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पद्य

ये औरतें भी न…
कविता

ये औरतें भी न…

रेणु अग्रवाल बरगढ़ (उड़ीसा) ******************** हर बार हैरान हो जाती हूँ मैं जब भी सोचती हूँ कि हार गईं ये ... लेकिन उठ खड़ी होती हैं एक नई शक्ति के साथ दो-दो हाथ करने रोज़मर्रा की तकलीफों से पता नहीं इतनी ताकत लाती कहाँ से हैं? ये औरतें भी न! कितनी आसानी से हर किसी के जीवन में अपनी जगह बना लेती हैं जैसे पानी हर बरतन जैसा ही हो जाता है एक जगह जन्म लेती हैं और फिर अपनी जड़ों समेत उखाड़कर एक नई ज़मीन पर लगा कर उगने के लिए छोड़ दी जाती हैं अजनबी लोगों के बीच इस तरह अपनी पहली रसोई बनाती हैं जैसे उसी रसोईघर में सदियों से पका रही हों छप्पन भोग ढूँढती हैं घर के हर सदस्य के जीवन में थोड़ी सी जगह अपने लिए कभी पुचकारी जाती हैं तो कभी फटकारी जाती हैं माँ बाप के नाम पर ताने भी खाती हैं कितनी भी हो प्रबुद्ध घर की मुरगी दाल बराबर अनपढ़ के नाम से ...
महाप्रभु वल्लभ चालीसा
दोहा

महाप्रभु वल्लभ चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* श्री वल्लभ सुमिरन करुं, मनुज रूप अवतार। लीला राधे श्याम की, कीनी जग विस्तार।। जयजय महप्रभु वल्लभदेवा। पुष्टि मार्ग को तुम्ही सेवा।।१ इलम्मागारु कोख से आये। लक्षमन भट्ट पिता कहाये।।२ संवत पंद्रह सौ पैंतीसा। एकादशी को जन्में ईशा।।३ कृष्णा पक्ष मास बैसाखा। धरम महीना जग की आशा।।४ जिला रायपुर चम्पा ग्रामा। आये वल्लभ जन कल्याणा।।५ गोपाल कृष्ण कुल के देवा। मातु पिता सब करते सेवा।।६ गुरु मंगला विल्व पढ़ाया। अष्टादश का मंत्र बताया।।७ काशी में प्रभु विद्या पाई। अल्पकाल में करी पढ़ाई।।८ स्वामी नारायण दी शिक्षा। तिरदंडा संयासी दिक्षा।।९ ब्रह्मसूत्रअणु भाष्य बनाया। उत्तर मीमांसा कहलाया।।१० भगवत टीका की कर रचना। तत्व अर्थ दीपा का लिखना।।११ अग्निदेव अवतारा भाई। जगत गुरु की पदवी पाई।।१२ काशी अं...
दुखों का आना …
कविता

दुखों का आना …

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** सुख-दुख दोनों हमारे आसपास है दोनों ही इस जग मे बहुत खास है आगे पीछे आना इसकी आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है आना जाना जब पहले से तय है हर गम के लिए पहले से सज्य है सुख-दुख भी उसी की महोब्बत है दुखों का आना उसकी इनायत है सुख-दुख दोनों ही करनी फल है इस सम रहकर सहना ही हल है सहने की अब तो बनानी आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है गम की बदली भी छायेगी कभी बसंत से बहार भी आयेगी कभी एकदूजे के पीछे आने की आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है सुख-दुख मे सम रहकर जीते है दोनों ही अच्छे है सहकर जीते है जो आता, उसे जाने की आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्...
अधूरे होकर भी पूरे
कविता

अधूरे होकर भी पूरे

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** वे साथ रहें पूरक बन कर पर एक दूजे के पास नहीं। जीवन का अर्थ समेट चलते हैं साथ भी फिर भी साथ नहीं। वे साथ रहे पूरक बनकर ... चिंगारी भी है, समर्पण भी है एक दूजे को अर्पण भी, वो समांतर पथ पर चलते हैं बनकर एक-दूजे का दर्पण भी संकल्प लिए, श्रद्धानत हो, अर्धांग भी हैं और अंतर भी। वे साथ रहे पूरक बनकर ... जैसे हो किनारा और नदी जैसे हो चंदा और धरती जैसे हो खुशबू और पवन जैसे अंबर और तारांगण। चलते संग-संग शुभ यात्रा पर कहीं मिलन नहीं फिर भी संगम। वे साथ रहे पूरक बनकर ... एक दृष्टि में देखो एक ही हैं। एक दृष्टि से देखो अलग कहीं। जो अलग किया अस्तित्व नहीं फिर तो जीवन का अर्थ नहीं। सागर में विलीन होकर ही है सही मिलन का सुख और सार सही। वे साथ रहे पूरक बनकर ... परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्...
हमर भीम बाबा
कविता

