Tuesday, May 6राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

जाने क्यों
कविता

जाने क्यों

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** लोग ना जाने क्यों घरों से बाहर जा रहें है। और निकलते ही पुलिस के डंडे खा रहे है। पता है की दूरी बनाने के आदेश आ रहे है। फिर इकट्ठे होकर क्यों तमाशा बना रहे है। कुनकुना पानी पीना है, साबुन से हाथ धोना है। स्वच्छता बनाना है, घरों में लॉकडाउन होना है। खुदतो नियम पालते नही दूसरों को बता रहे है। इसीलिए तो रोज़ाना पुलिस के डंडे खा रहे है। मोदी जी प्रणाम करना सबको सिखा रहे है। संयम से रहना अबतो टीवी पर दिखा रहे है। २२ को घण्टी ०५ को दीपक भी जला रहे है। चौराहे पर प्रसाद के लिए साहब बुला रहे है। बुरे समय मे भी लगता है अच्छे दिन आ रहे है। तभी तो हंसते हंसते पुलिस के डंडे खा रहे है। सरकार की सख्ती प्रशासन को गलत बता रहे हैं। कुछ कहते है जनता को जबरजस्ती सता रहे है। स्वास्थकर्मी भी आपके लिए अब मार खा रहे है। खुद के परिवार को छोड़ आपक...
प्रकृति की शक्ति
कविता

प्रकृति की शक्ति

सीमा रानी मिश्रा हिसार, (हरियाणा) ******************** दिल में कब से यही शोर है मचा हुआ, यह मानव-जाति किस ओर जा रहा? अपने ही हाथों खुद को बर्बाद कर रहा, गलती से खुद को खुदा समझ रहा। प्रकृति को दूषित करने पर तुला हुआ, शायद उस अदृश्य शक्ति को है़ भूला हुआ। पर जब भी मानव संतुलन बिगाड़ता है़, प्रकृति किसी न किसी रूप में सुधार लेती है़। हम उसका विनाश करते हैं जब भी, तो वो भी हमारी जान लेती है़। पशुओं के साथ पशु मत बनो, खाने के लिए अन्न-फल-सब्जियाँ हैं, उनसे ही अपना पोषण कर लो। जीने दो सबको और खुद भी जियो, कुदरत के हर संकेत को अब तो समझो। मानव हो मानवता के राह पर ही चलो, गलतियों से सीखो, जिंदगी हँस कर जी लो। . परिचय :- सीमा रानी मिश्रा पति : डाॅ. संतोष कुमार मिश्रा पता : हिसार, (हरियाणा) पद : शिक्षिका आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
नवरात्र पर नौ मुक्तकों की माला
मुक्तक

नवरात्र पर नौ मुक्तकों की माला

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** शैल पुत्री की कृपा संसार को अब चाहिये। मातु ममता से भरा सर हाथ अपने चाहिये। हम करें आराधना पूजा चरण में मन लगा। अब दया वरदान अंबे मातु से बस चाहिये।1 ब्रह्मचारिणि तव कृपा का दान सबको दीजिये। सर्वजन के सर्वदुख भवताप भी हर लीजिये। आप सम अतुलित तपस्या कामना पूरी करे। मानवी संताप का अब नाश जग से कीजिये।2 चंद्रघंटा विश्व की विपदा सकल हरदम हरें। तव अलौकिक रूप लख कर भाव नव दिल में भरें। दिव्यता अनुपम तुम्हारी इक नयी अनुभूति दे। दानवी हर कृत्य का माता शमन प्रतिपल करें।।3 मातु कूष्मांडा हमेशा झोलियाँ भरती रहें। भक्त संकट में पड़े उद्धार टाब करती रहें। सूर्य सम है कांति जिससे जगत में आलोक हो। नौ दिनों माता तुम्हारी चौकियाँ सजती रहें।।4 पूजते स्कंद माता को सदा कर जोड़ कर। जाप नौ दिन भक्त करते कार्य पीछे छोड़ कर। पूर्ण करती कामना जो भक्त निज मन में रखें। हर...
सरस्वती वंदना
भजन

