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पद्य

आ ज़िंदगी बैठ
कविता

आ ज़िंदगी बैठ

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** आ ज़िंदगी बैठ, समझा के रहुंगा। जो भी मसला है, सुलझा के रहुंगा। जितना भी क़र्ज़ है, वक्त से पूछुंगा, आज,सारा कर्ज चुका के रहूंगा ।। फिर न जिऊंगा दोहरी जिंदगी। न वक़्त की चौकसी करूंगा। जिऊंगा तुझे मैं अपने ढंग से, जिंदगी! और न बेकसी करूंगा । रखुंगा ताउम्र, अपने ही दायरे में, तुझे उंगलियों पर नचा के रहुंगा, आ ज़िंदगी बैठ, समझा के रहूंगा। फिर न मसौदा, न समझौता होगा। अपने ही उसूलों पर सौदा होगा । बहुत कर दी, जी हुजूरी या चापलूसी, अब महकमा अपना, अपना ही ओहदा होगा। लिखुंगा किरदार, हर एक का अपने ढंग से, हर एक को कहानी में बैठाकर रहुंगा। आ ज़िंदगी बैठ, समझा के रहुंगा। जो भी मसला है सुलझा के रहुंगा। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्...
माँ मानसरोवर
कविता

माँ मानसरोवर

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** माँ मानसरोवर, ऋषिकेश, माँ हरिद्वार, माँ संगम है माँ मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे का एक दृश्य विहंगम है। माँ आशा, अभिलाषा, उम्मीदें, माँ प्रेम का बहता सागर है माँ ममता, करुणा, आदर की एक छलकती गागर है। माँ शक्ति, भक्ति, अभिव्यक्ति, माँ ही गौरव गाथा है माँ ही तो हर संतति की बनती भाग्य विधाता है। माँ चंदा की चाँदनी, माँ ही सूरज का ताप है माँ व्याकुल मन को सहलाती लोरी,राग, आलाप है। माँ सागर से भी गहरी है, माँ पर्वत सी विशाल है माँ के आशीषों से ही तो ऊँचा सबका भाल है । माँ ही शीतल फुहार है, माँ ही धूप और धाम है माँ के चरणों में ही तो बसते चारों धाम है। माँ से ही सब खुशियाँ हैं, माँ से ही सारे सपने हैं माँ से ही तो जीवन में होते रिश्ते सारे अपने हैं। माँ ही चोट पर मरहम है, माँ हर उलझन का हल है माँ से ह...
श्रमिकों की वंदना
कविता

श्रमिकों की वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मजदूरों का नित है वंदन, जिनसे उजियारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। खेत और खलिहानों में जो, राष्ट्रप्रगति-वाहक हैं। अन्न उगाते, स्वेद बहाते, सचमुच फलदायक हैं।। श्रम के आगे सभी पराजित, श्रम का जयकारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। सड़कों, पाँतों, जलयानों को, जिन ने नित्य सँवारा । यंत्रों के आधार बने जो, हर बाधा को मारा ।। संघर्षों की आँधी खेले, साहस भी वारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। ऊँचे भवनों की नींवें जो, उत्पादन जिनसे है। हर गाड़ी, मोबाइल में जो, अभिनंदन जिनसे है।। स्वेद बहा, लाता खुशहाली, श्रमसीकर प्यारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। गर्मी, सर्दी, बरसातों में, श्रम करने की लगन लिए। करना है नित कर्म, यही ...
अर्धनारीश्वर
कविता

