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पद्य

शिक्षा की गहराई
कविता

शिक्षा की गहराई

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** शिक्षा में ही है अनन्त ज्ञान की  गहराई यह बुनियाद जिसने है मजबूत   बनाई समझ, बुद्धि, बढ़ी, चिंताएं नहीं   सताई  शिक्षित से प्रगति खुशियाँ महक  आई जीवन में अति उत्कृष्ट है    शिक्षाज्ञान पढ़लिख कर अर्जित करे   शिक्षाज्ञान दिलाती बढ़ाती सन्मान      शिक्षाज्ञान उजियारा का दीप जलाती  शिक्षाज्ञान शिक्षित जीवन से ही सर्वोत्तम   आराम जाति समाज देश का खूब कराता ज्ञान अनन्त सुख समृद्धि में कराता पाठदान दीपक बुझे नहीँ शिक्षा का पाएँ सन्मान कोई ना राखे कभी कहीं   त्रुटि उत्तम ज्ञान है शिक्षा की    घुंटी बाल्यकाल जीवन से ही    बूंटी राहत की यही है संजीवनी बूंटी पिलाने का सर्वजन रचाओ   संसार खुलेमन से सब मिलकर करें  प्रसार शिक्षितजनों का बढ़े विस्तृत   संसार खोले अनपढ़ अवरुद्ध शिक्षा का द्वार शिक्षा की रोशनी से करे ...
कह रही हूँ कुछ अपने बारें में
कविता

कह रही हूँ कुछ अपने बारें में

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** कह रही हूँ, कुछ अपने बारें में तुम सुनना मुझे कुछ यूँ, खामोश हो के भी, खामोश ना होना तुम, मेरे हर लफ्ज को, अपनी रूह से लगाना तुम, कह रही हूँ, कुछ अपने बारें में तुम सुनना मुझे कुछ यूँ।। थोड़ी सी चंचल हु मैं, नटखट और मस्तीखोर भी हु मैं, हर बात पर गुस्सा करने वाली हु मैं, अपनी ही धुन मे रहने वाली हु मैं, कह रही हूँ, कुछ अपने बारें में तुम सुनना मुझे कुछ यूँ।। चेहरे पर मुस्कान लिए फिरती हु मैं, दिल में एहसास लिए फिरती हु मैं, चाहती हु इस जहाँ में पंख फैलाना, मंजिल को पाने की कशमकश है अभी जारी, कह रही हूँ, कुछ अपने बारें में तुम सुनना मुझे कुछ यूँ।। यूँ ही कुछ लिखते रहना पसंद है मुझको, तुम सुनो तो, सुनाना पसंद है मुझको, यूँ ही हल्के से मुस्कुराना पसंद है मुझको, पर किसी का डांटना, मुझको पसंद ...
करुण नयन की करुण वेदना
कविता

करुण नयन की करुण वेदना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** देख श्रमिक के करुण नयन जो, द्रवित नहीं होता है। ऐसे मानव का दिल बिल्कुल, पत्थर-सा होता है। औरों के प्रासाद बनाते, तन से बहा पसीना। अंबर के नीचे ही उनको, पड़ता जीवन जीना। होली, ईद, दिवाली में ही, पूरा भोजन पाते। शेष दिनों में बच्चों के सँग, भूखे ही सो जाते। जिनके तन का स्वेद गलाता, लोहे को पानी-सा। बंजर भूमि रूप धरती है, हरा भरा धानी- सा। जो गरीब का हिस्सा खाकर, कष्ट उन्हें पहुँचाते। पाकर वे बद्दुआ दीन की, जीवन भर पछताते। करुण नयन की करुण वेदना, दूर हटाना होगी। हृद में पीर भरी निर्धन के, पीर घटाना होगी। करुण नयन,लख जो गरीब के, अति विचलित हो जाते। बन करुणानिधान दुनिया में, राम-सदृश यश पाते। हो संकल्पित, करें प्रतिज्ञा, दूर गरीबी कर दें। करुण नयन ना हों गरीब के, खुशियाँ, दामन भर ...
साथ मिलकर
कविता

