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पद्य

कलम का सिपाही
कविता

कलम का सिपाही

केदार प्रसाद चौहान गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** देश के जन सेवकों को मैं जय हिंद कहता हूं कलम का सिपाही हूं मैं सत्य कहता हूं।। लोग तो सिर्फ वादा करते हैं और मैं लिख कर देता हूं देश की जनता के लिए जो अपनी त्याग -तपस्या मेहनत -लगन और परिश्रम के बल पर छोड़कर अपना घर- परिवार जनता की सुरक्षा के लिए खड़े हो जाते हैं बनकर दीवार चाहे कोरोना महामारी हो या फिर आ जाए बाल बच्चों सहित उसकी पत्नी हंता हमारे देश के जन -सेवकों के साथ खड़ी हे देश की जनता धन्य है वह लोग जो दिन -रात करते हैं जन सेवा चाहे भारी वर्षा बाढ़ आंधी या अन्य प्राकृतिक आपदा औरआजाए चाहे तूफान करोना जैसी महामारी मैं भी लगा दी अपनी दिलों जान मानते हैं अपनी ड्यूटी को सर्वोपरि परिवार से भी महान फिर वह चाहे सुरक्षाकर्मी डॉक्टर-जनसेवक समाजसेवी संस्थाओं देश के सैनिकों और पुलिस के जवानों को शिक्षक -के .पी .चौहान का शत -शत नम...
गांधी हैं एक बहाना
कविता

गांधी हैं एक बहाना

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** उत्सव देता हमें न रोटी, देता गेहूँ दाना। प्रचार स्वयं का करते हो, गांधी हैं एक बहाना। "भूखे भजन न होहिं गोपाला", कह गए हैं पहले पुरखे। कैसे उत्सव देखें (?), जब हैं पेट हमारे भूखे। पहले गेहूँ , तब गुलाब, यह बात है एकदम सच्ची। पहले दो तुम रोटी हमको, फिर कहना बातें अच्छी। गांधी-पथ है कठिन बहुत, बस स्वांग ही रच सकते हो। समझ रहे हैं तुम्हें खूब, हमसे ना बच सकते हो। छोड़ो बाकी बातें, बस तुम कृषकों को ही ले लो। उनकी उपजायी फसलों का उचित मूल्य तो दे दो। 'भितिहरवा' में जाकर देखो कृषकों की बदहाली। जीर्ण-शीर्ण वस्त्रों में करते फसलों की रखवाली। शीत घाम दोनों सहते हैं बिना निकाले आह। देख रहे हैं, करते कितना तुम उनकी परवाह। बड़ी-बड़ी बातें करते हो मंचों पर बस जाकर। जीयेंगे क्या कृषक तुम्हारी बातों को ही खाकर? गांधी ने जो कहा, उसे था जीव...
खौफ
कविता

खौफ

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** भाग दौड़ की जिंदगी में ठहराव सा आ गया, ऐसा लग रहा जैसे नया युग आ गया। गली चौबारा शांत सा दिलों पे तूफ़ान सा आ गया, रह रहकर इंसान भय पे अपने पर आ गया। न किसी की निंदा न कोई पर चिंता, दूरियां बना रहा मानव घर को बनाकर पिंजरा। सोना, चांदी, धन कोई काम नहीं आ रहा, थोड़े में गुजारा करने की हुनर सा आ रहा। अनहोनी आशंका से घिरता हुआ मन, अब जीवन पाने कि आस में मर रहा है इंसान। खूबसूरत जिंदगी के सपनों के झरोंखे ने प्रकृति ने भी क्या खूब नजारे दिखाए है। . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak1...
बादलों के उस पार
कविता

बादलों के उस पार

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** बादलों के उस पार जो उजाला है वो मुझे चाहिए घिर गई है मेरी बस्ती गहन अंधकार में। कतरा कतरा रोशनी मुझे चाहिए। जो प्रज्वलित है भीतर हमारे वो ज्योतिर्मय भाव मुझे चाहिए। झर रही नयनो से आशा की किरणें स्पंदन सांसो में होता रहे जगमगाता जीवनदीप मुझे चाहिए। घर की देहरी पर खिंच रखी है लक्षमण रेखा उस जीवन रेखा के ऊपर प्रकाशपुंज रूप "दीपक" मुझे चाहिए। मुझे चाहिए। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
स्वर्णिम अतीत
कविता

