अब ना मुझे बुलाना प्रियतम
बृजेश आनन्द राय
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
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अब ना मुझे बुलाना प्रियतम,
अब न कभी हम फिर आएंगे
जाते हैं अब जग से तेरे,
अल्प है जीवन, जी जाएंगे
अब न हमारा हॅसना होगा
अब न हमारे अश्रु मिलेंगे
अब ना कोई पीड़ा होगी
अब ना कोई गीत बनेंगे
तेरे सम्मुख प्रणय निवेदन
अब न कभी हम दुहराएंगे
जाते हैं अब जग से तेरे
अल्प है जीवन, जी जाएंगे
जब-तब अम्बर में उतरातीं
गिरतीं आकर सीने में
झिलमिल 'यादें' पसरा करतीं
मन-ऑखों और प्राणों में
अब ना बदली छाने देंगे
अब ना बूॅद-बिखर पाएंगे
जाते हैं अब जग से तेरे
अल्प है जीवन, जी जाएंगे
चर्चाऍ भी दूर रहेंगी
पास न होगी परछाईं
अब सॉसों की ऑहों से
ना होंगी तेरी रुसवाई
सिसकी-हिचकी की आहट से
दूर कहीं हम हो जाएंगे
जाते अब हैं जग से तेरे
अल्प है जीवन, जी जाएंगे
तेरे मन में बात बसी जो
उसको मैं कैसे ना जानूॅ
दो तन पर ए...