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पद्य

अब ना मुझे बुलाना प्रियतम
कविता

अब ना मुझे बुलाना प्रियतम

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** अब ना मुझे बुलाना प्रियतम, अब न कभी हम फिर आएंगे जाते हैं अब जग से तेरे, अल्प है जीवन, जी जाएंगे अब न हमारा हॅसना होगा अब न हमारे अश्रु मिलेंगे अब ना कोई पीड़ा होगी अब ना कोई गीत बनेंगे तेरे सम्मुख प्रणय निवेदन अब न कभी हम दुहराएंगे जाते हैं अब जग से तेरे अल्प है जीवन, जी जाएंगे जब-तब अम्बर में उतरातीं गिरतीं आकर सीने में झिलमिल 'यादें' पसरा करतीं मन-ऑखों और प्राणों में अब ना बदली छाने देंगे अब ना बूॅद-बिखर पाएंगे जाते हैं अब जग से तेरे अल्प है जीवन, जी जाएंगे चर्चाऍ भी दूर रहेंगी पास न होगी परछाईं अब सॉसों की ऑहों से ना होंगी तेरी रुसवाई सिसकी-हिचकी की आहट से दूर कहीं हम हो जाएंगे जाते अब हैं जग से तेरे अल्प है जीवन, जी जाएंगे तेरे मन में बात बसी जो उसको मैं कैसे ना जानूॅ दो तन पर ए...
द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद
छंद

द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद (समवृत्तिक (दो-दो चरण-समतुकान्त)- नगण+भगण-भगण+रगण-१२ वर्ण) (ॐ स शनये नम : !) शनि सुनो विनती हर लो दुखा। कर कृपा हिय में भर दो सुखा।। तनु श्याम कुदृष्टि भयंकरा। नसत बुद्धि, विवेक सभी हरा।। मति हरी जिसकी उ नहीं बचा। तनय अर्क उसे त रहे नचा।। फलत कर्म यमी अनुसार ही। मिलत दण्ड भरे कुविचार ही।। शनि प्रसन्न, रहे न महादशा। कठिन राह सभी रहते गशा।। अभय देकर दान बता रहे। कलुष कल्मष खेह सभी बहे।। चढ़त तेल करू जल बीच है। शनि दिना जब पिप्पल सिंच है।। कटत दु:ख अपार न संशया। शनि प्रभो जबहीं करते दया।। सुखद जीवन मंद नहीं पड़े। भज चलो शनि देव रहें खड़े।। सकल सूरत में भल कुरूप हैं। सफल न्यायिक-दाण्डिक रूप हैं।। परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" निवासी...
बेटा शहर जात हे …
आंचलिक बोली, कविता

बेटा शहर जात हे …

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) बेटा ल शहर के पिज्जा-बर्गर बड़ लुभात हे। दाई हाथ के चटनी बासी अब नई मिठात हे।। अपन गाँव-घर ल छोड़, बेटा शहर जात हे... धनहा खार के नागर तुतारी अब नई सुहात हे। बेटा घुमय शहर, ददा भिन्सारे ले खेत जात हे।। अपन गाँव-घर ल छोड़, बेटा शहर जात हे... नागर के मुठिया पकड़त म अब लजात हे। हाथ म मोबाइल आँखी म तश्मा सजात हे।। अपन गाँव-घर ल छोड़, बेटा शहर जात हे... जहुरिया मन संग पार्टी म मजा खूब आत हे। दाई ददा बोरे बासी, बेटा मुर्गा-भात खात हे।। अपन गाँव-घर ल छोड़, बेटा शहर जात हे... जांगर धर लिस ददा के, बइठे बइठे चिल्लात हे। कान होके भैरा होगे, बेटा ल नई सुनात हे।। अपन गाँव-घर ल छोड़, बेटा शहर जात हे... सुरु होगय मुंह जबानी, धर के बात नई बतात हे। बड़े से बात कइसे करना हे, संस्कार ल भुलात हे। अपन गाँव-घर ल...
राज बताते नहीं
कविता