स्वर्णिम अतीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सुखी थे घर-घर सब परिवार! लुटाते थे आपस में प्यार! नहीं थी मध्य उच्च दीवार! जुड़े था संबंधों के तार! प्रदूषण मुक्त सभी आवास! दूर होकर थे कितने पास! उरों मैं थी आलोकित आस! हमेशा रहता था विश्वास! शान्ति शाला के थे सब छात्र! मनुज थे सब आदर के पात्र! परिश्रम करते थे दिन-रात्र! बुरे व्यक्ति थे कुछ ही मात्र! घरों में पशुपालन था आम! बहुत कम करते थे आराम! शुद्ध थे दूध-दही हर ग्राम! नहीं था मिलावटों का काम! लगे अब सब सपनों-सी बात! कहाँ हैं वे स्वर्णिम दिन-रात! बहुत बदले से है हालात! समय लाया है झंझावात! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•...
कसक
कविता

कसक

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** अन्जान डगर थी स्याह था अन्धेरा, यह कदम लड़खडा़ते बढ़ते चले गये। लगती रही ठोकरे पाव घायल हो गये, अन्जानी तलाश मे खोते चले गये। मृगमरीचिका के जैसे बजे ख्वाव अक्सर, बढ़े जो कदम तो खोते चले गये। सजी न कोई महफ़िल बजे न साथ कोई, बिन साथ के ही मदहोश होते चले गये। पग में बंधे न नूपुर ने गीत गुनगुनाया , अनजाने में पांव यूं ही थिरकते चले गये। मिलन की ललक थी अतृप्त सी तृषा थी, मिट न सकी तृषा, हम मिटते चले गये . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपन...
राम तुम्हारे नाम
कविता

राम तुम्हारे नाम

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं। तुम्हें बुलाने को हम आतुर, मंत्र उच्चारे हैं।। रावण से ज्यादा बलशाली दानव आया है, इससे कौन लड़ेगा प्रभु जी, आप सहारे हैं।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।... अदृश्य शक्ति का भेदन कैसे हम कर पायेंगे, इसके आगे कैद हुये हम बड़े बेचारे हैँ।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।.. देखो कैद में आज अयोध्या का जन मानस है। रोती अंखियां राम तुम्हारी राह निहारे हैँ।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।... ऐसे निर्मोही बने रहोगे कौन पुकारेगा, प्रकटो हे श्रीराम भक्त जन तुम्हें पुकारे हैं।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्...
एक दिया जलाएंगे
कविता

एक दिया जलाएंगे

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** भारत को कोरोना मुक्त बनाएंगे, हम भारत वासी हर घर मे दिया जलाएंगे, हर भारत वासियो को सलामत रखना सिखायेंगे, हर क्षण को देश के नाम जीवन देंगे, हम सभी सामाजिक दूरियों का पालन करेंगे, जीवन को महामारी से स्वयं एव समाज को बचाएंगे, समाज मे जागरुकता एव ज्ञान का दिपक जलाएंगे, बिमारियों से सभी से दूर भगायेंगे, विश्व मे अपना भारत का नाम ऊचाँ करायेंगे, कोरोना से जीत कर हम विश्व को दिखलायेंगे, हम सभी भारत के सेना, पुलिस, डॉक्टर साथ-साथ हाथ बढ़ाएँगे, जीवन को कोरोना मुक्त स्वयं एव समाज से करायेंगे, घर मे रहकर लॉक डाउन का पालन जी-जान से करेंगे, ना घर से निकलेंगे और ना समाज को घर से निकलने देंगे ! . परिचय :-  नाम - रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्य...
ये पब्लिक हैं, सब जानती है…
हास्य