सरस्वती वंदना

परमानंद निषाद छत्तीसगढ, जिला बलौदा बाज़ार ******************** हे हंस वाहिनी, ज्ञान दायिनी। ज्ञान का प्रकाश दो,ज्ञान का प्रकाश दो। तुम स्वर की देवी है तुझसे संगीत, हर शब्द तेरा है तुझसे गीत। विद्या तुम देने वाली, ज्ञान का प्रकाश भरो। मोह, माया और अज्ञान का, संसार से उसका अंत करो। सिर झूंका कर मांगू मां, मेरा सपना स्वीकार करो। तेरे चरणों में आया हूं, करदो मेरा उद्धार मां। श्वेत हंस की करे सवारी, और श्वेत वस्त्र धारण किये। मां शारदे श्वेत हंस में बैठे, कंद पर रखे अपना चरण। मांग रहा हूं तुझको मां, मैं विद्या का वरदान। मैं तेरे शरण मे आया हूं मां, दो मुझे विद्या का वरदान। . परिचय :-परमानंद निषाद निवासी - छत्तीसगढ, जिला - बलौदा बाज़ार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहान...
दिवाने मन
भजन

दिवाने मन

अभिषेक कुमार श्रीवास्तव समस्तीपुर (बिहार) ******************** दिवाने मन भजन बिना दुख पैहौ ॥ टेक॥ पहिला जनम भूत का पै हौ सात जनम पछिताहौ। काँटा पर का पानी पैहौ प्यासन ही मरि जैहौ॥ १॥ दूजा जनम सुवा का पैहौ बाग बसेरा लैहौ। टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ॥ २॥ बाजीगर के बानर हो हौ लकडिन नाच नचैहौ। ऊॅंच नीच से हाय पसरि हौ माँगे भीख न पैहौ॥ ३॥ तेली के घर बैला होहौ आँखिन ढाँपि ढॅंपैहौ। कोस पचास घरै माँ चलिहौ बाहर होन न पैहौ॥ ४॥ पॅंचवा जनम ऊॅंट का पैहौ बिन तोलन बोझ लदैहौ। बैठे से तो उठन न पैहौ खुरच खुरच मरि जैहौ॥ ५॥ धोबी घर गदहा होहौ कटी घास नहिं पैंहौ। लदी लादि आपु चढि बैठे लै घटे पहुँचैंहौ॥ ६॥ पंछिन माँ तो कौवा होहौ करर करर गुहरैहौ। उडि के जय बैठि मैले थल गहिरे चोंच लगैहौ॥ ७॥ सत्तनाम की हेर न करिहौ मन ही मन पछितैहौ। कहै कबीर सुनो भै साधो नरक नसेनी पैहौ॥ ८॥ . परिचय :- अभिषेक कुमार श्रीव...
कर्तव्य पटल पर
कविता

कर्तव्य पटल पर

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पटल पर अटल पुलिस।। कोई व्याधि आँधि प्रकृति तांडव। हिंसक उत्पात करे संभव। भूमि का दांव लगे वैभव। तब निडर प्रवर रण प्रबल पुलिस।। प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पटल पर अटल पुलिस।। व्यभिचार कुठार हो क्रूर कर्म। आतंकवाद सब मेटे धर्म। ना समझे जन जब नीति मर्म। संकट मोचन ज्यों प्रखर पुलिस।। प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पटल पर अटल पुलिस।। दारिद्र छुद्र डाका चोरी। वैमनस्य विवाद बहुत-थोरी। परिवार पृथक कहीं छेड़-छाड़। कुछ नियम तोड़ जब बनें ताड़। ना हो समाज से विलग पुलिस। हर समाधान कर सुफल पुलिस। प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पटल पर अटल पुलिस।। करे कोई राष्ट्र से गद्दारी। बेईमानी हावी अरु मक्कारी। बढें विवादित उत्पाती। लाठी कर धर फिर संभल पुलिस। प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पट...
उनको जगाइये
ग़ज़ल