साथ मिलकर

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाना हैं संकल्प लेकर सुशासन को आखिरी छोर तक ले जाना हैं भ्रष्टाचार को रोककर सुशासन को आखरी छोर तक ले जाना हैं सरकारों को ऐसी नीतियां बनाना हैं भारत को सोने की चिड़िया बनानां हैं आधुनिक प्रौद्योगिकी युग में भी अपनी जड़ों से जुड़कर रहना है प्रौद्योगिकी का उपयोग कुशलतापूर्वक करना है प्रौद्योगिकी पर जोर देकर विकास को बढ़ाना हैं कल के नए भारत को साकार रूप देना हैं भारत को परिवर्तनकारी पथ पर ले जाना हैं सबको परिवर्तन का सक्रिय धारक बनाना हैं न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन प्रणाली लाना हैं सुशासन को आखिरी छोर तक ले जाना हैं भारतीय लोक प्रशासन को ऐसी नीतियां बनाना हैं वितरण प्रणाली में भेदभाव क्षमता अंतराल को दूर करना हैं लोगों के जीवन की गुणवत्ता कौशलता विका...
आती है जब याद तुम्हारी
गीत

आती है जब याद तुम्हारी

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** आती है जब याद तुम्हारी, नयन सजल हो जाते हैं। धीरे धीरे बारिश वाले, फिर बादल हो जाते है। प्रेम प्रदर्शित हो न जाये, पूरी कोशिश करता हूँ, इसीलिए तो दिल पर अपने, पूरी बंदिश करता हूँ। नयन समझ लेते जब दिल को तब मरुथल हो जाते हैं। आती है जब याद तुम्हारी, नयन सजल हो जाते हैं। अपनी उँगली की पोरों से, जब भी तुम छू लेते हो मुझे लगा कर सीने से और बस मेरे हो लेते हो। मेरी आँखों के आँसू, तब गंगाजल हो जाते हैं। आती है जब याद तुम्हारी, नयन सजल हो जाते हैं। हँसी तुम्हारी अपनी कविता और गीतों में लिखता हूँ। तुम संग हमने जितने बिताए वे सारे पल लिखता हूँ। सिर्फ तुम्हारे पढ़ लेने से सब शब्द गजल हो जाते हैं। आती है जब याद तुम्हारी, नयन सजल हो जाते हैं। प्यार निभाने का मसअला है थोड़ी बात कठिन तो है। दिल...
कृतज्ञ धरती
कविता

कृतज्ञ धरती

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** अथाह जलराशि से तर होकर, कृतज्ञ यह धरती सम्पूर्ण हृदय से गदगद होकर, रचनाकार की स्तुति करती जो ईश्वर का वरदान न होता, तो मै प्यासी तिल-तिल मरती। कैसे तुम्हारी इस रचना का, माँ बन मैं पालन करती। कैसे ममता बिखरी होती, कैसे समता के रस से तेरी इस कृति को सम्पूर्ण समर्पण देती। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं। ...
धरती करे पुकार
दोहा

धरती करे पुकार

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन भर गाते सभी, धरा मातु के गीत। हरियाली को रोपकर, बन जाएँ सद् मीत।। हरी-भरी धरती रहे, धरती करे पुकार। तभी हवा की जीत है, कभी न होगी हार।। हरियाली से सब सुखद, हो जीवन अभिराम। पेड़ों से साँसें मिलें, धरा बने अभिराम।। धरा सदा ही पालती, संतति हमको जान। रखो धरा के हित सदा, बेहद ही सम्मान।। धरा लुटाती नेह नित, वह करुणा का रूप। उसकी पावन गोद में, सूरज जैसी धूप।। धरा लिए संसार नित, बाँटे सुख हर हाल। हवा, नीर, भोजन, दुआ, पा हम मालामाल।। धरा-गोद में बैठकर, होते सभी निहाल। मैदां, गिरि, जंगल सघन, सुख को करें बहाल।। हरियाली के गीत नित, धरा गा रही ख़ूब। हम सबको आनंद है, बिछी हुई है दूब।। नित्य धरा-सौंदर्य लख, मन में जागे आस। अंतर में उल्लास है, नित नेहिल अहसास।। धरा सदा करुणामयी, बनी हुई वरदान।...
आनंदमई
कविता