ये पब्लिक हैं, सब जानती है…

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** विशेष :- पुरानी कहावतों व गीतों का व्यंग में समावेश एक छोटे बच्चे से हमनें पूछा ? बेटा कविता आती हैं क्या ? प्रति उत्तर में इस बच्चे की प्रतिक्रिया देखे - बच्चा बोला श्रीमान जी - कविता आती नही, सविता जाती नही, सुषमा बुलाती नही। नीतू आंटी नें पापा कों बुलाया हैं, बस इतनी सी बात पर मम्मी नें मुँह फुलाया हैं, मेरे समझ में नही आता माँ मान क्यों नही जाती कुछ दिन शर्मा जी के सांथ क्यों नही बिताती इस तरहा बार बार रूठने से अच्छा हैं माँ एक बार रुठे ! साँप भी मर जायें, और लाठी भी ना टूटे... आज कल में इनकी समस्याओ का समाधान कर रहा हूँ, दिन रात इन्हें एक करने की कोशिश कर रहा हूँ मेरे लाख समझानें पर भी, इन्हें कुछ समझ नही आयें, पिताजी का तों अब भी, यही कहना हैं ! दुल्हन वहीं जो, पिया मन भाए... इनकी हर रोज़ लड़ने की आदतों से, मैं पक चुका हूँ ! समझ...
सेवा कर्म में राम
दोहा

सेवा कर्म में राम

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** राम नाम सेवा कर्म, सेवा कर्म में राम। राम पुण्य का हैं सुफल, राम मुक्ति का धाम।।1।। जपना राम नाम कहे, मिटते कष्ट हजार। सुख में भी सुमिरन करे, मन की इच्छा मार।।2।। मंदिर-मंदिर घुम फिरे, मिले नहि कहीं राम। बगल छुरी दबा ली, कहां से मिले श्याम।।3।। ना मंदिर-मस्जिद बसे, ना काबा कैलास। मन भीतर जाके देख , राम करे मनवास।।4।। लिये हाथ कटार फिरे, शिकार उनका काम। दुजे को उपदेश देत, बोले जयश्री राम।।5।। . परिचय :- नरपत परिहार 'विद्रोही' निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindira...
शांतिदूत बन जायेंगे
कविता

शांतिदूत बन जायेंगे

डाॅ. सुधा चैहान ‘‘राज’’ इंदौर (म.प्र.) ******************** भारत के दो वीरों ने..... नया इतिहास रच डाला देश की एकता तोड़ रही, उस धारा को बदल डाला।। अब भी स्वार्थ की डाली पर, कुछ विषधर ऐसे लिपटे हैं जो अपने विषदंतों से, हरदम जहर उगलते हैं।। देश की एकता अखंडता उनको रास नहीं आई सीमा पर जब हुई शांति उनकी तबीयत घबराई।। राजनीति की रोटियां अब, वो किस तंदूर में सेंकेंगे भोली-भाली जनता पर अब कैसे दंगा थोपेंगे।। केशर की क्यारी में देखो अमन चैन लहराये है अब अच्छे दिन आयेंगे, ये नैना स्वप्न दिखाये है।। धरती का स्वर्ग कश्मीर हमारी सचमुच जन्नत बन जायेगी डल के पानी में कश्ती अब गीत विकास के गायेगी।। हर बच्चे को शिक्षा होगी, हर घर में रोटी होगी जन जन को न्याय मिलेगा, नहीं आतंकी गोली होगी।। तीनों रंग तिरंगे के अब शांति संदेश सुनायेंगे कश्मीर से कन्या कुमारी तक भारत एक बतायेंगे।। धर्म निरपेक्षता ना...
हे मां शेरावाली
कविता

हे मां शेरावाली

शुभा शुक्ला 'निशा' रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** काल के फंदे से हमको छुडाओ हे मां शेरावाली।। करोना के पंजे से हमको बचालो हे वैष्णव महारानी मां...... हे शारदे किरपा करो महामाई बचा लो मैंया छुडा लो भैया चरणों में तेरी जयकार जयकार रे... हे शारदे... धरती पे कैसा वाइरस आया मौत का खतरा छाया मुंह फैला कर मासूमों को अपना ग्रास बनाया तुझपे सबकी है श्रद्धा अपार बचालो मैया छुड़ा लो मैया चरणों में तेरे जयकार जयकार रे... हे शारदे... वैसे तो इंसा ने खुद अपने पाव कुल्हाड़ी दे मारी जैसी उसकी करनी थी तो ये सजा भी कम ही है माई सबका जीवन हुआ दुश्वार बचा लो मैया छुड़ा लो मैया चरणों में तेरी जयकार जयकार रे... हे शारदे... तुम हो हमारी प्यारी माता भक्तो की दुख हरता जिसका नहीं गर कोई जगत में तेरे प्रेम से भरता अपने बच्चो को तू ही सम्हाल ओ शेरा वाली, पहाड़ा वाली चरणों में तेरी जयकार जयकार री हे...
जाने क्यों
कविता

