तू क्या जाने भगवान!
भारत भूषण पाठक देवांश
धौनी (झारखंड)
********************
विधा - करुण रस
तू क्या जाने भगवान!
रात भर हर दिन ही
खटमल-मच्छर के बीच
सुख से सोना क्या होता है।
तू क्या जाने भगवान !
हर दिन ठण्ड से ठिठुरना,
कैसा हमका लगता है !
तू क्या जाने भगवान!
जि-कर मरना, मरकर जीना
कितना मुश्किल होता है!
रात भर दर्द में रहकर
सुबह सब अच्छा ही है,
कहना, कैसे? संभव होता है !
तू क्या जाने भगवान !
बेघर होकर दर-दर भटकना,
हम किस तरह कर पाते हैं,
अो बादलों के आलीशान !
महलों में हमेशा रहने वाले,
जीवन-मृत्यु ,खेलने वाले !
आओ एक बार फिर तुम
इस धरती पर बनकर के
तुम भी वो अबला नारी,
कुचली जाती मसली जाती
कभी जो और जिसकी इच्छाएं।
बन कर आओ वो पिता एकबार।
जो अपने जवान बेटी को कंधा,
जिसे कभी देना होता है।
कारण तुम्हारी बनायी इस...
धरती पर जो एक न एक
राक्षस हरदम पलता है।
बनकर बहुत आ लिए संहारक तुम,
बस केवल एक बार शिकार
हम ज...