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पद्य

हनुमानजी की वंदना
गीत

हनुमानजी की वंदना

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** लोग कहते तेरी पूजा होवे २ केवल मंगलवार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार। लोग कहते तोही शेदुर चढ़ता २ केवल मंगलवार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।१। तू ही मेरा करता धरता। तेरी पूजा आरति करता। बस यही मेरा कारोबार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।२। पवन पुत्र अंजनि के नंदन। तेरा प्रभु करता हूँ वंदन। तु ही मेरी सरकार । हमारे लिये हर दिन मंगलवार।३। हनुमानजी की महिमा रामचंन्द्र जब जनम लियो है। मिलने की इच्छा प्रगट कियो है। आप पहुँचे दशरथ द्वार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।४। असुर कहे तम्हें छोटा बंदर। मारा उनको घुस के अंदर। धरे देह विकराल। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।५। महाबली हो महा हो ज्ञानी। हारे सभी असुर अभिमानी। कलि का तुम ही हो आधार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।६। लंका मे जब आग लगाई। डर गए है राक्षस समुदाई। सब करे तेरी जय जयकार। ह...
दिलों की नफरत
कविता

दिलों की नफरत

सरिता कटियार लखनऊ उत्तर प्रदेश ******************** इंसानों के दिलों की नफरत बढ़ी वनों से ज्यादा दिलों में अग्नि बढ़ी घट सकती बनों की जलन शायद काले धुएँ से दिलों की धधक बढ़ी अब कौन किसी को पहचानने इतना ही जाने तो समझो बात बडी इंसान ना बनों पर तरस खायें प्राकृति के बदले की तहश बढ़ी आपदाओं का ऐसा कहर बरपा के कुदरत देखे खड़ी खड़ी एक तरफ धुआं ना शांत होये दूजे हिस्से में आन पड़ी जंगल के जंगल बुझ ना सके रिश्तों में ज्वालामुखी फटी आया है समय कैसा सरिता ये गहरी सोंच में आन पड़ी परिचय :-  सरिता कटियार  लखनऊ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail....
उडती अफवाए
कविता

उडती अफवाए

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अफवाए भी उडती/उड़ाई जाती है जैसे जुगनुओं ने मिलकर जंगल मे आग लगाई तो कोई उठ रहे कोहरे को आग से उठा धुंआ बता रहा तरुणा लिए शाखों पर उग रहे आमों के बोरों के बीच छुप कर बैठी कोयल जैसे पुकार कर कह रही हो बुझालों उडती अफवाओं की आग मेरी मिठास सी कुहू-कुहू पर ना जाओं ध्यान दो उडती अफवाओं पर सच तो ये है की अफवाओं से उम्मीदों के दीये नहीं जला करते बल्कि उम्मीदों पर पानी फिर जाता उठती अफवाहों से अब ख्व्वाबों मे भी नहीं डरेगी दुनिया इसलिए ख्व्वाब कभी अफवाह नहीं बनते और यदि ऐसा होता तो अफवाए मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, गिरजाघर से अपनी जिन्दगी की भीख भला क्यों मांगती? . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभि...
अपनों के लिए
कविता

अपनों के लिए

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** लोग कहते हैं मरने के बाद, मुक्ति मिल जाती है, अपनों का एहसास नहीं होता, अपनों की याद नहीं आती, कोई हमसे तो पूछे... मुक्ति के बाद एक-एक पल हमने कैसे गुजारा, हमें जलने से डर लगा पर जले हम, हमें दूर होने से डर लगा पर दूर हुए हम, मरने के बाद क्यों रहते हैं हम, अपनों के आसपास ही, अपनों ने ही जलाया हमें, अपनों ने ही भुलाया हमें, हमें भी दर्द हुआ था जलने में, खाकर सुपुर्द होने में... हम सब को देखते हैं, हमें कोई नहीं देखता, हम सबको याद करते हैं, पर हमें कोई याद नहीं करता, क्यों मर कर भी तिल-तिल मरते हैं हम, "अपनों के लिए" परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक : उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : ज...
वतन की खुशबू
कविता