जाने क्यों

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** लोग ना जाने क्यों घरों से बाहर जा रहें है। और निकलते ही पुलिस के डंडे खा रहे है। पता है की दूरी बनाने के आदेश आ रहे है। फिर इकट्ठे होकर क्यों तमाशा बना रहे है। कुनकुना पानी पीना है, साबुन से हाथ धोना है। स्वच्छता बनाना है, घरों में लॉकडाउन होना है। खुदतो नियम पालते नही दूसरों को बता रहे है। इसीलिए तो रोज़ाना पुलिस के डंडे खा रहे है। मोदी जी प्रणाम करना सबको सिखा रहे है। संयम से रहना अबतो टीवी पर दिखा रहे है। २२ को घण्टी ०५ को दीपक भी जला रहे है। चौराहे पर प्रसाद के लिए साहब बुला रहे है। बुरे समय मे भी लगता है अच्छे दिन आ रहे है। तभी तो हंसते हंसते पुलिस के डंडे खा रहे है। सरकार की सख्ती प्रशासन को गलत बता रहे हैं। कुछ कहते है जनता को जबरजस्ती सता रहे है। स्वास्थकर्मी भी आपके लिए अब मार खा रहे है। खुद के परिवार को छोड़ आपक...
प्रकृति की शक्ति
कविता

प्रकृति की शक्ति

सीमा रानी मिश्रा हिसार, (हरियाणा) ******************** दिल में कब से यही शोर है मचा हुआ, यह मानव-जाति किस ओर जा रहा? अपने ही हाथों खुद को बर्बाद कर रहा, गलती से खुद को खुदा समझ रहा। प्रकृति को दूषित करने पर तुला हुआ, शायद उस अदृश्य शक्ति को है़ भूला हुआ। पर जब भी मानव संतुलन बिगाड़ता है़, प्रकृति किसी न किसी रूप में सुधार लेती है़। हम उसका विनाश करते हैं जब भी, तो वो भी हमारी जान लेती है़। पशुओं के साथ पशु मत बनो, खाने के लिए अन्न-फल-सब्जियाँ हैं, उनसे ही अपना पोषण कर लो। जीने दो सबको और खुद भी जियो, कुदरत के हर संकेत को अब तो समझो। मानव हो मानवता के राह पर ही चलो, गलतियों से सीखो, जिंदगी हँस कर जी लो। . परिचय :- सीमा रानी मिश्रा पति : डाॅ. संतोष कुमार मिश्रा पता : हिसार, (हरियाणा) पद : शिक्षिका आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
नवरात्र पर नौ मुक्तकों की माला
मुक्तक

नवरात्र पर नौ मुक्तकों की माला

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** शैल पुत्री की कृपा संसार को अब चाहिये। मातु ममता से भरा सर हाथ अपने चाहिये। हम करें आराधना पूजा चरण में मन लगा। अब दया वरदान अंबे मातु से बस चाहिये।1 ब्रह्मचारिणि तव कृपा का दान सबको दीजिये। सर्वजन के सर्वदुख भवताप भी हर लीजिये। आप सम अतुलित तपस्या कामना पूरी करे। मानवी संताप का अब नाश जग से कीजिये।2 चंद्रघंटा विश्व की विपदा सकल हरदम हरें। तव अलौकिक रूप लख कर भाव नव दिल में भरें। दिव्यता अनुपम तुम्हारी इक नयी अनुभूति दे। दानवी हर कृत्य का माता शमन प्रतिपल करें।।3 मातु कूष्मांडा हमेशा झोलियाँ भरती रहें। भक्त संकट में पड़े उद्धार टाब करती रहें। सूर्य सम है कांति जिससे जगत में आलोक हो। नौ दिनों माता तुम्हारी चौकियाँ सजती रहें।।4 पूजते स्कंद माता को सदा कर जोड़ कर। जाप नौ दिन भक्त करते कार्य पीछे छोड़ कर। पूर्ण करती कामना जो भक्त निज मन में रखें। हर...
सरस्वती वंदना
भजन

