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पद्य

मौत आई नहीं
कविता

मौत आई नहीं

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मौत आई नहीं फिर भी मारा गया। खेलने जब जुआ ये नकारा गया।। हार कर भी कभी होश आया नहीं। कर्ज लेकर हमेशा दुबारा गया।। जिसको आदत जुआ की बुरी पड़ गई। समझो गर्दिश में उसका सितारा गया।। अब बचा पास मेरे है कुछ भी नहीं। जो था सुख चैन दिलका वो सारा गया।। मुझको चंदे का देखो मिला है कफ़न। कैसे ज़िंदा जनाज़ा हमारा गया।। हर जुआरी का होता यही हाल है। जिसने खेला इसे वो बेचारा गया।। कर दिया इसने बदनाम देखो निज़ाम। मैं जुआरी भी कह कर पुकारा गया।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्...
यह हमारा परिवार हैं
कविता

यह हमारा परिवार हैं

राजेश चौहान इंदौर मध्य प्रदेश ******************** दादा-दादी, माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री से बना यह हमारा परिवार हैं..... प्यार, दुलार, स्नेह, संस्कार, अनुभव, सलाह, अपनत्व आदि की पाठशाला हैं यह हमारा परिवार हैं..... दादाजी के पास ज्ञान, अनुभव और संस्कार का भरमार हैं यह हमारा परिवार हैं..... दादीजी के पास भी दुलार, स्नेह और कहानियों का खजाना हैं यह हमारा परिवार हैं..... पिताजी के डांट और सलाह, सही जीवन का मार्गदर्शन हैं यह हमारा परिवार हैं..... माताजी का प्यार, ममता और लोरी का हृदय में स्थान हैं यह हमारा परिवार हैं..... पति-पत्नी, रिश्तो की अहमियत, प्रेम विश्वास, समर्पण, अपनत्व का सम्मान हैं यह हमारा परिवार हैं..... भाई-बहन की आपसी खटपट और प्रेम, स्नेह की अनुपम सौगात हैं यह हमारा परिवार हैं..... पुत्र-पुत्री की चहल-पहल, घर परिवार की रौनक हैं यह हमारा परिवार हैं..... हम सभ...
बेटी: एक सुंदर अल्पना
कविता

बेटी: एक सुंदर अल्पना

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** मैं बेटी हूं, अपने पिता का मान हूं। हां, मैं बेटी हूं, अपनी मां का अभिमान हूं। क्यों समझते तुम बेटियों को कम? क्यों मनाते बेटियों के होने पर गम? क्या विश्वास नहीं तुम्हें खुद पर। या खा रहा तुम्हें पुरुष होने का अहम। मैं बेटी हूं, अपने भाई का गर्व हूं। हां, मैं बेटी हूं उच्च संस्कारों की पहचान हूं। मैं झुक जाती हूं जो स्नेह की वर्षा हो मुझ पर। मैं रुक जाती हूं अधिकार भरा आदेश सुनकर। मगर जो तोड़ना चाहो मुझे, तो बस कल्पना हूं। मैं बेटी हूं, नए भारत का नया अरमान हूं। हां , मैं बेटी हूं, अपने पिता का सम्मान हूं। जो दिखलाते सदा सर्वदा मेरी सीमाएं मुझको, तुम्हें क्या अपनी सत्ता के छिन जाने का भय है। जो अत्याचार का बिगुल बजाते, सुनाते मुझको कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने सामर्थ्य पर संशय है। नहीं आश्रिता मैं तुम्हारी, मैं तो स्वयंं पर अव...
वक़्त अपना
कविता

वक़्त अपना

रवि चौहान आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** वक़्त अपना मुझपे जाया क्यों करते हो। देते हो सारा वक़्त जिसे, यह वक़्त उसे छुपाया क्यों करते हो। जब नहीं रहा प्यार दरमियान हमारे, उसे निभाया क्यों करते हो। बदल गये हो, कहता है ज़माना, फिर नहीं बदलने का ढोंग रचाया क्यों करते हो। माना बहोत की गलतियां मैंने, तुम अपनी गलतियां छुपाया क्यों करते हो। ये जमाना बहोत बेदर्द है, बता दर्द मेरा ज़माने को रुलाया को करते हो। परिचय :- रवि चौहान निवासी : आजमगढ़ (शेखपूरा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.com...
किताबें
कविता