अर्धनारीश्वर

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मुझसे गलती हो गई ऐसी भी क्या, जो तन पाया अर्धनारीश्वर का । ना प्रकृति न पुरुष में गणना हुई, जबकि अंश था मुझमें भी ईश्वर का।। बधाईयां गई मैंने घर घर जाकर, फिर कोख जानकी की क्यों सूनी मिली।। ढोल की थाप पे खूब थिरके पांव, क्यों न फिर केशव की रज धूलि मिली।। समाज ने सदा उपेक्षित भाव से देखा, ना शिक्षा का अधिकार न सम्मान पाया।। बीत गए दिन रैन काल कोठरी में, हर स्थान ही तो मेरे लिए शमशान पाया।। मां का आंचल छीना बाबा का कन्धा, जन्म को मेरे धिक्कार सा माना।। क्यों न रूप स्वरूप जैसा मिला था, वैसे ही जग ने सहज ही स्वीकार जाना।। जाते किस ओर कहो ना नर न नारी हम, चौदह वर्ष प्रतीक्षारत अपलक नैन रहे ।। हे राम अहो भाग्य जो तप की श्रेणी में आंका, आशीष वचन जो सिद्ध होते आपकी देन रहे।। झलकते हैं नीर झर झर आँखों से हरपल, प...
प्राण के बाण
कविता

प्राण के बाण

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** मेरी लम्बी व लोकप्रिय कविताओं में आए छाँटे हुए उद्धरणीय कवितांश "प्राण के बाण" हैं। पाठकों में इन बाणों की विशेष चर्चा है। ये बाण दोहे नहीं हैं फिर भी‌ दोहे की तरह हर बाण अपना अलग व पूरा अर्थ देता है। सूक्तियों, कहावतों व लोकोक्तियों की तरह अपना कालजयी प्रभाव छोड़ने वाले प्राण के ये बाण प्रायः लावणी, ककुभ अथवा ताटंक छन्दों में होते हैं। एक कविता या एक प्रसंग के न होने से सभी बाण अलग अलग तारतम्य में हैं। पढ़िए। प्राण के बाण की एक किश्त ============= १. जब करती निराश असफलता आती विपदा घड़ी घड़ी। पड़ी पड़ी प्रतिभाएँ पागल हो जातीं हैं बड़ी बड़ी।। २. कापुरुषों के लगे निशाने महाशूरमा चूक गए। कोयल रही टापती मौका पाकर कौए कूक गए।। 3. जब कवियों ने बढ़ाचढ़ा कर, कौओं को खगराज कहा। व्याख्या करने वालो...
नशा मुक्त हो जीवन सबका
कविता

नशा मुक्त हो जीवन सबका

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** दिखावे का युग आज है, बनावट ओढ़े सर पे ताज है, राजस्व की फिकर सत्ता को मय मदिरा घर-घर में आज है, लगा हुआ है ध्यान ये सबका, झूम रहा हर वंचित तबका, खोज रहा हर कोई कृपा ये रब का, तन मन धन बर्बाद है इससे, नहीं आता बाहर कोई इस सनक से, हर कोई दुखी हैं नशे की धमक से, यारों इस नशे को अब तो छोड़ो, कीमत चुकाये हैं नशे की सबब का, नशा मुक्त हो जीवन सबका, अब बात करें उस नशे की जो जीवन में बहुत जरुरी है, करलो समाजोत्थान का नशा, मिशन के गुणगान का नशा, जागृति अभियान का नशा, हर जीवन के सम्मान का नशा, मत भूलो इस नशे से भीमराव, फुले, पेरियार भी झूमे थे, जनजागरण के इस नशे के लिए बुद्ध, कबीर, गाडगे भी घर घर घूमे थे, तो छोड़ो नशा मद्यपान का, कुछ तो सोचो अपने सम्मान का। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी :...
माँ का गुणगान
कविता

माँ का गुणगान

अर्चना तिवारी "अभिलाषा" रामबाग, (कानपुर) ******************** किन शब्दों से करूँ माँ का गुणगान । सृष्टि की जो है शोभा, है रत्नों की खान।। जिसकी ममता से सुरभित होता सकल यह संसार। शाश्वत प्रेम से परिपूरित जिसका हृदय महान।। रक्त की बूँदों को कर संयोजित बनती सृजन हार। पल्लवित होता बीज अंतस में होता चमत्कार।। अपने स्नेहिल वात्सल्य से जब उसका पोषण करती है । वह पुष्प कुसुमित होता पाता मां का दुलार।। माँ की महिमा का कोई नहीं है पार। माँ के हाथों होता है बच्चों का उद्धार।। दुष्कर राहों में बन जाती सहारा, जब बीच भंवर में फंसती है नाव की पतवार। लबों पर जिसके हर पल दुआएं सजती हैं। साँची प्रीति हृदय में जिसके हर पल ही पलती है। हृदय में सच्ची आस लिए प्रतिपल बच्चों का चिंतन करती है।। माँ ईश्वर का है अनमोल उपहार चरणों में जिसके स्वर्ग का द्वार.... आदर्श व त्या...
हिन्दी
कविता

