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पद्य

ऋतु राज बसंत
कविता

ऋतु राज बसंत

जनार्दन शर्मा इंदौर (म.प्र.) ******************** देखो मां शारदे के बसंतोउत्सव की, बही बासंती बयार है। मां स्वरपाणी के चरणो को करते, बारंबार वंदन नमस्कार है। विद्या, बुद्धि, स्वर, वाणी कि देवी का, करते हम पूजन है। आओ ऋतु के राजा बसंत, आपका करते हम अभिनंदन है। शिशिर कि सर्द हवाये भी अब हमसे दूर होती जाती है। जाडो़ कि कुनकुनी लगती धूप में भी, चूभन सी आती है। हरियाली के नवांअंकुरित फूलो से प्रकृति ने किया श्रंगार है। नवयौवनाओ के रूप से भी,छलका मनमीत के लिये प्यारहै। पीले मीठे चावल की महक,चहुंऔरपीले वस्त्रो का नजारा है। करे स्वागत हम सब ये बसंत पंचमी का पर्व बहुत प्यारा है। ये उत्सव बहुत ही प्यारा है। . परिचय :- जनार्दन शर्मा (मेडीकल काॅर्डीनेटेर) आशुकवि, लेखक हास्य व्यंग, मालवी, मराठी व अन्य, लेखन, निवासी :- इंदौर म.प्र. सदस्य :- अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी परिषद... उपलब्धियां :- हि...
तुम अक्षर हो मेरा
कविता

तुम अक्षर हो मेरा

अभिषेक खरे भोपाल (म.प्र.) ******************** तुम अक्षर हो मेरा, मैं शब्द तुम्हारा तुम शुरुआत मेरी, मैं पूर्ण विराम तुम्हारा।। तुम कविता हो मेरी, मैं लेखक तुम्हारा स्याही तुम मेरी, कलम मैं तुम्हारा।। तुम पल नहीं मेरा, हरपल हो मेरा तुम नदी नहीं, सागर हो मेरा।। तुम चांदनी नहीं मेरी, चांद हो मेरा तुम रात नहीं, सवेरा हो मेरा।। सुबह की खिल खिलाती धूप हो ढलती हुई शाम हो, चांदनी रात हो प्रकृति का श्रृंगार हो, मेरा मुस्कुराता हुआ संसार हो। प्यार का तुम राग हो, तुम मेरा सितार हो। . परिचय :- अभिषेक खरे सचिव - आरंभ शिक्षा एवं जनकल्याण समिति, भोपाल (म. प्र.) कोषाध्यक्ष - ओजस फाउंडेशन, भोपाल (म.प्र.) निवास - भोपाल (म.प्र.) शिक्षा - एम कॉम बी.यू. भोपाल पीजीडीसीए, एमसीयू भोपाल आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सक...
वीर सैनिक
कविता

वीर सैनिक

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुज.) ******************** सिर पर कफन बाँधकर निकलते वीर सैनिक होते हैं, देश के लिए जान कुर्बान करने वाले वीर सैनिक शाहिद होते हैं न मात-पिता न भाई-बहन को याद लाते हैं, तभी तो दुश्मन को वीर सैनिक लड़ पाते हैं, हर पल वीर सैनिक गीत राष्ट्र के गुनगुनाते है, देश रक्षा की चिंता उन्हें हर पल सताती है, पेर मे भारी बूट, कंधे पर बंदूक लगाते हैं, देख ले अगर दुश्मन से तो गोली चलाते हैं, दुश्मन देश जब मातृ भूमि पर हमला करते हैं, तब दुश्मन को वीर सैनिक मार गिराते है, सैनिक वीर के कारण देश हमारा सलामत है, नहीं तो देस में दुश्मन घुसकर कब्जा करते हैं, दुश्मन से लड़ते वीर सैनिक शहीद हो जाते हैं, जान अपनी कुर्बान कर परम वीर चक्र पाते हैं सैनिक शहीद की जब शरीर गांव में आती हे, तब पूरे गाँव शहर में शोक मग्न हो जाता है, वीर सैनिक को हम दिल से करते हैं सलाम, आप राष्ट्र प्रेम, तु...
आराधना के स्वर
कविता

