अतः स्वर
किरण पोरवाल
सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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अतः स्वर की वीणा की तान
जीवन संघर्ष प्रकृति प्रसन्नता
खुशहाली व्यंग त्याग मिलना
बिछुड़ना भाव प्रधान हृदय को
छूकर फिर रम जाता है
मन आत्मा में।
अंतर मन जब डूब जाता है
जन्मता है एक कवि का विचार,
अंत:करण की आवाज हे
सुनकर विचारों की
लड़ियां बन जाती
होता साहित्य कविता का
सृजन का हे आज।
अतः स्वर अतः मन
एक लक्ष्य एक विचार,
चिंतन मनन का है भाव,
स्फुटित होता है कोई
रचना रच जाती चलती रहती
अत: स्वर आत्मा की
देखो आवाज।
कविता को कवि भाव से सजाती,
अलंकार छंद रस के गहने पहनाकर,
मन के भावों की देखो दुल्हन।
शब्द-शब्द से कविता बन जाती।
अतः स्वर की गंभीरता शांति
एकाग्रचित चिंतन और
ध्यान,
पहना देती कविता को रचना से,
कविता को, सुर ताल से
पायल की देखो झंकार।
किरण लगा देती प्रकृति की,
बेल-बूटो की साड़ी तैयार,
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