क्यों रातें जल्दी ढलती है
छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
आनंद विहार (दिल्ली)
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सारे दिन अवसाद को ढोया
जीवन के अनगिन झमेले
रातें ही तो बस अपनी है
जहाँ पूरी शांति मिलती है
क्यों रातें जल्दी ढलती है
एक आस लिए इंतजार करूँ
शशि सम पिय का दीदार करूँ
मिलन के क्षण जब आते हैं
साँसें बिन बात मचलती है
क्यों रातें जल्दी ढलती है
मद छलकाये उजली चाँदनी
ज्वार उठे, चुप मन मंदाकिनी
भुजपाश बढाये तन ताप
देह पिया मेरी जलती है
क्यों रातें जल्दी ढलती है
पलकों की छुअन, रजनी रीती
कैसे कहूँ, मन पर क्या बीती
बातों में वक्त बीत गया
लाज लगे, क्या कहती मैं
क्यों रातें जल्दी ढलती है
जाने कितनी मन भरी पीर
बक जाता सब नयन नीर
पिया मिले तो धीर धरूँ मैं
यूँ ही जान ये निकलती है
क्यों रातें जल्दी ढलती है
परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
निवासी : आनंद विहार, दिल्ली
विशेष रूचि : व्यंग्य ल...