आराधना के स्वर

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ******************** विद्या की देवी माँ शारदे से आराधना करता हूँ। मैं दो हाथ जोड़कर बस प्रार्थना करता हूं।। मेरी कलम मैं ताकत दे। शब्दों का खजाना दे।। मैं गरीबों का दर्द बांट सकूँ। अपनी कलम से भला कर सकूं।। जो काम नहीं करते कलम से। ओर गरीब दम तोड़ देता बेचारा।। ऐसे लोगों के जख्म भर सकूँ। मां पैनी कलम बने ऐसी ताकत दें।। मेरे शब्दों से दूसरों को हौंसला मिले। जो भी मुझसे मिले दिल से गले मिले।। माँ सुर में इतनी मिठास दें कि जो सुनें निहाल हो जाएं। कटे जन्म के बंधन और जीवन संवर जाए।। नव सृजन करूँ नव पथ चलूँ। नवीन कदम बढ़ते जाएं।। . परिचय :- राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी क...
बचपन के दिन
कविता

बचपन के दिन

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** बचपन के थे दिन सुहाने, गीत गाते थे हम मस्ताने, भेदभाव का नहीं था नामो-निशान मोह-माया से थे हम अनजाने। चंदा मामा लगते प्यारे नित्य शाम को बाट निहारे मन भाती थी पूनम रौशनी रात्रि भी खेलते भाई-बहन सारे। झट चढ जाते पेड़ों पर, नजर रहते मीठी सेबों पर, अपना-पराया का नहीं था ज्ञान विश्वास करते श्रेष्ठजनों के नेहों पर। हम भींगा करते छम-छम बूंद में, हम खोए रहते भीनी-भीनी सुगंध में, चंचलता रहता तन मे हरदम परियों को देखा करते गहरी नींद में। बचपन के थे दिन सुहाने , हर गम से थे बेगाने , मौज ही मौज था जीवन में माँ की आँचल तले थे खजाने   परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर...
किनारों में बंधकर
कविता

किनारों में बंधकर

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** किनारों में बंधकर ..... सहा बहुत होगा। प्यार मेरे लिए ..... सच,रहा बहुत होगा। ज़िंदगी के वो जंगल ..... कटीले भी होंगे। मिले होंगे टापू ..... कई टीले भी होंगे। तुम किनारों में बंधकर अकुलाई होगी। जान, दो न बता अब, कैसी अँगड़ाई होगी? उठतीं गिरती हिलोरों का, सीना दिखा दो। मैं ठहरा समंदर हूँ, मुझे जीना सिखा दो। थीं मुरादें हमारीं ..... एक दिन हम मिलेंगे। दूरियाँ थी बहुत ..... फूल कैसे खिलेंगे? मैं खारा मग़र ..... हैं मोती माणिक मुझी में। प्यार लहरों में ढूंढूँ ..... या ख़ुद की ख़ुशी में? ग़र तुझसे कहूँ, यूँ कि ..... तीब्र तूफ़ान हूँ मैं। जबसे ज़लबे दिखाये तू ..... परेशान हूँ मैं। मैं समंदर हूँ ..... लेकिन, प्यासा रहा हूँ। मैं मोहब्बत का मारा ..... तमाशा रहा हूँ। इतराकर इठलाकर ..... तू घर से चली थी। जान, मालूम मुझे ..... तू बहुत मनचली थी। ...
विश्वकर्मा वन्दन
कविता

विश्वकर्मा वन्दन

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** हे विश्वव्यापी हे श्वेताम्बर, हे शिल्पराट हे दयावान, हे विश्वाधार हे महारक्षक, हे विश्वकर्मा हे शक्तिवान। हे जीवाधार हे विश्वपति, हे कर्मकुशल हे सूत्रधार, जगती के आधार अटल, आलोक पुंज हे तारणहार। कर प्राप्त हो हुनर सर्व को, और मन मंदिर प्रदीप्त रहें चित संवेदनाओं को जानें, सब सत्कर्मो में संलिप्त रहें। जीवन में सदा साथ तेरा हो, और मन में तेरा ही वास रहें भ्रम भँवर से निर्भय हो गुजरे, निज सामर्थ्य पर विश्वास रहें। हर मनुज कर्म का भान करें, निज समाज का सम्मान रहें, होंठो पर हो मुस्कान सदा, मन में भारत ये महान रहें। नित नई ऊंचाइयो मिलती रहे, हर एक पंछी की उड़ान को, फुले फले नित नए तरुवर, पतझड़ से पत्ते अनजान रहे। नए दिवस नई नई रचनाएं, गगन चुमते रहे सहचर मिलती रहे तेरी कृपा और, सिर पर तु तन आसमान रहे। . परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा...
दुःख के अनगिनत रूप
कविता