उनको जगाइये

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** जन्नत का तसव्वुर ना अभी दिल में लाइये, दोज़ख में ही बस प्यार की शम्मा जलाइये। दिल में उमड़ते ज्वार कब रफ्तार पकड़ लें, तूफाँ मचल ना जाये सनम मान जाइये। वक़्त की गिरफ़्त में कैदी हों कब तलक, दिल को तो महका हुआ गुलशन बनाइये। रंजोगम के फैसले किस्मत पे छोड़िये, बस ज़िन्दगी है प्यार, यही प्यार पाइये। क़ाफ़िर तो है हर शख्स जो इंसान बना है, तनहा सी राहों में नये दीपक जलाइये। खोये हुए हैं लोग क्यों गुमनाम से ‘विवेक, ज़रा प्यार से पुकार कर उनको जगाइये। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न ...
तन से तन अब न सटे
दोहा

तन से तन अब न सटे

संतोष 'साग़र' महद्दीपुर, जहानाबाद (धनबाद) ******************** तन से तन अब न सटे, रहो कुछ दुरी बनाय! 'कोरोना' से मुक्ति का, मंत्र रहा हु बताय!! घर में रहिये रात - दिन, बीबी - बच्चों के संग ! तब जा कर के खिलेगा, जीवन के सब रंग !! सरकार आपके हित की,सोच रही है सोच ! फिर क्यों घर में रहने में, करते हैं संकोच !! कुछ दिन में ही टल जायेगा, 'कोरोना' का भय! इतनी सी बस बात क्यों, तुमको समझ न आये !! हमने इस से पहले भी, कितने देखे है रोग ! दुरी बना के ही रहें, जल्दी होंगें निरोग !! देश हित के फैसले को, मिल कर करें सम्मान ! तब ही बच पायेगा, मेरा प्यारा हिंदुस्तान !!   परिचय :-  संतोष 'साग़र' माता :- श्रीमति सरिता देवी पिता :- श्री कृष्णानन्दन सिंह शिक्षा :- स्नात्तक (मगध विश्वविद्यालय), औद्योगिक प्रशिक्षण (ओड़िसा), प्राथमिक स्काउट शिक्षक (बिहार ) जन्म दिनांक :- १०/०२/१९९४ सम्प्रति :- वरीय सह...
जननी जन्मभूमि
कविता

जननी जन्मभूमि

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं तुम्हारी मातृभूमि, प्रिय वत्स! तुम मेरे हो स्नेह सिक्त स्पर्श लुटाया, ममता का आंचल ओढ़ाया, वात्सल्य से सींचा तुमको, गोद में अपनी पाला-पोसा... मृदु फलाहार कराया। पुष्पों की सुगंध से... जीवन तुम्हारा महकाया। गंगा के अमृत जल में अवगाहन करा, जीवन पुनीत बनाया। मैं तुम्हारी मातृ भूमि... प्रिय वत्स तुम मेरे हो। मैंने तुमको, वेदों का ज्ञान कराया, उपनिषदों का पाठ पढ़ाया। ऋषि मुनियों की तपश्चार्य से, जीवन तुम्हारा चमकाया। यहा 'धर्म' आधार जीवन का विचारों का संस्कारों का। मुझे छोड़ तू गया विदेश, मैं ताकती रही निर्निमेष। आज बर्बर देशों ने, असभ्यता के अवशेषों ने... विकट संकट में तुम्हें त्याग दिया, छोड़ सम्बल, तुमसे किनारा किया। यह देख मेरे हृदय पर कुठाराघात हुआ... जिजीविषा को देख तुम्हारी, परिजनों में भी दिखी लाचारी।। अन्न-धन अपा...
द्रोपदी की लाज
कविता

द्रोपदी की लाज

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** काश ! इंसान-इंसान की तरह जी सकता फटी वेदना की चादर को दर्जी सी सकता !! ना लुटती कहीं भी किसी द्रोपदी की लाज सुन सकते दीन, हीन, दुखियों की आवाज !! थम जाये रहजनी, डकैती, हत्याओं का दौर कोई निर्बल ना बने किसी सबल का कौर !! गरीबी, भुखमरी, ना रहे कुपोषण का साया लोकतंत्र को लूट सके ना कुबेर की माया !! लौट सकें फिर सुकून के दिन जो बीत गये हैं फिर बरसें वो बादल जो बरस के रीत गये हैं !!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आश...
पलायन से वापसी
कविता

