेकर ज़मीं पर, ये तुहिन कण इस तरह पहना रहे हैं। पत्ते पत्ते पर नयी लिखकर कहानी, लग रहा है गम सभी दफना रहे हैं। हर तरफ लगती धवल चादर बिछी कालिमा नज़रें चुरा जाने लगी है। अनसुनी सी थाप पर सरगम जगी पाज़बें नूपुर संग गाने लगी है। एकटक नीहार रश्मि को निरखते, ये खिला मन तो हुआ जाता भ्रमर सा। टहनियां यूं झुक गयीं अभिसार में, आचमन ज्यों हो रहा प्यासे अधर का। यह नज़ाकत ही न बन पायी जो आदत, बर्फ का ही रूप ले लेंगे तुहिन कण। अहम का कोहरा घना हो जायेगा, ठहर कर जमते चले जायेंगे हिम कण। परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमें...
देश मालामाल है
कविता

देश मालामाल है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** क्यों फिक्र तुम्हें देश की है क्या मलाल है। क्या देखते नहीं हो देश मालामाल है।। स्टेचू गगन चुंबी यहां हैं हमारे पास। आश्चर्य जहां का है ताज हमारी मिरास।। किले बड़े-बड़े हैं ऐसे किसके हैं निवास। संसदभवन अब औरनया बन रहा हैखास।। दुनिया के साथ हमने मिलाए कदम सदा। हरअपना कदम इस जहां में बेमिसाल है।। क्यों फिक्र तुम्हें देश की है क्या मलाल है। क्या देखते नहीं हो देश मालामाल है।। अब माल हैं बड़े-बड़े करोड़ों के गोदाम। आश्वस्त हैं इसओर चल रहा हैऔर काम।। महंगाई तरक्की की शक्लहै करो सलाम। मदिरा सरे बाजार बिक रही है सरे आम।। हरहाथ मेंअब काम है दुनिया का ज्ञान है। घर बैठे पूंछ लेते हैं क्या हाल-चाल है।। क्योंफिक्र तुम्हें देश की है क्या मलाल है। क्या देखते नहीं हो देश मालामाल है।। अब देखिए रेलों की ही रफ़्तार देखिए। मेट्रो का कितना हो रहा विस्ता...
सत्संग
कविता

सत्संग

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मुझे मेरे होने पर अहंकार है राग, द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध मेरे अलंकार है। करू हर काम मे मनमानी मैं जो ठहरा अभिमानी देख दुसरो का दुःख मुझे अच्छा लगता है दुसरो को दुःख देना मुझे अच्छा लगता है परपीड़ा में आता मुझे आनंद है हँसते हँसाते चेहरे मुझे नापसंद है हम प्रजा हम ही सरकार है राग, द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध मेरे अलंकार है। दुसरो की बात मैं क्यों मानु अपराध बोध मैं न जानु स्वार्थसिद्धि मेरा लक्ष व धाम है मुझे दुसरो से नही कोई काम है पर निंदा में आता मुझे रस है दुसरो को दबाने में ही जस है ब्रह्मांड सा मेरा विस्तार है राग, द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध मेरे अलंकार है। कर ले तू मन मानी चाहे जितनी मार ठोकर दुनिया को चाहे जितनी समय का पहिया रहा है घूम आज तू मद में चाहे जितना झूम दब जाएगा मिट्टी में जल जाएगा भट्टी में कर ले तू अभिमान मूढ़ तू क्या जाने जीवन के ग...
सजल-जरुरी तो नहीं
कविता

