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कविता

मेरी रब हो…
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मेरी रब हो…

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू! सोनू! सोनू! तुम हो तुम जब से तुम आई जीवन में मेरी तो जिंदगी ही बदल गई एक ख्वाब था दिल में दिमाग में उस हसीन ख्वाब की हकीकत हो तुम वीरान सी जिंदगी की हसीं बहार हो तुम ये दिल जिसे अपना मानता है वो हो तुम मेरी जिंदगी की हर सवाल का जवाब हो तुम मेरे जुबां पे आई वो हर अल्फाज हो तुम मेरे हर उन अल्फाजों की मतलब हो तुम आसमान से उतरी हुई कोई परी हो तुम मेरे सुने दिल को खुशियों से भरने वाली हो तुम मेरे हर एक सवालों की जवाब हो तुम कायनात की एक दिलकश परी हो तुम मेरे दिल को जो राहत दे सके वो सुकून हो तुम पथरीले रास्तों से निकली मीठे झरना हो तुम मेरी हर कविता की हर शब्द हो तुम उतरती हुई संध्या की मीठी मल्हार हो तुम सुनहरी सुबह की आभासिक्त किरण हो तुम सावन की रिमझिम रिमझिम बारिश हो तुम जेष्ठ की झिलमिलाती ...
नजा़रा
कविता

नजा़रा

मनीष कुमार सिहारे बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** क्या दिलचस्प नजा़रा है, घर नदी के किनारा है। ढलती सुरज की रक्त किरण से, सारा घर उजियारा है।। मानो घर में दीप प्रज्जवलित, उस सा घर चमकाया है। तट पर बैठे पथिक के मन में, छोटा-सा मुस्कारा है।। मानो उस मुस्कान के पाछे, ये सारा का सारा नज़ारा है। क्या दिलचस्प नजा़रा है, क्या दिलचस्प नजा़रा है।। पंछी सुर में तान भर रही, नदिया छन छन छपक चल रही। दो हंसो का जोड़ा संग में, ऊंचे गगन में तान भर रही।। देख जुगल दो हंसो को, मन में ख्वाबों का छाया है। बीती पल वो याद आ रही, जो पंथि संग गुजारा है। क्या दिलचस्प नजा़रा है, क्या दिलचस्प नजा़रा है।। हरीयाली ना पुछो यहां की, हर एक प्यारा प्यारा है। सुगंध युक्त पवमान यहां की, पल पल बहनें वाला है।। आओ तुम भी सांथ मे मेरे, तर जाये इस दरिया पे। सुन्दर जग की रचना करके, र...
फूल कहीं भी खिलें, महकते ही हैं।
कविता

फूल कहीं भी खिलें, महकते ही हैं।

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** हज़ार पाबंदियों में रख लो, चाहे बेड़ियों में जकड़ दो। खिलने के बाद रौंदने की चाह भी रख लो। मगर यह तो प्रकृति का नियम है, फूल कहीं भी खिलें, महकते ही हैं। सुबह की रोशनाई चुरा लो उनसे, शाम की हंँसी अँगड़ाइयाँ भी छुपा लो। रात की चांँदनी भी न बिखरने दो, लाख ताले लगा रख दो जलता दीप उसमें, पर दीप जले तो, उजाले होते ही हैं। जिंदगी कई इम्तहान लेती है। कभी हंँसाती है, तो कभी रुलाती है। कभी कई साथ देते, तो कई छोड़ते हैं, पर आदत है अपनी, सबको पुकारते हम आवाज़ लगाते ही है। इस राह में तुम साथ दो तो बहुत अच्छा। और गर चल दो, साथ ना दो, तो भी अच्छा। अकेले चलने की तो आदत है, हम रुकेंगे नहीं चाहे कैसा भी मौसम हो इन आँखों में जीत जाने के सपने हमेशा सजते ही हैं। परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्षा : एम.ए. (हिन...
मैं हिंदुस्तान हूं!
कविता

मैं हिंदुस्तान हूं!