किताबें

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** किताबें भी कहती हैं शब्दों में हमसे कुछ ज्ञान पाते रहो, हमें भी अपने घरो में फूलो कि तरह बस यूँ ही तुम सजाते रहो। किताबें बूढी कभी न हो तो इश्क कि तरह ये ख्यालात दुनिया को दिखाते रहो, कुछ फूल रखे थे किताबों में यादों के सूखे हुए फूलो से भी महक ख्यालो में तुम पाते रहो। आँखें हो चली बूढी फिर भी मन तो कहता है पढ़ते रहो, दिल आज भी जवाँ किताबों की तरह पढ़कर दिल को सुकून दिलाते रहो। बन जाते है किताबों से रिश्ते मुलाकातों को तुम ना गिनाया करों, माँग कर ली जाने वाली किताबों को पढ़कर जरा तुम लौटाते रहो। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और...
कुछ देर में जब
कविता

कुछ देर में जब

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** कुछ देर में जब, रावण होगा दहन, बुराइयां जल जाएंगी, मन हर्षाएंगी, अगले वर्ष फिर रावण, जब जलाएं, रावण खत्म न हो, कोई तो बतलाए। कुछ देर में जब, बम होता विस्फोट, बे-मौत मर जाते, उनका क्या खोट, कब तग आतंकवादी, यूं ही सताएंगे, आतंकवाद को कब तक जला पाएंगे? कुछ देर में जब, सुनते हैं बलात्कार, फिर गई एक औरत जिंदगी ही हार, कब तब ये तमाशा देखते रह जाएंगे, कोई बताए, बलात्कारी मिट पाएंगे? कुछ देर में जब, सुनते हुआ शहीद, एक-एक कब तक शहीद हो जाएंगे, बैर भाव सीमा पर बढ़ता जा रहा है, इस बैर भाव को कैसे हम मिटाएंगे? कुछ देर में जब, सुनते हैं भ्रूण हत्या, एक लिंग जांच गिरोह, और पकड़ा, भ्रूण हत्या का पाप कैसे हम हटाएंगे, देश के दरिंद्रों को कैसे हम मिटाएंगे? कुछ देर में जब, औरत फांसी खाई, आखिरकार ऐसी क्या नौबत है आई, औरत अस्मिता को कैसे हम बचाए...
आज का रावण
कविता

आज का रावण

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** कौन कहता है? रावण हर साल मरता है, सच मानिए रावण हर साल मरकर भी अमर हो रहा है। देखिए न आपके चारों ओर रावण ही रावण घूम रहे हैं, जैसे राम की विवशता पर अट्टहास कर रहे हैं। ये कैसी विडंबना है कि मर्यादाओं में बँधे राम विवश हैं, कलयुगी रावण उनका उपहास कर रहे हैं। हमारे हर तरफ लूटपाट, अनाचार, अत्याचार, भ्रष्टाचार, अपहरण, हत्या, बलात्कार भला कौन कर रहा है? ये सब कलयुग के रावण के ही तो सिपाही हैं। अब तो लगता है कि रावण के सिपाही सब जाग रहे हैं, तभी तो वो मैदान मार रहे हैं। रक्तबीज की तरह एक मरता भी है तो सौ पैदा भी तो हो रहे हैं। जबकि राम के सिपाही या तो सो रहे हैं या फिर रावण के कोप से डरकर छिप गये हैं, तभी तो राम भी लड़ने से बच रहे हैं। आज का रावण अब सीता का अपहरण नहीं करता, छीन लेता है, मुँह खोलने पर मौत की धमकी देता है। त...
शरद ऋतु
कविता

शरद ऋतु

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ******************** बदलते मौसम संग प्रकृति नव निर्माण करती नव ऋतु का आगाज़ करती नव आशाओं का संचार करती। मंद होती रवि की तपन नव कलियों का ये आगमन नव पुष्पों का यों पृष्फुटन आगाज़ है अंजाम का नई सुबह का और शाम का। पल्लव भी मुस्काते हैं पुष्प जो अगडाते हैं विकसित हो खिल जाते हैं अति हर्षित मन मुस्काते हैं। सर्द सहमी रातों में ममता के अहसासों में तपन अग्नि की हाथों में सब संग हो जज़्बातों में। अकड़ी हुई सी रातें हैं सुबहें भी सर्द सिमटी सी कुहरे का आगाज़ है नव ऋतु का अहसास है। वो आया बचपन याद है उन लडकियों की तपन आबाद है शीत ऋतु और सिगड़ी का जलाना राहत का आगाज़ है। हाँ... ये नव ऋतु का आगाज़ है नव ऋतु का आगाज़ है। परिचय :- रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., ए...
हाहाकार
कविता