सजल-जरुरी तो नहीं

विकाश बैनीवाल मुन्सरी, हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** तुझसे सुबह शाम मिलूँ, जरूरी तो नहीं, तेरे नाम पे गजलें कहूँ, जरूरी तो नहीं। बेशक बेइंतहा है प्यार, तुझसे जानेमन, मैं इसका दिखावा करूँ, जरूरी तो नहीं। जीना पड़ता है, परिवार-समाज देखकर, बस प्यार ही सर पर धरूँ, जरूरी तो नहीं। जग से छुपा हुआ, पवित्र रिश्ता है अपना, इस बात का हल्ला करूँ, जरूरी तो नहीं। एक बार कह दिया, अनूठा प्रेम है हमारा, जानू-जानू कहता फिरूँ, जरूरी तो नहीं। हमारी बातें तो हो जाती है, चिट्ठियों में, तेरी गली में आता रहूँ, जरूरी तो नहीं। दिल से याद करता है तुझे ये "विकाश" बस हिचकियों में ही रहूँ, जरूरी तो नहीं। परिचय :- विकाश बैनीवाल पिता : श्री मांगेराम बैनीवाल निवासी : गांव-मुन्सरी, तहसील-भादरा जिला हनुमानगढ़ (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक पास, बी.एड जारी है घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार ...
लाचार नहीं है नारी
कविता

लाचार नहीं है नारी

दुर्गादत्त पाण्डेय वाराणसी ******************** कभी सुना है, आपने? उस देवी के बारे में जो हर -वक़्त, जिम्मेदारीयों तले खुद को, समर्पित किए है, टूटी झोपड़ी को, लिपना ताकि, झोपडी की दीवारें जल्दी फट न जाए. कम ही खाती है, वो कहीं खाना, मेरे बच्चों को घट न जाये, कम ही सोती है, वो आराम, उसके लिए अपराध है मजबूरियों की चक्की में खुद को पीसना यही उसकी, अनोखी याद है, कभी देखा है, आपने? खेतों में काम करते, उस माँ को हाथों में हंसिया लिए चिलचिलाती धुप में, जलते हुए अपनी किस्मत की, लकीरों को देखते हुए.. उन्हें देखकर, कभी हसते हुए कभी रोते हुए, कभी खुद ही सम्भलते हुए, क्या देखा है, आपने? उस माँ के नन्हें, उस बच्चे को जो खेतों के, मेड़ पर. माँ बसुंधरा के गोद में, ख़ुशी से उछल रहा हो बड़े -बड़े, महलों के गद्दे फीके सा लग रहें, उस मिट्टी के सामने, क्या समझा है, आपने?...
बोलती खिड़कियाँ
कविता

बोलती खिड़कियाँ

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** एक वो भी वक़्त था जब, खिड़कियाँ भी बोलती थी। खुशबू खाने की,पकवानों की, अपनापन जब घोलती थी, दौड़े आते थे पडौसी बच्चे, काकी जब चौका खोलती थी। रिश्ते खून के ना होते थे पर, मन से मन को जो जोड़ती थी। एक वो भी वक़्त था जब, खिड़कियाँ भी बोलती थी। आवाजें हँसने की, रोने की, होले- से सब कह देती थी। उमड़ पड़ते थे सब रिश्ते जब, बेटियाँ पीहर में डोलती थी। आस-पास के दो घरों को, जज्बातों से वो जोड़ती थी। एक वो भी वक़्त था जब, खिड़कियाँ भी बोलती थी। रौनक तीज की, त्यौहार की, जब गलियों-चौबारों में होती। घर-घर बतियाने लगते जब, मुस्कान हर चेहरे पर बोलती। फुहारें हँसी के वो छोड़ती थी, दिलों में खुशियाँ घोलती थी। एक वो भी वक़्त था जब, खिड़कियाँ भी बोलती थी। अब वो दिन कहाँ रहे जो, दो घरों को फिर जोड़ पाए। कीकर उगे है मनके भीतर, खिड़की कैसे खोली जाएँ। परायों में भी अपन...
मानव तेरा ऐसा स्वभाव होता
कविता

