क्यूं नहीं आए सपने में
मंजू लोढ़ा
परेल मुंबई (महाराष्ट्र)
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मेरे लाड़ले भगवान,
कल क्यूं नहीं आए मेरे सपने में...
आते तो जीवन खिल जाता,
मेरा सखा मुझको मिल जाता,
मैं तरस गई तेरे दरशन को।
बडा सुरम्य दृश्य था...,
पवन थी ठंडी ठंडी सी,
और मोगरे की गंध भी,
चमक रही थी चांदनी,
और रातरानी की सुगंध भी,
केसर की कई क्यारीयां थी,
शोभा भी वहां की न्यारी थी,
झूला था, बगिया सलोनी थी,
वहां बस बिटिया मैं तुम्हारी थी।
आते ही तुमको झुला देती,
मां बनकर लोरी सुना देती,
चिंताए तुम्हारी हर लेती,
खुद को भी धन्य मैं कर लेती।
भटका इंसान जा रहा कहीं,
कोई चिंता तुझको हैं कि नहीं,
लेकिन तुझको अब भी है विश्वास,
मानवता रहेगी जिंदा
इसीलिए तेरे होठों पर
शरारती मुस्कान है,
ले रहा है परीक्षा अपने भक्तों की,
पर हरदम उनके साथ हैं।
क्यों नहीं आए कल सपने में...
आते तो जीवन महक जाता,
मेरे सखा, सपना मेरा ...

























