शीश काट लाऊँगा
अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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रोली चंदन अक्षत लेकर,
लगा भाल पर टीका।
रक्षाबंधन कर भाई का,
दिया जलाती घी का।
फिर मिष्ठान खिलाती उसको,
मंगल कलश सजाती।
जुग-जुग जिये लाडला भैया,
प्रभु से खैर मनाती।
बार-बार आरती सजाकर,
सभी बलायें लेती।
बुरी नजर न लगे भाइ को,
फिर आशीषें देती।
भाई का मुख देख बहनियाँ,
मंद मंद मुस्काती।
चुंबन लेती है कलाई का,
फिर फिर गले लगाती।
रुचिकर भोजन थाल लगाकर,
भोजन उसे कराती।
नयन नेह आँसू भर कहती,
तू पापा की थाती।
पापा हुए शहीद देश पर,
इसको ज्ञान नहीं था।
केवल आठ बरस का था यह,
कोई भान नहीं था।
माँ बचपन में छोड़ गई थी,
इसने कभी न जाना।
होश सँभाला जब से उसने,
मुझको ही माँ माना।
आज तलक में भी भैया को,
बेटा ही कहती हूँ।
भाई को बेटा कहने की,
टीस स्वयं सहती हूँ।
सारे रिश्ते खूब निभाती,
इस पर न...