चलते रहो
निर्मल कुमार पीरिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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हैं सामने, खुला नील गगन,
फिर क्यों हैं तू, थमा हुआ?
खोल अपने अरमानों को,
ले भर, आसमा, फैला हुआ...
जब राह तन्हा, संग तेरे तो,
क्यो तुझें, मंजिल की फ़िकर,
हैं सूल भरी, पगडंडी तो क्या,
तू चल, एकाकी, काहे का डर..
तेरे वजुद की, तुझको तलाश हैं,
तेरा जमीर ही, तेरा नफ़स हैं
चलते रहो, ना देख कदमों को,
तेरा सफ़र, तुझ तक ही खत्म हैं...
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परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया
शिक्षा : बी.एस. एम्.ए
सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि.
निवासी : इंदौर, (म.प्र.)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं
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