खुशबू
गोपाल मोहन मिश्र
लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार)
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पलकों पर ठहरी है रात की खुशबू
अनकही अधूरी हर बात की खुशबू
साँसों की थिरकन पर चूड़ी का तरन्नुम
माटी के जिस्म में बरसात की खुशबू
पतझड़ पलट गया दहलीज तक आकर
जीत गई अंकुरित ज़ज्बात की खुशबू
अहसास-ऐ-मुहब्बत तड़प तड़प के मर गया
जिंदा रही पहली मुलाकात की खुशबू
पलकें झुका के कैफियत कबूल की मगर
ज़वाबों से आती रही सवालात की खुशबू
जुल्फों की कैद में कुछ अरसा ही रहे
उम्र भर आती रही हवालात की खुशबू
कली रो पड़ी हूर के गजरे में संवर कर
भूल ना पाया पड़ोसी पात की खुशबू I
परिचय :- गोपाल मोहन मिश्र
निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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