आनंदमई

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** इश्क, प्रेम, मोहब्बत ये सब शब्द अधूरे है एक बार तुम आ जाओ तो ये शब्द खुद-ब-खुद पूरे है। एहसास, वफा, दिल्लगी ये सब शब्द अधूरे है एक बार तुम छू लो मेरी रूह को ये शब्द खुद-ब-खुद पूरे है। अनुरक्ति, प्रीति, भक्ति ये सब शब्द अधूरे है एक बार तुम सिमट जाऊं मेरे अंतर्मन में ये शब्द खुद-ब-खुद पूरे है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कव...
लफंगे यार
कविता

लफंगे यार

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वो लफंगे यार, जिनसे मिला मुझे बेइंतहां प्यार, बचपन में साथ खिलाया, जिंदगी में कैसे चलना है बताया, भरोसा तोड़े बिना मुझ पर भरोसा जताया, अपनों के प्रति कैसे सजग रहना है गाली खा-खा कर सिखाया, गाली मेरे अपनों ने ही दिया, यारी के लिए कड़वे शब्दों का घूंट पीया, मेरे बेमकसद जिंदगी में बदलाव लाया, समाज संग अम्बेडकरी मूवमेंट सीखाया, अपने महापुरुषों से मिलाया, हर इंसान में अच्छाई के साथ बुराई भी होता है, वो मेरा यार है और रहेगा फर्क नहीं पड़ता मुझे कि कोई उन्हें लफंगा कह रोता है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
सुशोभित नभ
गीत

सुशोभित नभ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** दिनकर सुशोभित नभ, धरा मोहित बड़ी हर्षित। ऊर्जा नई आई, हुए जलजात-सी सुरभित।। सुषमा निराली है छुअन अधरों रसीली भी। परिणय पलों की ये, तरणि -रति है छबीली भी।। अभिसार दृग करते, युगों से देख अनुबंधित। शृंगार लिखता कवि, सुमन कचनार-सा न्यारा। ये शिल्प लतिकाएँ, प्रणय विस्तार मधुधारा।। पिक गीत अनुगुंजित, हुए हिय भाव अनुरंजित। मन-मेघ कहते हैं, प्रगल्भित प्रीति पावन है। अबुंज नयन मंजुल, लगे प्रतिबिंब सावन है।। कलियाँ महकती-सी, खिला यौवन हुआ पुलकित। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश ...
डमरू घनाक्षरी
धनाक्षरी

डमरू घनाक्षरी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** (डमरू घनाक्षरी) ********* डमरू घनाक्षरी के प्रत्येक चरण में ८+८+८+८= लघु मात्राओं वाले कुल ३२ वर्ण ही होते हैं। कुछ तथाकथित छन्द विशेषज्ञों ने लघु वर्ण को अमात्रिक वर्ण कहा है जो हर तरह से ग़लत व भ्रामक है। "कमल" शब्द को अमात्रिक वर्णों का समूह नहीं कहा जा सकता है। इन सब में "अ" की मात्रा है। इसी प्रकार मात्र हर अकारान्त को ही लघु नहीं माना जायेगा अपितु हर इकारान्त उकारान्त ऋकारान्त वर्ण को भी लघु वर्ण माना जायेगा। नीचे मेरे द्वारा रचित तीनों डमरू घनाक्षरियाँ हैं। इनमें पहली अकारान्त लघु व दूसरी अकारान्त‌, इकारान्त, उकारान्त लघु एवं तीसरी अकारान्त वर्णों में हैं। पहली में हिन्दी की व शेष दो में ब्रज, अवधी बुन्देली की क्रियाएँ प्रयोग की गई हैं। हाँ एक बात और कि हर रचना सार्थक होना चाहिए चाहिए।   ए...
दीन-दुखी के अधरों पर अब
कविता

