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कविता

समय
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समय

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** नहीँ पता होगा क्या कल करता समय सदा ही छल रौंद रहा सारे जग को बाँध रख सबके पग को बहुत सनही मित्र बना शत्रु भाव आपूर्ण घना इससे सदा डरो तुम मन समय कहे मैं हूँ भगवन कौन कहाँ गति पहचाने समय मुदित कैसे जानें आगे ताक लगाता है बीती बात बताता है इसका पहिया चलता जाये कभी अच्छे कभी बुरे दिन लाये जो करता इसका अपमान वह भी खो देता है मान होता है ये बड़ा बलवान न देखे मानस कोइ महान हिन्दु हो या हो मुसलमान यही कराता है पहचान जीवन में है यदि कुछ पाना नहीं व्यर्थ तुम इसे गँवाना नहीं पता होगा क्या कल परिचय :- मंजिरी पुणताम्बेकर "निधि" निवासी : बडौदा (गुजरात) घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
बेटी हूं
कविता

बेटी हूं

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी हूं दो कुल को लेकर चलना है तो खुद के अधिकार के लिए रुक जाती हूं खुद की इच्छा को दफना देती हूं गलत ना होकर खुद को गलत पा लेती हूं खुले आसमान में तो मैं भी घूमना चाहती हूं पर चार दीवारी में ही खुद को पाती हूं खिलते फूलों और उड़ते पंछियों से मैं पूछती हूं जरा मेरा कसूर तो बता दो मैं भी तुम जैसा बनना चाहती हूं ना चाह कर भी अपनी इच्छाओं मार देती हूं मैं एक बेटी हूं यही मेरा कसूर है यही सोच कर मैं रुक जाती हूं परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
यूँ  ही खुद को मिटा दिया
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यूँ ही खुद को मिटा दिया

कल्पना चौधरी बुलंदशहर, (उत्तर प्रदेश) ******************** यूॅं ही सब कुछ समेटते-समेटते, खुद को जाने कब कहाॅं मिटा दिया, किसी ने पूछा अगर अपना हाल, यूॅं ही बस आहिस्ता से मुस्कुरा दिया, बचा ही क्या था जलती लकड़ियों में, हृदय तिनका मात्र था वो भी जला दिया, यूॅं ही सुलगते-सुलगते एक अग्निकण ने, देखते ही देखते मन श्मशान बना दिया, मिल भी जाएं अगर सितारे अब मुट्ठी भर, चमकेंगे किस तरह जब आसमाॅं ही भिगो दिया, वक़्त रहते सम्भल जाना ही सबसे भला है, लकीर पीटने से क्या होगा, जब सब कुछ लुटा दिया, क्या कर लोगे गर भर भी लिया चाॅंद मुट्ठी में, चाॅंदनी तो तब बिखेरेगा जब, उसको आजाद करा दिया ! परिचय :- कल्पना चौधरी निवासी : बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
विश्व गुरु भारत
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विश्व गुरु भारत

डॉ. सत्यनारायण चौधरी "सत्या" जयपुर, (राजस्थान) ******************** जहाँ वेद उपनिषद का अद्वितीय ज्ञान। और मिलते हैं पुराण, आरण्यक और आख्यान। तुलसी का रामचरित व वाल्मीकि जी की रामायण। समझाया है सबको, नर में ही बसते हैं नारायण। सांख्य-योग, न्याय-वैशेषिक आदि से, जीवन का मर्म है जिसने समझाया। चार्वाक ने भौतिकवाद है पनपाया। गीता ने निष्काम कर्म है सिखलाया। जो भगवान श्रीराम जैसा आदर्श जग को देता है। सीता माँ जैसी पतिव्रता पर गर्व सभी को होता है। जहाँ रामायण, गीता और है महाभारत। ये है हमारा भारत विश्वगुरु भारत। आर्यों की इस पावन धरा से, ज्ञान का शाश्वत प्रकाश हुआ। शून्य के आविष्कार को, सम्पूर्ण जगत ने मान लिया। गुरुकुल प्रणाली द्वारा शिक्षा का प्रसार किया। व्यवहारिक शिक्षा का भी यहीं से सूत्रपात हुआ। विश्व ने माना लोहा भारत का, विश्व गुरु तब कहलाया। ...
कहीं दूर…
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कहीं दूर…