हाहाकार

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** आंसू अवतरित होती, हर युग की साक्षी होती- जब भी धरा पर अनाचार बढ़ जाती जब हाहाकार। मां तेरी फिर सृजन होती खड़ग हस्त में अडिग होती- फिर भीषन गर्जन होती, मां धरा पर प्रलय होती। महिषासुर की मर्दन होती, मां तेरी भयंकर हाहाकार से- पुनः धरा प्रकंपित्त होती हर युग हर क्षण में। मां अंबे तुम्हीं साक्षी होती- जब भी पापियों के हाथों, में इस धरा की सत्ता होती। मद मोह और छल प्रपंच से- हर मानवी सभ्यता रक्त रंजित होती। आज पुनः इस विश्व में- मां अंबे तू अवतरित होती। आ गया है वह क्षण माँ, बज चुका अब दुदुंभी। भिषण संग्राम अब छिड़ गया है- संघार शुरू अब हो चुका है। आर्मेनिया, अजरबैजान, ईरान, तुर्की पाकिस्तान चीन और कई राष्ट्र। भीषण युद्ध के आहट लिए- अति संहारक अस्त्र शस्त्रों के साथ। शुरु शुरु में न्याय-अन्याय में होगा पुनः एक भीषण संग्राम। परिचय :- ओमप्...
नेत्रदान महादान
कविता

नेत्रदान महादान

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** दस जून को हर साल मनाया जाता दिवस नेत्रदान, साधरण व्यक्ति नेत्रदान करने से हो जाता महान। नेत्रदान है व्यक्ति के जीवन का सबसे बड़ा दान, नेत्रदान कराता है मानवता धर्म का ज्ञान। यदि दुनियाँ से जाने के बाद भी अमर रहना चाहता है इन्सान, तो संकल्प लें मृत्यु के बाद करेगा नेत्र- दान। तू हो जायेगा इतिहास में अमर व महान, यदि तू मृत्यु के बाद मानव करेगा नेत्र- दान। केवल दुनियाँ को अनुभव करने वाला इन्सान, कर पायेगा तेरी आँखों से दुनियाँ का दर्शन व पहिचान। तुम हो जाओगे इस संसार में व्यक्ति महान, तुम्हारी होगी तब तक दुनियाँ में गुण- गान। जब तक जिन्दा रहेगा वह नौजवान।। चले जायेंगे जब इस संसार से कफन ओढ़कर , हमारे बाद हमारी नेत्रदान की गई आँखे देखेगी दुसरे की ज्योति बनकर। आओ नेत्रदान करने का मृत्यु के पहले संकल्प करें, मृत्यु के बाद दिव्या...
मृतक पिता और बेटे संग संवाद
कविता

मृतक पिता और बेटे संग संवाद

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** मृतक- ये छूटी है अब तो मोह माया। हमने तिनका-तिनका जोड़ घर है बनाया। पर आज अब हम भए है वीराने बरात खड़ी है अपने लिए आँसू बहाने। कल जोड़ा था जो हमने था अब साथ नहीं मेरे। बेटे अब है मेरी ये धरोहर नाम तेरे। काम ना आवेगी हमारी कीर्ती। चाहे कितने थे मशहूर हम नामी। अरे हाँ छूटा है अब तो सबका साथ। ना रखना अव कोई गिला-शिकवा साथ। मेरा आखिरी वक्त है अब मेरा तुम्हारे साथ। बस अब होगी मेरी सीर्थ ही तुम्हारे साथ। हम आज चले कि कल चले, चले साँसें त्याग। क्यों मृतक हो के हम आज चलेंगे मेरे बाल जलेंगे जैसे घास जले और हाड़ जलेंगे जैसे लकड़ी जले । मेरा अब माटी होगा शरीर ये। तुम भूल पल भर में जाओगे हमें। मैं कितना दर्द सहूँगा। क्या तुम्हें जलाने में मुझे पल भर भी दया नहीं आएगी। बेटा- पापा दुनियाँ का दस्तूर यही है। जो मरा उसे जलाया गया या फिर उसे दफ्नाया ...
मातृ-पितृ भक्त होती बेटी
कविता