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैं हिंदुस्तान हूं यारों, कहानी खुद सुनाता हूं। पुराना है बड़ा इतिहास, यह तुमको मैं बताता हूं।। यहां हर धर्म जाति का, उचित सम्मान होता है । हिमालय ताज है मेरा, चरण सागर भी होता है।। चले आए हूण, शक, तुर्क, न थे मंगोल भी पीछे। कुटिल अंग्रेज और मुगल भी ना थे इनसे कहीं पीछे।। विभाजित कर किया शासन, चलायीं नीतियां अपनी। सुनिश्चित हो गया था अब, इन्हीं की रोटियां सिंकनी।। सहे सब ज़ुल्म, अत्याचार, हुयी फिर खत्म सहनशक्ति। लगा शोणित उबलने फिर, जाग उठी देशभक्ति।। किया संघर्ष वीरों ने, कफन फिर बांधकर सिर पर। शहादत भी पड़ीं देनीं, मुझे भी रक्तरंजित कर।। किया दो सौ बरस शासन, चले बुद्धू लौट घर को। संभालो अब हिफाजत से, शपथ है आज तुम सबको!! परिचय :- संजू "गौरीश" पाठक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत...
अरुण यह मधुमय देश हमारा था
कविता

अरुण यह मधुमय देश हमारा था

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** छंद मुक्त कविता सृष्टि के दैवी आदिकाल में, देवी-देवताओं का राज्य था। सुख, शान्ति, समृध्दि विचरे, धरातल स्वर्ग सा गौरवमय था। अरुण यह मधुमय देश हमारा था। यहां ऋषि मुनियों का बसेरा, महान भूमि पर संतों का डेरा। भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, तप, श्रध्दा, त्याग, धैर्य, निष्काम, भावना। अरुण ऐसा मधुमय देश हमारा। उज्वल धरा पर उदित हुए, जन नायक, जगतवंद महात्मा। लोककल्याण के परम साधक, सात्विक पावन जीवन प्यारा। अरुण यह मधुमय देश हमारा। एक जाति, एक धर्म, एक भाषा, चहूं ओर पवित्रता का राज्य था। विकार मुक्त, निर्विकारी दशा का, सत्य, स्वतंत्र, स्वराज्य अधिकार था। अरुण यह मधुमय देश हमारा था। एकमत, एकरस, एकता का भाव, व्यक्ति समाज पूर्णता में प्रसन्न था। लोकोदय के ऊंच लक्ष्य से परस्पर, भारत भू का जीवन मंगल प्रेरित था अरुण यह म...
मां भारती
कविता

मां भारती

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** तेरी माटी में मां हम सब, खेल कूद कर बड़े हुए । तेरा पौष्टिक अन्न ग्रहण कर, हष्ट-पुष्ट बलवान हुए । अब मेरी बारी मां तेरा, कर्ज चुकाना बाकी है; कुछ कर्ज चुकाना बाकी है, कुछ फर्ज निभाना बाकी है। स्वच्छ गगन हो, शुद्ध वायु हो, निर्मल जल की धारा हो; धानी आंचल लहराता हो, सोंधी सुगंध माटी की हो। इन विभूतियों को सहेजकर रखने की मेरी बारी है, क्योंकि कुछ कर्ज चुकाना बाकी है, कुछ फर्ज निभाना बाकी है। शुद्ध आचरण का स्वामी, भारत का हर एक बालक हो; देश भक्ति से भरा हुआ, मां वंदन का मतवाला हो। सभ्य संस्कृति को संजोकर रखने की मेरी बारी है, क्योंकि कुछ कर्ज चुकाना बाकी है, कुछ फर्ज निभाना बाकी है। विश्व गुरु की पदवी पाए, जग में तेरा मान बढ़े; धरा से अम्बर तक लहराए, 'जै भारती' हर लाल कहे। अपने तिरंगे को शिखर तक ल...
बेटी उन्मुक्त भारत की
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बेटी उन्मुक्त भारत की