राज बताते नहीं

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** प्रेम पत्र सभी को दिखाते नहीं हाथों से लिखी भावनाएं मिटाते नहीं। भेजा था चित्र सभी को दिखाते नहीं खोलते चूमा जिसे बटुए से हटाते नहीं। मन की बेचैनी को यूं जताते नहीं ओ राज था राज को बताते नहीं। महीने गुजारे इंतजार में सबको दिखाते नहीं रात भर बातें की थी तन्हाई को दिखाते नहीं। पेड़, झरने, पानी, बर्फ छोड़ कागज निहारते नहीं वादियों के बीच में महबूबा-महबूबा चिल्लाते नहीं । ९० दिन में हर एक दिन यूं काटते नहीं बचे बस दिन कुछ,यह आश लगाते नहीं। छुट्टी की खुशी में भागे-भागे यू आते नहीं बचा हर पल को यूं खुद को परेशान करते नहीं। आ कर जाने की तिथि बताते नहीं खुशी में यूं जाना है रोज बताते नहीं। जाते वक्त मुरझाया चेहरा दिखाते नहीं पी आंसू नकली हंसी इन्द्रा हंसते नहीं। हर बार छोड़ सीमा को यूं जाते नहीं ज...
विषधर-सा मौसम
कविता

विषधर-सा मौसम

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** फन काढ़े विषधर-सा मौसम, सीने पर डोले। कृषकों की रोटी पर बरसे, बेमौसम ओले।। प्यासा सावन मरा माँगते, चुल्लू भर पानी। नाच रही फागुन के आँगन, अब बरखारानी। खलिहानों के दुखिया उर पर, काले बदरा ने, तूफानों की गारत लाकर, कर ली मनमानी।। बिना सूचना के दागे हैं, दुखड़ों के गोले। कृषकों की रोटी पर बरसे, बेमौसम ओले।।१ पटवारी के अक्खड़पन में, खेती रोज मरी। घर पटेल के बैठ खाट पर, गिरदावरी भरी। मुआवजे पर निर्मम कैंची, टेढ़ी चाल चले, होरी के अँगुली की गिनती, होती कहाँ खरी।। हर हिसाब पर हुक्मरान का, गब्बरपन बोले। कृषकों की रोटी पर बरसे, बेमौसम ओले।।२ बीज खाद की चढ़ी उधारी, लागत माटी में। बहा मुफ्त में खून पसीना, इस परिपाटी में। चना-चबेना रूखी-सूखी, रोटी से लड़कर, हार गया है कृषक खेत की, हल्दी घाटी में।। जीत गई बेर...
आओ पुस्तक पढ़ें … जिंदगी गढ़ें …
कविता

आओ पुस्तक पढ़ें … जिंदगी गढ़ें …

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** पुस्तक पढ़ना जिंदगी गढ़ना हमें महकना सिखाती हैं.. आगे ही बढ़ना संघर्ष करना हमें सॅंवरना सिखाती है .. नई किरणें लेकर बिखरना नई उम्मीदें जगाती हैं.. नई आशाएं लेकर निखरना परिभाषाएं बतलाती हैं.. चिंता न कर चिंतन करना चेतना चित में जगाती हैं.. चिरसम्मत सद्कर्म गढ़ना चिरायु स्मृति ये दर्शाती हैं.. जीवन उपवन सा महकना चेहरों पे मुस्कान लाती हैं.. वनों जैसे आच्छादित होना पर्यावरण संदेश बताती हैं.. कलकल कर नदियां बहना अनवरत ये गीत गाती हैं.. कलरव कर पंछी चहकना संगीत लयबद्ध भाती हैं.. हिसाब करना किताबें पढ़ना जाॅब का चयन कराती हैं.. पढ़ लिखकर गुणवान बनना आदर्श पथ पर चलाती है.. परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़ कार्...
क्यों उजड़ा प्यारा कुंज
गीत