हमर भीम बाबा

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा जी धन्य होगे लिखित संविधान के रचैय्या अम्बेडकर महान होगे सरल अउ सहज व्यक्तित्व के धनी रिहिस हे सादा जीवन उच्च विचार के मणि रिहिस हे धरम-करम के रद्दा बतैय्या वो तो पूजनीय होगे ... अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे ... जात-पात अउ भेदभाव के गड्डा ला पाटीस हे छुआछूत अउ कुरीति के जड़ ल वो गाढ़िस हे अइसनहा मानव मन के जनैय्या महामानव होगे अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे ... संत मनीषी साधू सन्यासी मन के संग ल धरिस हे तीन रतन अउ पञ्चशील के सन्देश ल गढ़िस हे अष्ट मारग म चलैय्या बौद्ध धरम के पुजारी होगे अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे ... बाबा के रद्दा अपनाही उंकर जिनगी सरग बन जाही खान-पान रहन-सहन सुधारही उंकरे बेड़ापार हो जाही *श्र...
नीड़
कविता

नीड़

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** चूं-चूं करती आई मेरी रानी चिड़िया, नीड़ बनाती अपनी बढ़िया-बढ़िया। नित करते अपने संरक्षण वास्ते, नीड़ बनाती अपनी बढ़िया-बढ़िया।। कल-कल बहती सारी नदियां रोज विचार करती है चिड़िया। रोज पीढ़ी मेरी बढ़े भी आगे कैसे, विचारमंथन करती है नित चिड़िया।। दाना-पानी भोजन व्यवस्था, लगी रहती है हमेशा रानी चिड़िया। मीठी मधुर-मधुर गाए गीत नित, नीड़ अपनी रोज सुन्दर करती बढ़िया।। अपनी मधुर वाणी से मन सबकी मोह लेती, करती हमेशा उपकार का कार्य चिड़िया।। नित नया नीड़ बना तिनकों से अपनी खुद का, प्यार का भाव सभी में जगाती है चिड़िया।। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपन...
बाकी है
कविता

बाकी है

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** चंद खुशियों की हसरत में बेपनाह दर्द बाकी है। जो बीच रास्ते छोड़ दिया तुमने अभी वो साथ बाकी है। जो तुम तक पहुंच न पाई मेरी सदायें बाकी है। मेरे खामोश लफ्जों की हजारों बातें बाकी है। थकी आंखों का लम्बा अभी इंतजार बाकी है। जो रूह को सकून दे जाता तेरा दिदार बाकी है। चंद खुशियों की हसरत में बेपनाह दर्द बाकी है। जो बीच रास्ते छोड़ दिया तुमने अभी वो साथ बाकी है। किस कसूर की दी है सजा अभी इल्ज़ाम बाकी है। मौत का दे दिया फरमान अभी हमारी जान बाकी है। सजदों में बांधी उस डोर की अभी वो गांठ बाकी है। क्यों दुआएं कबूली नही गई वो फरियाद बाकी है। चंद खुशियों की हसरत में बेपनाह दर्द बाकी है। जो बीच रास्ते छोड़ दिया तुमने अभी वो साथ बाकी है। हम ने अजमा लिया सब को खुदा का इम्तिहान बाकी है। इश्क़ का यह स...
बच्चे देश का भविष्य
कविता

बच्चे देश का भविष्य

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** बच्चे हैं हमारे देश का भविष्य, हमें मिलकर इनका बचपन बचाना है, स्कूल में भेज बच्चों को, काबिल उन्हें बनाना है, बाल मजदूरी से बचपन, उबर नहीं कभी पाता है, शारीरिक मानसिक बच्चे को, बड़ा आघात लग जाता है, हैं खेलने, पढ़ने के दिन जो, दुस्वार यह हों जातें हैं, बाल मजदूरी से बच्चों के, जीवन तबाह हो जाते हैं, गांँव शहर ए मेरे देश के लोगों, बाल मजदूरी पर रोक लगानी है, बच्चों का जीवन खुशहाल बने ऐसी व्यवस्था मिलकर हमें बनानी है, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करव...
छोटी काशी (गोला)
कविता