पलायन से वापसी

दिलीप कुमार पोरवाल (दीप) जावरा म.प्र. ******************** सब है अपने अपने घरों में अब कौन ले सुध इनकी ये कैसे हालात है ये कैसी बेबसी है ना कोई आशिया है ना कोई सहारा है जाए तो जाए कहां जाए तो जाए कैसे ना सड़क पर कोई वाहन ना ट्रेक पर कोई ट्रेन चले जा रहे है निराशाओं में निराशाओं का ना कोई पारावार है खाने पीने के है लाले पैरों में पड़ गए है छाले कंठ है सूखा पेट है भूखा हाथो में नौनिहाल सिर पर गठरी चले जा रहे है बेतहाशा बचाने को जान अपनी कोरोना का ये कैसा रोना है भूख प्यास से मर जाना है चले थे घर से पलायन कर कुछ रोजी रोटी कमाने को मा बाप को घर छोड़ कर आज ये कैसे हालात है चले जा रहे है बस चले जा रहे है पलायन वापसी पर। . परिचय :- दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉ...
पलायन
कविता

पलायन

सरिता कटियार लखनऊ उत्तर प्रदेश ******************** पेट की खातिर कमाने को अभी गये थे जो निर्धन आज कोरोना ने मझधार में डाला दहल गये वो मन दहलाया सारी दुनिया को हुये लाचार सभी जन जन क्या करना वहाँ पर रहे के लौट जायेंगे अपने घर हैं मजबूर काम के जरिये भूख से सारे रहे तरस किया पलायन बिन गाड़ी और पैदल ही सब लिए निकल सौ दो सौ चार सौ मीटर की दूरी को ना लाया ज़हन दो-दो बच्चे कंधों पर और गठरी धरी दूजे के सर पर तरस जो खाये वो फंस जाये ना खाने वाला निर्मम महामारी का जाल बिछाया खुद के लिए खुद करो जतन कई रोज लग जायेंगे तब पहुचते अपने घर तब सारे सीएम ने सोचा भरो गाड़ी पहुचादो घर सोचो तनिक छुआछूत की बीमारी लग गयी अगर क्या घर में खुश रह पाओगे गर बीमार हुए जन जन घबराओ ना विनती है हाथ जोड़कर सरिता की वक्त पड़ा है आन ना हिम्मत टूटेगी लाचार बन . परिचय :-  सरिता कटियार  लखनऊ उत्तर प्रदेश ...
अप्रैल फूल
कविता

अप्रैल फूल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अप्रैल फूल कही खिलता नहीं मगर खिल जाता मजाक के घर में एक अप्रैल को क्या, क्यों, कैसे ? अफवाओं की खाद से और उसे सींचा मगरमच्छ के आँसू से लोगों ने इस अप्रैल फूल को इसीलिए ये पौधा झूठ के गमले में फल फूल रहा वर्षो से लोग झूठ को भी सच समझने लगे क्या अप्रैल फूल के बीज फैलने लगे है पूछे, तो लोग कहते -हाँ बस एक अप्रैल को ही दुकानों पर मिलते है आप को विश्वास हो तो आप भी लगाने के लिए ले आए घर की बालकनी में और आँगन में लोगो को जरूर दिखाए आपके यहाँ एक अप्रैल का फूल खिला ताकि उन्हें कुछ तो विश्वास हो आप पर एक अप्रैल को भी सुंदर सा फूल खिलता है जैसे वर्षों बाद खिलता है ब्रह्म कमल जिसे सब ने देखा है मगर अप्रैल फूल कभी नहीं देखा शायद एक अप्रैल को ही हमे देखने का सौभाग्य प्राप्त हो? . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालज...
देश प्रेम
कविता

देश प्रेम

स्तुति झा पटना ********************** देश प्रेम देश प्रेम का गीत गाया हुँ मैं। इस वतन की मोहब्बत में आया हूँ मैं। मान सकता नहीं हार कभी अपने दिल में भारत लाया हुँ में। ज़िदगानी मेरी तु कर इतना कर्म देश मेरा हो भारत हर एक जन्म तिरंगे से इतना इश्क है मुझे आखिरी वक्त तक साथ रखना इसे।। देश प्रेम का गीत गाया हुँ मैं।। मिट्टी की खुशबू महक खेत की मुस्कुराहट यहां दिल नेक की इबादत यहां इश्क़ है यहां भारत हमारा जान हैं यहां। देशप्रेम का गीत गाया हु मैं...... इस वतन की मोहब्बत में आया हुँ मैं.....।। . परिचय :-  स्तुति झा निवासी : पटना जन्म : २२.०९.१९९२ प्रकाशित पुस्तकें : साझा काव्य संग्रह (नई काव्य धारा और हमारे अल्फाज़) सम्मान : साहित्य प्रहरी सम्मान/विशिष्ट रचना सम्मान। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मं...
माला
कविता

