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कविता

हालात
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हालात

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** क्या किसी ने सोचा था, ऐसे भी दिन आयेंगे? सब कुछ होगा पास मग़र, तन्हा हो जायेंगे। रिश्ते नातों की मर्यादा पता नहीं कब टूट गई। धन वैभव अम्बार लगा पर क़िस्मत फूट गई। निपट अकेले पड़े बेचारे, जो सांस नहीं ले पाए। क़िल्लत है हर जगह, काश ऑक्सीजन आये। विपदा में ही जीना होगा, दूजों को सिखलायेंगे। क्या किसी ने सोचा था, ऐसे भी दिन आयेंगे? बार-बार धोते हाथों की भाग्य लकीरें घिसतीं। जीवनरक्षक दवा दुआ, ऊँचें दामों पर बिकतीं। हुआ पलायन मजदूरों का, भूखे प्यासे दिखते। काल कोरोना बन बैठा है, कैसे वो भी टिकते। अपनों के संग रह लेंगे, ये बात सभी दुहराते। अंदर है जो दर्द छुपा, वो खुलकर न कह पाते। पता नहीं कब आ जाए, कुछ, समझ न पाएंगे। क्या किसी ने सोचा था, ऐसे भी दिन आएंगे? परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्...
आखिरी शाम
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आखिरी शाम

ओंकार नाथ सिंह गोशंदेपुर (गाजीपुर) ******************** ए संवत् २०७७ की आखिरी शाम है, जो लिपट कर मुझ से ये कह रही है कि, एक बार गले तो लगा लो, अलविदा तो मैं खुद हो रही हूँ.. कभी मैं जीता, कभी वक्त जीत गया, इसी कशमकश में, यह संवत् २०७७ बीत गया.. तारों भरी रात अलविदा कह रही है, अब लफ़्ज नम हो रहे हैं, धड़कन थमने सी लगी है, पर... विक्रम संवत् २०७८ ये कह रही है, उठ.. ईश्वर को नमन कर, नव वर्ष का स्वागत कर.. अलविदा २०७७ स्वागत २०७८ परिचय :-  ओंकार नाथ सिंह निवासी : गोशंदेपुर (गाजीपुर) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने...
डर फिर से लोक डाउन का
कविता

डर फिर से लोक डाउन का

डाॅ. राज सेन भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** कैसे सो जाऎं साहब हम निश्चिंत होकर सुकून से क्या बताऎं किस दौर से गुजर रही हैं जिन्दगी हमारी रोज तड़के इस आस में पहुँच जाते हैं चौराहे पर नुमाइश करते हैं दिखते तन और अदृश्य मन की पर कहाँ आता हम सबके हिस्से में रोज काम कल के लिए आस लगाकर बैठजाते हैं दोपहर बाद किसी छाँव तले चाय शाय के लिए हम में से कुछ जोखिमदार अपनी गाढ़ी पूँजी से एक थड़ी या फिर थैला चलाते हैं जानते है अभी परिस्थितियों के प्रश्न सामने आ रहे हैं और शायद हमें लगता है अक्सर हम कम पढ़े लिखे या अनपढों के सामने हम कामगार मजदूरों के सामने जिन्दगी कठिन प्रश्न ही लाती हैं बिना किसी सामयिक नियम का पालन किये और अक्सर रोजी रोटी का प्रश्न तो छूट ही जाता है बहुत कोशिश के बाद भी हम इसका जवाब लिख ही नहीं पाते फिर भी पाठ्यक्रम से बाहर के प्रश्न भी ले आती है जिन्दगी जाने क्यों और लोक डाउन ...
पूरे जीवन में
कविता