उदयसिंह बरी ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** दूर कहीं र्पवतों के क्षितिज पर ठिठका है चाँद चाँदनी के लिए। घोर अंधकार में, छिटक रही चाँदनी नव कोंपलों पर शनैःशनैः। पथ की पगडंडियों पर अंकित हैं, पथिक के पदों के निशान ढूँढ रही है चाँदनी चाँद के पद निशान कहीं अंकित मिलें, प्रीतम के पांव चिन्ह तारे विस्मित, देख मुस्कुरा रहे शनैःशनैः। जीव जंतर मधुर गुंजनगान अलाप रहे शनैःशनैः। एक पैर पर उकडूं वैठा उल्लू देख रहा चाँदनी को देखते चकोर को एक टक। रात पर्वतों के क्षितिज से उतर दरख्तों के क्षितिज पर अलसायी सी भोर के सौर में पैरो में अरुणोदय का महावर लगाये, चली जा रही है उस पार.... शनैःशनैः। परिचय :- उदयसिंह बरी (साहित्यक नाम) पिता : श्री वी.एल.कुशवाह पत्नी : आ. अंजली जी निवासी : ग्वालियर, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : डवल एम.ए.(अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्...
वो लम्हे
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वो लम्हे

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जमा कर लूँ मैं उन लम्हातों को जो तेरे आने का पैग़ाम लाते थे। तुझसे पहले किसी से कोई वास्ता न था तेरे बाद भी किसी से कोई वास्ता नहीं। बस वो लम्हे ही हैं जो मेरी आँखों में आज भी चमक रहे हैं। बस वो लम्हे ही तो हैं जो तेरे इंतज़ार में अब भी दिल में धड़क रहे हैं। तेरे आने की आहट आज भी कानों को सुकून देती है तेरे आने की आहट जैसे फ़िज़ा में ख़ुशबुओं को घोल देती है। मरकज़ मेरे इश्क़ का तू ही तो है मुक़द्दर मेरे इश्क़ का तू ही तो है। बेपनाह तेरी मोहब्बत और शोख़ी तेरी और बेइंतिहा वो बातें तेरी। जमा कर लूँ मैं उन तमाम लम्हातों को जो तेरे आने का पैग़ाम लाते थे। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक...
नीरज पर नाज
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नीरज पर नाज

गीता देवी औरैया (उत्तर प्रदेश) ************* है मान बढ़ाया तिरंगे का, लाल देश के नीरज ने। खूब दिखाया बाजुए जोर, होनहार वीर के धीरज ने।। देश की माताओं को सदा, रहेगा गर्व इस सुपुत्र पर। दुलार करती भारत की बहनें, स्वर्ण पदक लाए भाई पर।। देख नीरज के पौरुष को, युवाओं में साहस है भरा। दिखा दी बाजुए ताकत, भारत का रक्त देख जरा।। भारत का मान हमारा तिरंगा, गगन में ऊंचा कर दिखाया। हे हिंदुस्तान की शान नीरज, देश के भाल तिलक सजाया।। पग पग पर उड़ी रज ने, घर-घर में संदेश सुनाया। चमकता सोने का तमगा, सोने की चिड़िया के घर आया।। दे रही आशीर्वाद मेरी लेखनी, मिली प्रगति पल-पल आपको। तत्पर सदा है तैयार कलम, शौर्यता की कहानी लिखने को।। परिचय :- गीता देवी पिता : श्री धीरज सिंह निवासी : याकूबपुर औरैया (उत्तर प्रदेश) रुचि : कविता लेखन, चित्रकला करना शैक्षणिक योग्यता : ए...
बहिन ने मांगा तोहफा
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बहिन ने मांगा तोहफा