छोटी काशी (गोला)

गौरव श्रीवास्तव अमावा (लखनऊ) ******************** मन उत्सुक था घोर चपलता, सम्भव नहीं इसे समझाना, महादेव का था ये बुलावा, अब तो हमको था ही जाना। दुःख के काले बादल उड़ गए, मिट गयी मन की घोर उदासी, काशी-काशी, काशी-काशी पहुंच गए हम छोटी काशी।। देख दृश्य छोटी काशी का, मैल मिट गया सारा जी का। मन व्याकुल था आंखें तरसी, दर्शन मिलें तों आंखें बरषी। इससे जुड़ी है राम कहानी, जो चौदह वर्ष हुए वनवासी।। काशी-काशी, काशी काशी पहुंच गए हम छोटी काशी।। दूर-दूर से आते हैं जन महादेव के दर्शन पाने। कई संन्यासी दिखें यहां जो खुद को हर के रंग में ढालें। कुछ तो देखें घोर तपस्वी, कुछ तो मिलें यहां संन्यासी काशी-काशी, काशी-काशी पहुंच गए हम छोटी काशी।। परिचय :- गौरव श्रीवास्तव निवासी - अमावा (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
वीरान सी बस्ती
कविता

वीरान सी बस्ती

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** सुनसान सी सड़के झांकती है मेरी और, मानो कह रही है वो मुझसे, अपने कदमो की आहट से, महका दे इस गाँव को। वीरान सी इस बस्ती में , झुका हुआ बरगद का पेड़ खड़ा है, मानो वो मुझसे कह रहा है, आ बैठ़ मेरी छाँव में। वीरान सी इस बस्ती में, खाली पड़े मकानों की दीवारें, मुझसे कुछ यूँ बोल रही है, आ खेल तू इस आँगन में। वीरान सी इस बस्ती में, खेतों की ये मिट्टी, मुझसे कुछ यू बोल रही है, आकर छू ले मुझको, चारों और फैला दे, सौंधी सी मिट्टी की खुशबू को। वीरान सी इस बस्ती में, सुनसान सी सड़कें, मानो मुझसे कुछ कह रही है। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
मिलकर नीर बचाना होगा
कविता

मिलकर नीर बचाना होगा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मिलकर नीर बचाना होगा, वरना पछताओगे। वसुधा छोड़ नीर पाने को, और कहाँ जाओगे। नित धरती का दोहन करके, इसको व्यर्थ बहाते। कमी दीखती जब पानी की, तब क्यों तुम पछताते। रखें सहेज सदा पानी को, इसकी कीमत जाने। पानी है हम सबका जीवन, कीमत भी पहचाने। धीरे-धीरे कभी इस तरह, होगी गर पानी की। प्यासे, बिना नीर आएगी, याद तुम्हें नानी की। जितनी पड़े जरूरत हमको, इतना पानी ले लें। वरना सूख जाएंगी पल में, सबकी जीवन बेलें। पानी है अनमोल खजाना, मिलकर ऐसे सहेजें। मानव कर प्रयत्न पी लेगा, कहां जानवर भेजें। दिन दूनी और रात चौगुनी, गर्मी बढ़ती जाती। जलस्तर घट रहा निरंतर, धरती सूखी जाती। पशु पक्षी बेचैन भटकते, जहां नीर पाते हैं। बाजी लगा जान की अपनी, वहीं चले जाते हैं। अब गर्मी तन बदन जलाती, पीड़ा सही न...
हनुमत्कृपा
छंद

हनुमत्कृपा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** अगर पाया झुका तू सिर, तो हनुमत रीझ जाएंगे। तेरी भक्ति का फल परिवार, कुल सब लोग पाएंगे। अगर पाया झुका .... बहुत ही सरल है हनुमत, तुझे बस शरण आना है। मिटाकर भाव कर्ता का, निमित बस बनते जा है। तेरी कष्टों से रक्षा कर, लाज अपनी बचाएंगे। अगर पाया झुका ... विभीषण ने किया सहयोग, तो स्वामी से मिलवाया। ज्यों ही आया शरण मे, तो तुरत लंकेश बनवाया। जो गुण धारण को आतुर हो, उसे खुद सा बनाएंगे। अगर पाया झुका .... समर्पण और सेवा भाव के, पर्याय हैं हनुमत। पकड़ पाए कोई चरणों को, तो हो जाते हैं सहमत। जो भी निष्काम भक्ति, कर सके, मुक्ति दिलाएंगे। अगर पाया झुका ... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी ...
डॉ. भीमराव अम्बेडकर
कविता