पूरे जीवन में

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** पूरे जीवन में एक इंसान ऐसा न मिला जिसका कोई स्वार्थ न हो... कितने रूप है तेरे स्वार्थ, हर जगह बस चलता तेरा ही राज।। कितना भी अच्छा हो रिश्ता, कितना भी लगता हो सच्चा।। लेकिन आ ही जाता बीच में, निकाल कर नया रास्ता अब कहाँ महसूस होती रिश्तों में पहले सी गहराई, ऐसा लगता अब तो मुझको हो गई मैं खुद से भी पराई।। जिधर देखो बस अनजाना है सब, अपना होकर भी बेगाना है सब, हर जगह बस तेरा चलता राज, सब में निहित होता तेरा काज।। कहाँ मिलते अब निःस्वार्थ के रिश्ते बहुत मुश्किल से दिखते अब परमार्थ के रिश्ते अगर मिल जाये कभी कोई रिश्ता ऐसा, तो समझना उसको ईश्वर के मिलन जैसा।। खोना नहीं उसे बनकर अनजान सहेजना उसे समझकर सबसे मूल्यवान।। तभी समझना खुद को भाग्यवान।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहर...
और कुछ नहीं जिन्दगी
कविता

और कुछ नहीं जिन्दगी

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** छायी हर तरफ हाहाकारी समय अब पड़ रहा भारी बंद है काम धंधे सब कैसे हो बन्दोबस्त अब कैसे कट रही जिन्दगी बस कट रही जिन्दगी बस डर है बस खौफ है और कुछ नहीं जिन्दगी घर के अन्दर है बैचैनी बाहर है मौत का पहरा ऊपर वाला क्या सोंचे क्या पता इंसान तो इंसान ठहरा विपदा की इस घड़ी में कुछ लोग ऐसे हैं हर हाल में जिनको कमाने सिर्फ पैसे हैं किस बात का गुरुर इन्सान तू करता है यहीं सब छूट जाना है जो जमा तू करता है बस तेरी नेकी जायेगी बस तेरे ये कर्म जायेंगे यहाँ न कुछ लेकर आये थे न ही कुछ लेकर जायेंगे दो पल का "सुकून" किसी को देकर तू देख फिर बदले में ऊपर वाला तूझे क्या देता है तू देख परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप...
दर्द है विरह का
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दर्द है विरह का

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** पथराई आंखों में छलकते आंसुओं के समंदर का दर्द है विरह। किसे पता है, यह किसकी आंखें हैं, किसे पता है ये आंसू किसके हैं, कोई नहीं जानता आंसुओं के समंदर पर ये अश्रु हैं किसके। पिया मिलन की आस लिए, विरह में पथराई सजनी की आंखें अपने बच्चों से विरह हुए, मां की आंखें भी हो सकती हैं या पिता के अश्रुओ का समंदर भी हो सकता हैं विरह केवल बौझिल नहीं है, आंसुओं का समंदर भी नहीं है। जीत का मार्ग भी होता है विरह। सीता से विरह के बाद ही, लंका पर विजयश्री का मार्ग प्रशस्त किया श्रीराम ने। पत्नी रत्नावली के प्रेम से विरक्त होकर, विरह जीवन बिताकर रामबोला से गोस्वामी तुलसीदास बन, रचित किया श्रीरामचरितमानस ग्रंथ विरह में केवल डूबना ही नहीं होता, भवसागर भी पार हो जाता। लेखक परिचय :-  अन्नू अस्थाना निवासी :- भोपाल, मध्य प्रदेश कविता लिखन...
बनके “काली”
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बनके “काली”

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** माता रानी का है आगमन हो रहा, उनके दरबार जाकर कृपा पाइए। अपने श्रद्धा सुमन उनको अर्पित करो, सब रहें स्वस्थ, अर्ज़ी लगा आइए। मातारानी का है........... लखनऊ पर है माँ के हेतु कृपा, सारे ही पीठ लेकर है माँ आ गई। विश्व का पहला मंदिर बनाया यहां, पहले दर्शन पे सबपर कृपा होगई। अपने दुःख दर्द की पोटली बांधकर, मातारानी के चरणों मे रख जाइये। मातारानी का है............ तेरे दरबार मे भक्त जो आरहे, उनपे अपना सुरक्षा कवच डालिये। किसकी क्या है जरूरत तुझे ज्ञात है, हर उचित मांग को पूर्ण कर डालिये। आप ही सृजन करती और है पालती, ज्ञान की ज्योति को भी जला जाइये। मातारानी का है........ माँ तेरे भक्त तो सदा आश्रित तेरे, उनको हो कष्ट तू कैसे सह पाएगी। माँ कॅरोना से भयभीत बच्चे तेरे, जग को छोड़ेंगे तो तू भी दुःख पायेगी। तेरे सेवक की माँ तुझसे विनती यही, ब...
प्रकृति
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प्रकृति