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** इस राखी पर भैया मुझे, बस यही तोहफा देना तुम। रखोगे ख्याल माँ-बाप का, बस यही एक वचन देना तुम , बेटी हूँ मैं शायद ससुराल से रोज़ न आ पाऊंगी। जब भी पीहर आऊंगी, इक मेहमान बनकर आऊंगी। पर वादा है ससुराल में संस्कारों से, पीहर की शोभा बढाऊंगी। तुम तो बेटे हो इस बात को न भुला देना तुम। रखोगे ख्याल माँ बाप का बस यही वचन देना तुम। मुझे नहीं चाहिये सोना-चांदी, न चाहिये हीरे-मोती। मैं इन सब चीजों से कहां सुःख पाऊंगी। देखूंगी जब माँ बाप को पीहर में खुश। तो ससुराल में चैन से मैं भी जी पाऊंगी। अनमोल हैं ये रिश्ते, इन्हें यूं ही न गंवा देना तुम। रखोगे ख्याल माँ बाप का, बस यही वचन देना तुम। वो कभी तुम पर या भाभी पर गुस्सा हो जायेंगे। कभी चिड़चिड़ाहट में कुछ कह भी जायेंगे। न गुस्सा करना न पलट के कुछ कहना तुम। उम्र का तकाजा...
जीना सीख लो
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जीना सीख लो

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** जिंदगी बहुत छोटी है उसे हर हाल में जीना सीख लो, आयें कितने भी आंधी तूफान जिंदगी जीने का तरीका सीख लो। यदि कोई पास में हो तो उसकी आवाज में जीना सीख लो, रूठ गया हो यदि कोई उसके इस अंदाज में रहना सीख लो। जो कभी लौट के ना आने वाले हैं उसकी यादों में जीना सीख लो, हर वक्त नहीं रहता कोई साथ अपने आप में खुश रहना सीख लो। खुशी की लहरें कभी गम के साए सुख-दुख की कश्ती में तैरना सीख लो, जिंदगी बहुत छोटी है उसे हर हाल में जीना सीख लो। परिचय - श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी - अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र - मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्द...
बिटियाँ नहीं जान पाती
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बिटियाँ नहीं जान पाती

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** माँ अब मेरे लिए काजल नहीं बनाती ये सब बचपन की बातें थी कि मुझको नजर ना लगे | लेकिन मै तो अभी छोटी हूँ माँ की नज़रों मे भाग दौड़ की जिन्दगी मे मेरा लाड-दुलार भी खो सा गया है | मै सुनना चाहती हूँ मेरे बचपन के नाम की मुझे बुलाने के लिए माँ की मीठी पुकार और गरमा गरम रोटी रात दूध पिया की नहीं माँ की फिक्र को। किंतु अब दीवार पर माला डली है मेरे टपकते आंसुओं को देख कर मेरी माँ मुझसे जैसे कह रही हो छुप हो जा मेरी बिटियाँ | वही फिक्र के साथ मै ख्याल रखने वाला बचपन वापस पाना चाहती हूँ इसलिए माँ की तस्वीर से मन ही मन बातें किया करती हूँ आज भी | मै सोचती हूँ कि क्रूर इन्सान अब क्यों करने लगा है भ्रूण-हत्याए अचरज होता है की मै जाने कैसे बच गई माँ की ममता क्या होती ये मै कभी भी नहीं जान पाती यदि मेरी भ...
भागदौड़ की दुनिया
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भागदौड़ की दुनिया

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** आकर इस धरती पर मानव कब सुख का पल तूने पाया। भागदौड़ की इस दुनिया में, ढूंढ रहे सब शीतल छाया। रोटी-रोटी करता मानव दिन-दिन भर फिरता रहता है। पाने को वह सुख की रोटी, भरपूर मेहनत करता है। भूख और माया चश्मे ने, मानव को है खूब थकाया। भागदौड़ की इस दुनिया में, ढूंढ रहे सब शीतल छाया। सूरज की किरणों संग सदा चिंता का पहाड़ है आता। क्या करना किसको पूरे दिन सब विधान वही तो बताता । अर्थ-अर्थ की दुनिया सारी, भूख अर्थ की है इक माया। भागदौड़ की इस दुनिया में, ढूंढ रहे सब शीतल छाया।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय...
रक्षाबंधन कैसे मनाऊँ मैं
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रक्षाबंधन कैसे मनाऊँ मैं