मानव तेरा ऐसा स्वभाव होता

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** काश मानव तेरा ऐसा स्वभाव होता हम इसके जीवन यह प्रकृति हमारी काया होती निस्वार्थ भाव से स्वयं देना प्रकृति का वरदान है निस्वार्थ भाव से सेवा करना मानव तेरा स्वभाव होता फिर ना शिक्षा व्यापार बनती प्राकृतिक वह प्राणी के लिए मन में दया का भाव होता हम इसके जीवन यह प्रकृति हमारी काया होती फिर ना यह कोरोना होता ना यह मास्क ना सैनिटाइजर होता फिर ना तू मुझसे दूर होता ना मैं तुझसे दूर होता दिल में दया का भाव होता तू भी आजाद में भी आजाद होता प्रकृति पर है सबका अधिकार ऐसा तेरा स्वभाव होता ना मैं तेरा दुश्मन ना तू मेरा दुश्मन होता हम सब मिलकर रहते हम सब मिलकर रहते तू धरती पर मैं पंछी मैं आकाश में उड़ता हम इसके जीवन यह प्रकृति हमारी काया होती फिर ना तू मुझसे दूर ना मैं तुझसे दूर होता काश मानव तेरा ऐसा स्वभाव होता परि...
आँखों के दोहे
दोहा

आँखों के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, म.प्र. ******************** आँखों से जग देखते, हैं आँखें वरदान। आँखों में संवेदना, आँखों में अभिमान।। आँखें करुणामय दिखें, जबआँखों में नीर। आँखों में अभिव्यक्त हो, औरों के हित पीर।। आँखों में गंभीरता, और कुटिलता ख़ूब। आँखों में उगती सतत, पावन-नेहिल दूब।। आँखें आँखों से करें, चुपके से संवाद। उर हो जाते उस घड़ी, सचमुच में आबाद।। आँखें नित सच बोलतीं, दिखता नहीं असत्य। आँखों के आवेग में, छिपा एक आदित्य।। आँखों में रिश्ता दिखे, आँखों में अहसास। आँखों में ही आस हो, आँखों में विश्वास।। आँखों में संवेदना, आँखों में अनुबंध। आँखों-आँखों से बनें, नित नूतन संबंध।। आँखों से ही क्रूरता, आँखों से अनुराग। आँखों से अपनत्व के, गुंजित होते राग।। आँखें पीड़ा,दर्द के, गाती हैं जब गीत। अश्रु झलकते, तब रचे शोक भरा संगीत।। आँखें गढ़तीं मान को,...
तिरंगा
गीत

तिरंगा

प्रतिभा त्रिपाठी भिलाई "छत्तीसगढ़" ******************** जियें भारत देश मेरा, जियें भारत देश मेरा। तीन रंगों से सजा तिरंगा मेरा। सारे जग से न्यारा है, यह तिरंगा प्यारा है। देश के वीर जवानों ने, तिरंगे की शान बढ़ाई है।। जियें भारत देश... वीरों ने बलिदान दिया, अंग्रेजों को मार भगाया। तब जाकर हमनें, यह तिरंगा फहराया है।। जियें भारत देश... गली-गली फहराऍं तिरंगा, भारत की शान बढ़ाएंगे। झंडा ऊंचा रहे हमारा, यही गीत दोहराएंगे।। जियें भारत देश.... तिरंगे में तीन रंग को, अपने जीवन में भरना है। केसरिया रंग साहस का, श्वेत रंग सच्चाई का।। जियें भारत देश... हरा रंग हरियाली लाता, जन-जन में खुशहाली भरता। नील गगन में फहराओं तिरंगा, लहर-लहर लहराओं तिरंगा।। जियें‌ भारत देश मेरा, जियें भारत देश मेरा तीन रंगों से सजा तिरंगा मेरा।। परिचय :- प्रतिभा त्रिपाठी निवासी : भिलाई "छत्तीसगढ़" घोषणा पत्र : मैं यह प्...
जब से जली है इस अँधेरे, उर कुटी में वर्तिका…
गीतिका

