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दादी-नानी

डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
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दादी-नानी की बरगद सी छांव में।
बच्चे सीखते ज्ञान बैठकर पांव में।

प्रज्वलित दीप की स्वर्णिम चमक,
आलोकित बिखर रही आंगन में।
द्वय शेर शावक से सुकुमार बाल,
यूं एकाग्रचित्त ध्यान मग्न कथा में।

कब कैसे तोड़े है विकट चक्रव्यूह,
और क्या करें उग्र ज्वालामुखी में।
जगत में उलझन भरी पगडंडियों,
पर चले दुर्गम पथों के छलाव में।

संस्कृति, संस्कार, सीख, सभ्यता,
समझ लो फर्क शहर और गांव में।
धर्म अर्थ काम मोक्ष की परिभाषा,
सारे गुण कर्तव्यनिष्ठ पुरूषार्थ में।

सुनते सार गर्भित कथा कहानियां,
सहायक सुदृढ़ चरित्र निर्माण में।
मन वचन कर्म से नर अवधूत बने,
धर्म समाहित मां के सच्चे ज्ञान में।

परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार)
निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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