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** ग्यारह मास बिताये मातु बिना तो पर्व रक्षाबंधन कैसे मनाऊँ मैं | वर्ष-वर्षी तक मातृ शोक का तो, पर्व रक्षाबंधन कैसे मनाऊँ मैं || नहीं नियम पर्व कुछ भी मनाने का, सात्विकता अब्द यह बिताता मैं | आहार को आशीष से चला रहा, तो पर्व रक्षाबंधन कैसे मनाऊँ मैं || रहे दिन छियालीस अब वर्षी के, स्मृति पटल से नहीं बिसराऊं मैं | सिर पर सदैव ही जननी आशीष, तो पर्व रक्षाबंधन कैसे मनाऊँ मैं || रक्षित जीवन तेरे आशीष से, रक्षाबंधन को कैसे मनाऊँगा मैं | तेरी अनुकम्पा होगी जननी तो, पर्व रक्षाबंधन को आगे मनाऊँगा मैं || दिया लेखनी को आशीष तूने, इसे आजीवन अब चलाऊंगा मैं | तेरे आशीष से ही तेरे आदर्श हे जननी, लेखनी से आगे अब बढाऊँगा मैं || वर्ष वर्षी तक मातृ-शोक का तो, पर्व रक्षाबंधन कैसे मनाऊँ मैं | ग्यारह मास बीते मातु बिना तो, पर्व रक्...
रक्षा का बंधन
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रक्षा का बंधन

नंदिता माजी शर्मा मुंबई, (महाराष्ट्र) ******************** एक दिन का त्यौहार नहीं ये, अनंतकाल तक का नाता है, भाई-बहनों का अद्भुत दर्पण, इस बंधन में बंधकर आता है, नहीं बंधन ये, निज स्वार्थ का , ना है कोई दबाव है, अंतर्मन का, भावनाएं बंधती है, बनकर प्रेममंजरी , नाता है ये निष्छल समर्पण का, बंधन नहीं कोई, इस रिश्तें में, ना तनाव है, बेगैरत उम्मीदों की, रिश्ता ये गंगाजल सा पवित्र है होता, जगह नहीं इसमे मतलबी ख़रीदो की परिचय :- नंदिता माजी शर्मा सम्प्रति : प्रोपराइटर- कर्मा लाजिस्टिक्स निवासी : मुंबई, (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हि...
जीवनसंगिनी
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जीवनसंगिनी

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** साथ तुम्हारा देता है मन को बड़ा सुकून, दूर मत होना कभी मेरी जीवन संगिनी.....!! कह नही पाया जो बात दोस्तो से, उन्हें तुमने लफ्जो से समझ कर हल कर दिया.......!! दुःख में भी साथ थी परछाई की तरह, सच कहूँ तो जीवन का सार तुम्ही हो.....!! बच्चो को बड़ा किया दिया माँ का प्यार ऑफिस भी गई, साथ मे संभाला किचिन का सारा काम......!! पूजा,व्रत ढेर रखे दिया ना खुद पर ध्यान, परिवार कि खातिर छोडा ना कोई मंदिर का द्वार..…!! कपल डे पर यही करता हूं पुकार, सात जन्मों तक बंधा रहे हमारा इस जनम का प्यार....!!!! परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विधुत विभाग अम्बाह में पदस...
मैं देश के प्रहरी को राखी बांधूगी
कविता

मैं देश के प्रहरी को राखी बांधूगी

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** आया रक्षा बंधन पर्व। मैं तो सर्वप्रथम अपने भारत। देश के समस्त प्रहरियों को राखी। बांधूगी, मेरा रक्षा बंधन पर्व तभी। पूर्ण होवेगा। जब मैं थल, जल और वायु तीनों। सेनाओ के सैनिकों को जो। भारत के प्रहरी बन हमारी। रक्षा करते हैं, मैं उन्हें राखी बांधूगी। भारत देश के प्रहरियों के कारण ही। हम सब भारतवासी अपने देश में। अपने घरों में सुरक्षित हैं। देश के प्रहरी हमारी रक्षा। दिन और रात जाग कर माइनस। डिग्री तापमान में खड़े रहकर। हमारी रक्षा करते हैं। अपने परिवार को छोड़। भारत देशवासियों की रक्षा रखते। सर्वोपरि, इसलिए मैं उन सब। प्रहरी भाईयों को सर्वप्रथम। रक्षाबंधन पर्व पर राखी बांधूगी। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि ...
जिसकी रज चंदन सम है
कविता