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** प्रकृति हमें शिक्षा देती, मार्ग हमारे प्रशस्त करती। नदी कहती बहते चलो, मधुर निनाद करते चलो। स्व शक्ति का लाभ ले लो, जीवन की सफ़लता पाओ। विश्व शांति का गीत गाओ, अशांति को दूर भगाओ। प्रकृति हमें शिक्षा देती पर्वत कहते,चोटी देखो, मेरे जैसी ऊंचाई पाओ। दृढ़ता के गुण अपना लो, विश्व का नव निर्माण करो। नवीनता का आश्रय ले लो, श्रेष्ठकर्म से सफल हो जाओ। उड़ती कला में उड़ते चलो। प्रकृति हमें शिक्षा देती। पेड़ कहते,फलते रहो, नम्र चित्त सरल बनो। शीतल छाया दान करो, जग में पुण्य यूं कमाओ, पीढ़ियां याद करती चले। अभिमानी कभी न बनो, क्रोध अंहकार छोड़ दो। सब होंगे काम तमाम, पूर्णता को पा जाओगे। प्रकृति हमें शिक्षा देती। सूर्य चांद कहते चमको, नभ को देदीप्यमान करो, घोर रात्रि का ज्ञान दे दो। सोझरे में खड़े हो जाओ। कर्म करते कर्मयोगी बनो, ऊंच पद को प्राप्त...
मैं बँधन में नहीं लिखता
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मैं बँधन में नहीं लिखता

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** आदत होती है इंसान की, रहे दास या फिर आजाद, दास जीवन नरक समान, करता रहता वो फरियाद। बंधन में बंधकर लिखना, घुट घुटके मरने समान है, आजादी में जो रहता हो, वो जन जीवन महान है। 30 वर्ष से लिखता आया, सीधा सादा इंसान दिखता, रोब झाड़के कितने गये हैं, मैं बँधन को नहीं लिखता। बंधन में जीवन जो जिये, हो जाये जीना तब हराम, सारे जीवन ही अच्छे हो, बुरा होता है बंधन काम। बंधन में जीता था भारत, गुलाम कभी देश अपना, मन की बातें मन में रहे, आजादी बन गया सपना। वीर जांबाज लाख आये, तोड़ डाले गुलामी बंधन, अंग्रेजों के दांत किये खट्टे, अंग्रेज घबरा करते क्रंदन। खाना,पीना, हँसना, रोना, सबके सब हैं बंधन मुक्त, बंधन में एक बार बंधा, मस्तिष्क हो जाता रिक्त। पैदा होता इंसान आजाद, बंधन में बंधता दिन रात, लाखों बंधन बन जाते हैं, कभी उसको लगती लात। लिखने ...
मोहब्बत का नशा
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मोहब्बत का नशा

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मोहब्बत का नशा बड़ा अजीब सा होता है। जब मोहब्बत पास हो तो दिल मोहब्बत से घबराता है। और दूर हो तो मिलने को बार बार बुलाता है। और दिलों में एक आग सी जलाये रखता हैं।। दूर होकर भी दिल के पास होने का एहसास हो। मेरे दिलकी तुम ही साँस हो। तभी तो ये पागल है और तुम्हें याद करता है। तुम जहां से गये थे मुझे अकेला छोड़कर। हम आज भी खड़े है वही पर तुम्हारे लिये।। जिंदगी भी क्या है कभी हंसती है तो। कभी अपनो के लिए रोती है। और जीने की जिद्द करती है। जबकि उसे पता है कि अकेले ही जाना है। फिर भी साथ रहने की जिद्द करती है।। चाँद जब भी निकलता है चंदानी उसे खोज लेती है। फिर आँखों ही आँखों से आपस में कुछ कहते है। और दोनों की आँखों से मोती जैसे आँसू बहते हैं। और रात की हरियाली पर सफेद चादर बिछा देती हैं। और मेहबूबा को मेहबूब से सुहानी रातमें मिला देते हैं।। ठं...
नई भोर हो नई किरण हो
कविता