दीन-दुखी के अधरों पर अब

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** दीन-दुखी के अधरों पर अब, सुख की मुसकानें रख आएँ। करें प्रेम की बरसातें हम, पावन धरती स्वर्ग बनाएँ।। जाति-धर्म का भेद मिटे सब, महके जीवन की फुलवारी। सद्कर्मों के मधुर बोध से, गुंफित हो ये दुनिया सारी।। छल-प्रपंच से नाता तोड़ें, मानवता की ज्योति जलाएँ। शील-त्याग की ध्वजा थामकर, मर्यादा की अलख जगा दें। सदाचार की गंग बहाकर, पथ-कंटक को दूर भगा दें।। नैतिकता का पाठ पढ़ा कर, राग-द्वेष को दूर भगाएँ। संस्कार हो अंदर जीवित, कलुष विचारों को भी मारें। संतापों से पार लगाएँ, सत्य - अहिंसा की पतवारें।। आशाओं के दीप जलाकर, संकट से हर प्राण बचाएँ। बंजर धरती उगले सोना, यौवन फसल प्रेम की बोए। सकल विश्व में हो उजियारा, नींद चैन की दुनिया सोए।। मित्र भाव का शंख बजाकर, गुंजित कर दें दसों दिशाएँ। पर...
मन का भोजन ज्ञान है
कविता

मन का भोजन ज्ञान है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जो स्थान सुनिश्चित रहकर, पुस्तक संधारण करते। जिनसे जीवन बनता सुखमय, उन्हें पुस्तकालय कहते। वेद पुराण, उपनिषद इन में, रामचरितमानस गीता। ज्ञान पिपासु, इन्हीं में जाकर, ज्ञान जिंदगी का पीता। रघुवंशम औ मेघदूत भी, रामायण से पावन हैं। ज्ञान पुंज पुस्तक भंडारण, सुखद और मनभावन हैं। सबका ही जीवन हीरा है, पर तरासना होता है। बिना तराशा हीरा भी तो, अपनी कीमत खोता है। होता सदा सीप के भीतर, बहुत कीमती- सा मोती। मानव जीवन की सीपी में, भरी किताबें ही होती। सभी पुस्तकें, सच्ची साथी, जीवन को महकाती। सुसंस्कृत जीवन होता है, हर मानव की थाती। प्रज्ञा वान बने हर मानव, पुस्तक विद्या देती है। मिले खाद पानी पौधों को, पुष्पित होती खेती है। मन का भोजन सिर्फ ज्ञान है, जो किताब से मिलता है। ज्ञानवान, गुणवा...
हनुमत्कृपा
स्तुति

हनुमत्कृपा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** मुझे कब और क्या करना, मेरे आराध्य बतलाते। जो होता है मेरे हित मे, वही वो मुझसे करवाते। मुझे कब और क्या .... उठाता लेखिनी जब मैं, तो हनुमत भाव देते हैं। भाव होते हैं हनुमत के, तो भावुक गीत बनते है। जो भी होता सृजन अच्छा, उसे हनुमत हैं करवाते। मुझे कब और क्या .... थोड़ी सेवा मिली आराध्य की, ये भी कृपा उनकी। उन्ही की शक्ति से ही चल रही, भक्ति फली सबकी। कभी आते हैं कुछ व्यवधान, उनको वो ही निपटाते। मुझे कब और क्या .... है हनुमत से यही विनती, नहीं सेवा विरत करना। कभी कर्ता का आये भाव ना, इतनी कृपा करना। वही करता हूँ मैं सत्कर्म, जो वो मुझसे करवाते। मुझे कब और क्या .... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक ...
पत्ते
कविता