दुःख के अनगिनत रूप

कुमार जितेन्द्र बाड़मेर (राजस्थान) ********************   स्वार्थ निस्वार्थ भाव से रहे प्राणी, सारा जग सुख ही सुख। पनप गई स्वार्थ की भावना, ढेर लगेंगे अनगिनत दुःख के।। ईर्ष्या अच्छे विचार, श्रेष्ठ कर्म, सुख के है साथी अपने। जाग गई ईर्ष्या मन में, जाग उठेंगे अनगिनत दुःख।। छल - कपट जीवन का आधार है विश्वास, सार्थक जीवन बनाए विश्वास। कोशिश हुई छल-कपट की, रोक न सकेंगे अनगिनत दुःख को। मोह-माया इस धरा के सभी जीवो में, मनुष्य जीवन है सर्वश्रेष्ठ। क्षण भर की मोह-माया से, दिखेंगे दुःख के अनगिनत रूप।। . परिचय :- नाम :- कुमार जितेन्द्र (कवि, लेखक, विश्लेषक, वरिष्ठ अध्यापक - गणित) माता :- पुष्पा देवी पिता :- माला राम जन्म दिनांक :- ०५. ०५.१९८९ शिक्षा :-  स्नाकोतर राजनीति विज्ञान, बी. एससी. (गणित) , बी.एड (यूके सिंह देवल मेमोरियल कॉलेज भीनमाल - एम. डी. एस. यू. अजमेर) निवास :-  सिवाना, जिला...
प्रेम चरित्र
कविता

प्रेम चरित्र

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** भूल गई तुम मुझको सच में पर में तुमको भूल ना पाया शायद तुमने ठोकर मारी में तुमको ठुकरा ना पाया ख्वाब सजाया था दिल में तुमने उसको भी तोड़ दिया दोस्त मेंरे सब ऎसे निकले सांथ मेरा हीं छोड़ दिया जाने दो वो, बीता कल था अब क्या उसको याद करूँ कोई नहीं हैं अब भी दिल में में किससे फरियाद करूँ पर उम्मीद अभी थी बांकी मन में भी विश्वास रहा उसनें हीं ठुकराया मुझको उसको भी मैं याद रहा शायद सच था प्यार मेरा जो उसनें फिरसे याद किया मिलकर उसनें फिर से मुझको जी ते जी आबाद किया फिर से अलख जगा इस दिल में फिर में ख्वाब सजा बेठा वो फिर भी मेरी नहीं हुई में फिरसे उसका हो बेठा हर बार वो मुझसे मिलती हैं हर बार बिछड़ भी जाति हैं वो जेसी भी हैं अच्छी हैं बस मुझको बहुत रूलाती हैं फिर भी ये विश्वास हैं उस पर वो वापस गले लगायेगी भूल नहीं पायेगी मुझको मन हीं मन पछत...
प्रेम की भाषा
कविता

प्रेम की भाषा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** प्रेम ना हिंदी ना अंग्रेजी होता है। सच तो यह है........? प्रेम हर भाषा से, ऊपर होता है। प्रेम शब्दों का कहां, मोहताज होता है। यह तो, जज्बों से बयां होता है। यह अहसास, बहुत खास होता है। यह तो, हर रूह का प्राण होता है। प्रेम ना हिंदी ना अंग्रेजी होता है। लेकिन यह और बात है। हर किसी के हिस्से में, यह कहां होता है। यह अनंत तक, जाने की राह होता है। जिंदगी खूबसूरत हो जाती है। जब किसी से, किसी को प्यार होता है। प्यार की दुनिया में, नफरतों के लिए, फिर कहां कोई स्थान होता है। प्रेम ना हिंदी, अंग्रेजी होता है। यह भाषा का, नही भावों का भव्य भाव होता है। जो दिल प्रेम से भरा होता है। क्या ..... बांटोगे तुम सरहदों, भाषाओं, और इंसानों के नाम पर। यह तो, धरती से आसमां तक बेशुमार होता है। प्रेम ना हिंदी ना अंग्रेजी यह हर भाषा से ऊ...
बसंती मोसम
कविता