माला

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** पिरोया एक एक शब्द तो कविता बन गई एहसास और जज्बात की माला बन गई धागा था इस कदर मजबूत की पक्की हो गई रिश्ते और अरमानों की हमजोली बन गई मजबूती मेरे प्यार की इसमें गण गई बिखरे शब्दों को पीरोकर एक पंक्ति बन गई मेरे विश्वास को रखकर तराजू में जो तोला समेटकर शब्दों को गूथकर जज्बातों को वजनदार बन गई पीरो या एक एक शब्द तो माला बन गई इश्क की एक मजबूत सी कविता बन गई . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक : उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिण...
स्वयं को सतर्क रखें
कविता

स्वयं को सतर्क रखें

जितेन्द्र रावत मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सयंम बरतो, मत घबराओ, कोरोना पर स्वछता बरसाओ। दूर रहेगा यह कोसो तुम से। डर जाता सफाई की धूम से। हाथों धो साबुन से पहले। चाहे खेलो इक्का-दहले। रुमाल को औजार बनाओ। सभी बीमारी दूर भगाओ। महामारी ऐसी फैली है जग में। स्वच्छ पानी रखो अपने जग में। लापरवाही ना जरा सी बरतो। नही तो बीमार हो जाओगे परसो। सर्दी, खासी, और जुकाम। इनका कर दो काम-तमाम। सावधानी बस एक ही उपाय। डॉक्टर को मिलन कहे को जाये। सजग रहो, सतर्क रहो,कोरोना से। बाद में मिल लेना अपनी सोना से। अफवाहों पर ना ध्यान लगाएं। आज ही सेनेटाइजर अपनाएं। हमदर्द का संदेश सबके हित में। खुशी मिलेगी कोरोना से जीत में। . परिचय :- जितेन्द्र रावत साहित्यिक नाम - हमदर्द पिता - राधेलाल रावत निवासी - ग्राम कसमण्डी कला, मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) शिक्षा - बी.ए (बी.टी.स...
एक कोरोना
कविता

एक कोरोना

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** एक कोरोना तोड़ रही, सैकड़ों कमर है। अच्छी बात आज इस लाॅकडाऊन की यही प्रकृति हो रही देखो कितनी निर्मल है। अच्छा तो होता कि, ये आवाज न आती कि मौत टहल... रही, पहर दोपहर है। हाथ तंग हो रहे हैं, दंग हो रहे हैं हम दवाइयों की शीशी बच्चों के बोतल चाय के कुल्हड़ सब खाली हो गए। घर में अँधेरा, बस इन्तजार ... कब हो सवेरा। कहती सरकार है, दुकानों में राशन... अजी भरमार है। पर क्या खाली जेबें देती, भला क्या कभी किसी को राशन है। घरों में बस बैठे नहीं, हम दुबके हुए हैं। आश यह लिए कि, मेरा भारत समर्थवान है। अजी आश नहीं, मेरा विश्वास कहिये। . परिचय :- भारत भूषण पाठक 'देवांश' लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (...
वादे भरोसे
कविता