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** बेटी उन्मुक्त भारत की इतिहास रचती जा रही जिद्दी होकर जीत की, दमखम से स्वयं की पहचान की नई रस्म है बना रही सपनो को वो कर साकार एक मिसाल है दे रही विचारधाराओ को दे नया आकार खरीद नहीं रही, अब सोना चाँदी कमा रही खिलौना नहीं समाज का खिलाड़ी बन उभर रही मंजिल हासिल करने को, न मिटने वाले पदचिन्हों की निर्माता हो बुलंद हौसलों से रास्ते नए बना रही परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सक...
कोरोना आजकल
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कोरोना आजकल

जितेन्द्र देवतवाल 'ज्वलंत' शाजापुर (मध्य प्रदेश) ******************** साथ-साथ चले कोरोना आजकल। भाई ! मुह पर मास्क लगाकर चल।। चारो तरफ कोरोना लहर अविचल। पुर्वांचल से लेकर तक पश्चिमांचल।। दक्षिण से लहर हो सकती हिमाचल। हे वैक्सीन मास्क दूरी ही प्रबल हल।। हे सांसों में जहरीली हवा रही मचल। ये बदन में न समा जाए रहो चंचल।। जीव आवास बनाया कंक्रीट जंगल। बगिया में खोली है होटल रत्नाचल।। अब कैसे उमड़ेंगे सौरभ के बादल। बजाओ पर्यावरण संरक्षा का बिगुल। मरे चूहे पे मानवी कौए की हलचल। आज न संभले तो क्या होगा कल। हर मोसम कोरोना संक्रमण सचल। हाथों में क्रांति का ध्वज लेके चल।। कुदरत के साथ किया मानव ने छल। भाई ! मुह पर मास्क लगाकर चल।। परिचय :-  जितेन्द्र देवतवाल 'ज्वलंत' निवासी : शाजापुर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुर...
सबको थोड़ा नीर चाहिए
कविता

सबको थोड़ा नीर चाहिए

संगीता केसवानी ******************** सबको थोड़ा नीर चाहिए कैसे मिटे ये पीर चाहिए, प्यास सबकी सांझी मगर जीवन नईया को मांझी चाहिए अम्बर के आंचल में बैठे बादल को भी नीर चाहिए..... कैसे पहुंचे बूंदे उस तक सोच ये गम्भीर चाहिए।। नील गगन के आंगन का हरित भूमि श्रृंगार चाहिए क्यों न मिलकर बीज लगाएं रंग-बिरंगे फूल खिलाएं धरा को फिर स्वर्ग बनाएं ऐसे कुछ कर्मवीर चाहिए।। सबको थोड़ा नीर चाहिए।। जल को थामे, पोखर बांधे ताल-तलैया कुछ और बनाएं नदिया कल-कल गीत सुनाएं सूरज की फिर प्यास बुझाएं घटा काली यूं घिर-घिर आएं ऐसे कुछ रणधीर चाहिए। सबको थोड़ा नीर चाहिए।। परिचय :- संगीता केसवानी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपन...
किस्मत
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किस्मत

आरती यादव "यदुवंशी" पटियाला, पंजाब ******************** इक दिन खुदा से ये पूछेंगे जरूर कि आख़िर किस्मत क्यों बनाई है? किस्मत से ही किस्मत मिलती है यहां ये बात अब समझ में आई है। किसी को बेशुमार दौलत देती है ये तो किसी से भीख भी मँगवाती है, किसी को मख़मली गद्दों पर ये तो किसी को फुटपाथ पर सुलाती है। कोई हँसते-हँसते थकता नहीं यहाँ तो किसी को भर-भर आँख रूलाती है, किसी को थाल भर कर देती है ये तो किसी को भूखे पेट सुलाती है। कोई सर उठा के चलता है यहाँ तो किसी का शर्म से सिर झुकाती है, ये किस्मत भी कितनी अजीब होती है किसी को मिलकर भी नहीं मिलती तो किसी को ना मिलकर भी मिल जाती है। क्यूँ ढूंढते हो हाथों की लकीरों में इसे याद रखना !!!! किस्मत की कोई लकीर नहीं होती, मंजिलों को पाने की चाह होती है जिन में वो खुद ही रास्तों से मिल जाया करते हैं, रखते नहीं कि...
झंडा मेरा है महान
कविता