हिन्दी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम, एक सभी का नारा 'हिन्दी' भारत में जनमन की - 'जीवन - शिक्षा - धारा'।। सर्व-प्राचीना, संस्कृत-जननी, भगिनी जिसकी सब भारत भाषा दर-दर की बोली 'शिशु-सरल' निर्मल जिसकी मातृ - अभिलाषा इन बोली, उपभाषा में बसता प्राण हमारा हिन्दी भारत में जनमन की 'जीवन - शिक्षा - धारा'।। माँ की लोरी, पिता का गान गिनती, पहाड़ा, अक्षर-ज्ञान कविता, कहानी और विज्ञान विकसित-सोच-समझ-अनुमान मातृभाषा में ही अपने पलता संस्कार हमारा हिन्दी भारत में जनमन की 'जीवन - शिक्षा - धारा'।। अंग्रेजी, फ्रेंच, इटाली, जर्मन रूसी, चीनी, कोरियाई, बर्मन हित्ती, ग्रीक, युनानी, रोमन अल्बानी, तुर्की, फारसी, अर्बन होंगी बहुत सी भाषाएँ पर हिन्दी सबसे मधुरा-प्यारा हिन्दी भारत में जनमन की- 'जीवन - शिक्षा - धारा'।। ब्र...
चाय
कविता

चाय

नीलेश व्यास इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** कोरे पन्नो के केनवास पर शब्दों के चित्र बनाता हूँ, जी हाँ मै भी चाय बनाता हूँ, लिखने से पहिले, सोचने से पहिले, साहित्य सिद्धि के शब्द मंत्रों को गढ़ने से पहिले, जी हाँ मै भी चाय बनाता हूँ, सुबह-सुबह मजदूरी पर निकलने से पहिले, स्कूल लगने की घंटी से पहिले, फेक्ट्री जाने से पहिले, व्यापार के मुहूर्त से पहिले, संसद जाने से पहिले, भक्ति में डूब जाने से पहिले, जी हाँ मै भी चाय बनाता हूँ, मेहमानों के जाने से पहिले, आश्रमों में आशीर्वाद के पहिले, शुभ काम करने से पहिले, जी हाँ मै भी चाय बनाता हूँ, तीर्थ यात्रा में, शवयात्रा में, जीवन यात्रा में, राष्ट्र सेवा में, कभी-कभी भूख मिटाने को, जी हाँ मै भी चाय बनाता हूँ, यह चाय केवल चाय नही, यह धर्मों से ऊपर, भावनाओं से ऊपर, कभी-कभी मानव को मानव से...
मौन
कविता

मौन

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** मौन की छाती में छिपा हुआ ज्वालामुखी बाहर से नहीं दिखता पर होता है सीने में असीम आग को समेटे स्वयं की आग से स्वयं को जलाता है पर धीरे धीरे ...... मौन नहीं होता सदा स्वीकार का लक्षण बल्कि अक्सर होता है यह अस्वीकार .... वह समय भी आता है जब मौन मुखर होता है अट्टहास ही तो करता है शिव के तांडव सरिस महाविनाश लीला सीने की आग बिखरकर जला देती है मौन को मौन सशब्द हो जाता जब मिट जाता है मौन होने का अभिशाप हाय! मौन इतना भयंकर !! परिचय :- डॉ. अवधेश कुमार "अवध" सम्प्रति : अभियंता व साहित्यकार निवासी : भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
मन की पीड़ा
कविता