नई भोर हो नई किरण हो

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नई भोर हो नई किरण हो नवल धवल आवरण हो बधाई गुड़ीपड़वा चहुंओर सजे गुंजित हिंदू नववर्ष भी हो। स्वर्णिम स्वप्न की झंकार लाया है खुशियों के अनुपम उपहार लाया है जीवन पथ पर पुष्प सुभाषित सुरभित सुगंधित बयार लाया है। नई उमंग नई तरंग संग-संग नवहर्ष हो गुंजित हिंदू नववर्ष भी हो। सफलता शिखर पे नित नए आयाम हो धरा पर यश कीर्ति मान और सम्मान हो एक दिन समय भी आपका होगा विषम परिस्थितियों में साथ संघर्ष भी हो गुंजित हिंदू नववर्ष भी हो। तन स्वस्थ रहे मन सुंदर हो सच का हृदय में सपना हो आस्था श्रद्धा विश्वास सहित उत्साहित मन नूतन उत्कर्ष भी हो गुंजित हिंदू नववर्ष भी हो। परिचय :- अखिलेश राव सम्प्रति : सहायक प्राध्यापक हिंदी साहित्य देवी अहिल्या कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय इंदौर निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार...
नव संवत्सर
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नव संवत्सर

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुज.) ******************** नव संवत्सर नजदीक आया है नए भारत वर्ष २०७८ को लाया हे नई विक्रम संवत जब आएगी खुशियो की बारात वो लाएगी चैत्र मास शुक्ल प्रतिपदा आई है नए भारत के स्वप्न सुन्दर लाई हे १२ मास साल सात दिन सप्ताह बनी हे विक्रम संवत ने यह शुरुआत करायी है हिन्दू धर्म ने विक्रम संवत सजाया हे अंग्रेज और अरब ने यह अपनाया है सूर्य प्रवेश मेष राशि में करवाया है चैत्र मास से नव संवत्सर मनाया हे. चैत्र मास पवित्र कहलाया हे ब्रह्मा ने सृष्टि उसी दिन रचाया है अयोध्या में विजय पताका फहराया हे राज्याभिषेक राम का उस दिन करवाया है १३ अप्रेल २०२१ नजदीक आया है कवि गुलाब कहे, हिन्दू नव वर्ष लाया है परिचय :-  डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुज.) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
बार्डर और कोरोना
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बार्डर और कोरोना

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** ओह...!!! ओह... !!! ओह...!!! क्वारंटाइन हुए जाते हैं। टेस्ट डराते हैं। रिपोर्ट जब आती है। पोजिटिव कर जाती है। कि कोरोना कब जाओंगे। कोरोना कब जाओंगे।। लिखो..क्या वैक्सीन से जाओंगे।। तेरे साथ हर ...घर सूना -सूना है। अस्पताल के डॉक्टर ने, वहां की नर्सों ने, हमें रिपोर्ट में लिखा है। कि हमसे पूछा है..... किसी की हाफ़ती सांसों ने, किसी की खांसी ने, किसी की छीकों ने, किसी के इंफेक्शन ने, किसी के कचरे ने, कोरोना के चर्चे ने, बकबकी सुबहा ने, मितलाती शामों ने, डिस्टेंस की रातों ने, सोशल मीडिया की बातों ने, फैली अफवाहों ने, मजदूरों की बददुओं ने, और पूछा है कम होती कमाईयों ने, कि कोरोना कब जाओंगे। कोरोना कब जाओंगे।। लिखो..क्या वैक्सीन से जाओंगे।। तेरे साथ हर ...घर सूना -सूना है। क्वारंटाइन हुए जाते हैं। टेस्ट डराते हैं। रिपोर्ट जब आती...
कल का दौर
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कल का दौर

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार(म.प्र.) ******************** कल का दौर भी देखा आज का भी दौर देख रहा हु संभल कर चलु कब तक सोचता हूं वक्त आज बुरा है कल वक्त अच्छा भी आएगा वक्त संभलकर चलना आज दुनिया मे काल के रूप विकराल है आज सहना, ठीक रहना यू ही किसके जाने में कब वो दिन गुजर गए यू ही बिलख-बिलख कर आंसुओ की बून्द बहती अपनो में यू ही दर पर कब वो क्षण आ जाए आए तो कब वो क्षण गुजर जाए। परिचय :- अक्षय भंडारी निवासी : राजगढ़ जिला धार शिक्षा : बीजेएमसी सम्प्रति : पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कवि...
औरत
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औरत

