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पद्य

खुशबू
ग़ज़ल

खुशबू

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** पलकों पर ठहरी है रात की खुशबू अनकही अधूरी हर बात की खुशबू साँसों की थिरकन पर चूड़ी का तरन्नुम माटी के जिस्म में बरसात की खुशबू पतझड़ पलट गया दहलीज तक आकर जीत गई अंकुरित ज़ज्बात की खुशबू अहसास-ऐ-मुहब्बत तड़प तड़प के मर गया जिंदा रही पहली मुलाकात की खुशबू पलकें झुका के कैफियत कबूल की मगर ज़वाबों से आती रही सवालात की खुशबू जुल्फों की कैद में कुछ अरसा ही रहे उम्र भर आती रही हवालात की खुशबू कली रो पड़ी हूर के गजरे में संवर कर भूल ना पाया पड़ोसी पात की खुशबू I परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
दोहाष्टक
दोहा

दोहाष्टक

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** यौवन रस बरसा मगर, हुई न प्रीति प्रगाढ़।। मृदु चुंबन की आस में, दुर्बल हुआ असाढ़।।१ चितवन ने होकर मुखर, बिछा दिया है जाल। चुग्गा चुगने को प्रणय, खग सा भरे उछाल।।२ मदिर नैन झुकते गये, रक्तिम हुए कपोल। चुंबन का प्रतिसाद पा, थिरक उठे रमझोल।।३ हृदय पृष्ठ पर प्रीति के, उग आये जलजात। नैनो से झरने लगे, प्रियता युक्त प्रपात।।४ ले स्वरूप संकल्पना, जोड़ - जोड़ संदर्भ। शब्द-बीज का प्रस्फुटन, हो जब कवि के गर्भ।।५ धरा मेघ मिल रच रहे, प्रियता के अनुबंध। रोम-रोम से आ रही, मदिर पावसी गंध।।६ जला दिये तारीफ कर, हीरामन ने दीप। रत्नसेन मन जा बसा, प्रिय के सिंहल द्वीप।।७ सम्बन्धों के दुर्ग की, कवच बने प्राचीर। मोती रखे सहेज कर, पड़ी सीप ज्यों नीर।।८ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र...
किताब मैं तस्वीर
कविता

किताब मैं तस्वीर

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** किताबों मैं तेरी तस्वीर छुपा दी थी कभी तस्वीर नहीं दिखती खोजता हूँ तुझे अब किताबों में। हाथों की लकीरों में तेरा नाम देखूं अब यादों में कहीं उनका जिक्र हो । भीगी पलकों से याद करते हुए तुम्हें खोजा चाहत ही रही । तुम्हें पाने की ... किताबों में छुपी तस्वीरें अब सपने में ही देखता अब तो अनजान रिश्तों के लिए बेचैन हूं। ढूंढता हूँ तस्वीर को जो किताबों में छुपा दी। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
काश पंख होते मेरे…
कविता

काश पंख होते मेरे…

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** काश पंख होते मेरे, उड़ जाता, काश पंख होते मेरे, उड़ जाता। मनचाही जगह पर मैं, चला जाता, काश पंख होते मेरे, उड़ जाता। काश पंख होते मेरे, उड़ जाता।। कोई अपना दूर सही, याद सताती है, जिस पल में याद करूं, याद आती है। दिल जितना याद करे, मुझको रुलाती है, मेरा दिल धड़के यूं, मिल जाता। मनचाही जगह पर मैं, चला जाता, काश पंख होते मेरे, उड़ जाता। काश पंख होते मेरे, उड़ जाता।। दिन याद करूं दूनी, रात चौगुनी आती है, आकर मेरे सपनों में, समां जाती है। एहसान किया ऐसा, सपनों में आकर सही, मेरा सपना चाहे यूं, मिल जाता। मनचाही जगह पर मैं, चला जाता, काश पंख होते मेरे, उड़ जाता। काश पंख होते मेरे, उड़ जाता।। हर पल मैं याद करूं, एहसास मुझे ऐसा, जुदाई भी क्या ऐसी, मुझे तड़पाती है। देखो छलके आंसू मेरे, क...
तीन वर्ष के नीम तुम
कविता