मन की पीड़ा

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन की पीड़ा समझ, न पाये दुनियाँ सारी। सिमट गये है उज्वल रिशतें, भूल गये इमानदारी। रिशतों की छनकार मे, रहीं नहीं आवाज, ईष्या कपट द्धेश का, हो चुका आगाज। सच्चे अर्थों मे देखें, सबंधों मे प्यार नहीं, कार्यवाही के प्यार में कार्य से अब प्यार नहीं। सामाजिक प्राणी मनुज, सामाजिक सब जीव, उठ जाये यह भाव तो, हिले सृष्टि की नींव। यह प्रकृति का नियम हैं, यहीं जगत का रंग, जीवन मानव का कभी, होता नहीं निसंग। एक भ्रम कोरा प्रदर्शन, आस्थायें बची कहाँ, अब किसी के मध्य, निर्मल भावनाएँ है कहाँ। प्यार के दो बोल से, हो जाता जीवन सफल, इतना हर्दय विचार ले, सबंध होगे निकट मधुर। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। ...
धरती की प्रहरी लहरें
कविता

धरती की प्रहरी लहरें

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** उमड़ घुमड़ कर, लहर लहर कर, लहराती सागर की लहरें मानों धरती की सीमाओं पर, देतीं लगातार पहरे। धरती को ख़ुशहाली देतीं, बन उसकी प्रहरी कोई दस्यु लाँघ न पाए, धरती की देहरी। तट पर आ लहरें, ख़ूब करें अटखेली कभी सिंवई की उलझी जाली, कभी बने मतवाली। छलाँग लगाकर उछल-उछल कर, करतीं सागर को मालामाल कभी झाग को घेर-घेर कर, ख़ूब बनाएँ सुंदर ताल। कभी मगरमच्छ सी मुँह बाए, लहरें दौड़ी-दौड़ी आएँ कभी षोडषी कमसिन सी, केशलटों को लहराएँ । धाराओं की तुम अमिट स्वामिनी, तुम सागर का प्यार तुम सागर से रूठ न जाओ, वह देता रत्नों का उपहार। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषा...
देश का प्राण
कविता

देश का प्राण

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार(म.प्र.) ******************** युवा देश का प्राण है मोबाइल हर हाथों में डिजिटल इंडिया की पहचान है फिर उन हाथों छलावे के विज्ञापन दिख रहे है लालच के बाजार में युवा छले जा रहे है क्या विज्ञापन में लालच का कोंन सा खेल चल रहा है किसी युवा को कर्ज में डूब रहा है आज डिजिटल इंडिया की पहचान हमारा युवा किस ओर भटक रहा है उनकी आँखों मे कर्ज का बोझ पल रहा है आज उस कारण युवा मौत के साये में समा रहा है फिर भी इस देश मे लालच का बाजार क्यो सज रहा है। परिचय :- अक्षय भंडारी निवासी : राजगढ़ जिला धार शिक्षा : बीजेएमसी सम्प्रति : पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच ...
प्रश्न का उत्तर
कविता

प्रश्न का उत्तर

माधवी तारे लंदन ******************** (काव्य रचना, श्रद्धेय स्वामी विवेकानंद के चरित्र के आधार पर) एक दिन विवेकानंद जी से पूछ लिया एक मासूम ने मात पिता का संतान पर अपने रहता है न समान अधिकार? तो फिर मां का ही गुणगान जरा ज्यादा होता रहता संसार भर बोले स्वामी-बालक का प्रश्न सुनकर सामने दिखी ईंट को ले आ तू सत्वर मिल जाएगा फिर तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर गया ईंट लाने बच्चा दौड़कर कहे स्वामी, इसे अब बांध लो तुम्हारे पेट पर खाना, पीना, सोना, उठना, बैठना करते रहो नौ घंटे ऐसा ही रहकर आज्ञाकारी बालक कर बैठा कहे अनुसार अल्पकाल में ही असहनीय कष्ट से हुआ बेहाल पछताकर बोला मन में-क्यों गया मैं स्वामी जी को प्रश्न पूछने ! समय पूर्व आते बालक को देखकर तकलीफ उठाते हुए आते उनके घर पर मुस्कुराते बोले स्वामी, मिल गया लगता है तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दर्द भरी...
प्रभात वंदना
स्तुति

