शिक्षा है अनमोल रत्न-सी
अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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सदा मुक्त करती बंधन से,
शिक्षा ज्ञान बढ़ती।
ज्ञानी-गुणी बना मानव को,
जग में मान दिलाती।
शिक्षा देना पुण्य कार्य है,
जो भी देकर जाने।
शिक्षा देने वाले गुरु को,
जगत विधाता माने।
शिक्षा पाकर ही हर मानव,
शिक्षित है कहलाता।
ज्ञान-चक्षु जब खुल जाते हैं,
तब दीक्षित हो जाता।
शिक्षा को व्यवसाय बनाकर,
जो शिक्षा देते हैं।
शैक्षणिक व्यवसाय समझ कर,
ही भिक्षा देते हैं।
शिक्षक की छवि, धूमिल होती,
शिक्षा ज्ञान न देती।
ऐसी शिक्षा बन जाती है,
कम उत्पादक खेती।
शिक्षा को, व्यवसाय बनाना,
पाप कर्म है भारी।
शिक्षा सहित, कलंकित खुद को,
करने की तैयारी।
और अधिक, पाने की चाहत,
ही लालच कहलाती।
लालच, तृष्णा ही मानव का,
है ईमान गिराती।
शिक्षा है अनमोल रत्न- सी,
खुशियों भरा खजाना।
सुचिता, सात्विकता से हमको,
श...