क्यों उजड़ा प्यारा कुंज

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** क्यों उजड़ा प्यारा कुंज यह, रोती बैठी हीर अब। नैनों के निर्झर छलकते, कैसे रखते धीर अब।। चुभती गुंजारें भ्रमर की, बौरानी यह प्रीत भी। बागों की बुलबुल विकल अब, रूठे पावस गीत भी।। मायावी चलते चाल हैं, विश्वासों को चीर अब। मंजरियाँ सब मुरझा गयीं, काँपे कोमल गात भी। गिरगिट सा रंग बदल रही चादर ताने रात भी।। रूप बदल छलता चाँद यह, आँखों देखो नीर अब। ढाई आखर इस प्रेम से, चोटिल हर पल साँस है। करता क्रंदन मन मोर ये, टूटी जीवन आस है।। पगली हुई बंजारन भी, बिलखे अंतस पीर अब। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : से...
सैलाब
कविता

सैलाब

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सैलाब, विचारों का हो चाहे मनोभावों का हो बवंडर सा घिर जाता है दिलोदिमाग पे यकायक विचारों के भ्रमजाल का एक बोझ लद जाता है समेट लें कागज़ पर तो नवसृजन बन जाता है जब बाड़ में जलस्तर नदी का निजी स्वरूप किनारों का अस्त्तित्व आगोश में भर लेता है इसे संग्रहित करें हम तालों जलाशयों में तो खेत वनों व उपवनों में पर्ण प्रसून खिला देता जब समन्दर में जल का सैलाब तटों को तोड़कर तूफ़ानी लहरें उठा देता एक जलजला आ जाता इसीको प्रलय कहते होंगे क्यों न हम जंगल बढ़ाएँ रोककर जल तांडव को स्वर्ग सी धरा को बचालें परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
चुनरी
कविता

चुनरी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नारी के श्रंगार में, चुनरी है अति ख़ूब। लज्जा है, सम्मान है, आकर्षण की दूब।। चुनरी में तो है सदा, शील और निज आन। चुनरी में तो हैं बसे, अनजाने अरमान।। चुनरी को मानो सदा, मर्यादा का रूप। जिससे मिलती सभ्यता, नित ही नेहिल धूप।। चुनरी तो वरदान है, चुनरी है अभिमान। चुनरी में तो शान है, चुनरी में सम्मान।। चुनरी तो नारीत्व का, करती है जयगान। चुनरी तो मृदुराग है, चुनरी है प्रतिमान।। चुनरी तो तलवार है, चुनरी तो है तीर। चुनरी ने जन्मे कई, शौर्यपुरुष, अतिवीर।। चुनरी में तो माँ रहे, बहना-पत्नी रूप। चुनरी में देवत्व है, सूरज की है धूप।। चुनरी दुर्बल है नहीं, नहिं चुनरी बलहीन। चुनरी कमतर नहिं कभी, और नहीं है दीन।। चुनरी में वह तेज है, कौन सकेगा माप। चुनरी शीतल है बहुत, चुनरी में है ताप।। चुनरी है म...
सागर की लहरों ने
कविता

सागर की लहरों ने

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** सागर की लहरों ने माँगा जब मेघों से पानी बरस पड़े वो जल बनकर, लहरें होगईं धानी-धानी रत्नाकर की लहरों ने माँगा जव साहिल से जीवन खड़ा रहा अविचल होकर बन लहरों का साजन उदधि की लहरों ने माँगा जब धरती से श्रृंगार खड़े कर दिए वृक्ष, पुष्प, बालू के अनुपम उपहार जलधि की लहरों ने माँगा जब सागर से आहार मीन, मत्स्य, मूँगा, मोती से पूर्ण किया कुक्षागार ओ कलाकार, तू बड़ा निराला ! इक-इक राही इस प्रकृति का करें तुम्हे प्रणाम साभार परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार कर...
धुन
कविता

