प्रेम का विस्तार
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भारती कुमारी
प्रेम का विस्तार
ह्रदय जिसमें विलीन हो गयी
ओस की बूँद-सी
झरी मेरे ह्रदय से रंग-बिरंगी
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अदृश्य मधुमय चाँदनी
मेरी सुहानी स्वप्न
क्षण-क्षण में अलस-सी हो जाती
एक मुठ्ठी प्रेम
.
विभिन्न आकृतियाँ में बदलती हुई
यहाँ-वहाँ बिखरती जाती
धीरे-धीरे फिर से मधुर प्रेम कुदेरी
प्रेममयी आकृतियाँ थोड़ी हलचल-सी
.
जग में विस्तार करती
शीतलता मन में हलचल भरती
संयोग-सा हुआ मधुर रस-संचार
अकल्पित में कल्पित रूप धरी
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अभिसिंचित प्रेम सहसा उमड़ी
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लेखक परिचय :- भारती कुमारी
निवासी - मोतिहारी , बिहार
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