वतन की खुशबू

विजय पाण्डेय महूँ जिला इंदौर ******************** मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो ज़मी के कण से आती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो पहचान हमें दिलाती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो अमन शान्ति में रहती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो मेरे रक्त कणों में बहती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो नदियों को माँ कहती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो मेरे धर्म ग्रंथ में रहती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो खेतों के फसल में रहती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो धूप बदन पर सहती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो मेरे संस्कार में बसती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो हर दुख सहकर भी हँसती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो सरहद की हिफाज़त करती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो दुश्मन को ललकारे भरती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो गद्दारों को सबक सिखाती हैं। मुझें प्यारी हैं वो ख...
लाइन में लग जाओ…
कविता

लाइन में लग जाओ…

प्रकाश भारतीय सांचौर जिला जालौर राजस्थान ******************** ये जो लाइने बनती है होती है आम के लिए गरीबों के लिए होती है... खास के लिए अमीर के लिए वीआईपी के लिए अधिकारी के लिए ये लाइने महत्व नहीं रखती... अस्पताल में हो बैंको में हो स्कूलों हो या मंदिरों में हो इन लाइनों की भी एक लाइन होती है... आज भी होती है लाइने मेरे देश में जाति धर्म की... जो इंसान को जानवर बनाती हैं... जो आम और खास को करती है अलग अलग, कद और पद को देती है महत्व। आम आदमी जानता सब हैं इन लाइनों को... जिसने काम किया है फ़र्क समझने का कि तुम कौन हो... काश! देश में विआईपी की जगह ईपीआई लागू हो प्रत्येक व्यक्ति महत्वपूर्ण है... जब कि सब के वोट की कीमत एक ही है... फिर ये लाइने अलग अलग क्यों... सोचो... तो ज़रा आप नहीं, हम सब... परिचय :- प्रकाश भारतीय निवासी : सांचौर जिला जालौर राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ...
अदृश्य शत्रु बनाम साहस
आलेख, कविता

अदृश्य शत्रु बनाम साहस

श्रीमती लिली संजय डावर इंदौर (म .प्र.) ******************** आज सोशल मीडिया के माध्यम से घर बैठे स्क्रीन पर दृश्य देख देखकर ऐसा लग रहा है कि मानो पूरा विश्व थम गया है, संसार का कारवां रुक गया है। प्रकृति का सबसे ताकतवर जीव इंसान..... आज बेबस है, असहाय है, मजबूर है, स्तब्ध है, डरा हुआ है , रुका हुआ है सहमा हुआ है, अपनों के पास होकर भी अपनों से दूर है, अपने ही घर मे,अपनी ही मर्ज़ी से, कैद है , किसके कारण ? एक ऐसे "अदृश्य शत्रु "के कारण जिसे सीधे आंखों से देखा भी नहीं जा सकता, जिसका कोई अस्तित्व नही, जिसके पास मस्तिष्क नही, जिसके पास बाहुबल नही, जिसके पास शस्त्र नही, जिसकी कोई जात नही, जिसका कोई धर्म नही, जो किसी देश का नागरिक नही, जिसका कोई मित्र या शत्रु नहीं। आज एक अदने से अदृश्य शत्रु ने इंसान की दुनिया में तबाही मचा दी है, तूफान ला दिया है। इंसान -इंसान के बीच और उसके चारों ओर पहरा लग...
अँधेरी कोठरी में
कविता

अँधेरी कोठरी में

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म .प्र.) ******************** अँधेरी कोठरी में सुकून दे सकते हैं, थोड़े से उजाले मगर उसमें भी फैलते दिख जाते हैं मकड़ियों के जाले। चींटी के संघर्ष का जज़्बा, अपने दिल में रहो सँभाले, ना जाने कब थके पैर के लगे बिलखने कातर छाले। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां...
मुझे छूने की गुस्ताखी में
कविता

मुझे छूने की गुस्ताखी में

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** मुझे छूने की गुस्ताखी में तुझे क्या सजा दूँ ? थाने में रपट लिखा दूँ, या पंडित बुला तुझे उम्र कैद की सजा दूँ ? मेरी जज्बातों को बहकाने के जुर्म में, तुझे क्या सजा दूँ ? तेरी सबसे प्यारी चीज तुमसे छीन लू, या तुझे अपना बना लू ? मेरी आंखों के सपनों को चलचित्र जैसे दिखाने की। क्या सजा दूँ ? झूठी रिवाजों से पर्दा उठा दूँ तू कहे तो तेरे संग, एक नायाब रिश्ता बना लू ? मुझे छूने की गुस्ताखी में तुझे क्या सजा दूं ? तुझे से बहुत दूर चली जाऊं, या तुझे गले से लगा लूं ? मेरे हृदय में जगह बनाने, तड़पाने की क्या सजा दूँ ? तुझे कह दो अलविदा, या तुझसे लिपट तुझे आधा अंग बनाना लू ? मुझे छूने की गुस्ताखी में, तुझे क्या सानू सजा दूं ? थाने में रपट लिखा दूँ, या पंडित बोला तुझे, उम्र कैद की सजा दूँ .....? . परिचय :- चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पू...
अपने घर में रहो
कविता