धुन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हम थिरक रहे हैं उनके भक्ति भरे धुनों पर, हम गर्व कर रहे हैं उनके बनाये नमूनों पर, तांडव, विरह, विवाह, मिलन सारे के सारे धुन उनके, सत्ता, ताकत, धमक है जिनके, हमारे धुन है बेबसी के, मदहोशी के, खामोशी के, लाचारी के, दुत्कारी के, चित्कारी के, मनुहारी के, बदहाली के, कंगाली के, सामाजिक दलाली के, पता नहीं कब रच पाएंगे धुन, समता के, ममता के, टूटती विषमता के, न्याय के, इंसाफ के, अत्याचारियों के पश्चाताप के, सम्मान के, संविधान के, ज्ञान के, विज्ञान के, देश के विधान के, एक-एक अनुच्छेद के संज्ञान के, तैयार करने ही होंगे एक ऐसा धुन जिससे थिरके सारा देश, भूला के सारा द्वेष व क्लेश, जिसमें से न आए धर्म व जातिय गंध की कर्कश आवाज, हमें रचना होगा, सृजना होगा ऐसा साज। परिचय :-...
उत्तराधिकारी
कविता

उत्तराधिकारी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** स्वयं का उत्तराधिकारी चुनना क्यों जरूरी हुआ क्या वंश परंपरा ही है उत्तराधिकार की परिभाषा??? कितने प्रश्न कितने ऊबाल हैं मन के भीतर चिन्तित हो रहे विचार अपनी दिशाओं से मुक्त होकर स्वार्थ को कर्तव्य समझ कर ! किसको दूँ इस पथ को, संरक्षित कर निरंतर बढ़ने का संदेश किस सत्य से उजागर करूँ अपनों से अपने होने का अधिकार?? कर्म-धर्म, करुणा के संरक्षण से, चुनना चाहता हूँ एक ऐसा पथिक जो संघर्ष की शपथ ले जीवों के उद्धार का सृष्टि को संवारने का, उसका कर्ज चुकाने का जाने कैसी विडंबना है, नकार नहीं सकता बोझ से भरे रिश्तों को क्यों ढ़ो रहे हैं इन्सानियत को जिंदा लाशों की तरह आजकल हवाओं में कुछ जहर सा फैला हुआ है रक्त में समा जाने का डर है इसे, कैसे दूर करूँ इसका ये कसैलापन इस जीवन से क्या परिण...
पहला प्यार
कविता

पहला प्यार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** उम्र आँखों की खोया प्यार ढूंढने में बीत जाती खोजता मन मजनू बन प्रकृति की बहारों में मुलाकाते होती थी गवाह बने वृक्ष तले डालियों पकड़े इंतजार पावों के छालों की परवाह फूलों को भी थी फूलों ने बिछाए कारपेट बहारें फिर छा गई मगरअब तुम खो गई सोचता हूँ क्या इश्क भी बूढ़ा होता ? शायद कभी नहीं पहला प्यार हमेशा जवान होता यादों के सहारें। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेख...
चांद कहवा छुपल
आंचलिक बोली, कविता

चांद कहवा छुपल

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल। प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।। दिल के दरवान दिल के दरद ना बुझे। नीर अखियां के गिरल त सब बह गईल।। जेके अखियां के पुतरी बनवले रहीं। उ बदल जायी अइसे खबर ना रहे।। आसमां के परी जिनके जानत रहीं। छोड़ अइसे दिहें तनिको डर ना रहे।। इहे जीवन के असली सच्चाई बा हो। नाहीं मुहवा खुलल बात सब कह गईल।। चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल। प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।। बनके परछाई जे हमरा साथे चलल। आज ओही के रहिया निहारत बानी।। जे सजावल सनेहिया के संसार के। का भईल अब कि उनके बिसारत बानी।। सात सूर जेके आपन बनवले रही। बेसुरापन के फिर भी झलक रह गईल।। चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल। प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।। सुख के सपना देखल आज सपना भईल। जान जायी की रही बा फेरा लगल।। आस के जो जरवनी दीया बुझ गईल...
बेटी के दुश्मन
कविता