तीन वर्ष के नीम तुम

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** तीन वर्ष के नीम तुम, तुमको मैं कैसे मिटने दूँ ? "वैद्य" मानव के नीम तुम, तुमको मैं कैसे मिटने दूँ ? तीन वर्ष के...... लगाये थे अभी उन्नीस में तुम , बाइस में कैसे मिटने दूँ ? अस्सी-नब्बे आयु प्रमाणी तुम, तीन में ही कैसे मिटने दूँ ? तीन वर्ष के....... प्रकृति की अद्भुत शोभा तुम , अस्तित्व कैसे मिटने दूँ ? एक अनिल ने गिराया तो, उठवा तुम्हें मैं "अनिल" से दूँ ||तीन वर्ष के........ मानव प्रकृति की औषधि तुम , तुमको मैं कैसे मिटने दूँ ? मेरी तो आत्मा हो तुम , तुमको मैं कैसे मिटने दूँ ? तीन वर्ष के....... तीन वर्ष के नीम तुम , तुमको मैं कैसे मिटने दूँ ? वैद्य मानव के नीम तुम , तुमको मैं कैसे मिटने दूँ ? तुमको मैं कैसे मिटने दूँ ? तुमको मैं कैसे ............... परिचय :- सुरेश चन्द्र जोशी शिक्षा : आचार्य, बीएड टीजी...
आप गुजरे जिस गली से
कविता

आप गुजरे जिस गली से

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** डा र डा डा डा र डा डा डा र डा डा डा र डा २१२२ २१२२ २१२२ २१२ आप गुजरे जिस गली से महफ़िलें गुलज़ार हैं चाँदनी बिखरे ज़मीं पे खुशनुमा अहसास है ये फ़िज़ाएँ गा रही हैं बानगी तारे दिखाते हर तऱफ छाया सुकूँ है रहनुमा भगवान हैं तू कदम रख दे जहाँ पर फूल खिलकर महकते हैं तू सभी का चहेता है दिलरुबा का मान है आज मेरे आँगना में माँडने की शान छाई दीप जोया साँझ आई शुभ घड़ी की शान है परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
नेता वफादार चाहिए
कविता

नेता वफादार चाहिए

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत को नेता गद्दार नहीं वफादार चाहिए। मंदिर में पंडित का मस्जिद में मौलवी का बहकावा नहीं सच्ची पूजा चाहिए। भारत का नेता गद्दार नहीं वफादार चाहिए । चर्च में पॉप का गुरुद्वारे में ग्रंथियों का बहकावा नहीं सत्उपदेश चाहिए। भारत को नेता गद्दार नहीं वफादार चाहिए। मत पथ भ्रमित हो मेरे भारत के युवान अंतर्मन का करो जागरण- तुम ही में छिपा है राम का चरित्र ही तुम ही में छिपी है शक्ति हनुमान की तुम ही में छिपा है सतीत्व सीता का ही बस ह्रदय में लो यह संकल्प ठान- तुम्हें तो आधुनिक रावणों का वध करना चाहिए, आधुनिक रावणों का वध ही नहीं वर्तमान कंसों का अंतिम संस्कार करना चाहिए। भारत को नेता गद्दार नहीं वफादार चाहिए। भारत को भगतसिंह सा देशभक्त, लक्ष्मीबाई सी वीरांगना, टैगोर सा विश्वकवि सुभाष बोस सा नेता चा...
वादा करो मेरे नए कान्हा बनोगे
कविता

