हालात
डॉ. बी.के. दीक्षित
इंदौर (म.प्र.)
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क्या किसी ने सोचा था, ऐसे भी दिन आयेंगे?
सब कुछ होगा पास मग़र, तन्हा हो जायेंगे।
रिश्ते नातों की मर्यादा पता नहीं कब टूट गई।
धन वैभव अम्बार लगा पर क़िस्मत फूट गई।
निपट अकेले पड़े बेचारे, जो सांस नहीं ले पाए।
क़िल्लत है हर जगह, काश ऑक्सीजन आये।
विपदा में ही जीना होगा, दूजों को सिखलायेंगे।
क्या किसी ने सोचा था, ऐसे भी दिन आयेंगे?
बार-बार धोते हाथों की भाग्य लकीरें घिसतीं।
जीवनरक्षक दवा दुआ, ऊँचें दामों पर बिकतीं।
हुआ पलायन मजदूरों का, भूखे प्यासे दिखते।
काल कोरोना बन बैठा है, कैसे वो भी टिकते।
अपनों के संग रह लेंगे, ये बात सभी दुहराते।
अंदर है जो दर्द छुपा, वो खुलकर न कह पाते।
पता नहीं कब आ जाए, कुछ, समझ न पाएंगे।
क्या किसी ने सोचा था, ऐसे भी दिन आएंगे?
परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्...