सरस्वती वंदना

परमानंद निषाद छत्तीसगढ, जिला बलौदा बाज़ार ******************** हे हंस वाहिनी, ज्ञान दायिनी। ज्ञान का प्रकाश दो,ज्ञान का प्रकाश दो। तुम स्वर की देवी है तुझसे संगीत, हर शब्द तेरा है तुझसे गीत। विद्या तुम देने वाली, ज्ञान का प्रकाश भरो। मोह, माया और अज्ञान का, संसार से उसका अंत करो। सिर झूंका कर मांगू मां, मेरा सपना स्वीकार करो। तेरे चरणों में आया हूं, करदो मेरा उद्धार मां। श्वेत हंस की करे सवारी, और श्वेत वस्त्र धारण किये। मां शारदे श्वेत हंस में बैठे, कंद पर रखे अपना चरण। मांग रहा हूं तुझको मां, मैं विद्या का वरदान। मैं तेरे शरण मे आया हूं मां, दो मुझे विद्या का वरदान। . परिचय :-परमानंद निषाद निवासी - छत्तीसगढ, जिला - बलौदा बाज़ार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहान...
दिवाने मन
भजन

दिवाने मन

अभिषेक कुमार श्रीवास्तव समस्तीपुर (बिहार) ******************** दिवाने मन भजन बिना दुख पैहौ ॥ टेक॥ पहिला जनम भूत का पै हौ सात जनम पछिताहौ। काँटा पर का पानी पैहौ प्यासन ही मरि जैहौ॥ १॥ दूजा जनम सुवा का पैहौ बाग बसेरा लैहौ। टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ॥ २॥ बाजीगर के बानर हो हौ लकडिन नाच नचैहौ। ऊॅंच नीच से हाय पसरि हौ माँगे भीख न पैहौ॥ ३॥ तेली के घर बैला होहौ आँखिन ढाँपि ढॅंपैहौ। कोस पचास घरै माँ चलिहौ बाहर होन न पैहौ॥ ४॥ पॅंचवा जनम ऊॅंट का पैहौ बिन तोलन बोझ लदैहौ। बैठे से तो उठन न पैहौ खुरच खुरच मरि जैहौ॥ ५॥ धोबी घर गदहा होहौ कटी घास नहिं पैंहौ। लदी लादि आपु चढि बैठे लै घटे पहुँचैंहौ॥ ६॥ पंछिन माँ तो कौवा होहौ करर करर गुहरैहौ। उडि के जय बैठि मैले थल गहिरे चोंच लगैहौ॥ ७॥ सत्तनाम की हेर न करिहौ मन ही मन पछितैहौ। कहै कबीर सुनो भै साधो नरक नसेनी पैहौ॥ ८॥ . परिचय :- अभिषेक कुमार श्रीव...
कर्तव्य पटल पर
कविता

कर्तव्य पटल पर

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पटल पर अटल पुलिस।। कोई व्याधि आँधि प्रकृति तांडव। हिंसक उत्पात करे संभव। भूमि का दांव लगे वैभव। तब निडर प्रवर रण प्रबल पुलिस।। प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पटल पर अटल पुलिस।। व्यभिचार कुठार हो क्रूर कर्म। आतंकवाद सब मेटे धर्म। ना समझे जन जब नीति मर्म। संकट मोचन ज्यों प्रखर पुलिस।। प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पटल पर अटल पुलिस।। दारिद्र छुद्र डाका चोरी। वैमनस्य विवाद बहुत-थोरी। परिवार पृथक कहीं छेड़-छाड़। कुछ नियम तोड़ जब बनें ताड़। ना हो समाज से विलग पुलिस। हर समाधान कर सुफल पुलिस। प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पटल पर अटल पुलिस।। करे कोई राष्ट्र से गद्दारी। बेईमानी हावी अरु मक्कारी। बढें विवादित उत्पाती। लाठी कर धर फिर संभल पुलिस। प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पट...
उनको जगाइये
ग़ज़ल