प्रभात वंदना

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मेरे प्यारे कृष्ण कन्हैया, अब तो बसो स्मृतियों में। भक्ति मैं डूबा प्रभु, श्री चरणों में रचे बसाये रखना। स्मृतियों की नैया में, भवसागर से पार लगा देना। प्रभात वंदना में, अब कृष्ण कन्हैया आए। प्रभु के अलौकिक दर्शन पाए, मन को कितने हर्षाये। स्मृतियों में डूबा बैठा कुंज-गली में, प्रभु के सुंदर दर्शन पाए। प्रभात वंदना मैं मांगू वर, प्रभु चरणों में जीवन रमता जाए। जीवन उपवन में बजती रहे, स्मृतियों की मधुर मुरलिया। खिलें पुष्प बगिया में, खुश्बू बिखेरें स्मृतियों में। प्रभु स्मृति भाव बनाये रखना। श्री चरणों में बसाये रखना। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिय...
इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर
कविता

इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तेरा नाम नही तो सब मुझसे खुश रहते है तेरा नाम लेते सब मुझसे नाखुश रहते है अपने हिस्से का प्यार सब चाहते है मगर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर समझ नही पाते लगाव घट नही सकता ये वो घाव है जो कभी भर नही सकता इश्क सीमारहित जिसका छोर नही पर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर चाहत के अफसाने जो दिन रात बढता उसके अगन से कोई भी बच नही सकता इश्क वो दरिया जिसमे ताउम्र डूबना मगर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर आग सीने में लग जाये एक बार इश्क की ताउम्र मिलेगी अब प्रेम में कसक व सिसकी इस कशिश में बीतेगी अब तो जीवन डगर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर उम्र गुज़ार देंगे केवल तेरे यादो के साथ मैं इधर लिखूं,आप उधर पढ़ना मेरे साथ अब तो पढ़ के ही प्रेम होगा हमारा अमर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर किसी भ...
चलें फिर लौटकर अपनें घरों को
ग़ज़ल

चलें फिर लौटकर अपनें घरों को

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** चलें फिर लौटकर अपनें घरों को। परिंदे कह रहे हैं अब परों को। तकाज़ा नींद का टूटा है जबसे, समेटा जा रहा है बिस्तरों को। रहें हैं साथ लेक़िन दूरियों पर, निभाया है सभी ने दायरों को। अग़र है इम्तिहाँ जैसा सफ़र तो, हटा दो रास्तों से रहबरों को। शिक़ायत वक़्त से कब तक रखेंगे, भुलाया है कि जिसने अवसरों को। निकाले काम के बदले चुकाकर, बिगाड़ा है सभी ने दफ़्तरों को। पते की बात भी दम तोड़ देगी, सुनाई जाएगी जब मसखरों को। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प...
ममता की मुरत
कविता

ममता की मुरत

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** ममता की मुरत है....! प्यारी सी जिसकी सुरत है....!! पल पल रहती जिसकी जरूरत है....!!! माँ से ही तो दुनिया ये इतनी खूबसूरत है....!!!! त्याग की देवी जिसे हम कहते है....! साये में जिसके हम रहते है....!! संतान के दर्द में आँसू जिसके बहते है....!!! सम्भाल कर रखना तुम उसे, अनमोल है माँ, हम कहते है....!!!! करूणा का बहता सागर है....! जीवन का रहता सार है....!! प्रभु का कहता विस्तार है....!!! माँ से ही बनता ये संसार है....!!!! पवन में पुरवाई है....! राग में जो सहनाई है....!! लक्ष्मी का रूप लेकर आई है....!!! संग अपने खुशियों की सौगात लाई है....!!!! परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
हँसते जख्म
कविता