जिसकी रज चंदन सम है

श्रीमती विजया गुप्ता मुजफ्फरनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** जिसकी रज चंदन सम है, कण-कण हीरे मोती माटी उगले सोना, शस्य श्यामला है धरती ऐसा देश है मेरा, प्यारा देश है मेरा। बेकार न होगी कुर्बानी जलियां वाले बाग की चिंगारी नहीं बुझेगी अब देश प्रेम की आग की ले तिरंगा हाथों में हुई शहीद वीरों की टोली कभी खेली न किसी ने, ऐसी खेली खून की होली ऐसा देश है मेरा, प्यारा देश है मेरा। "भारत छोडो़ " नारा ले बापू आए समरांगण में असहयोग के अस्त्र से कांपे अंग्रेज़ अपने मन में आजा़द कराया भारत, भारत मां के तोडे बंधन देश है ऋणी बापू का, करते हम उनका वंदन ऐसा देश है मेरा, प्यारा देश है मेरा। शहीदों ने खून से सींचा, आज़ादी के पौधे को व्यर्थ न जाये बलिदान, सूखने देंगे न इसको याद रखेंगे सब कुर्बानी, जन-गण के हर मन में अमर असीम त्याग की गाथा, महके कण-कण में ...
बलिदान वीरों का
कविता

बलिदान वीरों का

दुर्गादत्त पाण्डेय वाराणसी ******************** बलिदान उन वीरों का याद हमें रखना होगा न्योछावर किए वो प्राण एहसास हमें रखना होगा मातृभूमि के चरणों में मस्तक अपना चढ़ा दिए देश-प्रेम की खातिर काँटों पर खुद को बिछा दिए माँ भारती के सपूतों का इतिहास हमें पढना होगा न्योछावर किए वो प्राण एहसास हमें रखना होगा भगत सिंह के जज़्बे को नमन व सलाम है आजाद के हौसले से आजाद हिंदुस्तान है गद्दारों से लड़ते-लड़ते मातृभूमि वो छोड़ गए बलिदान देकर वो इतिहास तक को मोड़ गए इनकी देशभक्ति की वंदना करना होगा न्योछावर किये वो प्राण एहसास हमें रखना होगा भारत की, ये आजादी उस मंजिल तक पहुंचना होगा जाति-पाति के भेदभाव को जड़ से हमें मिटाना होगा राष्ट्रपिता के अल्फाजों को अभिनंदन करना होगा न्योछावर किए वो, प्राण एहसास हमें रखना होगा !! परिचय : दुर्गादत्त पाण्डेय सम्प्रति : परास्नातक ...
अधूरी ख्वाइशें
कविता

अधूरी ख्वाइशें

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चाहतें कुछ अधूरी सी कुछ पाने की, कुछ कर दिखाने की, कहाँ गुम हो जाती है? अपने आप को ढोती सी, हर बार मन को समझाने की, संयम दिखाने की, क्यों जरूरत आ जाती है? क्यों अपने वजूद को तराशती सी, वो अपने हिसाब से अपनी जिंदगी अपनी मर्जी की, जी नहीं पाती है? कब तक किस्मत पर रोती सी, वो दूसरों के ताने सुनती हुई, जमाने को दिखाने की, अपने अस्तित्व को नकारती जाती है? आखिर कब तक? वो ऐसे कमजोर सी, नहीं अब नहीं, अब वो खुद के लिये जीने की, मुस्कुराने की वजह बनाती जाती है।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ क...
कृष्ण
कविता