अपने घर में रहो

धीरेन्द्र कुमार जोशी कोदरिया, महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** तूफान के हालात हैं, न किसी सफ़र में रहो। पंछियों से है गुजारिश, अपने शजर में रहो। ईद के चांद हो अपने ही घर वालों के लिए, ये उनकी खुशकिस्मती है उनकी नज़र में रहो। माना बंजारों की तरह, घूमे हो हर डगर, वक़्त का तकाज़ा है, अपने ही शहर में रहो। तुमने ख़ाक छानी है हर गली चौबारे की, एक दिन की तो बात है, अपने घर में रहो। . परिचय :- धीरेन्द्र कुमार जोशी जन्मतिथि ~ १५/०७/१९६२ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म.प्र.) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम. एससी.एम. एड. कार्यक्षेत्र ~ व्याख्याता सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा, सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वास के प्रति जन जागरण। वैज्ञानिक चेतना बढ़ाना। लेखन विधा ~ कविता, गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे तथा लघुकथा, कहानी, नाटक, आलेख आदि। छात्रो...
कोरोना का कैसा रोना
कविता

कोरोना का कैसा रोना

सरिता कटियार लखनऊ उत्तर प्रदेश ******************** घर में रहना यही है कहना पर ना कोरोना से डरना सुबह से शाम तलक ही रहना एक एक जीव को बचकर रहना उसके कब्जा करने से पहले तुम उसको कब्जे में करना किसी से बिलकुल नाही डरना गुलाम आज़ादी ना करना एक ही दिन बंधेजी करना संडे है मिल जुल मस्ती करना नये पकवान बनाते रहना पर ना उसके बाप से डरना सीखा नहीं कभी भी हारना हिम्मत से सब काम करना खा पी कर हाथ धोते रहना पीछे हाथ धो कर है पड़ना ज़रा जमीन से उसे भगाना भूल जाये दोबारा आना आकर उसे पड़े पछताना विनती सरिता की ये मानना . परिचय :-  सरिता कटियार  लखनऊ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टा...
तुम्हें लगा
कविता

तुम्हें लगा

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** विधाता छंद-मापनी १४-१४ मात्रा, ७-७ मात्रा पर यति।   धोऐं हाथ, साबुन से। फिटकरी से, ही नहलाएं। न कभी हाथ, मिलाना है। न अभी भीड़, लगाना है। सम्मान हो, यदि करना। हाथ को ही, जोड़ लेना। याद रखना, केवल तुम। मिलोगे भी, तुम न गले। बस हो अगर, कभी खाँसी। तो मुँह पर, रूमाल ही तभी रख लो, छींकना हो जब कभी भी, दोनों हाथ रखकर नाक, तुम ढँकना। सिर दर्द हो, कभी जोरों का। साथ सीना, अगर जलता। हमेशा ही, बुखार भी यदि रहता, साथ शरीर में रहे जलन, समझो तभी तुम्हें लगा, कोरोना है। . परिचय :- भारत भूषण पाठक देवांश लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र मे...
काश
कविता

काश

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** काश एक बार तुमने मुझे पुकारा होता, टूटे हुए दिल को संवारा होता, जिस तरह काटा है वक्त तुम्हारे बिना, काश तुमने भी हर लम्हा ऐसे ही गुजारा होता, तुमको ये जिद थी जैसे हो कबूलू तुमको, मेरी ये चाहत थी कि जैसा है वो सिर्फ मेरा होता, तेरे बिना खुश रहने का करती थी दिखावा, दिल में है कसक काश तू मेरे बिना अधूरा होता, तेरे चेहरे पर वो शबनम की बूंदे देखकर, अपने आप को थोड़ा सा मैने भी तराशा होता, चांद कहा बाबू कहा शोना भी कहा, काश सिर्फ एक बार मेरी नेहा कहकर पुकारा होता... . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक : उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्...
निर्भया से वादा करे
कविता

