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कविता

महंगाई
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महंगाई

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** महंगाई से लोग परेशान हैं, खुश न तो खेत न ही वो खलिहान हैं। पाई - पाई के लिए लोग मोहताज़, कुछ का तो पैसा ही भगवान है। लगी है आग रोज डीजल- पेट्रोल में, कीमत उसकी सातवें आसमान है। पसारी ली है ऐसा पांव बेरोजगारी, लगता आदमी जैसे बेजान है। मंहगाई का असर सीधे जेब पर, अच्छे बाणों से खाली कमान है। कैसे हो ऐसे रिश्तों की तुरपाई, हर एक घर की अपनी दास्तान है। वोटों की फसल तक सीमित जनता, घड़ी- घड़ी वोटरों का इम्तिहान है। धूप पर जैसे निर्धन का हक़ नहीं, मुट्ठीभर लोगों का ये आसमान है। गुजरती है जिंदगी घुटने बटोर कर, अंदर से छाती लहूलुहान है। मजे में वो जिसकी ऊपरी कमाई, बाकी जनता बेचारी परेशान है। बेचकर चेहरा कुछ बीता रहे दिन, ऐसे यौवन का क्या सम्मान है। मीठी-मीठी बात से पेट नहीं भरता, सबसे ज्यादा किसान परेशान है। कागज ...
औरत
कविता

औरत

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** ईश्वर की अदभुत रचना हे जो कई रुपों में ढलती हैं। हर एक अवस्था में औरत अपना स्वरूप बदलती हे॥ हर नए रिश्ते में औरत अपनी रीत निभाती हैं । कभी तो बनती हैं बेटी कहीं बेहन बन जाति हे॥ कहीं तो हे दादी नानी कहीं तो माँ केहेलाती । कहीं पे बनती राधा प्यारी कहीं अर्धांगि बन जाती हैं ॥ सबसे बड़ा रिश्ता हैं माँ का बच्चो की नीव जो भर्ती है। धूप पढ़े जब बच्चो पर तो शीतल साया करती हैं॥ बेहन बने तो मर्यादा की होती हे इक पावन रेखा । घर को जगमग करे रोशन कोई मित्र नही एन्सा ॥ होती हे जब राधा प्यारी तन्हाई में मन बेहेलाती हे । दिल के वीराने उपवन में यादों के फूल खिलाती हे॥ और बने जब जीवनसाथी घर को वो स्वर्ग बनाती हे। अपना घरबार बसाने को अपना अस्तित्व लुटाती हे॥ पुरुष की खातिर खोती अपना तनमन सुं...
अनदेखे अनसुने
कविता

अनदेखे अनसुने

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कुछ बातें अनकही हैं कुछ जज्बात अनसुने है कुछ चेहरे अनदेखे हैं कुछ ख्वाब अनसुने है कुछ रिश्ते अनदेखे हैं कुछ हसरतें अनकही है कुछ पहलू अनसुने है कुछ कहानियां अनदेखी है कुछ अंदाज अनसुने है कुछ लोग अनदेखे हैं कुछ गीत अनसुने है कुछ रास्ते अनदेखे हैं परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी क...
भारत की बेटी
कविता

भारत की बेटी

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** मैं भारत की बेटी हूँ, मत करो मुझपर अत्याचार। सदा ही वीरो के नाम से लोगो ने भारत को जाना है। घिनोनी हरकतों से कलंक मत लगाओ भारत को। लक्ष्मी बाई जैसी नारी हुई, जान देश पर वार दी। मैं भारत की बेटी हूँ, मत करो मुझ पर अत्याचार। मातृभूमि को जब सर आँखों पर रखते हो तो, एक बेटी पर क्यो पाप करते हो। मैं भारत की बेटी हूँ, मत करो मुझपर अत्याचार। जिस भारत की अहिंसा पहचान थी, यहां क्यो मोमबतियां लोगो ने थामी है। मैं भारत की बेटी हूँ, मत करो मुझपर अत्याचार। बागी भी हुए यहां पर, लेकिन उन्होंने बेटी, बहू को इज्जत दी, तुम ना बनो हैवान। मैं भारत की बेटी हूँ, मत करो मुझपर अत्याचार। बेटी यहां की बर्दी पहन, रहती है,सदा तैयार देश पर कब हो जाऊँ क़ुर्बान। मैं भारत की बेटी हूं, मत करो मुझपर अत्याचार। विश्व मे...
खुशी प्रदायिनी
कविता