बसंती मोसम

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** आ गया बसंती मोसम सुहाना, गा रहा मन तराना। मिली राहत जिंन्दगी को, चेन दिल को आ गया, प्यार की अमराहयों से, गीत याद आ गया, आज अपने रंज गम को, चाहता हैं गम भुलाना, आ गया बसंती मोसम सुहाना। बाग की हर शाक गाती, झूमती कलियाँ दिवानी, पात पीले मुस्कुराते, मिली जैसे है जवानी, हर तरफ ही लुट रहा है, आज खुशियों का खजाना, आ गया बसंती मोसम सुहाना। सब मगन मन गा रहें है, आ गई ऐसी बहारें, प्राण बुन्दी मुक्त मन, दिलों की टूटी दिवारें, बहुत दिन के बाद उनका, आज आया है बुलावा, आ गया बसंती मोसम सुहाना। . . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा...
नारी तुम हो देवी शक्ति
कविता

नारी तुम हो देवी शक्ति

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** नारी तुम हो देवी शक्ति जो तेरा करता अपमान मानव नही है दानव है वो दैत्य के रूप मे करता काम कितनी निर्भया मलिन हुई कितनी प्रियंका का अन्त हुआ देश की व्यवस्था बड़ी बुरी है ये भी तो राजनीति से जुड़ी है आँखोदेखी पर ना करते विश्वास चाहे पड़ी हो किसी निर्भया की लाश इस दुष्कर्म का सबूत माँगते जबकि सच्चाई वो सम्पुर्ण जानते थाने कोर्ट और पुलिस वाले राजनीति की रोती सेंकने वाले एक को तो नपुंसक बना कर देखो सरे आम फाँसी पर लटका कर देखो ऐसा भी होगा एक दिन है सम्पुर्ण विश्वास मुझे पड़ी रहेगी अबला कोई जिस रोज अपनी बांहे समेटी संविधान बदल जाएगा उस दिन इन्साफ तुरंत मिल जाएगा उस दिन फर्क यही होगा कि होगी वो किसी नेता की बेटी नारी तुम हो देवी शक्ति नारी तुम हो देवी शक्ति . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हि...
अभी तो और भी इम्तेहान बाकी है
कविता

अभी तो और भी इम्तेहान बाकी है

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** अभी तो और भी इम्तेहान बाकी है। अभी तो घूमना पूरा जहान बाकी है।। अभी तो शुरूआत हुई है ज़मीन से, अभी देखना पूरा असामान बाकी है।। इंसान गिरता है उठता है और फिर गिरता है, मिलता नही साथ तो वो मारा मारा फिरता है। गर साथ हो आपका तो देखना है दुनिया मुझे, कुछ ख्वाहिशें और कुछ अरमान बाकी है।। अभी तो और भी इम्तेहान बाकी है। दुनिया की परख सिखाने वाला चाहिए, जिंदगीभर का साथ निभाने वाले चाहिए। जीत लूंगा वो जो दिल मे ठान रखा है मैंने, बहुत बारीकियों से करना पहचान बाकी है।। अभी तो और भी इम्तेहान बाकी है। कुछ मिले है कुछ और भी आगे मिलेंगे रास्ते, हमने तो किया... कोई तो करेगा हमारे वास्ते। बनाने में लगा हूँ मैं लोगो का आशियाना, और खुदका यहां बनना मकान बाकी है।। अभी तो और भी इम्तेहान बाकी है। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर...
तिरंगा देश की शान
कविता