जब से जली है इस अँधेरे, उर कुटी में वर्तिका…

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** जब से जली है इस अँधेरे, उर कुटी में वर्तिका। नव पुष्पदल से सज गई है, प्रीत की हर वीथिका।।१ इस मन मरुस्थल में तृषा की, शेष है अब भी तड़प, आ मानसूनी मेह ने पल, में खिला दी मल्लिका।।२ गाने लगा है मन भ्रमर भी, गीत अब तो फागुनी, परिधान पुष्पों के पहन कर, आ गई जो वाटिका।।३ जब कोकिला ने कंठ में स्वर, भर दिए है काव्य के, नव छंद से नैना लड़ाने, चल पड़ी अब गीतिका।।४ जो तारिका मधु चूसने में, मग्न थी तन पुष्प से, इस गृहनगर की बन गई वह, आजकल संचालिका।।५ कुछ बिंब के तिनके लिए निज, नीड़ जो बुनती बया, उस छंद के नव नीड़ में नित, गुनगुनाती सारिका।।६ यह कृष्ण'जीवन' मग्न है बस, शारदे के द्वार पर, इस लेखनी ने राधिका बन, मन बनाया द्वारिका।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह ...
भूख
कविता

भूख

सूरज सिंह राजपूत जमशेदपुर, झारखंड ******************** मुझे बेशक गुनहगार लिखना साथ लिखना मेरे गुनाह, हक की रोटी छीनना। मैंने मांगा था, किंतु, मिला तो बस, अपमान, संदेश, उपदेश, उपहास, और बहुत कुछ। जिद भूख की थी, वह मरती मेरे मरने के बाद। इन, अपमानो, संदेशों, उपदेशो, उपहासो, से पेट न भरा, गुनाह न करता तो मर जाता मैं, मेरे भूख से पहले। मुझे बेशक गुनहगार लिखना लिखना, मैं गुनहगार था, या बना दिया गया। हो सके तो, लिखना, उस कलम की, मक्कारी, असंवेदना, चाटुकारिता, जिसकी नजर पड़ी थी, मुझ पर मेरे गुनाहगार बनने से पहले लेकिन, उसने लिखा मुझे, गुनहगार बनने के बाद। परिचय : सूरज सिंह राजपूत निवासी : जमशेदपुर, झारखंड सम्प्रति : संपादक- राष्ट्रीय चेतना पत्रिका, मीडिया प्रभारी- अखिल भारतीय साहित्य परिषद जमशेदपुर घोषणा : मैं सूरज सिंह राजपूत यह घोषित करता हूं...
आंखें बोलती है
कविता

आंखें बोलती है

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** मुंह से ज्यादा आंखें बोलती है दिल के सारे राज खोलती है किसी के प्रति उमड़ती है घृणा किसी के प्रति होता है प्यार आंख हर चीज बयां करती है मेरे यार उनकी आंखों की गहराई हम आज तक नाप न पाये जितना अंदर जाने की कोशिश की इसका कोई अंत न पाये आंखें काली या भूरी इन आंखों के बिना दुनियाँ है अघूरी किसी को दुखी देखकर भर आती है आंखें आंसुओं को समेटकर लाती है आंखें तुम्हारी आंखों से ज्यादा नशा नहीं मिलता मयखाने में बस तू मेरी हो जाय फिर क्या रखा है जमाने में आंखें हमारी होती है सपने किसी और के होते है किसी के प्यार में अक्सर हम यूं ही खोये होते है परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलि...
नया साल
कविता