उनको जगाइये

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** जन्नत का तसव्वुर ना अभी दिल में लाइये, दोज़ख में ही बस प्यार की शम्मा जलाइये। दिल में उमड़ते ज्वार कब रफ्तार पकड़ लें, तूफाँ मचल ना जाये सनम मान जाइये। वक़्त की गिरफ़्त में कैदी हों कब तलक, दिल को तो महका हुआ गुलशन बनाइये। रंजोगम के फैसले किस्मत पे छोड़िये, बस ज़िन्दगी है प्यार, यही प्यार पाइये। क़ाफ़िर तो है हर शख्स जो इंसान बना है, तनहा सी राहों में नये दीपक जलाइये। खोये हुए हैं लोग क्यों गुमनाम से ‘विवेक, ज़रा प्यार से पुकार कर उनको जगाइये। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न ...
तन से तन अब न सटे
दोहा

तन से तन अब न सटे

संतोष 'साग़र' महद्दीपुर, जहानाबाद (धनबाद) ******************** तन से तन अब न सटे, रहो कुछ दुरी बनाय! 'कोरोना' से मुक्ति का, मंत्र रहा हु बताय!! घर में रहिये रात - दिन, बीबी - बच्चों के संग ! तब जा कर के खिलेगा, जीवन के सब रंग !! सरकार आपके हित की,सोच रही है सोच ! फिर क्यों घर में रहने में, करते हैं संकोच !! कुछ दिन में ही टल जायेगा, 'कोरोना' का भय! इतनी सी बस बात क्यों, तुमको समझ न आये !! हमने इस से पहले भी, कितने देखे है रोग ! दुरी बना के ही रहें, जल्दी होंगें निरोग !! देश हित के फैसले को, मिल कर करें सम्मान ! तब ही बच पायेगा, मेरा प्यारा हिंदुस्तान !!   परिचय :-  संतोष 'साग़र' माता :- श्रीमति सरिता देवी पिता :- श्री कृष्णानन्दन सिंह शिक्षा :- स्नात्तक (मगध विश्वविद्यालय), औद्योगिक प्रशिक्षण (ओड़िसा), प्राथमिक स्काउट शिक्षक (बिहार ) जन्म दिनांक :- १०/०२/१९९४ सम्प्रति :- वरीय सह...
जननी जन्मभूमि
कविता

जननी जन्मभूमि

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं तुम्हारी मातृभूमि, प्रिय वत्स! तुम मेरे हो स्नेह सिक्त स्पर्श लुटाया, ममता का आंचल ओढ़ाया, वात्सल्य से सींचा तुमको, गोद में अपनी पाला-पोसा... मृदु फलाहार कराया। पुष्पों की सुगंध से... जीवन तुम्हारा महकाया। गंगा के अमृत जल में अवगाहन करा, जीवन पुनीत बनाया। मैं तुम्हारी मातृ भूमि... प्रिय वत्स तुम मेरे हो। मैंने तुमको, वेदों का ज्ञान कराया, उपनिषदों का पाठ पढ़ाया। ऋषि मुनियों की तपश्चार्य से, जीवन तुम्हारा चमकाया। यहा 'धर्म' आधार जीवन का विचारों का संस्कारों का। मुझे छोड़ तू गया विदेश, मैं ताकती रही निर्निमेष। आज बर्बर देशों ने, असभ्यता के अवशेषों ने... विकट संकट में तुम्हें त्याग दिया, छोड़ सम्बल, तुमसे किनारा किया। यह देख मेरे हृदय पर कुठाराघात हुआ... जिजीविषा को देख तुम्हारी, परिजनों में भी दिखी लाचारी।। अन्न-धन अपा...
द्रोपदी की लाज
कविता