मातृ-पितृ भक्त होती बेटी

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** तन से समर्पण मन से समर्पण सब कुछ अपना कर दे अर्पण नयनो में आत्मिक भाव झलकता हृदय में उपस्थित अति कोमलता उल्लास का अर्णव होती बेटी मातृ-पितृ भक्त होती बेटी दो कुलों की लक्ष्मी और लाज इस आधुनिकता में भी परायी आज कहने को सिर्फ शब्द है आज के युग में, बेटा बेटी एक समान पर जब अधिकारो का बँटवारा होता फिर कर्तव्यों के लिए क्यों असमान दूसरे कुल जाकर, कुल का मान बढ़ाती संवेदनशील होकर हर रिश्ता निभाती फिर भी हर गलती की जिम्मेदार वही ठहरायी जाती क्यों समझी जाती हैं वह परायी बेटी जबकि मातृ-पितृ भक्त होती बेटी हो चाहे धर्म माता-पिता या जन्मदाता हृदय दोनों से स्नेह, अपनत्व है चाहता ससुराल में भी जब बेटी मुस्कुराये, सम्मान पाए तो हर माता-पिता बेटी के जन्म से न घबराए सभी खुशी की अनुभूति से बेटी दिवस मनाएं सर्व गुणों की खान, प्रत्येक क्षेत्र में अ...
मोहब्बत हो गई
कविता

मोहब्बत हो गई

संजय जैन मुंबई ******************** खुद एक चांद हो तो क्यों पूर्णिमा इंतजार करे। और मोहब्बत का इसी रात में होकर मदहोश हम आंनद ले।। तुम जैसे दोस्त से यदि मोहब्बत हो जाये। तो हमें सीधी सीधी जन्नत मिल जाये।। डूब चुका था प्यार के सागर में, और नश नश में मोहब्बत भर गया था। क्यों बहार निकाला मुझे इस सागर से..? इस प्रश्न का उत्तर अब तुमको ही देना है।। गुजारिश है तुमसे आज दिलमें थोड़ी सी जगह दे दो। और अपनी गर्म सांसो से मुझे फिरसे जीवन दे दो।। आज दिलको मत रोकना हजूर दिलसे मिलने को। क्योंकि ये पहले ही व्याकुल था तुम्हारे दिलमें डूबने को।। इतने सुंदर हो तुम की देखकर दर्पण भी शर्मा रहा है। मेरा दिल भी तो आईना है जो परछाई मुझे दिखा रहा।। इसलिए मेरा दिल आज तुम्हारे दिलमें शामाया है। जो धड़कनों को मेरी मोहब्बत करने को बुला रहा।। कितनी हसीन रात है जो हमको बुला रही है। क्योंकि दो दो चांद जो एक साथ...
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
कविता

पीढ़ी-दर-पीढ़ी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** दो पैरों की गाड़ी चलती जा रही है अवनि अम्बरतल सब देख रही है। कोरोना प्रकोप तांडव झेल रही है कुरुक्षेत्र के कृष्ण पांडव टेर रही है। जुनून था कभी जज़्बा बदल रही है नासमझी की राहें बलवा कर रही है। प्रदर्शन धरनों की बौछार सह रही है आस-विश्वास की व्यथा कह रही है। अपनों और सपनों को यूं तौल रही है कटु प्रवचन से जिंदगी जो खौल रही है नाटक पे नाटक के वो पट खोल रही है ममता-समता हर युग अनमोल रही है शिक्षा-संस्कार किस तरह संभाल रही है परिवर्तन अब परंपरा को खंगाल रही है। पुरखे धनपति चाहे पीढ़ी कंगाल रही है नव पारंगत पीढ़ी अब गुरु-घंटाल रही है। मेहनत मन्नत खिदमत की फ़िज़ा रही है किस्मत ताकत आदत की रज़ा रही है नेता नव-भारत के मंसूबे सजा रही है जनता ढपली से अपना राग बजा रही है हौसलों से अब फासलों को नाप रही है गुजरी यादें अपने हाथों से ताप रही है चालें ...
जय माँ महिषासुर मर्दिनी
कविता, भजन