निर्भया से वादा करे

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** निर्भया के केस जैसी देरी अब न्यायालयों में ना होने पाए! करे कोई बलात्कार जैसी घटना उसे तुरंत मृत्युदंड दिया जाए! लंबा होता है छ, सात साल न्याय पाने के लिए इंतजार करना! क्यों ना जल्दी न्याय पाने के लिए एक अलग ही न्यायालय बना दिया जाए! बलात्कार करने वाला बालिक हो या नाबालिक ना उसे छोड़ा जाए! तत्काल दंड देने की हो प्रक्रिया चालू क्यों ना ऐसा कानून बना दिया जाए ! संकल्प करें कि अब नहीं होने देंगे निर्भया जैसी अन्य कोई घटना! कि पीड़ित मां-बाप को इंसाफ मांगते-मांगते बहुत साल लग जाएं! . परिचय :- अमित राजपूत उत्तर प्रदेश गाजियाबाद आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेत...
अब और नहीं
कविता

अब और नहीं

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** न्याय की गुहार लगाई थी, निर्भया की मां, दरिंदों को बचाने की पैरवी भी हुई, झूठ बोले गए, सत्य के दरबार में, अंधेरा बहुत हो चुका, अब और नहीं। वहशी दरिंदे बहुत बढ़ गए, बेटियों की अस्मिता को तार-तार किया, घाव इतने दिए उनके शरीर पर, कि मानवता को शर्मसार कर दिया, दर्द बहुत है सहे, अब और नहीं। अब कोई कलियां चमन से न टूटे, गुड़िया कभी भी किसी की न रूठे, न्याय व्यवस्था इतनी मजबूत हो, की प्यारी लाडो किसी की न छूटे जिंदा जलाया था, अब और नहीं। देर से ही सही, पर न्याय तो मिला, निर्भया बेटी को, इंसाफ मिला, फांसी के फंदे पर झूल गए दरिंदे, महिलाओं को आज सम्मान तो मिला, हमारी आवाज दबाई गई, अब और नहीं। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्मदिन - ३०/०६/१९५७ जन्मस्थान - बिलासपुर छत्तीसगढ़ शिक्षा - एम.ए समाजश शास्त्र, ...
एक सोच
कविता

एक सोच

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** एक डर ..........का ? संपूर्ण विश्व पर मानवीय दिमागों पर हावी होना।। जिस का नाम है.......कोरोना सोचता हूँ.......? एक सभ्यता एक समाज को, हर दिमाग की सोच को, जब रोकना हो ....! आगे बढ़ने से ......? तब अफवाह और आधे सच से, जब लोग रू-ब-रू हो जाते हैं। तब कोरोना...... नहीं मारेगा। हम अपने डर से ही मर जाते हैं। तरक्कीयों-उचाईयों को, बढ़ते हुए कदमों को, एक बीमार, डरी सोच मार जाती है। कोरोना से तो, बच सकता था .........विश्व लेकिन मौत के डर से, जिंदगी बे-मौत मारी जाती है। कोरोना का रोना, हर सोच को, डराकर हावी हुई जाती है। जिंदगी इंसानी दौड़ की पहुंच, क्यों .......समझ नहीं पाती है? अपने डर से, जब तक नहीं लड़ेंगे। जब तक विश्व के, पर्यावरण की, सुध हम ही नहीं करेंगे। संपूर्ण विश्व के लिए, सबके ....... जीने की जिद्द नही करेंगे।...
जीवन प्रयोजन
कविता

जीवन प्रयोजन

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** जीवन का प्रयोजन क्या है? यह क्यों है मानव शरीर, जीवन में जन्म से दुख है, मृत्यु दुख- प्रिय सी संयोग बियोग दुख है। यह जगत दुख है फिर भी प्राणी इस दुख मंदिर को- ढोता इसे फेंकता नहीं इसकी विनाश की कल्पना से- सिहर, कांप उठता है फिर नवीन कल्पना करता है! सृष्टि की प्रारंभ से इस गूढ़ रहस्य को- जानने समझने यत्न किया है! करते अभी जा रहे हैं इसमें ज्ञान विज्ञान अभी लगाहै! फिर भी सूर्य उदित होते हैं शशि कलाये में घटती बढ़ती है! महासागर गरजता है आंधी फुफकारती है! तुसारापात हमें ढंढा करता है, आपत जलाता हैं! यह खेल गजब है जीवन का- यह खेल नियति क्यों खेलता है? उसकी गहरी वंदना में-उसे क्या रस मिलता है? फिर उसे बंधनों में जकडने में क्या आनंद मिलता है? प्राणियों के करुण क्रंदन से उसका मन नहीं पसीजता है! शून्यवाद से लेकर अब तक मानव चिंतन जारी है- ज...
सियासी दौर
कविता