खुशी प्रदायिनी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है। बहुधा कविता का साथी, अलमारी का कोना है पुस्तक क्रय बात अलग,मिली भेंट क्या खोना है शिवशक्ति संगम जैसा, लेखन संदेश भी त्राण है कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है। रुचिकर भोजन स्वभाव, पसंद का भवन लेता यारी परिवार संबंध हेतु, नाविक नैया खुद खेता पसंद नापसंद से सर्वस्व, करता मनुज निर्माण है कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है। स्मृति पटल पे बने रहना, स्वभावों की हद बनती कविता संदर्भों की चर्चा, प्रभाव का कद गढ़ती कब कैसे कितना कथन, मानव हक परिमाण है कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण ...
रिश्तों की दीवार…
कविता

रिश्तों की दीवार…

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** संभाल न सके जो रिश्तों की दीवार, बेदर्दी से अपनों को कर दिया, किनार, देखते-देखते ये साल भी बीता जा रहा, उनकी यादों से सजा रखा, मैने घर द्वार, तस्वीर से तेरी नज़रें कभी हटा नहीं पाते, जन्म दिवस पर, आपको कैसे देंगे पुष्प हार, हम लोग वक्त, फिज़ूल कभी, जाया न करते, सपने, हमने भी देखें थे, भविष्य के, बेशुमार, कभी-कभी सालता है ये तनहाई का आलम, चंद सांसों का जीवन भी न मिल सका, उधार परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लो...
ए जिंदगी
कविता

ए जिंदगी

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** ए जिंदगी में कितना खुश नसीब हूं मन की आहट सांसों का निरंतर चलना, सुबह का खिलना एक मधूर मुस्कान के साथ स्वागत, अभिनन्दन, अभिनन्दन शुभ प्रभात नई ऊर्जा के साथ है ईश्वर तेरा अभिवादन करता हूं नतमस्तक हूं प्रथम कुसुम खिलें उषा की किरणों के साथ एक प्यारी सी मिठी सी मुस्कान लिए समर्पित हूं ईश्वर अभिनन्दन, अभिनन्दन में सर झुका कर करता हूं। शशि चंद्र धुमिल हुए, प्रखर लालिमा लिए प्रकट समय-चक्र सूर्य नारायणन गतिशीलता लिए एक नई दिशा जिंदगी को देने अपनी ऊर्जा से पथ प्रदर्शक, मार्गदर्शन करने जागो नई उमंग लिए मिठी सी मुस्कान के साथ है ईश्वर शुभ प्रभात की नई किरणों के साथ अभिनन्दन अभिनन्दन करता हूं। सरिता की पावन जल लहरें, जल प्रपातों से करती अटखेलियों निखार रही परिंदों कलाबाजियां शिखर पर हैं प्रातः उषा काल में दि...
स्वदेशी मेरा गाँव
कविता

स्वदेशी मेरा गाँव

डॉ. रश्मि शुक्ला प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** स्वदेशी मेरा गाँव, यहाँ आकर ठंडी-ठंडी मिलती छाँव, झींगुर बोले जैसे नई बहुरिया चले छम-छम बोले पाँव। मेरे आँगन के देखती प्यारी जिसमे अमराई बौराए, कुहू-कुहू के कोमल स्वर में कोयल तान सुन्दर सुनाए। दौड़ गली की ओर बढ़ रही ननुवा की तेज गाईया, रामू काका काधे पर डंडी बन बैठे मल्हार गवईया। हृदय हुए ज्यों हरे-हरे पर्वत अथवा हरे-भरे उपवन, मोर नाच रहे जैसे ताल पर मोरनी का बन नव जीवन। बिना जतन बिना यत्न के मेरे गाँव हरियाली हरियाए, और प्रकृति भी हमें प्यार से सुत समान दुलराए। आँगन में आँवला, नीम, वट,पीपल दिख जाए, गौ संग बछड़े को शीतलता बाँटें उनकी मृदु छायाएँ। हर पंछी को मिलता बसेरा, पशु को दाना-पानी, मौसम भी सुहाना जब पवन चले अपनी मनमानी। द्वारा-द्वार पर सबके तुलसी बिरवे पावनता फैलाएं, पुष्प व...
मुक्त
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मुक्त