कृष्ण

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** बुला रही हूँ कबसे तुमको अब तो कान्हा आ जाओ! पंथ हार आखियां अब तरसी, अब तो दरश दिखा जाओ!! जन्म से कारागार चुना, क्यू इतनी लीला रच डाली! माता पिता से दूर हुए "यशोदा की गोदी भर डाली!! शिशु रुप में ही कितने ही पापियों को, तार दिया! तारनहार बने प्रभु मेरे, पापों से उद्धार  किया!! प्रेम मूक था, राधा के प्रति, प्रेम क्या होता समझाया! ये काया है, भ्रमित हमारी, दुनिया को है बतलाया!! प्रेम अमर  है, न है बंधन, मुक्त  भाव जी पाएगा! तेरा होगा मुक्त रहेगा, फिर भी कही न जाऐगा!! मीरा ने प्रेम किया, वैराग्य में विष को पी डाला! समा गयी हृदय प्रभु के, प्रेम इतिहास ही लिख डाला!! रूक्मिणी के प्रेम को समझा, राधा को भी न भूले! साथ निभाया, जन्मों जनम का, विरह को भी जो जीले!! गीता का उपदेश दिया, कर्मो की प्रधानता को ...
राखी का त्योहार
कविता

राखी का त्योहार

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी  बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** राखी का त्योहार सभी को प्यारा है। प्रेम बहन भाई ने इस पर वारा है।। तिथी पूर्णिमा सावन की लेकर आया। खुशियों की सौगात सभी से न्यारा है।। युग युग से है चली आ रही ये रश्मे। इसे मानता आज भी जहां ये सारा है।। रेशम की डोरी में इतनी है शक्ति। बड़े बड़े शूरमों ने इस पर हारा है।। राखी बांध बहन भाई के हाथों में। नीर नयन से बहती नेह की धारा है।। रोली अक्षत चंदन टीका माथे पर। करी आरती रीत निभाया सारा है।। भाई की खुशियां मागी उसने रब से। एक वही तो उसका बड़ा दुलारा है।। भाई बहन की प्रीत निराली है सबसे। सारे जहां में इसका अलग नजारा है।। मिलकर यह त्योहार मनायें आओ हम। *राम*मिला ये अवसर हमको प्यारा है।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्त...
पंचतत्व मे विलीन होकर में सदगति पांऊगा
कविता

पंचतत्व मे विलीन होकर में सदगति पांऊगा

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** सोचता हूं मैं पंचतत्व में विलीन होकर सदगति में पाऊंगा। दुःखी न होना मेरे लिए सन्तावना अपने पराये सभी से मेरी यही हैं, ईश्वर के प्रति आस्था लिए प्रभु के चरणों में समर्पित होकर नवजीवन में फिर पाऊंगा। सृष्टि को खूबसूरत, शांति एवं धर्य संयम धीरज से सकारात्मक सोच के साथ, मनमोहक सबसे प्रिय इंसान के लिए सृष्टिकर्ता पालनकर्ता ईश्वर ने निस्वार्थ भाव से बनाई है ये दुनिया इस दुनिया के पालनार्थ में सृष्टि पर बार-बार आऊंगा। अच्छे बुरे कर्मों का हर बार फल मुझे ही पाना है गगन सांसारिक सुख दुःख मौह माया जीवन चक्र इस धरा पर इंसानों को समय की गति से बांधा है, जीवन और मृत्यु के पालने में खुद ईश्वर ने अपने आपको ढाला है, पालनार्थ बार-बार में आंऊगा पंचतत्व में विलीन होकर सदगति में पांऊगा। परिचय :-...
लालकिला
कविता

लालकिला

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** इस प्राची ने देखा वो मंजर जो कभी किसी ने सोचा न था शर्मसार खडा तिरंगा था सब का अपना अपना झंडा था सत्ता अपने अधिकारों पे अडी रही जनता कर्तव्य बिसार गयी देखा जो बवाले लालकिला वीरों की कुर्बानी रोयी रक्षक मेरे कुछ समझ ना पाये किस पे बंदूक चलानी है सीना ताने अपने ही लाल खडे आगे तो बस शौर्यता का गुमान गया इतिहासो के पन्नों को क्यू आज ये हिंद बिसार गया मुगलों की आन बान कभी था भारत की जान और शान हुवा वो लालकिला बस आज आपने ही पुतोंसे पशेमान हुवा आज उसे भूला वो इतिहास का पन्ना याद आया अपने ही पीता के अंगों पे विषमलता बेटा देखा भाई ने भाई का कत्ल किया मूक साक्षी खडा था लालकिला कितने बादशाह बदलते देखे कितने तख्ते पलटते देखे मुगलों के गृहकलह से आहत अंग्रेजो का दास हुवा फिर भी माँ भारती के ...
कुछ अलग सृजन प्रयास
कविता