वादे भरोसे

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** हरित दूर्वा विछौना देख हुआ मन प्रफुल्ल जैसे, मनुहारी छवि देख तेरी प्रमुदित हुई बैसे ही। कोकिल ध्वनि सुन हर्षित हुआ जन जन जैसे, सुन मधुर वानी तेरी हर्षाई वैसे ही। दिल की बगिया में ज्यों, खिल उठे मधुमासी पुष्प, मुस्करा उठे अमराई में, मधुर आम्र बौर के मृदु गुच्छ। पल पल वहे वासन्ती वयार जैसे, दिल में उठी मन्द हिलोर बैसे ही। इतराये थे तरु नूतन पत्र धारण कर, वक्त ने कैसा यह रंग दिखाया है, सहसा गिरे तरु पत्र विलग हो, पतझड़ ने ऐसा कहकर मचाया है। मिलन को आतुर पपिहा चांद से जैसे, विरहिन मिलन को प्यासी हुई बैसे ही। कोकिल की कुहू-कुहू भंवरों की गुंजार हुई, आवारा बादल की रिमझिम फुहार हुई, विरह से आतुर विरहिन अकुलाए जैसे, तेरे मिलन को आतुर हुई बैसे ही। वादे भरोसे पल पल मिले सदा, मुस्कराए होंठ भी मेरे यदा कदा, सागर से उभरे ज्वार भाटा जैसे पल-पल उबलते अ...
बेबसी सी हुई जिंदगी
ग़ज़ल

बेबसी सी हुई जिंदगी

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** बेबसी सी हुई जिंदगी इन दिनों। भूल ही हम गए शायरी इन दिनों। ख़ौफ़ इक सारी दुनियाँ में छाया हुआ, इस तरह कुछ हवाएँ चली इन दिनों। घर से निकले तो लोगों ने चमका दिया, यूँ नहीं ये सफ़र लाज़मी इन दिनों। शब अंधेरे उठाने को तैयार है, आग बरसा रही चाँदनी इन दिनों। लग रही हो हमारी जुबाँ तल्ख़ गर, है किसी से सिला न बदी इन दिनों। दूरियाँ ही सलामत रखेगी तुम्हें, ये रिवायत निभा लो सभी इन दिनों। . परिचय :- नाम - नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
धोखा खाये बैठा हूँ
कविता

धोखा खाये बैठा हूँ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** खुद के किरदार को आईना बनाये बैठा हूँ, मैं तेरा हर जुर्म जमाने से छिपाये बैठा हूँ!! तेरे जैसे अपने, ना मिलें दुश्मन को भी, कि मैं तेरा अपनापन, आजमाये बैठा हूँ!! कद्र नही की तूने कभी मेरे जज़्बातों की मैं तो तेरे दुख, दर्द में आसूं बहाये बैठा हूँ!! जब रहे जीवन में तेरे अंधेरों के घनेरे साये, चिरागों के मानिंद खुद को जलाये बैठा हूँ!! भूले भटकों को सही राह दिखाये बैठा हूँ पर ये सच है, मैं तुझसे धोखा खाये बैठा हूँ!!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यि...
मत निकलो बाहर मरने के लिए
कविता

मत निकलो बाहर मरने के लिए

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** ज़िन्दगी पड़ी है काम करने के लिए। मत निकलो बाहर तुम मरने के लिए। थोड़े से दिन की बात है घर मे ही रहो, तैयार रहो सबको सतर्क करने के लिए। आया है कोरोना और जाएगा भी सही, यूं ही चुपचाप ना बैठें हम डरने के लिए। नज़र रखो घर मे आने जाने वालों पर, कुछ है तो नही संक्रमित करने के लिए। साबुन से धोते रहें लगातार हाथों को, ताज़ा भोजन लीजिये पेट भरने के लिए। मीठा खाना और ठंडा पीना बन्द है, गर्म पानी ठीक गला तर करने के लिए। नवरात्रि में में हम मंदिर भी न जाएं, वो भी घर है नमाज़ अदा करने के लिए। दिल्ली यूपी बॉर्डर पर भीड़ लगी है, वो लाचार है पैदल पलायन करने के लिए। दिल्ली में सिस्टम क्या सोया हुआ है?, लोग सड़क पर उतरें है अब मरने के लिए। किसी को नसीब नही हुआ दानापानी, कोई अगर देदे तो उसकी है मेहरबानी। जहां देखो इसी बात का हो रहा है रोना,...
विराट कैनवास की छत्रछाया
कविता