तिरंगा देश की शान

गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुज.) ******************** हिन्दू मुसलमान, सिख हमारा है भाई प्यारा ये हे झंडा आजादी का, इसे सलाम हमारा तिरंगा भारत की शान है, ये हे तो देश जान जहान है फहराने लगेगा तिरंगा अब लद्दाख में गूंज उठेगी शहनाई जम्मू कश्मीर में तिरंगा मे तीन रंग है भारतीयों के गौरव का जंग है रंग सफेद, हरा और केसरी है बीच में अशोक चक्र प्रतीक है फहराया तिरंगा १५ अगस्त १९४७ आजादी मिली हे भारत को १९४७ तिरंगा फहराने लगा क्षितिज आकाश तीन रंगों मे लगता है जेसे इंद्र धनुष तिरंगा देश की पहचान है संस्कृति का वो सुन्दर प्रतीक है नहीं झुकेगा नहीं झुकेगा निशान मेरे देश भारत का विजयी विश्व है झंडा हमारा झंडा ऊँचा रहे हमारा कवि गुलाब को उस पर नाज़ है भारत देश हमारा सुन्दर राज है . परिचय :-  गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुज.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
आया वसंत
कविता

आया वसंत

श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' इंदौर म. प्र. ******************** आया वसंत आया वसंत हम सब बसंत हो जाएं खिलें सुमन बिखरे सुगंध जीवन मकरंद हो जाए छेड़े मीठी तान कोयलिया हमारे गीत मधुर हो जाएं लिखे डालें अवनि वो बातें, जो बात अमर हो जाएं पूर्णमासी हो रात, चांदनी खुशियां बन बिछ जाएं दिनकर नभ में उजली धूप की नर्म चादरें बिछाए होले होले चले शीत, ग्रीष्म के तट पर हाथ मिलाएं मंनहारी मौसम में प्रीत के गीत बहुत याद आएं . परिचय :- नाम - श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' शिक्षा - एम.ए.अर्थशास्त्र, डिप्लोमा इन संस्कृत, एन सी सी कैडेट कोर सागर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय दार्शनिक शिक्षा - जैन दर्शन के प्रथम से चतुर्थ भाग सामान्य एवं जयपुर के उत्तीर्ण छहढाला, रत्नकरंड - श्रावकाचार, मोक्ष शास्त्र की विधिवत परीक्षाएं उत्तीर्ण अन्य शास्त्र अध्ययन अन्य प्रशिक्षण - फैशन डिजाइनिंग टेक्सटाइल प्रिंटिंग, हैंडीक्राफ...
गाँव
कविता

गाँव

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** गाँव में दुर्भाव दुर्लभ! है वहाँ सद्भाव सौरभ! साक्षी भू ,साक्षी नभ! स्नेह-सरिता है प्रवाहित गाँव में! है नहीं दुख का अंधेरा! सतत है स्वर्णिम सबेरा! शान्ति का है सुखद डेरा! स्नेह-सविता है प्रकाशित गाँव में! मधुर हैं स्वर और व्यंजन! हैं विविध संगीत साधन! प्रफुल्लित रहते हैं जन मन! स्नेह-सरगम है प्रसारित गाँव में! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विधा ~ कविता,गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे तथा लघुकथा, कहानी, आलेख आदि। प्रकाशन ~ अब तक ...
मदिरा
दोहा

मदिरा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** मदिरा विष से कम नहीं, पीते क्यों दिन-रैन! अपना सबकुछ नष्ट कर, खोते हो सुख-चैन! मद्यपान दुष्कर्म है, मद्यपान है पाप! मद्यपान अपमान है,मद्यपान अभिशाप! नहीं जाइए भूलकर, मदिरालय के द्वार! पता नहीं क्या आपको, समझेगा संसार! बड़ी चाल तूने चली,यह क्या किया शराब! बने भिखारी सेठ जी, बेघर हुए नवाब! मानव हित के सत्य को, समझे सकल समाज! ग्रहण करें संकल्प सब, नशामुक्ति का आज! नशा ठोस हो या तरल,घातक है श्रीमान! धीरे-धीरे आपके, ले लेता है प्राण! ठोस, तरल या हो धुंवां,मादक द्रव्य प्रकार! मानव-तन-मन पर करे, मंथर-मधुर प्रहार! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी...
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का महत्व
कविता