हँसते जख्म

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** मन के जख्मों पे मरहम कौन लगाए, हर शख्स जख्मों को बस कुरेदना चाहे। जख्मों की नुमाइशें बेकार हैं, छल कपट का फैला कारोबार है। अपनों ने जो दिए वो जख्म गहरे हैं, ख्वाहिशों पर लगाये सबने पहरे हैं। दर्द के पीछे छिपे बेनकाब चहरे हैं, दर्द मिला बेहिसाब, घाव गहरे हैं। अपनों की बेरूखी बड़ा दुख पहुँचाती है, पर इससे ज़िंदगी थम तो नहीं जाती है। दूना उत्साह बटोरना होता है, कुछ भी हो काम पर लौटना होता है। हमदर्द मिले न मिले, खुद को समझाना होगा, हर जख्म सहकर, मुस्कुराना होगा। आज मिली हो मात कल जीतकर दिखलाना होगा। कोई साथ दे न दे, हमें चलते जाना होगा। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलि...
प्रेम दिवानी
भजन

प्रेम दिवानी

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन। वो प्रभु गुन गाती रही, हो के मगन।। बंधन है प्रभु से रिश्तों के दिल से हम निभाएगे। प्यार, स्नेह, दुलार से पावन रिश्ते को सजाएंगे।। प्रभु के प्रति है, अटूट स्नेह प्रेम। मीरा की है अटूट विश्वास, नही है कोई क्लेम।। दीया और बाती हम पवित्र है जिनका बंधन। ऐसी मेरी प्रभु के साथ बंधा रहे बंधन।। तहे दिल से करते है हम सादर वंदन प्रणाम। स्वीकार कीजिएगा प्रभुजी हमारा प्रणाम।। पुष्प गुच्छ और तिलक चंदन स्वागत और वंदन। प्रभुजी मेरी हृदय में आपका है हार्दिक अभिनंदन।। हम साथ-साथ है तो साथ निभाना प्रभु जी मेरी। प्रेम प्यार विश्वास को मत छोड़ना हे कृष्ण मुरारी।। हर शाम किसी के लिए सुहानी नही होती। हर चाहत के पिछे कोई कहानी नही होती।। कुछ तो बात है मोहब्बत...
मां तुझे नमन
कविता

मां तुझे नमन

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** यों तो हर दिन तेरा ही मां तुझ बिन कुछ न भाया था। तुझसे है अखिल सृष्टि सब पर तेरी ममता का साया था।। मैं जब संसार में आया तब था मां ने ही गोदी उठाया था। लोट-पोट कर सरकने लगा तो मां ने उठना सिखाया था।। लड़खड़ाकर गिरता तो मां ने ही चलना सिखाया था। मिट्टी में रेखाएं खींचता तब मां ने लिखना सिखाया था।। मैं पहाड़े रटने लगा तब मां ने ही गिनना सिखाया था। मैं बस! मां जानता था मां तूने ही गुरु से मिलवाया था।। गर्भ से जन्म दिया तूने फिर ज्ञान से द्विज बनवाया था। मैं राह भटक रहा था तूने धर्म का मर्म बतलाया था।। मां, तेरा उपकार न भूलूंगा मुझे पशु से इंसान बनाया था। मातृदिवस पर तुझे नमन मां सृष्टि का नमन स्वीकार रहे। जब तक सृष्टि बनी रहेगी मां तू ही जगत आधार रहे।। परिचय :-  डॉ. भोला दत्त जोशी निवासी : पुणे (म...
इन्तजार
कविता

