विदाई
सुनील कुमार
बहराइच (उत्तर-प्रदेश)
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रीति ये कैसी जग ने बनाई है
कल तक थी जो अपनी
आज हुई वो पराई है
दिल के टुकड़े की
आज कर रहे विदाई है।
खुशी की है बेला मगर
आंख सबकी भर आई है
रीति ये कैसी जग ने बनाई है।
किसी से मिलन है
किसी से जुदाई है
रीति ये कैसी जग ने बनाई है।
छुप-छुप कर रोए भैया
मां सुध-बुध बिसराई है
बाबुल की भी आंखें डबडबाई हैं
घड़ी विदाई की आई है
रीति ये कैसी जग ने बनाई है।
कलेजे पर रख पत्थर
लाडली की कर रहे विदाई है
रीति ये कैसी जग ने बनाई है।
परिचय :- सुनील कुमार
निवासी : ग्राम फुटहा कुआं, बहराइच,उत्तर-प्रदेश
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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