द्रोपदी की लाज

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** काश ! इंसान-इंसान की तरह जी सकता फटी वेदना की चादर को दर्जी सी सकता !! ना लुटती कहीं भी किसी द्रोपदी की लाज सुन सकते दीन, हीन, दुखियों की आवाज !! थम जाये रहजनी, डकैती, हत्याओं का दौर कोई निर्बल ना बने किसी सबल का कौर !! गरीबी, भुखमरी, ना रहे कुपोषण का साया लोकतंत्र को लूट सके ना कुबेर की माया !! लौट सकें फिर सुकून के दिन जो बीत गये हैं फिर बरसें वो बादल जो बरस के रीत गये हैं !!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आश...
पलायन से वापसी
कविता

पलायन से वापसी

दिलीप कुमार पोरवाल (दीप) जावरा म.प्र. ******************** सब है अपने अपने घरों में अब कौन ले सुध इनकी ये कैसे हालात है ये कैसी बेबसी है ना कोई आशिया है ना कोई सहारा है जाए तो जाए कहां जाए तो जाए कैसे ना सड़क पर कोई वाहन ना ट्रेक पर कोई ट्रेन चले जा रहे है निराशाओं में निराशाओं का ना कोई पारावार है खाने पीने के है लाले पैरों में पड़ गए है छाले कंठ है सूखा पेट है भूखा हाथो में नौनिहाल सिर पर गठरी चले जा रहे है बेतहाशा बचाने को जान अपनी कोरोना का ये कैसा रोना है भूख प्यास से मर जाना है चले थे घर से पलायन कर कुछ रोजी रोटी कमाने को मा बाप को घर छोड़ कर आज ये कैसे हालात है चले जा रहे है बस चले जा रहे है पलायन वापसी पर। . परिचय :- दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉ...
पलायन
कविता

पलायन

सरिता कटियार लखनऊ उत्तर प्रदेश ******************** पेट की खातिर कमाने को अभी गये थे जो निर्धन आज कोरोना ने मझधार में डाला दहल गये वो मन दहलाया सारी दुनिया को हुये लाचार सभी जन जन क्या करना वहाँ पर रहे के लौट जायेंगे अपने घर हैं मजबूर काम के जरिये भूख से सारे रहे तरस किया पलायन बिन गाड़ी और पैदल ही सब लिए निकल सौ दो सौ चार सौ मीटर की दूरी को ना लाया ज़हन दो-दो बच्चे कंधों पर और गठरी धरी दूजे के सर पर तरस जो खाये वो फंस जाये ना खाने वाला निर्मम महामारी का जाल बिछाया खुद के लिए खुद करो जतन कई रोज लग जायेंगे तब पहुचते अपने घर तब सारे सीएम ने सोचा भरो गाड़ी पहुचादो घर सोचो तनिक छुआछूत की बीमारी लग गयी अगर क्या घर में खुश रह पाओगे गर बीमार हुए जन जन घबराओ ना विनती है हाथ जोड़कर सरिता की वक्त पड़ा है आन ना हिम्मत टूटेगी लाचार बन . परिचय :-  सरिता कटियार  लखनऊ उत्तर प्रदेश ...
अप्रैल फूल
कविता

अप्रैल फूल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अप्रैल फूल कही खिलता नहीं मगर खिल जाता मजाक के घर में एक अप्रैल को क्या, क्यों, कैसे ? अफवाओं की खाद से और उसे सींचा मगरमच्छ के आँसू से लोगों ने इस अप्रैल फूल को इसीलिए ये पौधा झूठ के गमले में फल फूल रहा वर्षो से लोग झूठ को भी सच समझने लगे क्या अप्रैल फूल के बीज फैलने लगे है पूछे, तो लोग कहते -हाँ बस एक अप्रैल को ही दुकानों पर मिलते है आप को विश्वास हो तो आप भी लगाने के लिए ले आए घर की बालकनी में और आँगन में लोगो को जरूर दिखाए आपके यहाँ एक अप्रैल का फूल खिला ताकि उन्हें कुछ तो विश्वास हो आप पर एक अप्रैल को भी सुंदर सा फूल खिलता है जैसे वर्षों बाद खिलता है ब्रह्म कमल जिसे सब ने देखा है मगर अप्रैल फूल कभी नहीं देखा शायद एक अप्रैल को ही हमे देखने का सौभाग्य प्राप्त हो? . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालज...