हम कह ना पाए
आशीष तिवारी "निर्मल"
रीवा मध्यप्रदेश
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लग रहा है जैसे तू मुझसे दूर जा रही है,
तेरी यादें मुझमें एक डर सा जगा रही है।
बीते लम्हों की बेचैनी मुझे रुला सी रही है,
दिल की हर धड़कन तुझे बुला सी रही है।
तेरे प्यार से यह दिल मेरा यूँ वंचित सा है,
फिर क्यों तेरे लिए ही दिल चिंतित सा है।
मैं समझा समझ लोगे मगर समझ ना पाए,
दोष तुम्हारा क्या दूं जब हम कह ना पाए।
मुझे छोड़ कर तुम ना हो पाए जमाने के,
पहले ढूंढ़ तो लेते बहाने कुछ ठिकाने के।
लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानि...





