कुछ अलग सृजन प्रयास

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कुछ अलग सृजन प्रयास बिना सहारे-१२८ शब्द (काव्य-अर्थ भी नीचे वर्णित है) ************************ गहन दमन अटक खटक, पहट फकत कदर पटल। भरत अदब नयन छलक, गज़ब सड़क महल सजल। बहस डगर तड़प सबब, रहन सहन ठसन खलल। तमस गमन हवन तहत, नज़र कसक समझ पहल। तपन पवन अमन चलन, सरस जतन कलश कमल। कथन कसर कहर कलह, महक चहक सहज सफल। वतन वचन असर सबक, तड़क कड़क परख अटल। अगर मगर गरज ललक, मनन वजह नमन सबल। हवस चरस तरस भनक, सनक धमक धधक गरल। हनन दहन खनक भड़क, अहम वहम खतम शकल। नवल धवल चपल असर, कलम समझ असल सरल। अकल फसल अमल सनम, पलक फलक लहर तरल। अलख खबर मगज पलट, समझ चमक दमक बदल। धरम करम बचत ललक, शरण तनय बहन चहल। नसल मचल छनन सनन, शहर शजर करम अचल। लगन मगन सनद अलग, दहक भभक रजत ग़ज़ल। प्रत्येक लाइनों का क्रमवार अर्थ भी प्रस्...
टूटे ख्वाब
कविता

टूटे ख्वाब

मनीष कुमार सिहारे बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** मां के डांट से रोते मैंने, बालक का आवाज लिखा है। टपक गेसुऐ नयनों से उसके, हाथों मे एक किताब लिखा है।। कि मैंने एक ख्वाब लिखा है, आंसुओं से भीगी एक किताब लिखा है । मानव के हरेक शीर्षक से, पुरे कर्मोकाज़ लिखा है।। लोग डरते हैं जहां तर जाने से, वही गहरे पानी का तालाब लिखा है।। सोंच से पहले डर को आगे, लोगों का नया इजाद लिखा है। खुद अंधेरे मे रहकर, प्रकाश के खिलाफ लिखा है।। कि मैंने एक ख्वाब लिखा है, आंसुओं से भीगी एक किताब लिखा है। कि मैंने एक ख्वाब लिखा है, आंसुओं से भीगी एक किताब लिखा है।। एक महल के राजा का मैंने, बदले का अभिशाप लिखा है। राजकुमार का राह निहारे, एक कन्या का घर मे साज लिखा है।। नई नवेली दुल्हन को मैंने, मां लक्ष्मी के दो पांव लिखा है। लगे तीर सीने में आकर, सीने में वो घाव लिखा है।। गिर...
लाशों से सजाते क्यों धरती?
कविता

लाशों से सजाते क्यों धरती?

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** लाशों से सजाते क्यों धरती, मानवता से घबराते हो। सब कुछ नहीं पद, सत्ता पैसा, क्यों मजलूमों को रुलाते हो? इतनी बर्बरता ठीक नहीं, जिल्लत का जहर पिलाते हो। इस नश्वर जग में आखिर क्यों, अपनों पे सितम तू ढाते हो? उस उपवन के हो तू माली, क्यों पहचान मिटाते हो। दफ़न करो तू अंधकार को, क्यों कांटे के आँसू बोते हो? चीख, दर्द, चीत्कार से दुनिया, निशि-दिन घायल होती है। शक्ति प्रदर्शन देख-देखकर, फिज़ा वहाँ की रोती है। सिर्फ विकास की बात करो, तब सुख के बादल बरसेंगे। मोहब्बत की किरनें झूमेंगी, ज़ब सर न किसी के उतरेंगे। अमनो चैन की उस दुनिया में, तब मानवता करवट लेगी। फांकों के दिन टल जायेंगे, खुशहाली तब थिरकेगी। मत रौंदों, न मसलों इज्जत, अब ना तू नर-संहार करो। अपने पथ से भटके लोगों, एक दूजे से प्यार करो। प...