नया साल

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** चलो फिर से एक नया साल आ गया उम्मीदें जगाने जैसे ख्वाब आ गया गुजरे हुए कल का जवाब आ गया ये साल कैसा होगा ये सवाल आ गया गये साल में जो नाकाम हुये थे उनके लिए उम्मीदों का सैलाब आ गया वक्त की मार से जो लहू-लुहान है उनके लिए जैसे ईलाज आ गया दो वक्त की रोटी जिनको नहीं नसीब जैसे पुराना वैसा नया साल आ गया रुपयों और पैसों का बिछौना हो जहाँ जैसा पुराना वैसा नया साल आ गया जिसका जैसा दिन था वैसा साल आ गया नया कुछ नहीं फिर भी नया साल आ गया लिखा है जो किस्मत में वो मिलेगा 'सुकून' नये साल का तो बस नाम आ गया चलो फिर से एक नया साल आ गया उम्मीदें जगाने जैसे ख्व़ाब आ गया परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी ...
वो हमारी ज़िन्दगी में
ग़ज़ल

वो हमारी ज़िन्दगी में

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** वो हमारी ज़िन्दगी में इस तरह छाने लगे। दिल किया उनके हवाले वो हमें भाने लगे।। हमने मिलने के लिए उनको बुलाया था यहाँ। हम यहाँ आए अभी हैं और वो जाने लगे।। हो गई वाबस्तगी कुछ ऐसी है उनसे हमें वो तसव्वुर में हमारे हर घड़ी आने लगे।। भूल बैठे हैं हमें वो इक ज़रासी बात पर। एक हम हैं जो उन्हीं के गीत बस गाने लगे।। होसले जिनके कभी होते नहीं मज़बूत हैं। सिर्फ़ आहट से ही ऐसे लोग घबराने लगे।। शायरी का इल्म जिनको है नहीं कुछ भी मगर। वो ग़ज़ल पढ़ने के ख़ातिर मंच पर जाने लगे।। बढ़ गए आगे 'शलभ' कुछ लोग झूठी चाल से। बेइमानी से वो अब सम्मान भी पाने लगे।। परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान ...
किसान का हाल
कविता

किसान का हाल

संजय जैन मुंबई ******************** सारे देश को जो अन्न देता खुद लेकिन भूखा सोता। फिर भी किसी से कुछ कभी नहीं वो कहता। क्या हालत कर दी उनकी देश की सरकार ने। कठ पुतली सरकार बन बैठी देश के पूंजीपतियों की। तभी उसे समझ न आ रही तकलीफे खेतिहर किसानो की।। सारे देश को जो अन्न देता खुद लेकिन भूखा सोता..।। जब भी विपत्ति देश पर आती अपना सब कुछ वो लगा देते है। भले ही तन पर न हो कपड़ा पर खेत को बोता है। सब कुछ गिरवी रख देता पर फर्ज न अपना भूलता। और सभी की भूख को खुद भूखा रहकर मिटता। ऐसे होते है अपने देश के सारे ये किसानगण।। सारे देश को जो अन्न देता खुद लेकिन भूखा सोता..।। बहिन बेटी और बीबी के सारे गहने रख जाते है। लाला साहूकार के पास और कभी-२ भूमि भी गिरवी रखी जाती किसान की। और नहीं छोड़ता हल चलाना अपने वो खेतो में। और छोड़ता देता अपने खेतो को ईश्वर के आशीष पर। फिर चाहे कुछ भी पैदा हो उस ईश्वर की...
भारतीय नववर्ष
दोहा

भारतीय नववर्ष

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** नवल किरण धारण किए, आया है नववर्ष। सदा सहायक हों प्रभो, बना रहे उत्कर्ष।। नवल वर्ष में माँ करो, हम सबका कल्याण। हरो सकल संताप-दुख, हों हर्षित मन-प्राण।। आई विपदा अब टले, भागें सारे रोग। हिल-मिल कर हम सब रहें, बना रहे संयोग।। संकट भारी आ पड़ा, सकल विश्व है त्रस्त। कोरोना की मार से, सभी हुए भय- ग्रस्त।। नवल वर्ष की माँ मिले, यह अनुपम सौगात। हम सब मिल कर दे सकें, कोरोना को मात।। करो दया हे मातु अब, सब जन हों खुशहाल। हाथ पसारे हैं खड़े, माता तेरे लाल।। परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- रा...
नया वर्ष मुबारक हो
कविता