इन्तजार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अधर बनी गुलाब पंखुरी नयन बने कमल से नयन भी करते इशारे प्रेम के बालो से निकली लट से छुप जाते नयन माथे पे बिंदिया सजी लगती प्रभात किरण कंगन की खनक पायल की रुनझुन कानो में घोल देती मिश्री कमर तक लहराते लटके बालों से घटा भी शरमा जाए हाथो में लगी मेहंदी खुशबू हवाओं को महकाए सज धज के दरवाजे की ओट से इंतजार में आँखों से आँसू इन्तजार टीस के बन जाते गवाह इन्तजार होता सौतन की तरह बस इतनी सी दुरी इन्तजार की कर देती बेहाल प्रेम रूठने का आवरण पहन शब्दों पर लगा जाता कर्फ्यू सूरज निकला फिर सांझ ढली फिर वही इंतजार दरवाजे की ओट से समय की पहचान कर रहा कोई इंतजार घर आने का तितलियाँ उडी खुशबू महकी लबो पर खिल, उठी गुलाब की पंखुड़ी समय ने प्रेम को परखा नववर्ष में चहका प्यार। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि...
ऐ नारी
कविता

ऐ नारी

कुंदन पांडेय रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** मेरा विचार है ऐ नारी, अपना परचम लहराना तुम। पथ के इन कंकड़ पत्थर से, क्षण भर भी ना कतराना तुम। हर कदम बढ़ाने से पहले, अपने सुविचार बढ़ाना तुम। मेरा विचार है ऐ नारी, अपना परचम लहराना तुम। कथनी करनी सब अपनी हो, सत मार्ग वही अपना ना तुम। कोई मिटा सके ना हल्के से, ऐसे निशान दे जाना तुम। मेरा विचार है ऐ नारी, अपना परचम लहराना तुम। अपनी ही करुण क्यारियों में, खुद पुष्प सुमन बन जाना तुम। हिंसक पशुओं से बचने को, खुद कांटे भी दिखलाना तुम। मेरा विचार है ऐ नारी, अपना परचम लहराना तुम। परिचय :-  कुंदन पांडेय निवासी : रीवा (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां,...
सातों सागर होंगे पार
कविता

सातों सागर होंगे पार

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** रुखसत हो चले दिनकर हो रहा तम का विस्तार, लौटेगा कल फिर आशा से जीवन में लेकर संचार। माझी की कश्ती भी देखो खोज रही फिर से नव तीर, सागर में भी उठती लहरें अरुण को वंदन करता नीर। फैल रही क्षतिज तक आभा लगती जैसे ज्योति दीप, जल में पड़ती उसकी छाया जैसे मोती रचती सीप। ज्यों-ज्यों फैल रहा अंधियारा जोश से भर चलती पतवार, जब तक है सांसों का स्पंदन रोक न पाए कोई धार। जीवन का है सत्य यही तो थम कर रहना होती हार चलते रहने से ही हर पल सातों सागर होंगे पार। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
क्षण- बोध
गीत

क्षण- बोध

डॉ. छगन लाल गर्ग "विज्ञ" आकरा भट्टा, सिरोही (राजस्थान) ******************** आह उर संवेदना को पालता हूँ ! दर्द की हर आग जलना चाहता हूँ !! खो गयी घनघोर रातें वासना में ! स्वप्न टूटे मोम से लो कामना में ! राग की मृदु वर्तिका- सी याचना में ! भ्रांत मारुत घोलता विष साधना में ! दीप भीतर का जलाना चाहता हूँ ! दर्द की हर आग जलना चाहता हूँ !! रिश्तों की अब बात बस अंगार जैसे! स्वार्थ में सब भूलते अपनत्व कैसे ! लोग बन बेशर्म हो उन्मत्त ऐसे ! फैंकते हर बोल बन प्रस्तर जैसे ! कोख की हर छाँव पलना चाहता हूँ ! दर्द की हर आग जलना चाहता हूँ !! कोन है जो थपकियाँ दे वेदना में ! बोल दे दो बोल मीठे चेतना में ! व्यर्थ रिश्ते- वासना संवेदना में ! अर्थ गहरे कह सके नवचेतना मेें ! हूँ अकेला ही सदा यह जानता हूँ ! दर्द की हर आग जलना चाहता हूँ !! कब कहूँगा प्यार से संतुष्ट हूँ मैं ! जागता ...