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** मुक्त हूँ उन्मुक्त हूँ, मुक्तता पहचान है! लाज से परिपूर्ण हूँ, जो धैर्य का प्रतिमान हूँ!! धानी रंग मे अवतरित हूँ, जो श्रमिक का अस्तित्व है! सबके तन की भूख हूँ, वेदना से विषक्त हूँ!! न समझो मै निरीह हूँ, मेरा मनोबल शिखर पर है! ममत्व मे मै,अबला सी हूँ, मै सबला से धैर्यवान हूँ!! मै कोमलता अपनो मे हूँ, सृष्टि के लिए जो सृजन है! मै पुरुष की भोग्या हूँ, मै सृष्टि का अभिमान हूँ!! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
नया नबेला है
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नया नबेला है

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कभी दिल की सुनकर देखो। उसकी धड़कनो को पहचानो। फिर संजय के दिलको सुनो। शायद तुम्हारा दिल पिघल जाये। और दिल में मोहब्बत जग जाये।। दिल को दिल में देखो। सोये प्यार को जगा के देखो। चाँद तारों के बीच में दिल चमकता दिखेगा। तब तुम्हें मोहब्बत होने का पता चलेगा।। मोहब्बत वो होती है जो लबों से निकलकर। दिल दिमाग में बैठ जाती है सांसें बनकर दिल धड़कती है। और अंदर ही अंदर मोहब्बत होने का एहसास करवाती है। और प्रेमीयों को बुला के मिलने का साहस देती है।। तुम अब तक मोहब्बत को खेल समझ रही थी। और दिल की भवानाओं से खेल रही थी। जब मोहब्बत का काँटा स्वयं के दिल को चुभा। तो कांटे से ज्यादा तुम खुद रो रही थी।। जो मेहबूब का इंतजार करते है दिल से उसे प्यार करते है। लाख कांटे बिछे हो मेहबूब की राह में। फिर भी उन पर चलकर मेह...
एक सैनिक कि वतन से मौहब्बत
कविता

एक सैनिक कि वतन से मौहब्बत

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** वतन के लिए जीते हैं वतन पर ही वो मरते हैं...! बेइंतेहा, बेमिसाल, बेपनाह मौहब्बत वो वतन से ही करते हैं..!! देखकर उनकी वर्दी कि चमक को दुश्मन भी कोसों दूर भागते हैं...! एक हाथ में तलवार तो दूसरे हाथ में वो अपने परिवार को रखते हैं..!! आने ना पाएं कोई भी आँच राष्ट्र पर, मातृभूमि की कसम रोज वो खाते हैं...! नहीं कोई हवाओं और वर्षा का डर वो तो तूफानों का भी रूख मोड़ देते हैं..!! ना दिन कि कोई परवाह, ना ही रातों का चैन वो जानते हैं...! भगवान भी ना कर सकें इतनी रक्षा वो तो ईश्वर की तरह पूजें जाते हैं..!! परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां,...
खुशी
कविता

खुशी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दिनों बाद दरवाजे पर दस्तक हुई किसी के आने की, देखा दरवाजे पर खुशी खड़ी है, एक कोना पकड़े हुए, पूछा बड़े दिन बाद आना हुआ, क्या शहर बदल दिया या कहीं दूर निकल गईं मुस्कुरा कर बोली, आती हूं पर शायद मकान का नंबर बदल गया बोला उस से बड़ी मगरूर रहती हो, कुछ तो सीखो अपनी बहन से, वो तो यूं ही चली आती है, परेशानी बनकर रहती भी है, रुकती भी है, साथ रहने का वादा भी करती है जवाब मिला, आती तो हूं मैं भी, रुकती हूं थोड़ा ठिठकती हूं, आहट पर कोई सुनता भी नही, दूर निकल जाती हूं, ये सोचते हुए, शायद तुम्हे मेरी जरूरत नहीं मैं तो रुकती हूं बच्चों की किलकारियों में उनके गीतों में, कभी रुकती हूं दोस्तों की मुस्कुराहटों में कभी बारिश की रिमझिम में, सरसराती ठंडी हवाओं में बांटती हूं खुद को छोटे-छोटे पलों और एहसा...
माँ भारती को
कविता