बेटी के दुश्मन

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** पापी, कामुक बने भेड़िए, नहीं सुरक्षित बालाएं। नीच, अधर्मी, पापाचारी, पहने फिरते मालाएं। घर में नहीं सुरक्षित बेटी, यही शिकायत जन-जन से। जिंदा नोंच रहे हैं उस को, जो अबोध है तन-मन से। जीभ काट लो हत्यारे की, पापी अत्याचारी की। जिसने दशा बना डाली है, कामुक हो, बेचारी की। हाथ काट कर करो निहत्था, दुष्टों और जाहिलों को। करो समूल नष्ट असुरों को, मामा सभी माहिलों को। जनम जनम तक पुश्तें रोयें, पापी और अधर्मी की। सात जनम तक रहें पीढ़ियाँ, जेलों बीच कुकर्मी की। फूल सरीखी नव वाला की, जिसनें दशा बना डाली। उठा खड़ग काटो गर्दन को, बन करके दुर्गा काली। गर मजबूर रहेगी बेटी, कामी, पापाचारी से। स्वयं खून के घूँट पिएगी, सामाजिक लाचारी से। दफना दो जमीन में उनको, जिनके मुँह पर हैं ताले। गौर वर्ण दिखत...
उन्नति का पथ
कविता

उन्नति का पथ

नीलम तोलानी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उन्नति का पथ, शायद वृत्ताकार या शायद त्रिभुज जैसा होता है। जितनी तेजी से आगे बढ़ो, उतनी ही तेजी से, लौट आना होता है। उत्कर्षो का सुख होता है... अनित्य! हर बार एक नूतन उड़ान, एक नव संघर्ष, एक नए आकाश की खोज, रुकने नही देती कहीं... तृष्णा के बीज पनपते है... निरंतर... चित्त भीतर... अनेक जीवन और अनेक मृत्यु के बीच.. संतुष्टि विकलती है, अनुकूल मिट्टी और मन के मौसम को, शायद कोई बुद्ध, शायद कोई कबीर, कोई यीशु या राम मिले.. कि चेतना अग्रसर हो.. एकांगी निर्वाण पथ पर.. शायद कभी... परिचय :- नीलम तोलानी निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपन...
हिंदी प्रेमियों का बस तुमसे इतना कहना है
कविता

हिंदी प्रेमियों का बस तुमसे इतना कहना है

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** अंग्रेजी में लिखकर दुनिया को समझाना भैंस के आगे बीन बजाना ही तो है... हमने जब भी उजले पन्नों पर कोई बात लिखी वो बात लिखी अपनी हिंदी में। जो बात लिखकर हमने दुनिया को समझाई वह बात भी समझाई अपनी हिंदी में। अंग्रेजी में लिखकर दुनिया को समझाना भैंस के आगे बीन बजाना ही तो है, जो बात यहां सबसे जल्दी सबके समझ में आई वो बात आई अपनी हिंद मे। भारत के सर्वोच्च शिखर से जब कोई अंग्रेजी में जनता को बात समझाता है, वह बात कभी समझा नहीं पाया काश वही बात होती समझाई अपनी हिंदी मे। हिंदी हमारा अभिमान है अंग्रेजी बोल कर इसका भारत में अपमान मत करो यारों, भारत की अलौकिक सभ्यता छिपी है अपनी यह हिंदी की जगमगाई बिंदी मे। आधुनिकता में डूबा खुद युवा आजकल अंग्रेजी बोलना अपना सम्मान समझता है, हिंदी की गरिमा क्या होती है भारत...
वादियां बुला रही है
कविता

वादियां बुला रही है

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** वादियां बुला रही है मन को लुभा रही है, देख नजारे वादियों के आंखों में समा रहे हैं, ऊंचे पर्वत गगन विशाल, मेघों के झुंड का प्रेम मिलाप , प्रकृति में बहार फूलों की छाई, गगन चूमते वृक्ष अपार, इंद्रदेव भी तत्पर रहते , हर क्षण वर्षा करते अपार, कल-कल करती नदियां हे देखो, शोर मचा कर गिरती पहाड़, पवित्र करें पावन हे धरा को, हे कठिन राह दुर्लभ है पहाड़, देख नजारा प्रकृति का, जिस प्रकृति को उसने हे रचा? वह कितना सुंदर कोमल, जिस प्रकृति को उसने है रचा, उगते सूरज की पहली है किरण, कंचन सी साड़ी ओढ़े पर्वत, देख नजारा प्रकृति का, वादियां बुला रही हरदम परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी...
कवि हृदय
कविता