वादा करो मेरे नए कान्हा बनोगे

सिमरन कुमारी मुजफ्फरपुर (बिहार) ******************** वादा करो मेरे नए कान्हा बनोगे ........... विरह की नीर से महान नहीं बनना!! छोटी सी जिंदगी हैं उसे तेरे संग .......... हमें हरपल रंगना हैं प्रेम भरे रंग!! कुंज गली में रोये राधा बेसुध बन........ श्याम व्याकुल पाकर भी बेचैन!! अकेले छोड़ चले गए करके विरान........ इंतजार करते निकल गए प्राण!! वादा करो मेरे नए कान्हा बनोगे!! इंतजार में नहीं जीना हैं प्यार में........ ना मैं हूँ महान ना ही भगवान!! इस जन्म करना एक-दूसरे के नाम ......... पूरे प्रेम देकर भी नहीं मिला नाम तुम बनोगे मेरे नए मेरे घनश्याम !! प्रेमिका की तरह विरह में नहीं........ नए कान्हा के रूप में संग चलना !! मुझे कान्हा से प्रेम हैं अटूट........ पर राधा का तड़प से दिल जाता टूट!! हर रंग हर भाव में तुम रहना श्याम......... बस नहीं छोड़ना कभी भी अपन...
मोबाइल अवसाद
कविता

मोबाइल अवसाद

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मोबाइल जीवन बना, आया बहुत करीब। निज सामाजिक खुशी का, सबका छिना नसीब।। डेसमंड टुटू का कथन, मिशन करे बदलाव। जमीन बाइबल बदले, लाया था ठहराव।। प्रार्थना के नाम पर, करना पड़ा विश्वास। आदत चाय ब्रिटिश की, लक्षण थे कुछ खास।। सोशल मीडिया भी यही, लाए हमें सौगात। मुट्ठी में संसार हुआ, खोए दूर जज्बात।। महत्ता मीडिया दिवस की, हो चुकी शुरुआत। सभी कुछ मोबाइल है, सब पिता बच्चे मात।। जिम्मा समाज कुटुंब का, बहुत हुआ है लोप। चुभन कसक संबंध की, बात बात पर कोप।। उच्च मध्यम गरीब वर्ग, प्रबल हुआ जुड़ाव। रिश्ता है मोबाइल पर, मिलते बहुत सुझाव।। निज दुनिया व्यस्त सभी, दोस्त बने हजार। दो और दो भूल गए, दो दूनी हैं चार। फोटोजीवी बन चुके, दिवस रैन प्रमाण। दिल मोबाइल साथ ही, दोनों बसते प्राण।। प्रगतिपथ का मंत्र है, मत पाओ अवसाद। ...
दिल्ली की औरतें
कविता

दिल्ली की औरतें

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** ये दिल्ली की औरतें कुछ मीठी और नमक सैंडिल ऊंची पहनती लगती है जैसे क्वीन। ये दिल्ली की औरतें कुछ मीठी कुछ नमकीन। पार्लर अक्सर जाती कारें रफ्तार से दौड़ाती तेज तर्राट और गर्म मिजाज़ तबीयत है इनकी रंगीन ये दिल्ली की औरतें कुछ मीठी और नमकीन। नौकरी बड़ी ऊंची करती पैसे खूब कमाती, भारत की नारियों में अग्रगणी ये किसी से कम नहीं। ये दिल्ली की औरतें कुछ मीठी कुछ नमकीन। शापिंग करने में सबसे आगे पैसे बचाने में गंभीर वाकपटुता में सबसे आगे वैभवी और महाजबीन, ये दिल्ली की औरतें कुछ मीठी कुछ नमकीन। दिल्ली की ठंडी-गर्मी सहती पर अपनी त्वचा को बकायदा संवारती, स्कूल टीचर से लेकर बिजनेस टायकून तक सब पर अपनी धाक जमाती। ये दिल्ली की औरतें कुछ मीठी कुछ नमकीन। जूते की नोक पर सभी मर्दों को रखती कोई अगर उनसे...
बेटियों के दर्द
कविता

बेटियों के दर्द

संध्या शुक्ला अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए महसूस करिए बेटियों के दर्द को, देखिए मतलब की गंगा में नहाते हुए मर्द को। वो औरत जिसने जन्म देकर है तुम्हे पाला यहां, जिसके दूध से जली जीवन की ज्वाला यहां। बहन जिसके धागे की अमानत है कलाई पर, हर बहन का कर्ज वो जो है चढ़ा हर भाई पर। वो बाप जिसकी इज्जत की हर कल्पना बेटी से है, घर की दीवारें सुने हर गर्जना बेटी से है। वो बाप जिसका पुत्र एक और बेटियां दो-तीन हैं, वो प्रेम के सागर तले बेटे में ही क्यों लीन है। इज्जत बचाना काम सबने सौंप बेटी को दिया, बेटा चाहे आबरू छीने बने या माफिया। आबरू को लूट कर भी बेटा कुल का अंश क्यों, बेटी जो बस प्रेम कर ले तो उठेगी उंगलियां। हर धर्म में बेबसी और यातना से ऊब कर, मर गई हैं जानें कितनी बेटियां यूं टूटकर। परिचय :-  संध्या शुक्ला शिक्षा : परास्नातक नि...
लेखनी मुझसे रूठ जाती है
कविता

लेखनी मुझसे रूठ जाती है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जब भी मैं लिखने बैठता कविता, लेखनी मुझसे रूठ जाती है, वह कहती मेरा पीछा छोड़ दो, मुझसे अपना नाता तोड़ दो, क्या तुम मुझे सौंदर्य में ढाल सकोगे, इस घुटन भरे माहौल से निकाल सकोगे, क्या तुम कुछ अलग लिख सकोगे, या तुम भी दुनिया की बुराइयों को, अपनी रचना में दोहराओगें? दहेज, भूख, बेकारी के शब्द में अब ना मुझको जकड़ना, हिंसा दंगों या अलगाव के चक्कर में ना पड़ना, नेताओं को बेनकाब करने में मेरा सहारा अब ना लेना, बुराइयां ना गिनाना अब बीड़ी सिगरेट या शराब की, उकता गई हूं अब मैं, बलात्कार हत्या या हो अपहरण, इन्हीं शब्दों ने किया है जैसे मेरे अस्तित्व का हरण। लेखनी बोलती रही, मुझे मालूम है तुम इंसानियत की दुहाई दोगे, इसलिए मैं पास होकर भी हूं पराई। अगर लिखना हो तो लिखो, प्रकृति की गोद में बैठ कर, ...
पति को भी इंसान मानो
कविता

पति को भी इंसान मानो

गरिमा खंडेलवाल उदयपुर (राजस्थान) ******************** उसके कंधे है इतने मजबूत वह सारी दुनिया को उठा लेगा तुम एक सुख दे कर देखो वो खुशियों की झड़ी लगा देगा। पति नहीं कोई जादूगर या कोई भगवान उसकी भी भावनाएं होती है वह भी हाड मास का इंसान प्रेम की चाहत बस उसकी करो तुम पति का सम्मान। भूख पसीना सब सहकर मेहनत कर जब वह घर लौटे मुस्कान भरे चेहरे से उसके तप का तुम करो सम्मान। अपने पति की ताकत बन कर परिवार बगिया सा महकाना होता है पति भी इंसान उसके दुख का कारण कभी मत बनना। शादी संस्कार दो लोगों का यह कोई व्यापार नहीं नफा नुकसान फायदे का साझेदारी का बाजार नहीं। तुम औरत हो शक्ति हो शिव संग सृष्टि रच डालो संग चलो संगिनी बन कर इसमें छोटे बड़े की बात नहीं। वो दुख तकलीफ नही बतलाता होसलो को पर्वत कर लेता परिवार पर कभी आंच ना आए हिम्मत पत्नी को बतलाता। प्रेम ...
तब ही भारत बन पाता है
कविता

तब ही भारत बन पाता है

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नव उदय नव युवानों का नव कर्म प्रवीण महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है दिग् दिगंत दिवाकर बनकर दौड़ रहे दिक्पाल ये तनकर नव संप्रेरक इन महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है प्रचंड ज्वाल आँखों में पुरुषार्थ प्रबल हाथों में पाषाण लौह मिश्रित पुष्ट रक्त महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है तिलक लगाकर तत्पर बनकर तुणीर थामे तेजस रणवर तापस संघ महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है अरि के संमुख अडिग अचल अस्त्र-शस्त्र प्रहार प्रबल आयुध-वीर महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है नहीं भ्रमित नहीं व्यथित उपहासों से नहीं श्रमित निःशंक तल्लीन महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता ...
मेरे महाकाल
कविता

