रहें ना रहें हम
श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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रहें ना रहें हम फिर भी
हमारा निशान रह जाएगा!
जो बीज रोपे थे
बड़े अरमानों के साथ,
उनमें खिलते पुष्पों की
खुशबू में मेरा पता मिल जाएगा।
उसमे सिंचे थे कुछ संवेदनाएं,
कुछ भावनायें उन्हीं में
मेरा निशान मिल जाएगा!!
जिस वृक्ष को सींचा था जतन से
उसका एक भी आखिरी
पत्ता जो हरा रह जाएगा,
उसकी निर्मलता में मेरा
निशान मिल जाएगा!!
कभी जो बैठना सूकून से
पंछियों के कलरव
और तान सुनना
उनके सुर के संगीत में
मेरा निशान मिल जाएगा!
कल कल बहती रही
जीवन भर एक नदी की तरह
जो कभी बैठो उसके
तट पर, चंद लम्हों के लिए,
उसकी गहराईयों में
मेरा निशान मिल जाएगा।।
खुद के भीतर इन्सानियत
को जिंदा रखना
कभी जो सुनना किसी
जीव की दर्द भरी कराहटें,
उनकी करुणा भरी पुकार,
उस दर्द में
मेरा पता मिल जाएगा!!
अपने ...