कवि हृदय

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कौन कहता है हम कुछ नहीं कौन कहता है हम कहीं नहीं जिंदगी की उदास राहों में जिंदगी की गम भरी रातों में। कोई खोजे हमें भूखे लोगों की बस्ती में हम कहां नहीं हैं, हम वहां नहीं है जहां रसरंग बरसता हो जहां मोह उत्पन्न हो क्योंकि वहां कवि हृदय का स्थान नहीं है।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाण...
ममता भरे आंचल को पहचानो
कविता

ममता भरे आंचल को पहचानो

श्रीमती निर्मला वर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हे महिलाओं .... ओ महिलाओं .... ममता भरे माँ के मन और आंचल को पहचानो, सौम्य आवरण से तन-मन संभालो। विष फैल रहा वासना का इन दृश्यों से, अपनी अस्मिता के साथ इस समाज को बचा लो।। हिम्मत है जब इतनी कि धरती से आसमान तक फहराए हैं तुमने परचम, हिम्मत को हिकारत में ना बदलो कि, लाज में डूब जाए नारी का धरम। लाचार ना बनो इतनी कि तन की ही कीमत रह जाए, मन दब जाए इतना कि रिश्तो की बलि चढ़ जाए। तन ढल जाएगा जब, कीमत भी चली जाएगी। रिश्तो की छांव के लिए जिंदगी तरस जाएगी।। रुको .... जरा सुनो इस अर्थ के अंधड़ से बचकर उस मार्ग पर चल दो, जिस मार्ग में तुमने शासन को संभाला है, आसमान में अंतरिक्ष की ऊंचाई को नापा है, कितने 'तुलसी' को महामार्ग दिखलाया है, महापुरुषों की जननी का महाश्रेष्ठ पद पाया है, ...
अतीक का अन्त (वीर छ्न्द में आल्हा)
छंद

अतीक का अन्त (वीर छ्न्द में आल्हा)

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** (वीर छ्न्द में आल्हा) अतीक का अन्त जिस प्रयाग की कुम्भ भूमि को, करते थे दो नर बदनाम। रूह काँप उट्ठेगी सुनकर, उनके कर्मों का अंजाम।।१।। जिस फिरोज अहमद का इक्का, रुक जाता था देख ढलान। इसी शख्स की औलादों ने, पाप बाँध कर भरी उड़ान।।२।। जैसी करनी वैसी भरनी, फसलें वैसी जैसे बीज। जैसी कुर्सी वैसी बैठक, जैसी सूरत वैसी खीज।।३।। प्रलयंकारी अत्याचारी, दुखदाई वरदान प्रतीक। दोनों विकट सहोदर युग के, नेता अशरफ और अतीक।।४।। अपराधी बन गए सांसद, और विधायक दोनों डान। था दुर्भाग्य देश का कैसा, दोनों भाई काल समान।।५।। मगर समय ने पलटी मारी, धरती हिली हिला आकाश। दोनों ने ही खुद कर डाला, खुद के घर का सत्यानाश।।६।। लूटमार रँगदारी ओछी, राजनीति छल से भरपूर। काम न आई ज़ब्त हो गई, पाप सनी सम्पदा...
तलाश सच्ची खुशी की
कविता