झंडा मेरा है महान

संतोष गौरहरी साहू डोंबिवली पूर्व मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** तीन रंगो से बना तिरंगा, सब करते इसका सम्मान, झंडा मेरा है महान, करता हु मैं इसे प्रणाम! हो जाता सर गर्व से ऊंचा, गाऊँ जब में राष्ट्रीय गान, झंडा मेरा है महान, करता हु मैं इसे प्रणाम! रंगो का क्या कहू मैं तुमसे, धरती अंबर है इसकी शान, झंडा मेरा है महान, करता हु मैं इसे प्रणाम! लहराये ये ऐसे जैसे खेतो में लहराते धान, झंडा मेरा है महान, करता हु मैं इसे प्रणाम! मैं इसका और ये मेरा कहता है ये हिंदुस्तान, झंडा मेरा है महान, करता हु मैं इसे प्रणाम! रुकते नहीं कदम बढ़ने से, जब कर्ता कोई इसका अपमान, झंडा मेरा है महान, करता हु मैं इसे प्रणाम! तीन रंगो से बना तिरंगा, है मेरे भारत का शान, झंडा मेरा है महान, करता हु मैं इसे प्रणाम! लेता हु प्रण मैं अब से, न होने दूंगा इसका अपमान, झं...
बम बनाकर, बम हो गए
कविता

बम बनाकर, बम हो गए

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** अपने भौतिक विचारों से, और कलुषित व्यभिचारों से, देखो ना हम क्या हो गए? बम बनाकर, बम हो गए। मानव का ही सोचा विस्तार, मानवता पर ना किया विचार, जमीन पा हम ज़मीर खो गए, बम बनाकर, बम हो गए। कितना चिकना सुंदर ऊपर, सबसे बुद्धिमान है भू पर, घृणा बीज दिलों में बो गए, बम बनाकर, बम हो गए। बम है विनाश का ढेला, घृणा गद्दारी का रेलमरेला, भर, आंखें बंद कर सो गए, बम बनाकर, बम हो गए। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कवि...
मित्र
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मित्र

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** स्वस्थ रहें सानंद रहें मित्रों को बहुत बधाई है मिलें सुमित्र भाग्य जग जाए वरना बहुत हंसाई है पावन भारत में मिलते हैं मित्रों के प्रतिमान बहुत एक बार भी ध्यान जो कर ले आ जाती अंगड़ाई है दे अवलम्ब सुग्रीव को राम ने मानक निर्मित नया किया राज मुकुट विभीषण के सिर मित्रता ख़ूब निभाई है कृष्ण सुदामा जैसी मित्रता दुनिया में दुर्लभ अब भी गले लगाया कृष्ण ने उनको तो दुनिया हर्षाई है वज्र अस्त्र निर्मित करने को अस्थि दान कर दिये दधीचि नष्ट हुई असुरों की सेना धर्म ध्वजा लहराई है भाग्योदय मित्रों से होता और ख़ुशी की बारिश भी मित्र शक्ति संवर्धक भी है मित्रों से तरुणाई है नहीं मिलेगा त्रय लोकों में मित्रों सा साहिल कोई मित्रों संग धोखा फ़रेब की नामुमकिन भरपाई है परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन...
इस समन्दर में
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इस समन्दर में

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** तेरा बस, एक ही, ठिकाना है- तुझको, माया में डूब जाना है। लहरों के मोह में तू भूल नहीं- इस समन्दर में, ज्वार आना है। एक वायरस से बचा मुश्किल- फिर किसको, क्यों, सताना है। वो उलझते हैं जो समझते नहीं- ये जो जीवन का ताना-बाना है। अपने दर्दों को छिपाकर रखना- कुछ मजाकिया सा ये जमाना है। ये भोर यूँ, मुफ्त में नहीं मिलती- पड़ता, सूरज से, छीन लाना है। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, विश्व मानव, स्पूतनिक, मनस्वी वाणी, राष्ट्रीय पहल, राष्ट्रीय नवाचार, कुबेर टाइम्स, ...
सब्र से ही इश्क महरूम है
कविता

सब्र से ही इश्क महरूम है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सब्र करना जरूरी होता है, सब्र करना कभी मजबूरी है, सब्र कभी मजा देता धूम है, सब्र से ही इश्क महरूम है। इश्क की हालात पतली है, हुस्न की जीत ही असली है, पर सब्र से लेना होता काम, इश्क लगती सुंदर ढफली है। घर द्वार भी सज जाते कभी, जब हुस्न चलके घर आता है, बहारे भी फूल बरसाती देखी, कभी इश्क दिल तड़पाता है। इंतजार करना भी मजबूरी है, बांहों में सजना भी जरूरी है, जब हवायें विपरीत चलती है, दिलों की बढ़ती बस दूरी है। कभी इश्क भी ताने सहता है, कभी हुस्न दिल में रहता है, सब्र भी कभी कब्र बन जाता, अश्रु की धार झर झर बहते हैं। जब चाहत बलि चढ़ जाएगी, तब तो हुस्न बनता मासूम है, सब्र करना पड़ता तब कभी, सब्र से ही इश्क महरूम है। सब्र करके मजनूं रोया है, लैला का दुपट्टा भिगोया है, सब्र से ही इश्क महरूम है, ...
धन्य किया भारत को नीरज
कविता

धन्य किया भारत को नीरज

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** हरियाणा का छोरा नीरज! किया सतत् घन तप, धर धीरज...!! तपस्या हुई है फलीभूत! ओलंपिक खिला स्वर्ण- पंकज!! कर के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन! किया है हर्षित देश का मन!! स्वर्णिम उपलब्धि भारत की! बधाईयांँ दे रहा जन- जन...!! भाला फेंक में स्वर्ण जीता! देश खुशी का मय है पीता...!! बजा टोक्यो देश का गान...! ओलंपिक- स्वर्ण खेल-गीता!! पूरा आर्यावर्त हर्षित ...! उम्र तइस -तरुण स्वर्ण- अर्जित!! शत वर्ष बाद एथलेटिक्स...! इतिहास रच किया है गर्वित ... !! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...
पाती
कविता

पाती

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** ये पाती अनुबंध न कोई भावों का अनुदान न कोई जाने कितने स्वप्न सलोने कितने अभिलाषा के सागर कितने सौगंधों के ढेर पार न कोई। वहीं तुम्हारी प्यारी बतियां डस लेती हैं काली रतियां मन की भाषा ही पढ़ती है तन से है संबंध न कोई। पुरवा के झोंके सी खुशबू मन प्राणों में महके खुशबू तन में महक समाई ऐसे महक उठा हो उपवन कोई। भावों का छलका घट सारा भुजबंधों का मिला सहारा फिर कोई सूरज उग आया भीगे वर्षाजल में जैसे मन की धरती धूप नहाई। फिर गरजे हैं बादल काले रिमझिम रिमझिम बरसे सारे पता नहीं क्यों तुमसे अब तक टूटा है तटबंध न कोई। परिचय :- सुधा गोयल निवासी : बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
फोन
कविता