पत्ते

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** जो जुबान से निकला वो शब्द थे जलजले सा भीतर थम गया वो अनुभूति थी यू ही पत्तों से रह गए जिंदगी के रिश्ते, कुछ मुरझा गए कुछ सीलन से हैं भरे हुए कुछ थे जो अपनी गुमान में गुम थे उनको भनक भी नहीं आने वाले तूफान की जो मिटा देता है मिटा सकता है अहम के अस्तित्व को रिश्तों की कहानियां भी कुछ ऐसी ही हैं कभी सूख जाते हैं कभी सीलन से बोझिल हो जाते हैं जीवन का सफर रुकता नहीं किसी के इंतजार में यूँ ही झड़ जाना है, विलीन हो जाना है कहीं बटोरते रहे इन पत्तों को आजीवन हम मिले कहीं किसी किताब के पन्नों में सूखे हुए कभी रिश्तों की तह में धूल से भरे हुए मौसम की हवाओं ने नए हरे पत्तों का संदेश भेजा है जिंदगी फिर से शोभायमान हो, ऐसे रंगों से बहारों ने चमन को घेरा है!!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्...
पनिहारिन
कविता

पनिहारिन

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** दिखती नहीं कोई पनिहारिन लंबी-लंबी पगडंडी सूनी है। ना पनघट बचे ना पानी है। ना चमचमाती घघरी है। गोरी पनिहारिन अब दिखती नहीं । सिर पर सजी चुनरी, दिखती नहीं। कमरिया पर गघरी दिखती नहीं। हिरनी सी चाल में दिखती नहीं। पग पैजनिया से घुंघरू बजते नहीं। तीखी कजरारी आंखें चमकती नहीं। केशों में लिपटा गजरा दिखता नहीं । गजरों की भीनी खुशबू आती नहीं। अब न पनघट बचे ना पनिहारिन है। पैजनिया से घुंघरू बजते नहीं। पनघट वाली तिरछी गली गुलजार न रही। सूना कोना अब मुलाकातें, यादें रही। हिरनी की चाल सा न कोई दिखाता। तिरछे नैनो में काला कजरा, न दिखता। तिरछे नैनो से पनिहारिन को कौन बुलाता। पपीहा भी पियू कर शांत हो जाता । कोयल भी कुहू कुहू कर उड़ जाती है । पनघट पर चाहूं ओर घोर उदासी है। गांवों की यादें अब भी बाकी है। पनिहारिन भी अब उदास...
नीर से ही जीवन है
दोहा

नीर से ही जीवन है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नीर लिए आशा सदा, नीर लिए विश्वास । नीर से सांसें चल रही, देवों का आभास ।। अमृत जैसा है सदा, कहते जिसको नीर । एक बूँद भी कम मिले, तो बढ़ जाती पीर ।। नीर बिना जीवन नहीं, अकुला जाता जीव । नीर फसल औ' अन्न है, नीर "शरद" आजीव ।। नीर खुशी है, चैन है, नीर अधर मुस्कान । नीर सजाता सभ्यता, नीर बढ़ाता शान ।। जग की रौनक नीर से, नीर बुझाता प्यास । कुंये, नदी, तालाब में, है जीवन की आस ।। सूरज होता तीव्र जब, मर जाते जलस्रोत । घबराता इंसान तब, अनहोनी तब होत ।। नीर करे तर कंठ नित, दे जीवन को अर्थ । नीर रखे क्षमता बहुत, नीर रखे सामर्थ्य ।। नीर नहीं बरबाद हो, हो संरक्षित नित्य । नीर सृष्टि पर्याय है, नीर लगे आदित्य ।। नीर बादलों से मिले, कर दे धरती तृप्त । बिना नीर के प्रकृति यह, हो जाती है तप्त ।। नीर ...
मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना
कविता

मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** गर मै जिंदा हूँ,तू अपना वजूद रखना । वक्त के बदलने का बस ख्याल रखना ।। एक ना एक दिन बहार आयेगी जरूर । मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना ।। बेशक कांटे भी मिलेंगे रास्ते मे मगर । दुनिया भी हो जाये इधर उधर मगर ।। दुनियादारी मे खुद का ख्याल रखना । मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना ।। क्या हुआ की किस्से अधूरे रह गये । रेत का मकान,एक पल मे ढह गये ।। कांटों को भी सीने से लगाये रखना । मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना ।। एक दिन दामन खुशियों से भर जायेगी । बहारे लौट कर बासंती रंगरूप दिखायेगी ।। उम्मीद से जीवन का दीपक जलाये रखना । मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना ।। परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति :...
आईना दिखाती कविताएँ
कविता

आईना दिखाती कविताएँ

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आईना दिखलाती कविताएँ अलंकृत शब्दों के भावों में रचती जाती कविताएं कवियोँ के कोमल हृदय से भावों में भर जाती कविताएं बैठे बैठे सोचते सोचते कवियों की कलम से लिख ली जाती है कविताएं भावों से भरी रहती अन्तर्मन को छू जाती है कविताएं समाज देश जाति में शब्दों की भाषा में आईना दिखलाती कविताएं समस्तजनो को रसास्वदन कराती है कविताएं प्रकृति से प्रेम करने की पथ प्रदर्शक बन जाती कविताएं बुराइयों से मुक्त रहने की विचारधारा बढ़ाती कविताएँ संस्कृति शिक्षा भाषा कला का बेबाक ज्ञान दिलाती कविताएं उदासीनता तोड़कर हंसाती है कविताएँ हंसने हंसाने मुस्कुराने की जड़ी बूंटी बन जाती कविताएँ रसों में रसदार फल से ज्यादा रसपान कराती कविताएँ सुधारने के आयाम बताती है कविताएँ बैचेन को चैन देती है अनमोल कविताएँ संपर्कता की सीढ़ी त्वरित र...
वो कौन?
कविता

वो कौन?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वह कौन है जो बोल सकता है पर बोलना नहीं चाहता, तौल सकता है पर तौलना नहीं चाहता, फिजा में प्यार घोल सकता है पर घोलना नहीं चाहता, अच्छे कार्यों के लिए डोल सकता है पर डोलना नहीं चाहता, ज्यादतियों पर खून खौल सकता है पर खौलना नहीं चाहता, जन्म से लेकर मृत्यु तक उलझाते पाखंडी जालों को काट सकता है, पर काटना नहीं चाहता, मोहब्बत के कुछ पल बांट सकता है पर बांटना नहीं चाहता, अच्छे-बुरों को छांट सकता है पर छांटना नहीं चाहता, बिगड़ते पीढ़ी को सुधारने के लिए डांट सकता है पर डांटना नहीं चाहता, दिलों की दूरी को पाट सकता है पर पाटना नहीं चाहता, वो मतलबपरस्त आज का इंसान है, जो बन चुका हैवान है, कपोल कल्पित गाथाओं का उन्हें भान है, पर वो मस्तिष्क के कचरे को ढोकर चलना चाहता है जिसे मिटाने के लिए हमेशा ...
धरा
कविता