विराट कैनवास की छत्रछाया

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** "गर तेरी आवाज़ पे कोई न आये तो फिर चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला रे.." गुरुदेव आपको पता था की चलते जाओगे तो कारवां बनता जायेगा अगर आज होते तो नहीं ले पाते अकेले चलने का प्रण क्योंकि कारवां के पीछे भी रचा जाता षडयंत्र तब आप अलग-थलग पड़ जाते और अधूरा रह जाता आपका शांति निकेतन की परिकल्पना हे विश्वकवि-आज के इस इंसानी रोबोटिक भीड़ में कहाँ खोज पाते मिली के उस काबुलीवाले को या डाकघर के "अमल" के उस दही बेचने वाले को और उनके निश्छल प्रेम, गुरुदेव कहाँ है वह बंकिमचन्द्र चन्द्र जिन्होंने आगामी प्रजन्म को बचाने अपने गले की माला उतार कर आपके गले में डाली थी और आप भी उन परम्पराओं को निभाते हुए आह्वान किये थे उस "विद्रोही धूमकेतु" (काजी नजरुल इस्लाम) को, गुरुदेव आज के संवेदनहीन सामाजिक टीले और राख होते देश भक्ति के स्तूप पर कैसे लौटाते नाईट उप...
मैं समय हुँ
कविता

मैं समय हुँ

एम एल रंगी पाली राजस्थान ******************** मित्रो ... मैं समय हुँ, मैं बहुत बलवान हूँ ....!! मैं बोलता कम हूँ मगर, बहुत कुछ कर गुजरता हूँ ..!! जिसने मुझे पहचान लिया, मैने उसे सम्भाल लिया ...!! जो भी मुझसे टकराया, वो बहुत ही पछताया .....!! इतिहास उठा के, देख तो लो जरा, कुछ भी न बचा उसका, मुझसे जो न डरा ..!! चाहे हो रावण, कौरव और कंस, झेलना पड़ा उनको भी मेरा ही दंश ......!! मैं कब पलटी मार जाऊ, खुद को भी नही पता, दुर्दशा होगी उनकी जो प्रकृति से करेगा खता ..!! ये कोरोना भी प्रकृति का ही है एक कहर, रहो घरों में कैद वरना, सुने पड़ जायँगे शहर ....!! "रांगी" कहे सम्भल जाओ ए जहाँ वालो, करो नेकी बन्दों की, और अपने आप को बचा लो ..!!! . परिचय :-  एम एल रंगी, शिक्षा : एम. ए., बी. एड. व्यवसाय : अध्यापक जन्म दिनांक : २३/०६/१९६५ निवासी : सांवलता, जिला. - पाली राजस्थान आप भी अप...
प्रकृति और मानव
कविता

प्रकृति और मानव

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** प्रकृति मानव जीवन का आधार, इस पर निर्भर हैं संसार। मन मोहक आकृति, मानव की प्रकृति, इससे उपजी ढेरों फसलें, मिलता असीम उर्जा का संचार, कितने हम पर है उपकार। प्रकृति मानव जीवन का आधार। प्रकृति मानव का घनिष्ठ संबंध, देती हमको आसरा, भूखों को तारती, कपड़ों को संवारती, शीतल पावन सौन्दर्य की प्रकृति, थक कर कभी न हारती। है आज जीवित हम अगर, जीवित नहीं हो कृतज्ञता, आनंद लेते हैं सभी जन, जननी की कोई न सोचता। चलो चले प्रकृति रक्षक का, जय जय कार करें, हम इसका सतकार करें। . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती ...
फूलों की बातें
कविता

फूलों की बातें

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** फूलों का ये कहना दिल की बातें दिल में ही रखना छीन ले जाता कोई खुश्बू बस इस बात का तो रोना फूल बिन सेहरे-गजरे उदास हुए याद नहीं क्यों सांसे उतनी ही बची फूलों की न जाने तितली-भोरें फूलों के क्यों खास हुए उडा न पवन खुशबुओं को इस तरह मोहब्बतें भी रूठ जाएगी बेमौसम के पतझड़ की तरह कुछ याद रहेगी खुशबुओं की जब तक रहेगी धड़कन से सांसों की तरह खुश्बुएं भी रूठ जाती फूलों से काँटों की पहरेदारी बनती दगाबाज की तरह तोड़ लेता कोई जैसे अपने रूठे को मनाने की तरह चाह है बनना पेड़ के फूलों की तरह क्यारियों के फूल तो अक्सर टुटा करते इंसान भी बेवजह क्यों सबसे रूठा करते . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत...