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पद्य

हनुमत्कृपा
स्तुति

हनुमत्कृपा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** मुझे कब और क्या करना, मेरे आराध्य बतलाते। जो होता है मेरे हित मे, वही वो मुझसे करवाते। मुझे कब और क्या .... उठाता लेखिनी जब मैं, तो हनुमत भाव देते हैं। भाव होते हैं हनुमत के, तो भावुक गीत बनते है। जो भी होता सृजन अच्छा, उसे हनुमत हैं करवाते। मुझे कब और क्या .... थोड़ी सेवा मिली आराध्य की, ये भी कृपा उनकी। उन्ही की शक्ति से ही चल रही, भक्ति फली सबकी। कभी आते हैं कुछ व्यवधान, उनको वो ही निपटाते। मुझे कब और क्या .... है हनुमत से यही विनती, नहीं सेवा विरत करना। कभी कर्ता का आये भाव ना, इतनी कृपा करना। वही करता हूँ मैं सत्कर्म, जो वो मुझसे करवाते। मुझे कब और क्या .... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक ...
पत्ते
कविता

पत्ते

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** जो जुबान से निकला वो शब्द थे जलजले सा भीतर थम गया वो अनुभूति थी यू ही पत्तों से रह गए जिंदगी के रिश्ते, कुछ मुरझा गए कुछ सीलन से हैं भरे हुए कुछ थे जो अपनी गुमान में गुम थे उनको भनक भी नहीं आने वाले तूफान की जो मिटा देता है मिटा सकता है अहम के अस्तित्व को रिश्तों की कहानियां भी कुछ ऐसी ही हैं कभी सूख जाते हैं कभी सीलन से बोझिल हो जाते हैं जीवन का सफर रुकता नहीं किसी के इंतजार में यूँ ही झड़ जाना है, विलीन हो जाना है कहीं बटोरते रहे इन पत्तों को आजीवन हम मिले कहीं किसी किताब के पन्नों में सूखे हुए कभी रिश्तों की तह में धूल से भरे हुए मौसम की हवाओं ने नए हरे पत्तों का संदेश भेजा है जिंदगी फिर से शोभायमान हो, ऐसे रंगों से बहारों ने चमन को घेरा है!!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्...
पनिहारिन
कविता

पनिहारिन

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** दिखती नहीं कोई पनिहारिन लंबी-लंबी पगडंडी सूनी है। ना पनघट बचे ना पानी है। ना चमचमाती घघरी है। गोरी पनिहारिन अब दिखती नहीं । सिर पर सजी चुनरी, दिखती नहीं। कमरिया पर गघरी दिखती नहीं। हिरनी सी चाल में दिखती नहीं। पग पैजनिया से घुंघरू बजते नहीं। तीखी कजरारी आंखें चमकती नहीं। केशों में लिपटा गजरा दिखता नहीं । गजरों की भीनी खुशबू आती नहीं। अब न पनघट बचे ना पनिहारिन है। पैजनिया से घुंघरू बजते नहीं। पनघट वाली तिरछी गली गुलजार न रही। सूना कोना अब मुलाकातें, यादें रही। हिरनी की चाल सा न कोई दिखाता। तिरछे नैनो में काला कजरा, न दिखता। तिरछे नैनो से पनिहारिन को कौन बुलाता। पपीहा भी पियू कर शांत हो जाता । कोयल भी कुहू कुहू कर उड़ जाती है । पनघट पर चाहूं ओर घोर उदासी है। गांवों की यादें अब भी बाकी है। पनिहारिन भी अब उदास...
नीर से ही जीवन है
दोहा

नीर से ही जीवन है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नीर लिए आशा सदा, नीर लिए विश्वास । नीर से सांसें चल रही, देवों का आभास ।। अमृत जैसा है सदा, कहते जिसको नीर । एक बूँद भी कम मिले, तो बढ़ जाती पीर ।। नीर बिना जीवन नहीं, अकुला जाता जीव । नीर फसल औ' अन्न है, नीर "शरद" आजीव ।। नीर खुशी है, चैन है, नीर अधर मुस्कान । नीर सजाता सभ्यता, नीर बढ़ाता शान ।। जग की रौनक नीर से, नीर बुझाता प्यास । कुंये, नदी, तालाब में, है जीवन की आस ।। सूरज होता तीव्र जब, मर जाते जलस्रोत । घबराता इंसान तब, अनहोनी तब होत ।। नीर करे तर कंठ नित, दे जीवन को अर्थ । नीर रखे क्षमता बहुत, नीर रखे सामर्थ्य ।। नीर नहीं बरबाद हो, हो संरक्षित नित्य । नीर सृष्टि पर्याय है, नीर लगे आदित्य ।। नीर बादलों से मिले, कर दे धरती तृप्त । बिना नीर के प्रकृति यह, हो जाती है तप्त ।। नीर ...
मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना
कविता

मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** गर मै जिंदा हूँ,तू अपना वजूद रखना । वक्त के बदलने का बस ख्याल रखना ।। एक ना एक दिन बहार आयेगी जरूर । मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना ।। बेशक कांटे भी मिलेंगे रास्ते मे मगर । दुनिया भी हो जाये इधर उधर मगर ।। दुनियादारी मे खुद का ख्याल रखना । मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना ।। क्या हुआ की किस्से अधूरे रह गये । रेत का मकान,एक पल मे ढह गये ।। कांटों को भी सीने से लगाये रखना । मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना ।। एक दिन दामन खुशियों से भर जायेगी । बहारे लौट कर बासंती रंगरूप दिखायेगी ।। उम्मीद से जीवन का दीपक जलाये रखना । मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना ।। परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति :...
आईना दिखाती कविताएँ
कविता

आईना दिखाती कविताएँ

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आईना दिखलाती कविताएँ अलंकृत शब्दों के भावों में रचती जाती कविताएं कवियोँ के कोमल हृदय से भावों में भर जाती कविताएं बैठे बैठे सोचते सोचते कवियों की कलम से लिख ली जाती है कविताएं भावों से भरी रहती अन्तर्मन को छू जाती है कविताएं समाज देश जाति में शब्दों की भाषा में आईना दिखलाती कविताएं समस्तजनो को रसास्वदन कराती है कविताएं प्रकृति से प्रेम करने की पथ प्रदर्शक बन जाती कविताएं बुराइयों से मुक्त रहने की विचारधारा बढ़ाती कविताएँ संस्कृति शिक्षा भाषा कला का बेबाक ज्ञान दिलाती कविताएं उदासीनता तोड़कर हंसाती है कविताएँ हंसने हंसाने मुस्कुराने की जड़ी बूंटी बन जाती कविताएँ रसों में रसदार फल से ज्यादा रसपान कराती कविताएँ सुधारने के आयाम बताती है कविताएँ बैचेन को चैन देती है अनमोल कविताएँ संपर्कता की सीढ़ी त्वरित र...
वो कौन?
कविता

वो कौन?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वह कौन है जो बोल सकता है पर बोलना नहीं चाहता, तौल सकता है पर तौलना नहीं चाहता, फिजा में प्यार घोल सकता है पर घोलना नहीं चाहता, अच्छे कार्यों के लिए डोल सकता है पर डोलना नहीं चाहता, ज्यादतियों पर खून खौल सकता है पर खौलना नहीं चाहता, जन्म से लेकर मृत्यु तक उलझाते पाखंडी जालों को काट सकता है, पर काटना नहीं चाहता, मोहब्बत के कुछ पल बांट सकता है पर बांटना नहीं चाहता, अच्छे-बुरों को छांट सकता है पर छांटना नहीं चाहता, बिगड़ते पीढ़ी को सुधारने के लिए डांट सकता है पर डांटना नहीं चाहता, दिलों की दूरी को पाट सकता है पर पाटना नहीं चाहता, वो मतलबपरस्त आज का इंसान है, जो बन चुका हैवान है, कपोल कल्पित गाथाओं का उन्हें भान है, पर वो मस्तिष्क के कचरे को ढोकर चलना चाहता है जिसे मिटाने के लिए हमेशा ...
धरा
कविता

धरा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विधा.... क्षणिकाएँ माँ धरा ही सब है धारती उतारें तेरी हम माँ आरती ये ताज बने ऊँचे शिखर श्रृंखलाएँ तेरी है करधूनी रुनझुन पैंजनी हैं घाटियाँ मंद सुगन्धित मलय पवन ये कलकल करती नदियाँ रेशमी केशों की हैं लड़ियाँ ये झरने मोती की वेणियाँ घाटों में समाई हैं चोटियाँ मचलती सागर की लहरें पखारती चरणों को तेरे हरे भरे वन उपवन ये सारे धानी चूनर माँ को ओढ़ाए महकते फूलों की लताएँ ये लहँगा चोली खूब पहनाए सूरज लाल बिंदिया लगाए चंदा कर्णफूल बन जाता है सितारे माँग में जड़ जाते हैं परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाय...
मंथन
कविता

मंथन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सागर अंबर, अंबर सागर सागर में अंबर प्रतिबिंबित कहीं कुछ जाना नहीं शून्य सा रीता अंबर सागर में उत्साह अथाह।। अंबर के गहरे में मंथन मंथन को मन का संबंल संबंल पाने दौड़े तन मन। मन चंचल है पर दीवारें अथाह अंबर है शून्य हर पल गेहूं कहां खोजे पग तल। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्व...
हमारा अभिमान हिन्दी है
कविता

हमारा अभिमान हिन्दी है

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** हमारा अभिमान हिन्दी है। भारत की धरती और गगन का अभियान हिन्दी है देश की स्वतन्त्रता और सम्प्रभुता का सम्मान हिन्दी है सिद्ध, नाथ, भक्ति, रीति, छाया का बखान हिन्दी है कोटिक सरस्वती पुत्रों का तीव्र स्वाभिमान हिन्दी है हमारा अभिमान हिन्दी है। दुहिता देववाणी की जनमन कल्याणी हिन्दी है अतिप्रिय वीणापाणि की सप्तसुर संन्धानी हिन्दी है भारत के मनुपुत्रों के हृदय की गान हिन्दी है भाषा, विज्ञान, साहित्य समाज का अनुसंधान हिन्दी है हमारा अभिमान हिन्दी है। भारत की अस्मितारक्षा का इतिहास हिन्दी है बहुरीति मान्यता क्षमता का विकास हिन्दी है आर्यावर्त्त की धर्मध्वजा का आकाश हिन्दी है सहस्र वर्षों से प्रवाहित गंगा सी गतिमान हिन्दी है हमारा अभिमान हिन्दी है। चन्द्रकोश पे महकती फूलों सी बोली की माला हिन्दी ...
चंचल मन
कविता

चंचल मन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन की रीति गागर में आ गया समंदर का आ गया समन्दर का घेरा इन अलको में इन पलकों में भटक गया चंचल मन मेरा। कंपित लहरों सी अलके है द्रग के प्याले मधु भरे तिरछी चितवन ने देखो कर दिए दिल के कतरे कतरे। द्वार खुल गए मन के मेरे मनभावन ने खोल दिए बैठ किनारे द्वारे चौखट दृग पथ में है बिछा दिए्। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से...
तकल्लुफ का कोई एहसास तो दिखलाइए
ग़ज़ल

तकल्लुफ का कोई एहसास तो दिखलाइए

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अब तकल्लुफ का कोई एहसास तो दिखलाइए जो सुकूं दे दिल को वो अल्फ़ाज़ तो दिखलाइए बेटियों के पैर में बेड़ी है इन को खोल दो इन परिंदों को ज़रा आकाश तो दिखलाइए कट गई शब ख्वाब में ऊंची उड़ानें साथ थी अब सहर की खुशनुमा परवाज़ तो दिखलाइए मैंने तो दिल को मेरे अब कैद करके रख लिया आप अपना थोड़ा सा अंदाज़ तो दिखलाइए हम चलेंगे साथ जब तक है इशारा आपका क्या क़दम है आपका आगाज़ तो दिखलाइए तितलियों को इस तरह पकड़ो ना नाज़ुक हैं बड़ी साथ में इनके यही इकरार तो दिखलाइए देश की खातिर जो सीना तान करके हैं खड़े आपको है इन पे कितना नाज़ तो दिखलाइए परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रका...
अब ना मुझे बुलाना प्रियतम
कविता

अब ना मुझे बुलाना प्रियतम

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** अब ना मुझे बुलाना प्रियतम, अब न कभी हम फिर आएंगे जाते हैं अब जग से तेरे, अल्प है जीवन, जी जाएंगे अब न हमारा हॅसना होगा अब न हमारे अश्रु मिलेंगे अब ना कोई पीड़ा होगी अब ना कोई गीत बनेंगे तेरे सम्मुख प्रणय निवेदन अब न कभी हम दुहराएंगे जाते हैं अब जग से तेरे अल्प है जीवन, जी जाएंगे जब-तब अम्बर में उतरातीं गिरतीं आकर सीने में झिलमिल 'यादें' पसरा करतीं मन-ऑखों और प्राणों में अब ना बदली छाने देंगे अब ना बूॅद-बिखर पाएंगे जाते हैं अब जग से तेरे अल्प है जीवन, जी जाएंगे चर्चाऍ भी दूर रहेंगी पास न होगी परछाईं अब सॉसों की ऑहों से ना होंगी तेरी रुसवाई सिसकी-हिचकी की आहट से दूर कहीं हम हो जाएंगे जाते अब हैं जग से तेरे अल्प है जीवन, जी जाएंगे तेरे मन में बात बसी जो उसको मैं कैसे ना जानूॅ दो तन पर ए...
द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद
छंद

द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद (समवृत्तिक (दो-दो चरण-समतुकान्त)- नगण+भगण-भगण+रगण-१२ वर्ण) (ॐ स शनये नम : !) शनि सुनो विनती हर लो दुखा। कर कृपा हिय में भर दो सुखा।। तनु श्याम कुदृष्टि भयंकरा। नसत बुद्धि, विवेक सभी हरा।। मति हरी जिसकी उ नहीं बचा। तनय अर्क उसे त रहे नचा।। फलत कर्म यमी अनुसार ही। मिलत दण्ड भरे कुविचार ही।। शनि प्रसन्न, रहे न महादशा। कठिन राह सभी रहते गशा।। अभय देकर दान बता रहे। कलुष कल्मष खेह सभी बहे।। चढ़त तेल करू जल बीच है। शनि दिना जब पिप्पल सिंच है।। कटत दु:ख अपार न संशया। शनि प्रभो जबहीं करते दया।। सुखद जीवन मंद नहीं पड़े। भज चलो शनि देव रहें खड़े।। सकल सूरत में भल कुरूप हैं। सफल न्यायिक-दाण्डिक रूप हैं।। परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" निवासी...
बेटा शहर जात हे …
आंचलिक बोली, कविता

बेटा शहर जात हे …

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) बेटा ल शहर के पिज्जा-बर्गर बड़ लुभात हे। दाई हाथ के चटनी बासी अब नई मिठात हे।। अपन गाँव-घर ल छोड़, बेटा शहर जात हे... धनहा खार के नागर तुतारी अब नई सुहात हे। बेटा घुमय शहर, ददा भिन्सारे ले खेत जात हे।। अपन गाँव-घर ल छोड़, बेटा शहर जात हे... नागर के मुठिया पकड़त म अब लजात हे। हाथ म मोबाइल आँखी म तश्मा सजात हे।। अपन गाँव-घर ल छोड़, बेटा शहर जात हे... जहुरिया मन संग पार्टी म मजा खूब आत हे। दाई ददा बोरे बासी, बेटा मुर्गा-भात खात हे।। अपन गाँव-घर ल छोड़, बेटा शहर जात हे... जांगर धर लिस ददा के, बइठे बइठे चिल्लात हे। कान होके भैरा होगे, बेटा ल नई सुनात हे।। अपन गाँव-घर ल छोड़, बेटा शहर जात हे... सुरु होगय मुंह जबानी, धर के बात नई बतात हे। बड़े से बात कइसे करना हे, संस्कार ल भुलात हे। अपन गाँव-घर ल...
राज बताते नहीं
कविता

राज बताते नहीं

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** प्रेम पत्र सभी को दिखाते नहीं हाथों से लिखी भावनाएं मिटाते नहीं। भेजा था चित्र सभी को दिखाते नहीं खोलते चूमा जिसे बटुए से हटाते नहीं। मन की बेचैनी को यूं जताते नहीं ओ राज था राज को बताते नहीं। महीने गुजारे इंतजार में सबको दिखाते नहीं रात भर बातें की थी तन्हाई को दिखाते नहीं। पेड़, झरने, पानी, बर्फ छोड़ कागज निहारते नहीं वादियों के बीच में महबूबा-महबूबा चिल्लाते नहीं । ९० दिन में हर एक दिन यूं काटते नहीं बचे बस दिन कुछ,यह आश लगाते नहीं। छुट्टी की खुशी में भागे-भागे यू आते नहीं बचा हर पल को यूं खुद को परेशान करते नहीं। आ कर जाने की तिथि बताते नहीं खुशी में यूं जाना है रोज बताते नहीं। जाते वक्त मुरझाया चेहरा दिखाते नहीं पी आंसू नकली हंसी इन्द्रा हंसते नहीं। हर बार छोड़ सीमा को यूं जाते नहीं ज...
विषधर-सा मौसम
कविता

विषधर-सा मौसम

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** फन काढ़े विषधर-सा मौसम, सीने पर डोले। कृषकों की रोटी पर बरसे, बेमौसम ओले।। प्यासा सावन मरा माँगते, चुल्लू भर पानी। नाच रही फागुन के आँगन, अब बरखारानी। खलिहानों के दुखिया उर पर, काले बदरा ने, तूफानों की गारत लाकर, कर ली मनमानी।। बिना सूचना के दागे हैं, दुखड़ों के गोले। कृषकों की रोटी पर बरसे, बेमौसम ओले।।१ पटवारी के अक्खड़पन में, खेती रोज मरी। घर पटेल के बैठ खाट पर, गिरदावरी भरी। मुआवजे पर निर्मम कैंची, टेढ़ी चाल चले, होरी के अँगुली की गिनती, होती कहाँ खरी।। हर हिसाब पर हुक्मरान का, गब्बरपन बोले। कृषकों की रोटी पर बरसे, बेमौसम ओले।।२ बीज खाद की चढ़ी उधारी, लागत माटी में। बहा मुफ्त में खून पसीना, इस परिपाटी में। चना-चबेना रूखी-सूखी, रोटी से लड़कर, हार गया है कृषक खेत की, हल्दी घाटी में।। जीत गई बेर...
आओ पुस्तक पढ़ें … जिंदगी गढ़ें …
कविता

आओ पुस्तक पढ़ें … जिंदगी गढ़ें …

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** पुस्तक पढ़ना जिंदगी गढ़ना हमें महकना सिखाती हैं.. आगे ही बढ़ना संघर्ष करना हमें सॅंवरना सिखाती है .. नई किरणें लेकर बिखरना नई उम्मीदें जगाती हैं.. नई आशाएं लेकर निखरना परिभाषाएं बतलाती हैं.. चिंता न कर चिंतन करना चेतना चित में जगाती हैं.. चिरसम्मत सद्कर्म गढ़ना चिरायु स्मृति ये दर्शाती हैं.. जीवन उपवन सा महकना चेहरों पे मुस्कान लाती हैं.. वनों जैसे आच्छादित होना पर्यावरण संदेश बताती हैं.. कलकल कर नदियां बहना अनवरत ये गीत गाती हैं.. कलरव कर पंछी चहकना संगीत लयबद्ध भाती हैं.. हिसाब करना किताबें पढ़ना जाॅब का चयन कराती हैं.. पढ़ लिखकर गुणवान बनना आदर्श पथ पर चलाती है.. परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़ कार्...
क्यों उजड़ा प्यारा कुंज
गीत

क्यों उजड़ा प्यारा कुंज

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** क्यों उजड़ा प्यारा कुंज यह, रोती बैठी हीर अब। नैनों के निर्झर छलकते, कैसे रखते धीर अब।। चुभती गुंजारें भ्रमर की, बौरानी यह प्रीत भी। बागों की बुलबुल विकल अब, रूठे पावस गीत भी।। मायावी चलते चाल हैं, विश्वासों को चीर अब। मंजरियाँ सब मुरझा गयीं, काँपे कोमल गात भी। गिरगिट सा रंग बदल रही चादर ताने रात भी।। रूप बदल छलता चाँद यह, आँखों देखो नीर अब। ढाई आखर इस प्रेम से, चोटिल हर पल साँस है। करता क्रंदन मन मोर ये, टूटी जीवन आस है।। पगली हुई बंजारन भी, बिलखे अंतस पीर अब। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : से...
सैलाब
कविता

सैलाब

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सैलाब, विचारों का हो चाहे मनोभावों का हो बवंडर सा घिर जाता है दिलोदिमाग पे यकायक विचारों के भ्रमजाल का एक बोझ लद जाता है समेट लें कागज़ पर तो नवसृजन बन जाता है जब बाड़ में जलस्तर नदी का निजी स्वरूप किनारों का अस्त्तित्व आगोश में भर लेता है इसे संग्रहित करें हम तालों जलाशयों में तो खेत वनों व उपवनों में पर्ण प्रसून खिला देता जब समन्दर में जल का सैलाब तटों को तोड़कर तूफ़ानी लहरें उठा देता एक जलजला आ जाता इसीको प्रलय कहते होंगे क्यों न हम जंगल बढ़ाएँ रोककर जल तांडव को स्वर्ग सी धरा को बचालें परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
चुनरी
कविता

चुनरी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नारी के श्रंगार में, चुनरी है अति ख़ूब। लज्जा है, सम्मान है, आकर्षण की दूब।। चुनरी में तो है सदा, शील और निज आन। चुनरी में तो हैं बसे, अनजाने अरमान।। चुनरी को मानो सदा, मर्यादा का रूप। जिससे मिलती सभ्यता, नित ही नेहिल धूप।। चुनरी तो वरदान है, चुनरी है अभिमान। चुनरी में तो शान है, चुनरी में सम्मान।। चुनरी तो नारीत्व का, करती है जयगान। चुनरी तो मृदुराग है, चुनरी है प्रतिमान।। चुनरी तो तलवार है, चुनरी तो है तीर। चुनरी ने जन्मे कई, शौर्यपुरुष, अतिवीर।। चुनरी में तो माँ रहे, बहना-पत्नी रूप। चुनरी में देवत्व है, सूरज की है धूप।। चुनरी दुर्बल है नहीं, नहिं चुनरी बलहीन। चुनरी कमतर नहिं कभी, और नहीं है दीन।। चुनरी में वह तेज है, कौन सकेगा माप। चुनरी शीतल है बहुत, चुनरी में है ताप।। चुनरी है म...
सागर की लहरों ने
कविता

सागर की लहरों ने

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** सागर की लहरों ने माँगा जब मेघों से पानी बरस पड़े वो जल बनकर, लहरें होगईं धानी-धानी रत्नाकर की लहरों ने माँगा जव साहिल से जीवन खड़ा रहा अविचल होकर बन लहरों का साजन उदधि की लहरों ने माँगा जब धरती से श्रृंगार खड़े कर दिए वृक्ष, पुष्प, बालू के अनुपम उपहार जलधि की लहरों ने माँगा जब सागर से आहार मीन, मत्स्य, मूँगा, मोती से पूर्ण किया कुक्षागार ओ कलाकार, तू बड़ा निराला ! इक-इक राही इस प्रकृति का करें तुम्हे प्रणाम साभार परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार कर...
धुन
कविता

धुन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हम थिरक रहे हैं उनके भक्ति भरे धुनों पर, हम गर्व कर रहे हैं उनके बनाये नमूनों पर, तांडव, विरह, विवाह, मिलन सारे के सारे धुन उनके, सत्ता, ताकत, धमक है जिनके, हमारे धुन है बेबसी के, मदहोशी के, खामोशी के, लाचारी के, दुत्कारी के, चित्कारी के, मनुहारी के, बदहाली के, कंगाली के, सामाजिक दलाली के, पता नहीं कब रच पाएंगे धुन, समता के, ममता के, टूटती विषमता के, न्याय के, इंसाफ के, अत्याचारियों के पश्चाताप के, सम्मान के, संविधान के, ज्ञान के, विज्ञान के, देश के विधान के, एक-एक अनुच्छेद के संज्ञान के, तैयार करने ही होंगे एक ऐसा धुन जिससे थिरके सारा देश, भूला के सारा द्वेष व क्लेश, जिसमें से न आए धर्म व जातिय गंध की कर्कश आवाज, हमें रचना होगा, सृजना होगा ऐसा साज। परिचय :-...
उत्तराधिकारी
कविता

उत्तराधिकारी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** स्वयं का उत्तराधिकारी चुनना क्यों जरूरी हुआ क्या वंश परंपरा ही है उत्तराधिकार की परिभाषा??? कितने प्रश्न कितने ऊबाल हैं मन के भीतर चिन्तित हो रहे विचार अपनी दिशाओं से मुक्त होकर स्वार्थ को कर्तव्य समझ कर ! किसको दूँ इस पथ को, संरक्षित कर निरंतर बढ़ने का संदेश किस सत्य से उजागर करूँ अपनों से अपने होने का अधिकार?? कर्म-धर्म, करुणा के संरक्षण से, चुनना चाहता हूँ एक ऐसा पथिक जो संघर्ष की शपथ ले जीवों के उद्धार का सृष्टि को संवारने का, उसका कर्ज चुकाने का जाने कैसी विडंबना है, नकार नहीं सकता बोझ से भरे रिश्तों को क्यों ढ़ो रहे हैं इन्सानियत को जिंदा लाशों की तरह आजकल हवाओं में कुछ जहर सा फैला हुआ है रक्त में समा जाने का डर है इसे, कैसे दूर करूँ इसका ये कसैलापन इस जीवन से क्या परिण...
पहला प्यार
कविता

पहला प्यार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** उम्र आँखों की खोया प्यार ढूंढने में बीत जाती खोजता मन मजनू बन प्रकृति की बहारों में मुलाकाते होती थी गवाह बने वृक्ष तले डालियों पकड़े इंतजार पावों के छालों की परवाह फूलों को भी थी फूलों ने बिछाए कारपेट बहारें फिर छा गई मगरअब तुम खो गई सोचता हूँ क्या इश्क भी बूढ़ा होता ? शायद कभी नहीं पहला प्यार हमेशा जवान होता यादों के सहारें। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेख...