जंगल का जादू लौटाना
भारमल गर्ग "विलक्षण"
जालोर (राजस्थान)
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नीले पहाड़ों के जंगल में,
छाई थी उदासी गहरी।
पत्ते झर रहे, फूल मुरझाए,
चुप थे सब पशु-पंछी सारे।
सोनिया बेटी जिज्ञासु बहुत,
दादी के संदूक में पाया रत्न।
"नीले पहाड़ों का रहस्य" किताब,
हरे मोती का मिला महत्व।
"जंगल का दर्द मिटाना है,
हरा मोती लाना है!"
बैग लिया, टॉर्च लिया साथ,
चली सोनिया जंगल की पथ।
खामोशी भारी, डरावनी राह,
तभी आया चंचल खरगोश सामने।
"हूँ मैं चंचल, बोलता था पहले,
पर अब खो गया सब जंगल वाले।"
किताब दिखाई, बताई बात,
"हाँ!" बोला चंचल, "वो जीवन की धार!"
गीतों की घाटी, गीत नहीं आते,
उदास उल्लू ग्यानी बैठे पेड़ पाते।
"सावधान रहना, प्यारी बच्ची,
काँटों का मैदान आता है आगे।"
दिया नीला जादुई पंख साथी,
काँटे हटे, बना रास्ता साथी।
नीलीमा चिड़िया गाना भूली,
"शोर-गंदगी ने गीत चुरा लिया!"
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