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का महत्व

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** जीवन में अनुशासन का नित, पाठ सिखाती हैं शाखा। शील विनय आदर्श श्रेष्ठता, धेर्य सिखाती हैं शाखा।। काम क्रोध मद मोह देह से, शीघ्र मिटाती हैं शाखा। कर्म साधना राष्ट्र भक्ति का, मार्ग दिखाती हैं शाखा।। त्याग समर्पण ध्येय भाव की, अलख जगाती हैं शाखा। नव तरंग चैतन शक्ति का, दीप जलाती हैं शाखा।। संघर्षों से डटकर लड़ना, अभय सिखाती हैं शाखा। जाति पंथ का भैद मिटाकर, समरसता लाती हैं शाखा।। राग द्वेश अभिमान मिटाती, भाव जगाती हैं शाखा। संस्कृती का सम्मान ना भूलें, यही सिखाती हैं शाखा।। . परिचय :- विमल राव सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र. निवासी : भोपाल म.प्र आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अप...
म्हारो मालवो
कविता

म्हारो मालवो

सुषमा दुबे इंदौर ******************** छाई बसंती बयार झूमे-झूमे म्हारों मालवों म्हारा मालवा को कई केणों, यो तो है दुनिया को गेणों इका रग रग मे बसयो है दुलार, झूमे झूमे म्हारों मालवों। छाई बसंती बयार .... मालव माटी गेर गंभीर , डग डग रोटी पग पग नीर यां की धरती करे नित नवो सिंगार , झूमे झूमे म्हारों मालवों छाई बसंती बयार .... यां की नारी रंग रंगीली, यां की बोली भोत रसीली इका कण कण मे घुलयों सत्कार, झूमे झूमे म्हारों मालवों छाई बसंती बयार .... नर्बदा मैया भोत रसीली, सिप्रा मैया लगे छबीली चंबल रानी करे रे किलोल, झूमे झूमे म्हारों मालवों छाई बसंती बयार .... मालवा को रंग सबके भावे, जो आवे यां को हुई जावे पुण्यारी धरती करे रे पुकार , झूमे झूमे म्हारों मालवों छाई बसंती बयार .... मिली जुली ने तेवर मनावे, जो आवे उखे गले लगावे यां तो अन्न धन का अखूट भंडार, झूमे झूमे म्हारों मालवों छाई बसंती बय...
अभिनंदन वसंत का
कविता

अभिनंदन वसंत का

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मंद मंद शीतल पवन है, फूलों से भरा चमन है, खुश है धरा, खुश नीलगगन है, वसंत तुम्हारा अभिनंदन है..... जब प्रकृति ने ली अंगड़ाई, चहुं ओर छटा अलौकिक छाई, बसंती चोला पहना धरती ने, दुल्हन जैसी वह शरमाई, घुल रहा नशा नस-नस में, बहका-बहका सावन है। वसंत तुम्हारा अभिनंदन है..... उषा के किरणों की लाली, लहराते फसलों की बाली, हाथों में पूजा की थाली, कोयलिया गाये मतवाली, खुशबू से महका उपवन है , वसंत तुम्हारा अभिनंदन है..... भंवरे के दिलकश तराने से, मन में सारंगी सी बजती, रोम-रोम पुलकित हो जाता, धड़कने तेजी से चलती , पतझड़ का मौसम आनंदित होकर, बहारों को देता निमंत्रण है, वसंत तुम्हारा अभिनंदन है..... . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्र...
आया बसंत
कविता

आया बसंत

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** आया बसंत। सखीरी रितु बसंत आई, मोसम ने ली अगड़ाई। क्यारी क्यारी सरसों फूली, अंबुआ डार मोर से झूली, अति उमंग ले आई। सखीरी रितु बसंत आई। ड़ाल डाल पे कोयल कूके मनवा खाय हिचकोले, अति सुहावन मन भाई। सखीरी रितु बसंत आई। सपने रंगे मन हुआ पलाशी, खिलती कलियाँ देह अकुलाती, पपीहे की कूहूँ कूहूँ सुनाती, मंद मंद पवन चलें पुरवाई सखीरी मन भावन रितु बसंत आयी। . . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मा...
तुमसे अलग हो कर
गीत