माँ भारती को

बबिता चौबे शक्ति माँगज दमोह ******************** अब गांधी चाहिए और नेहरू चाहिए मां भारती को भगत ओ आजाद चाहिए हर नवयुवा के दिल में राष्ट भक्ति भर सके।। वो भगत अटल गुरु सी बुनियाद चाहिये।। हर द्वंद वतन में जो चल रहे मिटा सकें । जन जन के ह्रदय में वही संवाद चाहिए।। जिसकी दहाड़ से हिलें पर्वत की चोटियाँ।। नव क्रांति भर सके वो शंखनाद चाहिए।। अंतः की गुलामी से छुड़ादे दे जो देश को।। हौसलों से भरा फिर कोई उन्माद चाहिए जो बैर रखते हिंदी से रहकरके वतन में करने को उनसे कोई वाविवाद चाहिये। परिचय :-  श्रीमती  बबिता चौबे शक्ति पिता : श्री कृष्ण कुमार चौबे पता : माँगज दमोह जन्म तिथि : १ जुलाई १९७६ जन्म स्थान : दमोह शिक्षा : बी. ए.  एम ए. नर्सिंग व्यवसाय : स्टाफ नर्स जिला चिकित्सालय प्रकाशित रचनाओं की संख्या :  ४०० काव्य सँग्रह : गोरैया तेरे रंग हजार  अयन प्रकाशन दिल्ली, मुझे...
ईश्वर फिर भी एक है
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ईश्वर फिर भी एक है

अंकित कुमार पाँचाल जयपुर (राजस्थान) ******************** मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरिजाघर एक है। नाम चाहे अलग-अलग ईश्वर फिर भी एक है।। जात-धर्म में बंटा है जो वो इंसां भी तो एक है। जात-धर्म बांटा था हमने उसका बनाया इंसां एक है।। दो आंखे, दो कान, एक मुँह, एक नाक, दो हाथ, दो पैर वाला प्राणी हर एक है। जिसको बनाने में भूल हुई वो दिव्यांग जन भी नेक है।। कोई करे प्रे, कोई करे अरदास कोई करे प्रार्थना तो कोई करे दुआ पर इन सबको सुनने वाला वो ऊपरवाला भी एक है। कण-कण में है जो समा हुआ वो सबका मालिक एक है।। अलख निरंजन है जो वो उसके रूप अनेक है। नाम चाहे अलग-अलग ईश्वर फिर भी एक है।। परिचय :-  अंकित कुमार पाँचाल निवासी : जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी ...
कैसे गाएं गीत मल्हार
कविता

कैसे गाएं गीत मल्हार

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** घनघोर घटाओं में विपदा की कौंध अपार, सखी कैसे गाएं गीत मल्हार।..... मच रहा चहुंओर हाहाकार, कोरोना महामारी से हुआ जीवन बड़ा दुश्वार। फैली है बेकारी ठप हुए सारे कारोबार, न कहीं मंगलाचार, न लगे कहीं कोई त्यौहार। बाग-बगीचों में ना कोई मधुर बहार। सखी कैसे गाएं गीत मल्हार।..... विरहा की बदरी से हो रही फुहार, मानों प्रकृति ने किया न कोई श्रृंगार। कही विपदा की घनी बौछार, सब जन अच्छे दिनों की राह रहे निहार। भय की उत्कंठा से पार न करते देहरी द्वार। सखी कैसे गाएं गीत मल्हार।..... दुश्वारी चुनौतियां खड़ी सामने मुँहवार। आंतक का अत्याचार, युवा है बेरोजगार। भ्रष्टों ने फैला रखा भ्रष्टाचार। रूका न अभी कहीं व्यभिचार। लाचार सी खड़ी है सारी सरकार। सखी कैसे गाएं गीत मल्हार।..... सपनों में अभी है सुखद ...
प्रेम का एहसास
कविता