फोन

ज्योति लूथरा लोधी रोड (नई दिल्ली) ******************** हर वक्त फोन-फोन, सदा बजती इसकी रिंग-टोन, चलते रहते इसमें अनेक सॉन्ग, है ये विस्फोटक बॉम्ब, दुनिया का है सबसे बड़ा डॉन। फोन है एक बीमारी, विचित्र माया है सारी, न जाने कितने आते संदेश, या होते कई नोटिफिकेशन। फोन बन गया वो जोड़, जिसे न हम पाएं छोड़, ताकत इसकी है बेजोड़, जवाब दे ये मुँह-तोड़। करता कितने काम ये, बनाता हमे महान ये, एक बटन दबाते ही, पहुँचता हमे विदेश ये। गाने, फिल्में, तस्वीरें, करता कितने काम रे, मुसीबत करे आसान, इसमें है संपुर्ण जहान। घंटो बने हमारा दोस्त, हो जाए हम इसमें मदहोश, छोटा है पर काम बड़े, कारनामे इसके देख हाथ हो खड़े। फोन नहीं ये डॉन है, इसके बिना कौन है? आज का ये हीरो है, फोन ही हमारा गुरु है। आज का ये हीरो है, फोन ही हमारा गुरु है। परिचय :- ज्योति लूथरा स...
टोक्यो ओलिम्पिक हॉकी
कविता

टोक्यो ओलिम्पिक हॉकी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** खिलाड़ी की उमर कम है, मगर इरादों में दम है तारीफ करो जितनी भी, लगती फिर भी कम है हॉकी बादशाही इतिहास, भारत बेमिसाल रहा दुनिया को हिंदुस्तानी, जज़्बों का खयाल रहा मेजर ध्यानचंद रुतबा, जग को एक सवाल रहा अस्सी दशक के बाद से, पदकों का अकाल रहा प्रशिक्षण साधन मेहनत कठोर,दूर हटाता तम है दृढ़ संकल्प बल पर, लक्ष्य प्राप्ति से बम बम है तारीफ करो जितनी भी, लगती फिर भी कम है। जयपाल से वासुदेवन, स्वर्ण पदक के आसमान बोखारी मेजर केडी किशन, चरण बलवीर शान तालिका में बारहवे क्रम से, बिगड़ी बहुत पहचान उचित पर्याप्त समय की, मेहनत से ही समाधान टोक्यो ओलिम्पिक में, कांस्य पदक से ढम ढम है लंबे अंतराल में मनप्रीत, खुशियों से आंखें नम है तारीफ करो जितनी भी, लगती फिर भी कम है। समय परीक्षा लेता खूब, पल पल का है घमासान गुजरते लम्हों की धड़कन, जज़्...
मेरी कलम
कविता

मेरी कलम

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** मेरी कलम दिखादे तू अपना कमाल । रोटी मुझे मिले सदा हक़ - ओ - हलाल ।। मेरी कलम बन जाए मज़लूम की आवाज़ । फिर हर तरफ सुनाई दे खुशियों के साज़ ।। मेरी कलम बन जाए सब जन की बफा । जुल्म जमाने से हो जाए रफा - दफा ।। जमाने मे मेरी कलम से हो जाए अमन । इंसानियत की खुशबू से महका करे चमन ।। मेरी कलम बन जाए अवाम की अज़ीज़ । फिर हक़ - ओ - बातिल की समझेंगे तमीज़।। 'नाचीज' झूठ - ओ - फरेब से सदा रह दूर । हर तरफ चमकता रहेगा तेरी क़लम का नूर ।। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा स...
रंँग राहु
कविता

रंँग राहु

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं राहु हूं सबको राह दिखाता हूं। सबको राह पर लेकर भी आता हूं। मैं मस्त, अलबेला, अनभिज्ञ हूं शनिदेव का मैं संगी हूं अन्याय का तभी भंगी हूं। शनि के साथ मिल न्याय चक्कर चलाता हूँ। साढ़ेसाती में देख दुष्ट पापियों को हंसता मुस्कुराता हूँ। मैं राहु हूँ जीवन में नए-नए रंग लेकर आता हूं तभी तो हूं रंँग राहु हूँ। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...
आज का दौर महान
कविता