तुमसे अलग हो कर

आस्था दीक्षित  कानपुर ******************** तुमसे अलग हो कर ये मन न रह पाता है माँ कामो मे उलझा रह कर भी याद करता माँ आँखों मे सपने भरे पर सपने तुमसे है तुम मुझमे कुछ यूँ बसी सब अपने तुमसे है सपना पूरा करने मे तुम साथ देना माँ . तुमसे अलग ….. रात को सर पे तेरी थापे याद आती है आँगन की वो किलकारी भी याद आती है जब भी भूखा सोया हूँ तुम याद आती माँ तुमसे अलग…. अँधियारा होने पर माँ तुम लोरी गाती थी राजा बेटा कह के मेरा सर सहलाती थी उन लम्हो मे मै फिर से जीना चाहता हूँ माँ तुमसे अलग.... शाम को घर वापस आता न कोई मिलता है पूरा दिन सब क्या किया न कोई कहता है तेरा चेहरा सोच ते सब सह लेता हूँ माँ तुमसे अलग…. . परिचय -  आस्था दीक्षित पिता - संजीव कुमार दीक्षित निवासी - कानपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक...
माँ  सरस्वती
कविता

माँ सरस्वती

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** हे हंस वाहिनी माता तेरे शरण में जो भी आता पुष्प चढ़ा कर करे नमन हम आशीर्वाद से छू पाएँ गगन हम सुर की देवी तु कहलाती हर बच्चे के मन को भाती छात्र करे पूजन सब तेरे दुख दूर हो जाये तेरे मेरे हो जाए परिपूर्ण ज्ञान से करे अध्ययन वो बड़े ध्यान से तेरी वीणा से जो निकले संगीत मन को मुग्ध करे वो गीत ज्ञान दायिनी तु वीणा वादिनी चन्द्र कमल स्वेत वस्त्र धारिनी अम्ब विमल दे अज्ञानी को मधुर बनाये शख्त वाणी को बसंत ऋतु में तु आती है छात्रों के हृदय बस जाती है जीवन आनंदमय का पाठ पढ़ाती कला की देवी सरस्वती कहलाती . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने...
वसन्त ऋतु में
कविता

वसन्त ऋतु में

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** वसन्त ऋतु में ! यूं धीरे–धीरे सदियों का सर्दियों का जाना, गुनगुनी धूप का आना सूखे पत्तों का झड़ना नए पत्तों का सृजन होना सरसों के फूलों की सुगंध में प्रकृति स्वयं को अपने रंगो में घोलती उस रंगों की गुदगुदाहट में गेहूं की बालियों का आना किसानों का प्रफुल्लित मन देखकर लगता हैं मानो! कोई युवती अठारह बरस की हुईं हैं। यह मोहक छवि अम्बर तक फैली धानी चूनर सी लगती हैं ।। . परिचय :- रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के ...
वासंती प्रणय निमंत्रण
कविता

वासंती प्रणय निमंत्रण

रंजना फतेपुरकर इंदौर (म.प्र.) ******************** वसंत पंचमी का वह वासंती सवेरा था स्वर्ण पुष्पों संग तुमने प्रणय निमंत्रण भेजा था अहसासों का रिश्ता दिल में उतरने लगा था और सपनों में खोया मन सितारों पर चलने लगा था तुम्हारे मधुर गीतों ने मेरे मन को इस तरह छुआ था जैसे मोरपंखों से झरते रंगों ने महकी गुलाब पंखुरियों को छुआ था वासंती महक मेहंदी में घोलकर मेरी हथेलियों पर प्रणय रंग रचा था जैसे किसी हसीन ख्वाब ने मेरी रेशमी पलकों को छुआ था यही बसंत पंचमी का वह वासंती सवेरा था जब स्वर्ण पुष्पों संग तुमने प्रणय निमंत्रण भेजा था . परिचय :- नाम : रंजना फतेपुरकर शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य जन्म : २९ दिसंबर निवास : इंदौर (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तकें ११ हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान सहित ४६ सम्मान पुरस्कार ३५ दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो, बीज...