प्रेम का एहसास

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** मिला तू मुझे उस पल जब मुझे प्रेम के अक्षर का ज्ञान ही नहीं था सिखा दिया तूने मुझे प्यार करना जिसे मैंने कभी महसूस तक नहीं किया जताना तो तू मुझे बहुत कुछ चाहता था पर जताना सका छोड़ दिया तूने मुझे क्योंकि मुझे से प्रेम करना तो तेरी सबसे बड़ी गलती थी मुझे प्रेम का मोल ही नहीं था छोड़ चला गया तू मुझे तेरे जीवन में कोई गम नहीं था तूने मुझे बहुत कुछ सिखा दिया तेरे से होगी थी मोहब्बत मुझे फिर भी मैं इस प्रेम को नहीं कर पाई स्वीकार परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी ...
बारिश के मौसम में
कविता

बारिश के मौसम में

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** बारिश के मौसम में, जब तेरी याद आवअ आंख भर जा मअ, दिल में बैचेनी छावअ बारिश के मौसम में, जब तेरी याद आवअ हमअ ना प्यास लगअ, ना रोटी ही भावअ बारिश के मौसम में, जब तेरी याद आवअ ना दिन में कतई चैन, ना रात में नींद आवअ बारिश के मौसम में, जब तेरी याद आवअ ना तू पास आवअ, ना हवा तेरा पता वताअ बारिश के मौसम में, जब तेरी याद आवअ मीठा दर्द दअवअ, पूराने घाव कूरेद जावअ परिचय :- नितिन राघव जन्म तिथि : ०१/०४/२००१ जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर पिता : श्री कैलाश राघव माता : श्रीमती मीना देवी शिक्षा : बी एस सी (बायो), आई०पी०पीजी० कॉलेज बुलन्दशहर, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से, कम्प्यूटर ओपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट डिप्लोमा, सागर ट्रेनिंग इन्स्टिट्यूट बुलन्दशहर से कार्य : अध्यापन और साहित्य लेखन पता : ...
आ उड़ चले
कविता

आ उड़ चले

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** पत्नी बोली पति से, सुन लो प्रीतम प्यारे। आओ उड़ चले हम दोनों, थोड़ै दिन कहीं अकेले। झमेले सारे खत्म हो जायें। सुबह शाम क्या बनाऊं, थोड़े दिन मन में चैन आ जाये। घूम ले फिर ले, मौज-मस्ती हम कर ले। नई ऊर्जा से हम भर लें, प्रीत प्यार की बाते कर ले, आ उड चले हम दोनों। दुनियादारी की ना हो बातें, प्रेम भरी बस चंद रातें, तू मुझे निहारे। मैं तुझे निहारूं। बांहों के बस घेरे हो प्रेम प्रीत पर ना पहले हो, आ उड चले हम दोनों। कहाँ जाये प्रिय तुम ये बताओ, थोड़ा पास हमारे आओ। यहीं तुम्हें हम सब घूमा दे। हो गई ‌तकरार फिर से, कंजूस हो तुम पति बड़े से।। परिचय :- मधु अरोड़ा पति : स्वर्गीय पंकज अरोड़ा निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
अनाथ बच्चों की व्यथा
कविता

अनाथ बच्चों की व्यथा

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** सर से मासूम के हटा जब मां-बाप का साया मां-बाप की आंखों का तारा अनाथ कहलाया। माया ईश्वर की मासूम समझ न पाया आखिर क्यों उठ गया मां-बाप का साया मां-बाप के बिना मासूम अनाथ कहलाया। खेलने-खाने की उम्र में जिम्मेदारियों का बोझ उठाया कभी होटलों तो कभी भट्टों पर रात बिताया मां-बाप के बिना मासूम अनाथ कहलाया। कभी शोषण का हो शिकार बचपना गंवाया कभी बाल अपराधी बन जीवन नरक बनाया मां-बाप के बिना मासूम अनाथ कहलाया। दो जून की रोटी के खातिर दर-दर की ठोकरें खाया कभी रुखा-सूखा खाकर कभी भूखा ही रात बिताया मां-बाप के बिना मासूम अनाथ कहलाया। मां-बाप को याद कर छुप-छुप नीर बहाया पापी पेट के लिए कभी भिक्षावृत्ति अपनाया मां-बाप के बिना मासूम अनाथ कहलाया। परिचय :- सुनील कुमार निवासी : ग्राम फुटहा कुआं, बहराइच,उत्...
कोई लौटा दे !
कविता

कोई लौटा दे !

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** तुझे ढूँढ रहा बचपन, तुझे ढूँढ रही मस्ती। कोई लाके मुझे दे दो, मेरे गाँव की वो कश्ती। बहकी -बहकी राहें, वो कलियों की बाँहें। लौटा दे कोई बचपन, लौटा दे मेरा सावन। वो फूल से भी नाजुक, वो बच्चों की बस्ती। कोई लाके मुझे दे दो, मेरे गाँव की वो कश्ती। वो बचपन के लम्हें, जीवन के खजाने थे। कब हार के फिर जीते, वो दिन अनजाने थे। वो धूल भरी सड़कें, मेरे होंठों पे सोती। कोई लाके मुझे दे दो, मेरे गाँव की वो कश्ती। वो माटी की खुशबू, वो फागुन की होली। जो बंद है मुट्ठी में, वो खुशियों की झोली। जो गाती माँ लोरी, वो थी कितनी सस्ती। कोई लाके मुझे दे दो, मेरे गाँव की वो कश्ती। गुम हो चुका वो मौसम, ठग ली मुझे जवानी। तुतलाती भाषा वो, लौटा दे मेरी कहानी। उन खेल -खिलौना की, है कितनी बड़ी हस्ती। कोई लाके मुझे ...
पुण्यतिथि पिता की
कविता, संस्मरण

पुण्यतिथि पिता की

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** अठतीसवीं पुण्यतिथि पिता की, गंगा तट पर याद की। आई थी इस जन्म जयंती वर्ष में, माताश्री भी शरण में आपकी।। संघर्ष किया जननी ने तो, तप- शक्ति थी आपकी। क्यों छोड़ गए थे उस देवी को, क्या इच्छा थी आपकी।। हम तो दण्डित होते रहे पर, सेवा न कर पाए आपकी। उनको दंडित कौन करेगा, जिसने सेवा करने दी आपकी।। मिटा न सका कोई सिद्धांत, सत्पथ पर चलने के आपकी। थी इच्छा प्रबल अति शिक्षा की, अवधारणा मन में आपकी।। सहन न कर पाया लंपट वह, संतति उन्नति को आपकी। किया प्रयोग तंत्र विद्या का, मनस्थिति कैसे बिगाड़ी आपकी।। किया कुछ भी हो धृष्ट ने फिर भी, वह बराबरी न कर पाया आपकी। थे परम शिव- शक्ति उपासक आप, वह छाया भी न था आपकी।। आई जुलाई की तीसरी तिथि, जो जीवन ले गई थी आपकी। करता सुरेश जगतारिणी बन्दन, संरक्षण हेतु माता और आपकी।। परिचय ...
आओ एक दीया जलाऐ
कविता

आओ एक दीया जलाऐ

डॉ. मोहन लाल अरोड़ा ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा) ******************** आओ एक दीया जलाऐ घुप अन्धेरे को दुर भगाऐ माँ की कोख से बेटी बचाये बेटी को पढाऐ लिखाऐ आओ एक दीया जलाऐ अपने बेटे को भी समझाये पढाये जन्म दिन का केक यूँ ना उड़ाये भूखे को खिला कर दुआ कमाये सब की इज्ज़त करना सिखाऐ आओ एक दीया जलाऐ मेहनत की कमाऐ ईमानदारी की खाऐ भ्रष्टाचार और कालाबाजारी को दुर भगाऐ बच्चों को अच्छे संस्कार सिखाऐ बुजुर्गो का आशीर्वाद और माँ बाप का मान बढाऐ आओ एक दीया जलाऐ क्यो दंगा क्यो मजहब करवाऐ सब धर्मो का मान बढाऐ दान पुण्य का पाठ पढाये निर्धन की मदद भूखे को रोटी खिलाऐ आओ एक दीया जलाऐ घुप अन्धेरा दुर भगाऐ...।। परिचय :- डॉ. मोहन लाल अरोड़ा कवि लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता निवासी : ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा) प्रकाशन : ३ उपन्यास, ७२ कविता, ७ लघु कथा १२ सांझा काव्य संग्रह प्रकाशित...
औरत- त्याग की मूर्ति
कविता

औरत- त्याग की मूर्ति

श्वेता अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** मन को अपने मार के, दूसरो की खुशियो के लिए जीना उसे आता है, त्याग और समर्पण से गहरा उसका नाता है! त्याग की मूर्ति औरत ऐसे ही नही कहलाती है, बचपन से ही त्याग करना सीखती जाती है! राखी बांधती है भाई की रक्षा के लिए, करवा चौथ भी करती है पति की लंबी उम्र के लिए! खुशी के लिए दूसरो की, खुद को मिटाती जाती है! मां, बेटी का हो या बहन का हो, हर फर्ज निभाना उसे आता है! खुद की ख्वाहिशो को कैद कर आशियाने को अपने सजाती है, एक बच्चे की किलकारी के लिए, असहनीय दर्द वो सह जाती है! खुद की जान को ताक पर रखकर, नई जान को दुनिया मे लाना उसको भाता है! मन को अपने मार के, दूसरो की खुशियो के लिए जीना उसे आता है! परिचय :-  श्‍वेता अरोड़ा निवासी : शाहदरा दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक...
हां मैं बेटी हूं
कविता

हां मैं बेटी हूं

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** हां मैं बेटी हूं जिससे ये दुनिया चलती है मुझसे है सभी को नफरत जिससे उनकी पीढ़ी चलती है। जब छोटी थी तो हर ख्वाब दिखाया गया थोड़ी सी बड़ी हुई तो हर ख्वाब अधूरा सा रह गया जब जिद्द की पूरा करने की तो घर में मुझे बिठाया गया अभी उलझने बहुत है किसी तरह जिंदगी चलती है हां मैं बेटी हूं जिससे ये दुनिया चलती है। पापा कहते समाज को देखकर चलना है मैंने कहा हमे ही तो समाज को बदलना है पापा ने कहा समाज को तुम नहीं समाज को देखकर तुम्हे बदलना है। मैंने कहा पापा मुझे कुछ करने दो पढ़ लिख कर कुछ बनने दो पापा ने कहा तुम बेटी हो रहने दो मैंने कहा पापा अभी रहने दो मुझे अभी रहना है सबकी निगाहों में पापा ने फिर वही कहा, तुम बेटी हो तुम्हे जाना है ससुराल में फिर मैं इस घर को छोड़ दूसरे घर को चलती हूं वहां प...
मां और पत्नी
कविता

मां और पत्नी

सुखप्रीत सिंह "सुखी" शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ना कभी लिखा ना कभी लिख पाया है ना कभी लिखा ना कभी लिख पाया है तुम्हें मां से ज्यादा तो नहीं पर मां से कम भी नहीं पाया है ये बात सच है कि मां ने मेरी जिंदगी सवारी थी पर यह भी सच है कि तूने मेरी दुनिया सवारी है मुझे मां भी प्यारी थी मुझे तू भी प्यारी है हां मां ने मुझे चलना सिखाया था हां मां ने मुझे चलना सिखाया था और तूने साथ चलना सिखाया है सर पे मेरे तब मां का साया था अब साथ मेरे तेरा साया है ना कभी लिखा ना कभी पाया है मां मेरे खाने, पीने, पहनने का ख्याल रखती थी और तू भी मेरे खाने पीने और सोने जागने का ख्याल रखती है मां भी मेरी देर रात तक राह तकती थी तू भी मेरी देर रात तक राह तकती है मां ने मेरा परिचय मेरे पिता से करवाया था तूने मुझे पिता होने का गर्व कराया है औ...