सियासी दौर

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ******************** आज देश की हालत देखकर किस पर आरोप लगाऊँ मैं कोरोना जैसे वायरस पर या देश के सियासत दारों पर। ये वायरस तो फिर भी अल्पायु है खतरा तो उनसे है तो दीर्घजीवी बन बैठे। आज सियासत इनकी तो कल किसी और के घर की शोहरत है मन चाहे ढंग से राज किया न प्रेम देश से,न त्याग किया गध्दावर नेता बनकर फिर भी लम्बे समय तक राज किया। कभी मुगलो की हस्ती थी तो कभी अंग्रेजो की बस्ती थी। पर अब तो अपने ही भाई लूट रहे इनसे कौन बचाएगा। आज देश की हालत देखकर अब किस पर आरोप लगाऊँ मैं। . परिचय :- नाम - रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो...
माहौल
कविता

माहौल

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** ग़र कुछ बदलने की चाह हो मन में, तो हर शख्स को नींव की ईंट बनना होगा। करना हो अपने समाज का नव निर्माण, तो हम सबको घर से निकलना होगा।। नव निर्माण होगा समाज का, नशामुक्ति का अभियान छेड़ना होगा। जगेगी शिक्षा की अलख, तभी तो समाज का निर्माण होगा।। सिर्फ हंगामा खडा़ करना मेरा मकसद नहीं हैं बस हर गली-मौहल्ले में शिक्षा की शहनाई बजनी चाहिए। कंगूरा बनने की चाह नहीं हैं मेरी मुझे नींव की ईंट ही रहने दो। भले ही बन जाओं तुम सुघड़ इमारत। पर ये माहौल बदलना चाहिए।।   परिचय :- नरपत परिहार 'विद्रोही' निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेत...
गुरुवर
दोहा

गुरुवर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** गुरुवर ज्ञानप्रकाश है, गुरुवर अनुभव-खान। और धरा पर कौन है, कहिए मनुज महान। कृपा हुई गुरु की बड़ी, मिला ज्ञान का कोष। मेरे मन में बस गया, सुखदाई संतोष। गुरुवर ने अद्भुत किया, तन-मन पर उपकार। मैने सबकुछ पा लिया, विस्मित है संसार। गुरुवर की महिमा बड़ी, कैसे हो गुणगान। अर्जित विद्या से हुए, शिष्य महा धनवान। पथ-प्रदर्श निज शिष्य का, करते रहते नित्य। गुरुवर धुंधली राह में, बन जाते आदित्य। . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विधा ~ कवित...
बढ़ती उम्र में दोस्त
कविता

बढ़ती उम्र में दोस्त

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** थोड़ी थोड़ी मस्तियां, थोड़ा मान-गुमान। आओ मिलकर रखें, सब ही सबका ध्यान। बढ़ती उम्र कहती है, थोड़ा सीरियस हुआ जाए। किन्तु वक्त का किसे मालूम, कुछ हास-परिहास किया जाए। जब दो हस्ती मिलती है, तो दोस्ती होती है। समुन्दर न हो तो, कश्ती किस काम की। मज़ाक न करें तो, दोस्ती किस काम की। दोस्त ही न हों तो ज़िन्दगी किस काम की। मर्ज तो सताते हैं, बढ़ती उम्र में। हर मर्ज का इलाज, नहीं है अस्पताल में। कुछ दर्द तो यूं ही चले जाते हैं, दोस्तों के साथ मुस्कुराने में। किसका साथ कहां तक होगा, कौन भला कह सकता है। मिलने के नित नए बहाने, रचते बुनते रहा करो। फ़ुरसत की सबको कमी है, आंखों में अजीब सी नमी है। शान से कहते हैं, वक्त नहीं है, यह भी सोचो, वक्त की डोर, किसी के हाथ में नहीं है। कब थम जाए, पता नहीं है। हौसले नहीं होंगे पस्त, साथ हों जब, बढ़ती उम्र में द...
सहर होने दो
कविता