डॉ. भीमराव अम्बेडकर

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** बुद्धि से तेज विचारों से श्रेष्ठ ज्ञान में ज्ञानी सहनशीलता की मिशाल जला दी जिसने अलख ज्ञान की आओ करें नमन उस महान ज्ञानी को किताब, कलम को बना ढाल छा गए जो महान करोड़ों दिलों पर जिसका राज रख नारी को संग दिला कर महिलाओं को शिक्षा का अधिकार बने नारी रक्षक गरीबों वंचितों को दिया उठा समानता का पढ़ाया पाठ सहकर कठोर यातनाएं रख शिक्षा को आगे आम से बने खास लिख दिया जिसने संविधान कहलाए वे डॉक्टर भीमराव अंबेडकर नमन मातृभूमि के लाल को। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड स...
हर पल नयी लगती है तू
कविता

हर पल नयी लगती है तू

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** हर पल कुछ नये से सुहाती रहती है तू नये सिरे से दिल को यूँही लुभाती है तू नयी नवेली दुल्हन जैसी सजती है तू नया कुछ कर गुजरने का ज़ज्बा देती है तू... लड़ने की प्रेरणा बनकर खड़ी है तू दुनियादारी के मायने समझाती है तू व्यस्त रहने के फायदे सिखाती है तू व्यवहार से वास्ता भी जताती है तू... बुराई से भी कभी-कभी टकराती है तू हौसला-अफजाई की मशक्कत करती है तू डटकर चलना भी बताती रहती है तू हमसफर बनके चलना जानती है तू... खुद का अन्दाज बनाने को उकसाती है तू औरों के लिए जीने का अवसर देती है तू विधाता की भेंट खुशनुमा रहती है तू जिन्दगी हर पल नयी उम्मीद जगाती है तू... परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर मह...
मतलबी
कविता

मतलबी

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैंने जहां देखा, मैंने तहा देखा। लोग मुझसे जुड़े बस मतलब के लिए, न मेरे विचारों के लिए न मेरे लिए। जो भी मुझसे मुस्काया किसी न किसी, मतलब के लिए फरेब के लिए। न की अपनेपन के लिए हसीन आंखों ने मुझे भी तका पर न प्रेम के लिए न वफ़ा के लिए बस एक चलते-फिरते हमसफर के लिए। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प...
बनी पाँव में बेड़ी पायल
गीत

बनी पाँव में बेड़ी पायल

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बनी पाँव में बेड़ी पायल, अब सिंदूर उदास। सभा मध्य रो रही द्रोपदी बस कान्हा ही आस।। पाँचों पति हो मौन देखते, चीर हरण का घात। दुष्ट दुशासन भूल चुका है, परिणामों की बात।। सभा मौन बैठी है सारी, टूटा है विश्वास। नारी को संपत्ति समझ कर, खेला चौसर दाँव। धर्मराज भी सबकुछ हारे, बचा नहीं हैं ठाँव।। बलि चढ़ती सब अधिकारों की, बस आँसू हैं पास। लक्ष्मण रेखा लाँघी सीता, हरण हुआ तत्काल। सदियों से है पीड़ा सहती, लिखा यही बस भाल।। देवी चंडी दुर्गा मानें, फिर क्यों देते त्रास। संस्कारों को भूल गये सब, खोयी है पहचान। लूट रहे हैं सतत उसे ही, करते नित अपमान।। सभी युगों की यही कहानी, बीते दिन अरु मास। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सु...
गाँव
दोहा

गाँव

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गाँव बहुत नेहिल लगें, लगतें नित अभिराम। सब कुछ प्यारा है वहाँ, सृष्टि-चक्र अविराम।। सुंदरता है गाँव में, फलता है मधुमास। जी भर देखो जो इसे, तो हर ग़म का नाश।। सुंदर हैं नदियाँ सभी, भाता पर्वतराज। वन-उपवन मोहित करें, दिल खुश होता आज।। हरियाली है गाँव में, गूँजें मंगलगान। प्रकृति सदा ही कर रही, गाँवों का यशगान।। खेतों में धन-धान्य है, लगते मस्त किसान। हैं लहरातीं बालियाँ, करें सुरक्षित शान।। कभी शीत, आतप कभी, पावस का है दौर। नयन खोल देखो ज़रा, करो प्रकृति पर गौर।। खग चहकें, दौड़ें हिरण, कूके कोयल, मोर। प्रकृति-शिल्प मन-मोहता, किंचित भी ना शोर।। जीवन हर्षाने लगा, पा मीठा अहसास। प्रकृति-प्रांगण में सदा, स्वर्गिक सुख-आभास।। जीवन को नित दे रही, प्रकृति सतत उल्लास। हर पल ऐसा लग रहा, गाँव सदा ह...
जकड़न
कविता

जकड़न

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हाथ बंधा है, पांव बंधा है और बंधा मस्तिष्क, चुन सकते नहीं प्रेयसी कैसे लड़ाएं इश्क़, हाथ काम तो कर रहे पर किसी और का, पांव थिरक जा रहा किसी के रोकने से, मस्तिष्क दूसरों के डाले डाटा अनुसार चल रहा है, दरअसल यह मानसिक गुलामी के जकड़न का असर है, समाज और समाज के लोगों से दूर रहने का असर है, जिस हथियार के दम पर नौकरी पाया, रुतबा पाया, उसे भूल धुर विरोधी को गले लगाया, सालों साल लोगों को बहकाया, तो समाज की चिंता अब क्यों? अब कोई तवज्जो दे तो क्यों? मनन जरूर कीजिए। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
वर्ण पिरामिड
कविता

वर्ण पिरामिड

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वर्ण पिरामिड ॐ शिव ओंकार निराकार परमेश्वर त्रयम्बकेश्वर करो विश्व उद्धार हे शंभू त्रिचक्षु संकटी भू कल्याण कुरु बजादो डमरू करो तांडव शुरू ओ रुद्र शंकर विश्वेशर ओंकारेश्वर महाकालेश्वर आओ परमेश्वर परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३...
एक नन्हीं परी
कविता

एक नन्हीं परी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नीले बादलों के रथ पे सवार झिलमिल तारों की पीछे है कतार चाँद की चांदनी दे रही बिदाई रिमझिम बूंदों ने शहनाई बजाई एक नन्हीं परी आँगन में उतरी उषा की लाल किरणें ज्यों बिखरी महके कनेर जुही चंपा हरसिंगार हर द्वारे झूमते देखो वंदनवार चाची ने रंगीली रंगोली सजाई ढोलक की थाप पे सोहर गवाई आरती भुआ ने खूब उतारी दादी ने काजल की बिंदी लगाई ठुमक ठुमक कर चलने लगी गुड़िया सजने अब लगी ख्वाबो की दुनिया तोड़ हदे सारी भरो ऊँची उड़ान माँ और बाबा ने कर दिया ऐलान गुड़िया ने सोची अंतरिक्ष की सैर या जा विदेश मनाऊँ अपनी खैर बाबा ने बोला पंख हमने दिए राहे मिल जाएगी पर ज़रा होले होले बुलन्द हौंसलें संजोए दिल में सात सुर गुंजाती पैजनियाँ ख़ामोश जय हिंद सेना में सरहद पे जा डटी नहीं हूँ बेटे से कम मैं...
संयम से हम
कविता

संयम से हम

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** संयम का हथौड़ा और अपनी विवेक की छैनी के साथ करते रहे कार्य बहुत बड़ा परिवर्तन भी ला सकते हम और आप।। जरा से धैर्य की हो बात तराश सकते हैं स्वयं को हम किसी हीरे की तरह ईश्वर से प्रदत्त हैं ये गुण संयम से हैं हम और आप।। हमको ज़रूरत संयम की अपने कर्म के हथौड़े से किया जब समय पर वार असंभव नहीं रहा कुछ भी जीवन में आया हर्ष अपार ।। हुए जो संयमित हम जीवन में उपकृत होंगे ईश्वर के समक्ष होंगे उस अनुकंपा के अधिकारी संयम से ही हम और आप ।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी...
कुछ लोग दीवाने होते हैं
कविता