नया वर्ष मुबारक हो

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** नये वर्ष का नया सूर्य यूं किरणे नई बिखेरे। गमके अंधियारे मिट जाएं खुशियां डाले डेरे।। सुख सागर में जीवन नौका बढे निरंतर आगे। बगियामें गुल खिलने वाले रहें न कोई अभागे।। समृद्धि की अमर बेल फिर जीवन पे छा जाये। फिरअभावकी असि नकोई जख्मकभी देपाये।। नूतन स्वर सुख के फूटे कानों में अमृत घोलें। जीवन कानन में अवसर के मोर पपीहे बोलें।। प्यारमिले सागर से गहरा मीत मिले सुखदायी। दूर रहे तन मन से दर्दों की काली परछाई।। इतनीमिले संपदा निशदिन घर छोटापड़ जाये। पांव उठानेसे पहले मंजिल चलकर खुद आये।। नवगतिनवलय अवचेतन मनको करदें स्पंदित। मनवीणा की मधुररागिनी तनकरदेआल्हादित।। आराधन करते करते आराध्य बने आराधक। फर्क मिटे दोनों में दाता कौन, कौन है याचक।। पीकर अमर प्रेम की हाला देह अमर हो जाये। जीवन मरण चक्र से जीवन ऊपर हो मुस्काये।। परिचय :- अख्तर अली ...
सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में
कविता

सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** तन में हो उत्साह और आशाएँ मन में। सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में। बाधाओं से हार न मानें। पथ की कठिनाई पहचानें। आवश्यकताओं को जानें। जो करना है मन में ठानें। विजय पताका फहराएं फिर नील गगन में। सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में। कवच सुरक्षा का हो सक्षम। रहें नहीं आशंका या भ्रम। न हो आक्रमण कोई निर्मम। चाहे कैसा भी हो मौसम। रहें सुरक्षित सभी विश्व रूपी उपवन में। सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में। हो कोई धनवान या निर्धन। आबादी हो या हो कानन। बाहर हो अथवा घर-आँगन। करें सभी नियमों का पालन। रहें मनुज सब अपने-अपने अनुशासन में। सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में। नारी हो अथवा वह नर हो। सतत् सत्य ही का सहचर हो। जो अंदर हो वह बाहर हो। सदा ध्यान में परमेश्वर हो। नित्य आचरण में, वचनों में अथवा मन में। सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में। भावशून्यता ...
नागरिक की अभिलाषा
कविता

नागरिक की अभिलाषा

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** अखबारों में न हो कोई सनसनीखेज खबर टी वी चैनलों पर न हो अनावश्यक मुद्दों पर निरर्थक बहस। हर सवार चलता रहे रोड पर नियमानुसार बाएं पैदल चले फुटपाथ पर सायकल दौड़े उसके ट्रेक पर हो खड़े रेहड़ी ठेले वाले अपने नियत स्थान पर निगम कर्मी ट्रैफिक कर्मी हो सच्चे जन सेवक नागरिक करे उनका अभिवादन हस हस। नेताजी के कार्यक्रम न हो सड़क पर न मने भाई साहब का जन्मदिन सड़क पर न हो दुल्हेराजा कि बारात हावी सड़क पर बे वजह न बजाए कोई हॉर्न कचरा न फेंके सड़क पर खाके पॉपकॉर्न हो जाये बंद दस बजे रात्रि में बजता जो डीजे ज्यास्ति में शहर के हर कोने में हो अनुशासन के दरस हर कोई बोल पड़े वाह वाह बरबस। सरकारी कार्यालय हो सुविधा के साथ सहयोग पूर्ण नागरिको का कार्य हो चुटकियों में पूर्ण सुशासन का सपना हो सम्पूर्ण हर हाथ को काम हो हर पेट मे अन्न हो बुझे सभी की प्यास जन जन की बस य...