जय माँ महिषासुर मर्दिनी

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** जय मांँ महिषासुर मर्दिनी जग के सकल कष्ट निवारिणी है अस्तित्व ब्रह्मांड का तुमसे ही आदिस्वरूपिणी जब न था सृष्टि का अस्तित्व था अंधकार ही अंधकार चहुँओर जग में बिखरा हुआ तब तुम ही सृष्टि-रचनाकार सूर्य सी देदीप्यमान तुम सा न कोई कांतिवान सकल जग की प्रसविणी, माँ कूष्मांडा सृष्टि रूपिणी अपनी मंद स्मिति से तूने की ब्रह्मांड की उत्पत्ति अपने उपासकों को देती लौकिक पारलौकिक उन्नति आधि-व्याधि विमुक्तिनी तू मांँ सुख-समृद्धि प्रदायिनी विकार - महिषा का कर मर्दन मांँ तू शुभ भाव संचारिणी युग में फैली अराजकता सबका शमन करो कल्याणी! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
रावण
कविता

रावण

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जलता अन्दर-बाहर रावण! जीवित होता मरकर रावण! वह बुराइयों का प्रतीक है, करता जादू मन पर रावण! "व्यापक है मेरा अस्तित्व" जग से कहता हँस कर रावण! बौना हो अथवा नभचुम्बी कुछ पल मिटता जलकर रावण! छलता है सबको मायावी अपना रूप बदलकर रावण! अभिमानी है बलशाली भी जाता रहता घर-घर रावण! दस आनन थे मगर राम से हुआ पराजित लड़कर रावण! मारो, काटो, उसे जलाओ नष्ट नहीं होता पर रावण! रशीद' आप सच्चे बन जाओ भग जाएगा डरकर रावण! परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा...
अहम ब्रम्हास्मि
कविता

अहम ब्रम्हास्मि

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** जोड़ नाता मानवता से ईश्वर मिलेगा सरलता से।। जो ढूंढ रहा है तू बाहर वो बैठा है तेरे ही भीतर खोल कपाट अंतस के कर दर्शन परमात्मा के जीवन के खेल निराले कुछ उजले कुछ काले कह रहे कोमलता से जोड़ नाता मानवता से ईश्वर मिलेगा सरलता से।। राम नाम की शरण में मोक्ष छुपा है मरण में जीवन को स्वर्ग बनाकर दूजे का बन दिवाकर नित नये आनंद पायेगा जगत चैतन्य हो जायेगा मिला दे कर्म धर्मता से जोड़ नाता मानवता से ईश्वर मिलेगा सरलता से।। जीवन की यही आस है प्रभुमिलन की प्यास है भीतर मेरे जो घट रहा लोगो मे है वो बट रहा आलोकित है मन मेरा दूर कर दूंगा तमस तेरा नाता न रहा दुर्बलता से जोड़ नाता मानवता से ईश्वर मिलेगा सरलता से।। सरिता के जल सा वसुधा के तल सा नभ के परिमल सा दीप के अनल सा पवन के निर्मल सा हो गया मैं ब्रह्मांड सा पंच तत्व की पावनता से जोड़ नाता मानवता से ई...
मासूमियत
कविता

मासूमियत

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** (बेटी को समर्पित) हमने देखी है मासूमियत एक सच की तरह, वो मासूम सी है, स्निग्ध चांदनी सी धवल भी, शक्ल पर नूर सा बिखरा है उसके शुद्ध, शांत और सौम्य सी है। कभी नन्ही, चंचल, अल्हड़पन से घिरी हुई से, कभी कठोर, अटल, अडिग सी आसमान की ऊंचाई को नापती हुई दिखती है, कभी गंभीर, समुंदर की गहराई छुपाए हुए चुपचाप सी उमंग की लहरें भी बेतहाशा दौड़ पड़ती हैं ठोकर भी खाती हैं, वापस भी आती हैं, गिर के उठती भी हैं, सपने कल्पना बनकर आंखों में सजते भी हैं आंख खुली तो वो हकीकत बनकर टूटते भी हैं। फिर भी उसकी मासूमियत जिंदा है उसमे, कल भी थी, आज भी है, मासूम सी ही रहेगी खुद में।। परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी....
लड़ रहे… बढ़ रहे…
कविता

