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एक कसक बाकी है

राजीव रावत
भोपाल (मध्य प्रदेश)
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आज भी अधूरा सा है
जिंदगी कि यह सफर तुम्हारे बिना-
दिल तो तन्हाइयों में पागल सा
ढूंढता है आज भी तेरे निंशां-

ये बेकरारी आज भी
दिल की धड़कनो में देती है एक आहट सी-
दिल के मुंडेरों पर उग आती है
अक्सर हरी दूब
जिसमें एक छुपाई हुई चाहत सी-

अभी भी
दिल के हवादानों पर ठहरी हुई
श्वासों को तेरी गंध मन को बहला जाती है-
नदी के पानी में
डुबोये तेरे पैरों की वह छपछप
और दूर दिशा से आती हुई पुरवाई
तेरे यादों की बयार से नहला जाती है-

यूं तो मुस्कराता हूं
छुपा कर
दर्द-ओ-ग़म दिल में आज भी
भला कहां है सुकून-ए-जिंदगी तेरे बिना-
इंतजार-ए-इश्क और बेकरारी
आज भी
कायम है दीदार-ए-यार को तेरे बिना-

चल रहा हूं सफर-ए-जिंदगी में
लिए तेरे अहसासों को मुंतजिर सा मगर-
कर गया बेनूर सा
मोहब्बत में चलने का यह हमारा सफर-

तुम छुड़ा कर अपना हाथ
तोड़ कर जिंदगी भर निभाने का वायदा
चले गये दूर कहीं अनजानी सी डगर-
मगर मैं कहां भूला हूं
तुम्हारी उस प्यार भरी मुस्कान को
शर्माने वह तुम्हारी अदा
और जो मेरे सीने पर कपंकपाती
उंगलियों से लिखे शब्दों से शुरू हुआ था
जिंदगी का अनजाना हमारा सफर-

तुम्हारे अहसासों का
वह अनछुआ असर अभी बाकी है-
सच कहूं
तुम्हारे साथ फना होने की एक कसक बाकी है-

परिचय :- राजीव रावत
निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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