तलाश सच्ची खुशी की

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** तलाशने चले खुशियां, पर कोसों दूर निकल पड़ी और हुई चूर, जीवन में चकनाचूर सी जीवन की खुशियां मिलने जुलने की रीत प्रीत बिना हुई जीवन में अंधकार सी जीवन की खुशियां आज मानव भटकती जीवनशैली में जीवन की मिलनसारिता के अभावों पर अद्भुत द्रष्टा देता दर्शाता अक्सर पूछता है खुद से हूँ व्यस्त जरूर जीवनशैली में कब कहाँ कैसे किस मोड़ पर मिलेगी सच्ची खुशियां उदासीनता सी झुलसियां में आपा-धापी के चकाचोंध चेहरे में मुस्कुराहटें ले ली करवटें झलकती झुलसियां और उदासीनता गुल बस हुई तो, बस हृदयानंद की खुशियां बांधे अनर्गल बोझ का सेहरा गवांकर मौका सुनहरा पूछता है मानव ओरों से कहाँ छुपी है कहाँ बिछुड़ी जीवन की खुशियां अनमोल खुशियां जुटाने की हिम्मत तलाशते तलाशते अन्तर्मन से सिमटती सिमट रही अनमोल अन्तर्मन की...
संघर्ष
कविता

संघर्ष

बबीता कुमारी आसनसोल (पश्चिम बंगाल) ******************** जीवन में आगे बढ़ना है तो, संघर्ष का दामन हम थामे चलेंगे फूल बिछे हों या कांटे हों, राह अपनी हम न छोड़ेंगे। चाहे जो विपदायें आये, मुख को जरा हम न मोड़ेंगे। साथ रहें या रहें न साथी, हिम्मत मगर हम न छोड़ेंगे। संकल्प ले यदि मन में अपने, उत्साह कभी कम न हम होने देंगे संघर्ष ही जीवन है हमारा अपने विकास के लिए संघर्ष करते रहेंगे। परिचय :- बबीता कुमारी निवासी : आसनसोल (पश्चिम बंगाल) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी ...
मानवता-धर्म
कविता

मानवता-धर्म

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मानव का जन्म लिया पुण्य से, मानवता ना समझ सके प्रभु वरदान है जीवन ये भी ना पहचान सके..??? मनुष्यता का कवच ओढ़े, धर्म अधर्म को तौल रहे क्रूरता अट्टहास लगाती, निज इच्छाओं से मौन रहे??? करुणा-प्रेम, सेवा-सम्मान, है मानव धर्म की परिभाषा ईन दैव गुणों से भी तुम ये जीवन-व्यक्तित्व ना संवार सके घोर विडंबना व्याप्त हुई मानव दानव से भिन्न नहीं प्रलय विनाश के द्वार निज स्वार्थ वश खोल रहे पाशविकता है चरम चढी मनुजता पर अधम बढ़ा है करुणा हृदय से सूख गई मानव प्राणों का भूखा है...?? क्यूँ भटक गया है धर्म तत्व, उलझा है अधम अंधेरों में क्या था पौरुष कैसा मानव जब जीवन ही असंवेदनशील हुआ हे मनुज, उठो, अब भी पुण्य कमा सकते हो सत्य आचरण का संकल्प लिए इस सृष्टि को संचित कर सकते हो मत होने दो सं...
ईद आ गई है
कविता

ईद आ गई है

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** लो फिर से ईद आ गई है । खुशियाँ दिल में छा गई है ।। रमज़ान की इबादत का तोहफ़ा मिला है । किसी से नहीं शिकवा न कोई गिला है ।। मोहब्बतों के शीर से दस्तरख्वान सजाना है । भूलाकर रंजिशें सारी गले सबको लगाना है ।। महक सेवईयों की भा गई है । लो फिर से ईद आ गई है ।। हमारे जिस्म-हमारी रूह को पाक कर दिया है । रोज़े की फज़ीलत ने हर बुराई को ख़ाक कर दिया है ।। ईद के चांद ने रोशन किया है खुशनसीबी का रास्ता । नहीं लौटेंगे अब गुनाहों की और सबको ख़ुदा का वास्ता ।। राह ईमान की दिखा गई है । लो फिर से ईद आ गई है ।। आज ईदी मुहब्बत की बांटना है हमको । गमों से खुशियां अब छांटना है हमको ।। नब्ज़ पर अपनी इख्तियार कर लिया था । दामन को अपनी नेकियों से भर लिया था ।। ज़र्रे ज़र्रे में रौनक छा गई है । लो फिर से ईद आ गई है ।।...