कुछ लोग दीवाने होते हैं

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ लोग दीवाने होते हैं विरले अन्जाने होते हैं राष्ट्र -धर्म के लिए जिन्हें नव-राह बनाने होते हैं उनको धन की कुछ चाह नहीं कुछ जीवन की परवाह नहीं पा सका न कोई थाह कभी सागर मस्ताने होते हैं सारा जग उनका अपना है पर स्वदेश पहला सपना है मातृभूमि-भाषा पे मिटकर कुछ अलख जगाने होते हैं छोड़ दिया घर-बार जिन्होंने पाया सबका प्यार उन्होंने कुल-वंश में नहीं बधें जो- अभिनव-पहचाने होते हैं नींद नहीं जिनको प्यारी है बस-करने की तैयारी है सबसे प्रिय सबसे अलग- कुछ मन में ठाने होते हैं चलते रहते नई राहों पर रोते हैं जग की ऑहों पर सुख-दुःख में जिनके कर्म- सदा - पहचाने होते हैं ना सोचें क्या राह कठिन है ना जानें क्या बात कठिन है देश-राह में चलने वाले- अद्भुत सैलाने होते हैं परिचय :-  बृजेश आनन्द राय नि...
हाला
कविता

हाला

ललिता शर्मा ‘नयास्था’ भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** कौन फ़िज़ा में घोल रहा, गरल भरा ये प्याला यूँ। नस-नस में क्यूँ दौड़ रही, मधुशाला की ये हाला यूँ? घर का दिया ही बुझने लगा, करके घर को काला यूँ। उसको पिला दे साक़ी ज़रा-सी, छोड़ के मेरे वाला यूँ॥ आँख में आकर बैठ गया, मदिरा का ये नाला यूँ। फूट रहा न जाने कब से, अश्रु का ये छाला क्यूँ? झुलस रहा है उपवन मेरा, फूल सुगंधित मतवाला यूँ। गंध लगे दुर्गंध उसी को, जब जाता मदिरा में डाला यूँ॥ वेशबदलकर कौन यहाँ, आया ओढ़ दुशाला यूँ। उजली चादर मैली करने, बुनता कोई जाला क्यूँ? यौवन की मादकता से, रोई गुल की माला क्यूँ ? चूर नशे में सोच किसी की, बली चढ़ी कोई बाला क्यूँ? अच्छी बातें नहीं सुहाती, बुरी को जाता पाला क्यूँ? नशे ने किया है नाश सभी का, नशे को सबने न टाला क्यूँ? परिचय :-  ललिता शर्म...
तू कापुरुषों का पूत नहीं
कविता

तू कापुरुषों का पूत नहीं

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** चलने से पहले तय कर ले, दुर्गम पथ है अँधियारों का। हे वीर व्रती ! तब बढ़ा चरण, होगा रण भीषण वारों का।। यह भी तय है तू जीतेगा, शासन होगा उजियारों का। तू कापुरुषों का पूत नहीं, वंशज है अग्निकुमारों का।। नदियाँ लावे की बहती थीं, जिनकी शुचि रक्त शिराओं में। जो हर युग में गणनीय रहे, धू-धू करती ज्वालाओं में।। तू उन अमरों का अमर पूत, आर्यों की अमर निशानी है। तेरी नस-नस में तप्त रक्त, पानीदारों का पानी है।। हे सूर्य अंश अब दिखा कला, कर सिद्ध शौर्य टंकारों का। दुनिया बोलेगी जयकारे, दिल दहल उठेगा रारों का।। तू कापुरुषों का पूत नहीं, वंशज है अग्निकुमारों का।। तेरी जननी की हरी कोख, करुणा की तरल पिटारी से। अवतरण हुआ है हे कृशानु! तेरा बुझती चिनगारी से।। हे हुताशनी पावक सपूत! बलधर अकूत...
सपनों का महल
कविता

सपनों का महल

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैंने कभी संजोए सपने सपनों में खो, खो कर कई महल ढहाये मैंने सपनों में बना-बना कर। आया कोई दूर गगन से तारांगणो का व्युह करो आंगन को दीप्त मेरे समा गया पुनः सपनों में। भर-भर पूंज उलिचा मैने सपनों के दोनों से गति प्रकाश की देखी मैंने कोसो, मिलो थी जो दूर मन बावरा उड़-उड़ जाता गवर्नर क्षितिज से दूर। यह पर्वतों की हरियाली वृक्षों की ऐ छाया शाख-शाख पर क्यों पुकारे पी-पी पपीहा गान। सपनों में जो मंजर देखा देखा स्वयं को चहकते हुए आंखें खुली तो न था पर्वत न हीं उलिचा गया कोई पुंज। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के ले...