मेरे महाकाल

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं न जानू काल को, मैं जानू बस महाकाल। रिद्धि-सिद्धि मुझे न भाए प्रेम, स्नेह और भक्ति मुझे में वो सदा जगाये। हंसते खेलते मुझे अपने गले लगाएं। जान शिशु अपना मुझे रिझाए। अलख निरंजन बन मुझे नाद सुनाएं। चार वेदों का भी मुझे ज्ञान करवाएं। योग विद्या मुझे सिखाएं, महाविद्याओं का भी अभ्यास करवाएं। पूर्ण परब्रह्म मुझको ज्ञान करावे, तभी जग में महाकाल जगतगुरु कहलवाये। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाच...
सच्चाई हरदम लिखती है
कविता

सच्चाई हरदम लिखती है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** परम सुपावन सदा लेखनी, सबकी किस्मत लिखती। बरसों पहले भी जैसी थी, आज पूर्व सी दिखती। सच्चाई हरदम लिखती है, सदा झूठ से दूरी। कलम सदा करती है सबके, मन की इच्छा पूरी। गीत गम भरे जब भी लिखती, रोना आ जाता है। प्यार भरे गीतों को पढ़कर, कौना हर्षाता है। दुखियारों का दुख लिखती है, लिखती सबकी खुशियाँ। विरहन का दुख भी लिखती है, लिख पाती मन बतियाँ। भेदभाव ना किया कलम ने, लिखा सदा ही पावन। रास लिखा मोहन राधा का, सुंदर सुखद सुहावन। हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, तूने कभी ना माना। रामायण, बाइबल, कुरान को, सदा एक सा जाना। क्या अमीर औ क्या गरीब हैं, सबको मान दिलाती। तू सबके सौभाग्य जगा कर, माँ सम दूध पिलाती। अगर कलम तू बिक जाएगी, हाहाकार मचेगी। डोल गया ईमान कलम का, दुनिया नहीं बचेगी। पत्रकार, लेखक,...
जाने भी दो यार
कविता

जाने भी दो यार

सरिता चौरसिया जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** जाने भी दो यार.. छोड़ो ना यार, अब जाने भी दो कहां तक लेकर चलोगे गिले, शिकवे एक-दूसरे के बिना तो जी भी ना सकोगे, कभी खेले थे एक संग, पकड़ कर जिसकी उंगली सीखा था एक-एक पग रखना करता था जो तुम्हारी फिक्र कभी खुद से भी ज्यादा, जीता था जो तुम्हारे लिए कभी खुद से भी ज्यादा तुम्हारे सपने थे जिसके लिए उसकी नींद भी थी तुम्हारे लिए, एक सवाल पूछना खुद से किसी दिन, गर फुर्सत मिले दुनियादारी से तो, खुद को तलाश करने की जेहमत करना, एक बार ज़रूर कि नाराजगी तो ठीक है शिकायतें भी ठीक हैं पर क्या मुहब्बत से शिकायत का ओहदा ज्यादा बड़ा है ? आज हैं कल रहें ना रहें फिर किससे करोगे शिकायतें किससे रूठोगे? अब तो मान भी जाओ ना रूठो इस तरह क्या पता फिर मिले न मिले।। परिचय :- सरिता चौरसिया पिता : श्री पारसनाथ चौरसिया शिक्षा : एम...
सुहानें मौसम
कविता

सुहानें मौसम

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** मौसम हो गई हैं अब सुहानें, पंछी गीत गा रही हैं नए तराने। प्रकृति भी ओढ़ ली हैं चादर हरियाली, पर्वत पठार बन गए हैं अब दिवानें।। मंद हवा की सुमधुर झरोखों से, तन-मन को प्रफ्फुलित कर दिया। और बारिश की रिमझिम फुहारों से, धरती भी बन गई अब तो मस्ताने।। नदी-नालों की कलरव संग फूलों पर, मंडराती तितली झर-झर बहती झरना। देख नज़ारा मन हमारा बस, कहता हैं? मौसम हो गई अब सुहानें।। परिचय :- डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी ...
हमारी संस्कृति हमारी विरासत
कविता

हमारी संस्कृति हमारी विरासत

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** धरा से अम्बर तलक विस्तृत है, हमारी "भारतीय संस्कृति", देती है जो हर जड़ चेतना को, सारगर्भित जीवन की स्वीकृति।। है संगम यहाँ विविधता का, पर लेष मात्र भी नहीं है कोई विकृति, संविधान ने दिए हैं कई अधिकार, जन जन में एकता ही एक मात्र संतुष्टि।। यहाँ बच्चा बच्चा राम है, और हर एक नारी में माँ सीता है, यहाँ हर प्राणी को मिलती माँ के आँचल में प्रेम की गीता है।। बहती नदियों की धारा में आस्था और विश्वास के दीपक जलते हैं, कि मल मल धोये कितना ही तन को, मगर श्रेष्ठ कर्मों से ही पाप धुलते हैं।। इतिहास बड़ा पुराना है शिलालेखों में कई राज़ हमराज से मिलते हैं, मार्ग मिले चार ईश वंदन के, मगर एक ही मंजिल पर जाकर रुकते हैं।। रक्त-रक्त में मिलता एक दिन, यहाँ ना कोई जात धर्म का ज्ञाता है, "रहीमन धागा प्रेम का है", दिलों से रिश्...
गणित सूत्र को गाइये
दोहा

गणित सूत्र को गाइये

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* लंबाई चौड़ाई गुणा, क्षेत्रफल का मान। चाल समय का गुणा करें, दूरी का हो ज्ञान।।१ लंबाइ चौड़ाई अरु, ऊंचाई गुण आन। आयतना को पाइए, कहत हैं कवि मसान।।२ त्रिज्या पाई दो गुनी, वृत्त की परिधि जान। त्रिज्या दुगुनी व्यास है, कहत हैं कवि मसान।।३ आंकड़ों का योग करें, कुल संख्या का भाग। फिर औसत को पाइये, मिले गणित का राग।।४ दर समय अरू मूल का, गुणा करें सम्मान। सौ से भाग दीजिये, सरल ब्याज को आन।।५ गायन वाचिक परम्परा, भारत की पहिचान। गणित ज्ञान को गाइये, कहत हैं कवि मसान।।६ संकेत १. क्षेत्रफल=लंबाई×चौड़ाई २. दूरी=चाल×समय ३. आयतन=लंबाई×चौड़ाई ×ऊंचाई ४. वृत्त की परिधि= २πr या २×त्रिज्या ५. औसत=सब संख्याओं का योगफल/संख्याओं की संख्या ६. सरल ब्याज=मूलधन×दर×समय/१०० परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आ...
जीवन मूल्य
कविता

जीवन मूल्य

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** छद्मी-कपटी नांच नचायैंं, स्व मूल्य गिराकर तू नाचता है | प्रतिफल इसका संतान लेगी, ऐसा कभी नहीं तू सोचता है || पतित मूल्य ब्यवहार का तो, परिणाम अतिभयंकर होता है | देख सृष्टि के तो संज्ञान को, फिर भी तू विचलित नहीं होता है || जिनके जीवन मूल्य नहीं, वह मानव नहीं कहलाता है | जीवन मूल्य जो त्याग दे, वह दानव ही कहलाता है || कुटुंब समाज या राष्ट्र हो , सबके तो अपने मूल्य हैं | सभी क्षेत्रों की उन्नति के लिए, उपयोग करते अपने मूल्य हैं || गिराए मूल्य परिवारों ने तो, परिवार सारे बिखर गए | जो मूल्य गिराए समाज ने , समाज विघटित हो गए || गिराकर शिक्षा मूल्य तुम, शिक्षा इस राज्य की गिरा गए | बने थे शिक्षा मूल्य जो , सारे सुमूल्य कुछ गिरा गए || कर आलोचना मूल्यवानों की, तुम अपना स्तर गिरा गए | बनाया मूल्य विहीन को मेंटौ...
आषाढ़
आंचलिक बोली