आज का दौर महान

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** आज का दौर कुछ अलग तरह का है। न इसमें रिश्ते और न अपनापन बचा है। चारो तरफ शोर सरावा और दिखावा है। होड़ लगी है सबमें हम सबसे श्रेष्ठ है।। मैं अपने में पूर्ण नहीं हूँ ये मुझे पता है। होड़ाहोड़ी में पढ़कर गलत कर जाता हूँ। फिर दुख बहुत होता है पर क्या करें। कलयुग में सबकी अपनी चिंताएं है।। बैठ शांत भाव से जब सोचा करते थे। तब मन में सदा अच्छे भाव आते थे। और सभी संगठित होकर साथ रहते थे। इसलिए समाज का बजूत होता था। कहने करनी में कितना अंतर आया है। कहकर मुकर जाए ये पाठ पढ़ा है। जब भी मौका मिला ऐसे लोगों को। तो सस्ती लोक प्रियता हासिल की है। पर कुछ दिनोंमें इनकी लंका जली है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेज...
राम नहीं नाम राज
कविता

राम नहीं नाम राज

दशरथ रांकावत "शक्ति" पाली (राजस्थान) ******************** छोड़कर साकेत नगरी राम लौटे फिर धरा पर, फिर कोई रावण ही होगा लौट जाऊंगा हरा कर। पर अयोध्या सीमा में घुसते ही पुष्पक रोक दिया, पांच सौ देने पड़े एक गार्ड ने था टोक दिया। जब महल ढूंढा मिला जर्जर सा एक पाषाण खंड, आवेग जो अब तक दबा था हो गया आखिर प्रचंड। दूर एक नूतन महल बनते जो देखा राम ने, दुख भंवर का मिला किनारा सोचा था श्री राम ने। पूछा जब एक मजदूर से क्या ये भवन मेरे नाम होगा, ५००० दोगे तो निश्चित एक पत्थर तेरे भी नाम होगा। खूब आदर पा के राजा राम हनुमत को पुकारें, अब तो बजरंग ही हमारे संकटों को आकर निवारे। जब हृदय की गहरी पुकारें सुन के भी हनुमत न आये, राम फिर बोलें सिया से है प्रिये हम व्यर्थ आये। नंगे पग तब एक बाह्मण भागता आता लगा, राम पहले चौकें थे फिर भाव से हनुमत लगा। गिर चरण में रो पड़े हैं प्रभु आप क्य...
उफ! ये सावन…
कविता

उफ! ये सावन…

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वो बचपन की मस्ती, वो तोतली बोली, वो बारिश का पानी, और बच्चों की टोली, वो पहिया चलाना और नाव बनाना, माँ का बुलाना और हमारा न आना, वो अनछुए पल याद दिलाता है "उफ! ये सावन जब भी आता है"।। लड़कपन में लड़ना और फिर मचलना दोस्तों का मनाना हमें फिर मिलाना मैदान के कीचड़ में गिरना-गिराना और माँ से वो गंदे कपड़े छुपाना वो अनछुए पल याद दिलाता है "उफ! ये सावन जब भी आता है"।। यौवन की दुनिया में आकर निखरना किसी अजनबी से मिलकर बहकना दिल का धड़कना वो बेचैन होना कभी याद करके हँसना फिर रोना पापा का डाँटना और माँ का समझाना वो अनछुए पल याद दिलाता है "उफ! ये सावन जब भी आता है"।। अचानक से फिर समय का बदलना वो परिवार के साथ बाहर निकलना वो छतरी उड़ाना और भुट्टे खाना बच्चों को सावन के झूले झुलाना माता-पिता बनकर कर्तव्य निभाना वो अनछुए पल...
वक़्त
कविता

वक़्त

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वक़्त देता है इंसान को जीने का सबक, और सबब भी वक़्त ही देता है, वक़्त ही देता है ज़ख्म और घाव भी वक़्त ही भरता है ।। वक़्त ही इंसान को जीना सिखाता है, वक़्त ही मुश्किलों से लड़ना सिखाता है।। वक़्त ही है जो वर्तमान में जीना सिखाता है, वक़्त ही है जो अनुशासन का मार्ग दिखाता है।। आपस में सामंजस्य घड़ी की सुइयां सिखाती है, और अनवरत चलने की राह दिखाती है।। एक वक्त ही तो है, जो हो जाये अगर मेहरबान, तो बना दे इंसान को भी भगवान।।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...