जिंदगी का ये सच
डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज'
नागपुर (महाराष्ट्र)
********************
अपनों के बीच संबंधों का
आईना देखा हैं बहुत करीब से।
बनते तो ये व्यवहार करने से
पर बिगड़ जाते हैं कर्कश शब्दों से।
रिश्तों के नाम पर ये कैसी वफा हैं
उम्मीदें मन की सब लगाए बैठे हैं
झूकना पसंद नहीं हर किसी को यहां
झूठे अहं में वे जिंदगी गवां बैठे हैं।
अकेलेपन का नासूर रोज निगल रहा
अपनों से दूर हो रहा नाजुक ये रिश्ता
कमबख्त जिंदगी का ये कैसा सच हैं
जी कर रोज दफन हो रहा ये रिश्ता ।
ना चेहरों पर खुशी हैं ना रिश्तों में प्रेम
नकली मुस्कान का ये कैसा दर्द।
एहसास हो जाता हैं नकली बनावट से
रिश्तों के संबंधों से टूटकर बिखर गया
अपनों से अपनों का वो अपना दर्द ।
सरल नहीं इतना आसान जीने का
जितना जीने को जीने के लिए चाहिए।
समय व्यर्थ गवां बैठे हम इस जहां में
अब जिंदगी को सबकी परीक्षा चाहिए
करोड़ों जन्म क...

