लड़ रहे… बढ़ रहे…

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** कोई लिख रहा है, कुछ लोग पढ़ रहे हैं कोई पढ़ते हुए लड़ रहा है, कुछ लोग लड़ते हुए पढ़ रहे हैं। कोई बोल रहा है, कुछ लोग आवाज उठा रहे हैं कोई जुड़ रहा है, कुछ लोग लड़ रहे हैं। कोई चल रहा है, कुछ लोग दौड़ रहे हैं कोई स्वयं के लिए, कुछ समाज हित में लड़ रहे हैं। कोई अधिकारों के लिए, कुछ कर्जदारों हेतु लड़ रहे हैं कोई ठगों को पकड़ रहा है, कुछ लोग मांगों हेतु लड़ रहे हैं। कोई अपना ही रोक रहा है, कुछ लोग रास्ते में अड़ रहे हैं कोई जातियां तोड़ रहा है, कुछ लोग समाज जोड़ रहे हैं। कोई हौंसला बढ़ा रहा है, कुछ लोग हिम्मत जुटा रहे हैं कोई राजनीति कर रहा है, कुछ आपबीती हेतु लड़ रहे हैं। कोई रहमत कर रहा है, कुछ लोग मेहनत कर रहे हैं कोई जागरूक कर रहा है, कुछ लोग लड़ते हुए बढ़ रहे हैं। परिचय :- दीवान सिंह भुगवाड़े निवासी : बड़वानी (म.प्र.) घ...
मेरी ग़ज़लों को आवाज दे दो
ग़ज़ल

मेरी ग़ज़लों को आवाज दे दो

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सुनो अपना दिल मुझको उधार दे दो, तुम पर ग़ज़ल कहूँ मैं थोड़ा प्यार दे दो! संग-संग हंसे और संग-संग रोंए दोनों मुझे भी अपने सुघर नेह की धार दे दो! सिवा तुम्हारे ना किसी का जिक्र करूँ मैं, अपनी चाहतों का अब ऐसा खुमार दे दो! है मुश्किल काम मोहब्बत को निभा पाना मैं कर लूंगा ये काम भी, तुम ऐतबार दे दो! एक-दूसरे का हमसाया बनकर रहें हम, मेरी ग़ज़लों को आवाज तुम एक बार दे दो! परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान सम...
मां तेरे चरणों में
कविता

मां तेरे चरणों में

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** शीश झुकाऊं मां तेरे चरणों में पल पल ध्यान करूं मां और शीश तेरे चरणों में झुकाऊं मां। जब जब तेरा स्मृण करूं आंखें खोलूं तेरा सुन्दर रूप दिखें मेरी मां। ज्ञान दीप जले तेरे आंचल में मां, तू जननी है मां इस सृष्टि की नहीं भेद भाव किसी से करती तू मां। नहीं कोई वजूद मेरा मां, और नहीं कोई तेरे सिवा मेरा मां। तू धनी अपनी ममता की मां, सरणागत हूं मां ख़ाली हाथ आया था, खाली हाथ जाऊंगा तेरा आशीष मिल जाए जीवन मेरा तर जाये मां। तेरे दर आतें सभी दिन दुखियारें मां, सभी की मनोकामना करती पूरी मां गगन भी खड़ा शिश नमाये पुष्प सुमन आरती लिए हाथ जोड़कर भक्ति भाव से तेरे चरणों में हूं मां। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से सम्प्रति : नर्मदा घ...
अच्छा लगता हैं…
कविता