आषाढ़

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी करीया-करीया बादर ते रोज बरसात हस, आषाढ़ के महिना मा रोज चमकत-गरजावत हस.! खेत-खार ला भर देहस, टैक्टर नई चले नागर के पाग कर देहस, अब तो नागर बइला नदा गेहे, जेकर कर हाबे पइसा ला बढ़ा देहे.! लोग-लइका जुरमिल के टोक (खेत के कोना) खने बर जावत हे, बबा नागर चलावत हे ता दाई देख के मुसुर-मुसुर मुसकावत हे.! ज्यादा पानी बरसे बिजली चमके ता लोगन घर मा खुसर जावत हे, चना-मसुर खावत हे मया के गोठ गोठियावत हे, आषाढ़ के महिना रिमझिम रिमझिम पानी बरसात हे सुन्दर नजारा दिखात हे.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी क...
नदी नदियां
कविता

नदी नदियां

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** पर्वतों से निकलकर प्रवाहिनी, अविरल बहती उछलती कूदती, अपने पथ को तलाशती। पतली सी मासूम सी जलधारा में पानी बचा शेष। घुटनों भर पानी से भिंगोकर हो जाते पार। अब हम हो रहे मायूस।। लुप्त हो रहे जंगल सूख रही वाटिकांए। अपना गंतव्य तलाशती, निर्झर बहती धाराओं‌ में अब शेष रह गई रेत। बिन पानी हम हो गए मायूस। जैसे ही अषाढ़, सावन, भादों, बरसता भर जाता उसका थाल। अब नदिया इतराती, मतवाली सी बदली उसकी चाल। दोनों किनारों का अब हरियाली की चुनरी से जलमाला का होता श्रंगार। वर्षा जल से भरकर, उछले कूदे मैदानों में आकर निर्झरिणी की बहती धारा। अंत समय में शीतलता से सब साथ, तनुजा ने लाकर सब कुछ समर्पित कर दिया सागर को। सब कुछ देकर भी तरनी, तटनी, ने अर्पित करके सबका जीवन साकार किया। अब ना करो मन-माना सदा नीर का दोहन। सदा न...
आज तू कहां…!
कविता

आज तू कहां…!

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** आज तू कहां..., आज तू कहां..., आज तू कहां..., कभी साथ थे..., हंसी थे..., जवां थे..., जिन्दगी के दो पल...। आज तू कहां...।। छोटी-छोटी बातें, ओ मुलाकातें, रूठना मनाना, फिर मुस्कुराना। ख्वाबों में मेरे, यूं चले आना, याद मैं करूं..., ना... जाने... तू... है... कहां...। आज तू कहां...।। सुना-सुना अंगना, है मेरे आना, आकर मुझको, फिर गले लगाना। गले लगाकर, यूं शर्माना, याद मैं करूं..., ना... जाने... तू... है... कहां...। आज तू कहां...।। बार-बार रहते, क्यों दूर हमसे, दूर होकर, क्यूं यादों में मेरे। आ जाए शर्म तो, फिर लौट आना, याद मैं करूं..., ना... जाने... तू... है...कहां...। आज तू कहां...।। सच-सच बोलूं, अब तेरे सहारे, सारी उमर हो, बस साथ हमारे। हर पल जीना, है संग तुम्हारे, याद मैं करूं.....
पहली बूंद बारिश की
कविता

पहली बूंद बारिश की

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** बीती बेला उष्ण काल की ऋतु आ पहुँची फिर पावस की। मेघ मुदित हो नित लहराते वृष्टि का संदेशा लाते। तप्त धरा थी राह निहारे जग में जीवन वर्षा के सहारे। श्यामल बादल जल्दी आओ वसुधा की तुम क्षुधा मिटाओ। कूक उठी अब कोयल डाली हलधर बजा रहा है ताली। नदियाँ प्यासी सूखे सब सर आकर जल्दी कर दो तर। बारिश की पहली बूंद जो बरसे देखो धरती का कण-कण हरसे। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्...