पूनम धीरज राजसमंद, (राजस्थान) ******************** एक औरत की कोख से जन्मी है एक औरत। एक औरत जननी बनी, लाडो है एक औरत।। एक औरत संस्कार भर रही, नखराली-इठलाती एक औरत। एक औरत ममता की प्याली, भोली सी मतवाली एक औरत।। एक औरत है बनी सुहागन, खुशी से छलक उठी एक औरत। एक औरत पिया के घर चली, घर में अकेली रही एक औरत।। एक औरत ने सजाए स्वप्न नए, पूरे कर्तव्य करें एक औरत। एक औरत चली लक्ष्मी बन, चिड़िया को विदा करें एक औरत।। एक औरत गृह प्रवेश करें, आरती का थाल लिए एक औरत। एक औरत नई नवेली सी, घर की बुनियाद बनी एक औरत।। एक औरत की मुंह दिखाई पर, वारी जाए एक औरत। एक औरत वंश बढ़ाने वाली, दायित्वों से विश्राम पाए एक औरत।। एक औरत सीमा की रक्षक, ज्ञान प्रदान करे एक औरत। एक औरत ने थामी कमान, कमाने वाली भी एक औरत।। एक औरत पर्वत को लांघ रही, सागर पार करे एक औरत। एक औरत रंगोली सजा रही, देश भी सजा रही एक औरत।। एक और...
कहानी नही बदली
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कहानी नही बदली

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** सिदूंर का रिश्ता है, निभा रही हूँ हर जनम,! तुम्हारा मेरा रिश्ता है, जो टूटता नही भरम!! ये एक पल का बंधन नही, न कमजोर है, डोरी! दिलो मे जो, मजबूती से, पनपी है मजबूत है कोरी!! न डर किसी का, अब है, कितनी मिली शिकस्त! बदनाम खूब किया मगर, बदली न, मुहब्बत।। बुत के यहाँ सब है, बुत परस्त लोग! बदला है, बस जमाना, नियत नही बदली!! इल्जाम लगाते रहे, बैगरत, से लोग! कितने, मिले सफर मे , मेरी चाहत नही बदली!! सैर पर निकले थे, तलाशने, जिन्दगी! जिदंगी तो रुठी रही कहानी नही बदली!! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...
पुरूष की व्यथा
कविता

पुरूष की व्यथा

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** पुरूष की व्यथा विवाहोपरांत अपयश से भरा जीवन वृतांत आया मानसिकता में परिवर्तन पुत्र नहीं रहा पहले जैसा श्रवण बहनों के लिए अब बदल गया भाई जब से जीवन मे, आई उसके लड़की पराई जिन्होंने प्यार, संस्कार की परवरिश से किया बड़ा अब स्वयं के ही खून की स्नेह, भावनाओ पर संदेह खड़ा पुराने रिश्तों के साथ व्यतीत करने को कम हुई समय सीमा क्योंकि पुराने, नए दोनों रिश्तों की बनाए रखनी है उसे गरिमा अब, अंतर बस इतना-सा आया समझ के भी जिसे, कोई समझ न पाया रक्त संबंधों के लिए दिल में उसके सदैव स्नेह-सत्कार अपार पर अब अर्धांगिनी, फिर संतान में बँट गया उसका थोड़ा प्यार कभी भी जिम्मेदारियों से नहीं भागता वह दूर फिर भी अपनों से ही ताने सुनने को है मजबूर सबकी सेवा में तत्पर होने पर देते सब संस्कारवान का तकिया कलाम पर जीवनसंगिनी की परवाह करने पर, कहलाता क्यों वह ...
मेरे बटुए भर सपने
कविता

मेरे बटुए भर सपने

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** जीवन के कुछ पल मैं जीवन से ही चुराती गई उन्हें अपने बटुए में सहेजती रही ये सोच कर की कभी समय मिले तो उनको सुकून से खर्च करूंगी। बस यही सोच कर, समय और हालत के साथ आगे बढ़ती रही वक्त के साथ बटुए की सियान कमजोर पड़ती रही और मैं समय समय पर उन्हें यूं ही सिलती रही, फिसलते रहे मेरे सपने और समय समय की खुशियां मैं समाचार पत्र की तरह उन्हें सहेजती रही बरसों से सहेजे बटुए को मैने एक दिन जो खोला पूरी जगह तो सूनी और कोरी पड़ी थी वो समय के पल तो कहि थे ही नही जिनको मैं वर्षों से सहेजती आई थी कहां गई वो मेरी संपत्ति जो पाई पाई मैं जोड़ती रही थी? सोचते हुए आईने पर नजर पड़ी, सिर पर सफेद बालों की सफेदी चमक रही थी चेहरे पर इतनी सिलवटें? आईने ने खुद को पहचानने से इंकार कर दिया, पीछे घूम के देखा, कही...
मित्रों सुने पैगाम हमारा
कविता

मित्रों सुने पैगाम हमारा

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** सुने प्रिय मित्रों एक पैगाम हमारा, देखो कोरोना देश में आया दुबारा। यदि जरुरी है आपको बाहर जाना, सामाजिक दूरी को जरुर अपनाना। घर में सैनेटाइजर को भूल न जाना, मुख पर मास्क अवश्य ही लगाना। अब न चलेगा आपका कोई बहाना, पड़ेगा नियम-निर्देशों को अपनाना। चाहते है आपको देना न पड़े जुर्माना, बिन मास्क लगाये बाहर नहीं जाना। जो व्यक्ति करेगा ज्यादा ही मनमानी, उसे है पुलिस के डंडे की मार खानी। तब पुलिस का डंडा याद दिलाए नानी, दुबारा ये व्यक्ति कभी न करे मनमानी। स्वयं को कोरोना बीमारी से है बचानी, सरकारी निर्देशों को पड़ेगी अपनानी। जो-जो अपनी ईमुनिटिपावर बढ़ाये, उसके पास कोरोना बीमारी न जाये। स्वयं बचे और परिवार को भी बचाये, बिना मास्क लगाये बाहर नहीं जाये। लांकडॉउन के नियमों को अपनाये, स्वस्थ्य, सुखमय आप जीवन बिताये। यही है कवि विरेन्द्र की...
शब्द कहां से आते हैं
कविता

शब्द कहां से आते हैं

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुमने पूछा है कि ऐसे शब्द कहां से आते हैं अक्षर से बनते शब्द शब्द से वाक्य बनाये जाते हैं शब्दों की बढ़ती श्रंखला बन जाती है वाक्य सुनो तुम्हें देख ये वाक्य स्वमेव कविता में ढल जाते सुंदर वाक्य काव्य भाषा में अलंकार कहलाते हैं। परिचय :- अखिलेश राव सम्प्रति : सहायक प्राध्यापक हिंदी साहित्य देवी अहिल्या कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय इंदौर निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com ...
होली राम रंग संग खेलो
कविता

होली राम रंग संग खेलो

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** होली राम रंग संग खेलो, हनुमत झूम के नाचेंगे। लगेगा भक्तों का दरबार, नाम महिमा वे बाचेंगे। होली राम रंग.......... बहाओ रा से रंग फुहार, म में है माँ सीता का प्यार। चढ़ेगा जिनपर हनुमत रंग, वे माँ के चरण पखारेंगे। होली राम रंग.......... नहीं हुड़दंग का ये त्यौहार, लुटादो सबपर अपना प्यार। बढ़ी कटुता जिससे इस साल, मिटाकर गले लगा लेंगे। होली राम रंग........ न डूबो दारू में या भांग, यही है सात्विकता की मांग। आओ बैठो हनुमत दरबार, नाम का नशा चढ़ा देंगे। होली राम रंग.............. परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय...
हाँ, मैं नारी हूँ
कविता