अच्छा लगता हैं…

राजेश चौहान इंदौर मध्य प्रदेश ******************** अच्छा लगता हैं...... कवि को मंच और दर्शकों को बातों का पंच अच्छा लगता हैं...... सौ झूठ कहने से, एक सच कहना अच्छा लगता हैं...... कभी-कभी अपनों से हार जाना, जीत जाने से अच्छा लगता हैं...... अमीरों के राजमहल से, गरीब की कुटिया में रहना अच्छा लगता हैं...... एकल परिवार में रहने से, संयुक्त परिवार में रहना अच्छा लगता हैं...... नई फिल्मों को देखने से, पुरानी फिल्मों को देखना अच्छा लगता हैं..... डीजे की भड़भड़ से, ढोलक की मधुर थाप पर नाचना अच्छा लगता हैं...... अच्छे काम के लिए झूठ बोलना, सच कहने से अच्छा लगता हैं...... विदेशों में रहने से, अपने देश में रहना अच्छा लगता हैं...... बहुत अधिक बोलने से, मौन रहकर कहना अच्छा लगता हैं....... वर्तमान महामारी को देखकर, घर में सुरक्षित रहना अच्छा लगता हैं..... परिचय :- राजेश चौहान (शिक्षक) निवासी : इंदौ...
मैं एक अदना सा शिक्षक
कविता

मैं एक अदना सा शिक्षक

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मैं एक अदना सा शिक्षक, अपनी जिंदगी की सफर में, समय का पाबंद और नियमों, का गुलाम रहा घनघोर बरसात हो। या कड़क धूप की दुपहरिया हो- हम अपनी पूरी लगन और निष्ठा से- जीवन की विगत कई बसंतो को- अपनी जीवन में आहिस्ता-आहिस्ता दफन होते देखकर हैरान हुआ- एक पुरानी साइकिल पर रेंग कर चढना फिर अपने गंतव्य पर! पहुंचने की जद्दोजहद से- हकलान और परेशान हुआ! मैं एक अदना सा शिक्षक- अपनी जिंदगी की सफर में- समय का पाबंद और नियमों- का गुलाम रहा परेशान रहा! अपनी जीवन के बीते पल पल को- समय की प्रवाह में बहते देख अवाक रहा! दरवाजे पर खड़ी इंतजार में- मेरी सह धर्मनी और छोटे बच्चे- सभी परेशान और उदास रहा! नियत समय पर हाथों में पंखा लिए- चिलचिलाती धूप की लू में उदास भया क्रान्त रहा! अब थक गया हूं जिंदगी की उम्मीदों से- बस मां भारती तेरी आंचल में छुप कर- सो जाओ जिंदगी ...
गरीबी की परिभाषा
कविता

गरीबी की परिभाषा

संजय जैन मुंबई ******************** गरीबी क्या होते है किसी किसान से पूछो। ये वो शख्स होता है जो खाने देता अन्य। परन्तु इसकी झोली में नहीं आता उसका हक। इसलिए यही से गरीबी का खेल शुरू हो जाता है।। कड़ी मेहनत और लगन से किसानी वो करते है। कितना पैसा और समय वो इस पर लगाते है। और फल के लिए वो भगवान पर निर्भर होते है। और गरीबी अमीरी का निर्णय फसल आने पर होता है।। मेहनत और काम ही इन का लक्ष्य होता है। उसी के बदले में जो कुछ इन्हें मिलता है। उसे इनका जीवन यापन चलता है। अब निर्णय आपको करना है की ये गरीब है या.....।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-...
आज फिर घूमना है
कविता

आज फिर घूमना है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** स्वतंत्रता मिल चुकी है, आजादी से सबको प्यार, आसमान अब चूमना है, लो आज फिर घूमना है। आजादी के रूप अनेक, कोई काम से है आजाद, किसी को बचपन याद, कोई करता है फरियाद। कोरोना के बंधन में थे, अनलॉक के दिन आये, बीते के दिन भूलना है, लो आज फिर घूमना है। कैदी काट रहा था जेल, कैदियों से था बस मेल, छूट गया फिर, कैद से, कैद से खत्म हुआ खेल। कैदी हुआ कैद से रिहा, कैदखाना दिन भूलना है, प्रसन्न बहुत नजर आया, आजाद फिर, घूमना है। पढ़ते पढ़ते हुआ बोर, नींद हैं आंखों में घोर, परीक्षा संपन्न हो गई, आज फिर, घूमना है। दौड़ रहा मंजिल ओर, मंजिल अभी दूर ना है, एक दिन मिले मंजिल, तब तक यंू घूमना है। दुश्मन बचकर निकले, आंसू आंखों से, बहते, अब दुष्ट को, घूरना है, ले आज फिर घूमना है। गर्मी की छुट्टियां, शुरू, स्कूल अब, भूलना है, दौड़ चले, सैर सपाटा, लो...