सहर होने दो

श्वेता सक्सेना मालवीय नगर जयपुर (राजस्थान) ******************** मौन को मुखर होने दो, शब्द को शिखर होने दो। त्रास दे रही जो अंतर को, वेदना को प्रखर होने दो। बहने दो पीड़ा बूँद-बूँद होकर, मत रोको, अश्रुओं का समर होने दो। उलझी बहुत है जीवन डोरी, उलझनों को सरल होने दो। क्यों उठा रखा है मनों बोझ मन पर ? दुःख की बदली को विरल होने दो। बीत जाएगी निशा, टूटेगा तिमिर भी, नव स्वप्नों की सहर होने दो। . परिचय :- श्वेता सक्सेना निवासी :- मालवीय नगर जयपुर राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचि...
चट्टानों के नीचे भी
कविता

चट्टानों के नीचे भी

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** चट्टानों के नीचे भी होता है पानी हो कितना भी कोई संगदिल दो मीठे बोल ला देते है उसकी भी आंखों में पानी। जो है आनेवाला वो ही है जानेवाला कुछ पल का है ये तमाशा सभी को निभाना है अपने अपने किरदार चंद घड़ियों में गिर जाएगा पर्दा हो जाएगा सब कुछ फ़ानी हो सके तो कर कुछ ऐसा जो भर दे किसी की आँख में पानी जीने को तो सब जी लेते है याद वही रह जाते है जो देते है कुर्बानी। शाहों का शाह है वो वक़्त भी जिसका गुलाम तू तो खिलौना है उसका वो लेता है इम्तहान वो सब देखता है वो सब जानता है मत कर कोई चालाकी मत कर कोई बेईमानी। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान - हिंद...
मेरा स्वाभिमान मेरे पापा
कविता

मेरा स्वाभिमान मेरे पापा

जितेन्द्र रावत मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हाथ में उनकी डोर। मैं उड़ता गगन की ओर। मेरे सिर पर पापा आपका हाथ रहे। मेरा जीवन सदा आपके साथ रहे। हाथ में उँगली लेकर, सामाजिक दुनिया देखी। अपने स्नेह भाव से, मेरी तक़दीर लिखी। मैं अक्षर, आप कितना बनके साथ रहे। मेरे सिर पर पापा आपका हाथ रहे। मेरा जीवन सदा आपके साथ रहे। बन जाते मेरी ढाल, कसता कोई तंज। ह्रदय इतना कोमल, शरमा जाए पंकज। मेरे स्वाभिमान में, आपकी ठाट रहे। मेरे सिर पर पापा आपका हाथ रहे। मेरा जीवन सदा आपके साथ रहे। प्यारी सी मुस्कान, लचीला है अंदाज। कोयल से भी मोहक, लगती है आवाज़। मेरी बातों में, आपकी ही बात रहे। मेरे सिर पर पापा आपका हाथ रहे। मेरा जीवन सदा आपके साथ रहे। . परिचय :- जितेन्द्र रावत साहित्यिक नाम - हमदर्द पिता - राधेलाल रावत निवासी - ग्राम कसमण्डी कला, मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) शिक्...
स्त्री तुम
कविता

स्त्री तुम

शोभा किरन जमशेदपुर (झारखंड) ******************** स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी.... वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी.... ज्ञान की तलाश क्या सिर्फ बुद्ध को थी ? क्या तुम नहीं पाना चाहती वो ज्ञान ? किन्तु जा पाओगी, अपने पति परमेश्वर और नवजात शिशु को छोड़कर.... तुम तो उनपर जान लुटाओगी.... उनके लिये अपने भविष्य को दाँव पर लगाओगी... उनकी होंठो के एक मुस्कुराहट के लिए अपनी सारी खुशियो की बलि चढ़ाओगी.... स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी.... वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी.... क्या राम बन पाओगी ???? क्या कर पाओगी अपने पति का परित्याग, उस गलती के लिए जो उसने की ही नहीं ???? ले पाओगी उसकी अग्निपरीक्षा उसके नाज़ायज़ सबंधो के लिए भी ???? क्षमा कर दोगी उसकी गलतियों के लिए, हज़ार गम पीकर भी मुस्काओगी.... स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी.... वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी.... क्या कृष्ण बन पाओगी ???? जोड़ पाओगी अपना नाम किसी प...