धरा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विधा.... क्षणिकाएँ माँ धरा ही सब है धारती उतारें तेरी हम माँ आरती ये ताज बने ऊँचे शिखर श्रृंखलाएँ तेरी है करधूनी रुनझुन पैंजनी हैं घाटियाँ मंद सुगन्धित मलय पवन ये कलकल करती नदियाँ रेशमी केशों की हैं लड़ियाँ ये झरने मोती की वेणियाँ घाटों में समाई हैं चोटियाँ मचलती सागर की लहरें पखारती चरणों को तेरे हरे भरे वन उपवन ये सारे धानी चूनर माँ को ओढ़ाए महकते फूलों की लताएँ ये लहँगा चोली खूब पहनाए सूरज लाल बिंदिया लगाए चंदा कर्णफूल बन जाता है सितारे माँग में जड़ जाते हैं परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाय...
मंथन
कविता

मंथन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सागर अंबर, अंबर सागर सागर में अंबर प्रतिबिंबित कहीं कुछ जाना नहीं शून्य सा रीता अंबर सागर में उत्साह अथाह।। अंबर के गहरे में मंथन मंथन को मन का संबंल संबंल पाने दौड़े तन मन। मन चंचल है पर दीवारें अथाह अंबर है शून्य हर पल गेहूं कहां खोजे पग तल। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्व...
हमारा अभिमान हिन्दी है
कविता

हमारा अभिमान हिन्दी है

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** हमारा अभिमान हिन्दी है। भारत की धरती और गगन का अभियान हिन्दी है देश की स्वतन्त्रता और सम्प्रभुता का सम्मान हिन्दी है सिद्ध, नाथ, भक्ति, रीति, छाया का बखान हिन्दी है कोटिक सरस्वती पुत्रों का तीव्र स्वाभिमान हिन्दी है हमारा अभिमान हिन्दी है। दुहिता देववाणी की जनमन कल्याणी हिन्दी है अतिप्रिय वीणापाणि की सप्तसुर संन्धानी हिन्दी है भारत के मनुपुत्रों के हृदय की गान हिन्दी है भाषा, विज्ञान, साहित्य समाज का अनुसंधान हिन्दी है हमारा अभिमान हिन्दी है। भारत की अस्मितारक्षा का इतिहास हिन्दी है बहुरीति मान्यता क्षमता का विकास हिन्दी है आर्यावर्त्त की धर्मध्वजा का आकाश हिन्दी है सहस्र वर्षों से प्रवाहित गंगा सी गतिमान हिन्दी है हमारा अभिमान हिन्दी है। चन्द्रकोश पे महकती फूलों सी बोली की माला हिन्दी ...
चंचल मन
कविता

चंचल मन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन की रीति गागर में आ गया समंदर का आ गया समन्दर का घेरा इन अलको में इन पलकों में भटक गया चंचल मन मेरा। कंपित लहरों सी अलके है द्रग के प्याले मधु भरे तिरछी चितवन ने देखो कर दिए दिल के कतरे कतरे। द्वार खुल गए मन के मेरे मनभावन ने खोल दिए बैठ किनारे द्वारे चौखट दृग पथ में है बिछा दिए्। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से...
तकल्लुफ का कोई एहसास तो दिखलाइए
ग़ज़ल

तकल्लुफ का कोई एहसास तो दिखलाइए

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अब तकल्लुफ का कोई एहसास तो दिखलाइए जो सुकूं दे दिल को वो अल्फ़ाज़ तो दिखलाइए बेटियों के पैर में बेड़ी है इन को खोल दो इन परिंदों को ज़रा आकाश तो दिखलाइए कट गई शब ख्वाब में ऊंची उड़ानें साथ थी अब सहर की खुशनुमा परवाज़ तो दिखलाइए मैंने तो दिल को मेरे अब कैद करके रख लिया आप अपना थोड़ा सा अंदाज़ तो दिखलाइए हम चलेंगे साथ जब तक है इशारा आपका क्या क़दम है आपका आगाज़ तो दिखलाइए तितलियों को इस तरह पकड़ो ना नाज़ुक हैं बड़ी साथ में इनके यही इकरार तो दिखलाइए देश की खातिर जो सीना तान करके हैं खड़े आपको है इन पे कितना नाज़ तो दिखलाइए परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रका...