हाँ, मैं नारी हूँ

मित्रा शर्मा महू (मध्य प्रदेश) ******************** जब भ्रूण बनकर आई थी दादी के मन में यह बात आई थी मेरा कुल का चिराग है या मनहूस मां ने अपनी वेदना छुपाई थी। मां कहने लगी भगवान से आने दो इसको संसार में मेरा हिस्सा है यह अनोखा सिचूँगी अपनी कोख़ में । मैने सोचा आऊंगी जरूर आऊंगी सब को समझाने के लिए सबकी सोच को बदलना है मै अब हार नहीं मानने वाली। नारी होकर नारी पर ही अत्याचार कभी होता दुर्व्यवहार कभी लगते उसपर लांछन कभी मिलता व्यभिचार। मैं अहल्या, पत्थर बन तप करने वाली सावित्री हूँ , सत्यवान को जगाने वाली। दुर्गा हूँ राक्षस का संहार करने वाली लक्ष्मी हूँ , धनधान्य करने वाली। हाँ, मैं नारी हूँ ! हां मैं सरस्वती, वीणावादिनी हूँ ज्ञान देने वाली मैं यशोदा हूँ ,कान्हा को दुलारने वाली। द्रोपदी बन कृष्ण को पुकारने वाली , सीता बन सहन करने वाली । हां, मैं नारी हूँ ! हाँ, मैं नारी हूँ !! परिचय :-...
दूर बहुत हो तुम
कविता

दूर बहुत हो तुम

उषा गुप्ता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दूर बहुत हो तुम पर हो दिल के पास बिना कहे ही समझ जाते क्या है मेरे मन की आवाज़।। यह कैसा नाता अपना कैसा है यह अमर स्नेह कैसे रख लेते ख्याल मेरा कैसे बढ़ता जाता नेह।। आज के इस कलयुग में तुम कैसे आ गए राम दिन दूना रात चौगुना जग में बड़े तुम्हारा नाम।। रोम रोम यह मेरा तो देता रहता तुझे दुआएँ प्रीत की यह पाती मेरी नज़र किसी की ना लग जाए।। विनती उस परमपिता से हर जन्म हमें ऐसे ही मिलाए तू तो बस मेरा बेटा मेरा लाडला बनकर आए।। परिचय :-उषा गुप्ता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, क...
तारीख पे तारीख
कविता

तारीख पे तारीख

गणेश रामदास निकम चालीसगांव (महाराष्ट्र) ******************** तारीख पे तारीख बढ़ती जाएगी मगर होगा नहीं फैसला कुछ भी करके तुझे छोड़ना नहीं अब अपना घोंसला। घोसले से तू बाहर ना निकले यही तेरी समझदारी है मरने से तो अच्छा कैद होना यह अब हम सबकी जिम्मेदारी है। बाहर यदि अगर तू पड़ गया समझो फिर तारीख का यह फैसला कर्मों से ही अपने बढ़ गया। चुपचाप घर में बैठ जा तू अब किसी कोने में जिंदगी का मजा उठा अब पड़े पड़े तू सोने में। हाथ से मत जाने दे अब यह १७ मई का मौका बाहर निकलेगा तू तो फिर बढ़ जाएगा ये धोखा। परिचय :- गणेश रामदास निकम निवासी : चालीसगांव (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्...
पाती प्रतीक्षा की
कविता

पाती प्रतीक्षा की

रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर (मध्य प्रदेश) ******************** जब-जब आती प्रीत की पाती मन कुमुदिनी खिल-खिल जाती। राह तकते सोचे आँखियाँ पढ़ेंगे कब प्रीतम की बतियां बातें प्रिय की बहुत सुहातीं जब जब आती प्रीत की पाती। दिन गिनते दिन बीतते जाते डाकिए को बारंबार बुलाते देख लो कहीं छोड़ ना आए तुम मेरे ही प्रिय की पाती जब जब आती प्रीत के पाती। लिखते तुमसे प्यार हैं करते याद तुम्हे हर-बार हैं करते आएंगे मिलने भी जल्दी हम कट जायेगी बिरह की राती जब-जब आती प्रीत की पाती मन कुमुदिनी खिल-खिल जाती जब-जब आती प्रीत की पाती परिचय :- रश्मि लता मिश्रा निवासी : बिलासपुर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं,...