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कविता

रूपगर्विता
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रूपगर्विता

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम शताब्दी एक्सप्रैस गर्व से भरी सुख सुविधा संपन्न नित्य गुजर जाती हो मुझ पर से। मैं एक छोटा सा गुमनाम सा रेलवेस्टेशन तनिक भी कभी देखा नही तूने मेरी और मैं नित्य तुझ रूपगर्विता को निहारता हूँ अनगिनत भावो के साथ तुम मुझ में प्रतिदिन लघु होने का भाव तीव्रता से जगा जाती हो आज कुछ आतताई यो ने तेरे पथ पर अवरोध उत्पन्न कर दिया है, तू खड़ी है मुझ पर मजबूरी वश मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा अपलक तुझे निहार रहा हूँ कभी तुझे तो कभी स्वयं को देख रहा हूँ आनंदविभोर हो इस क्षण को अक्षुण्य रखूंगा ह्रदय में जीवन भर मुझे पता है कुछ ही क्षणों में तुम चली जाओगी और नित्य गुजरोगी मेरे ऊपर से मुझे देखे बगैर। तुम रूपगर्विता दर्प से भरी मैं अकिंचन छोटा गुमनाम सा रेलवेस्टेशन। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानप...
बादल रुक जा
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बादल रुक जा

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** बादल रुक जा क्यों घटा छाई है, परवाने घूम रहे हैं, क्यों छाया दिखाई है। नवोद्भिद् एहसास कृशानु रोहिताश्व दिखाई है, संकेत प्रपंचरंध्रा होंगी छद्मी आवेश नहीं बना विवेक रह जा चरित्रता के संग पहचान होगी तेरी भी जब होगा तेरा अचल रंग बिखरे नहीं तू ढंग तेरा होगा अग्निशिखा के सम्मान रुख बदल दे अपना भी स्वयं पर आजमा सम्मान। दैवयोगा दैवयोगा हैं, परिणिता पार्थ को दिखाई है, सुरभोग कलयुग में अनर्ह के साथ सजी है, सहस्रार्जुन अब तिरस्कार हो रहा मेरा इस तमीचर ने विगत अदक्ष वल्कफल कि भांति शब्दों में ढाल सजाई है। सुखवनिता नहीं रह पाती सुजात बनकर, दर्प लोग अब मिथ्याभिमान आक्षेप लगाते हैं, पुनरावृत्ति अब कराने लगे धनाढ्य अनश्वर की प्रतीक्षा में अवबोधक का अनुदेशक अलग-अलग अन्तर्ध्यान भी अशुचि अशिष्ट पराश्रित प्रज्ञाचक्षु क...
रंगीला राजस्थान
कविता

रंगीला राजस्थान

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** सभ्यता, संस्कृति, मान्यता, विश्वास है यहाँ विद्यमान भिन्न-भिन्न रंगों से सुशोभित मेरा रंगीला राजस्थान धरातल का एक भाग रेतीला तो दूसरा भाग हरा-भरा इतिहास यहाँ के लोगों की वीरता के किस्सों से भरा पद्मिनी का जौहर, मीरा की भक्ति, पन्ना का बलिदान प्रताप, चेतक, राणा सांगा के रण कौशल पर अभिमान महल, मंदिर, दुर्ग, हवेलियों की है अद्भुत शिल्पकारी घूमर, कालबेलिया जैसा लोकनृत्य, बणीठणी की चित्रकारी संत, सत्तियों, कवियों और भगतो की है आन-बान यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर पर देश को है अभिमान आकर्षक पर्यटन स्थल, मेले और हाट बाजार रंगीले राजस्थान का सजीला है श्रृंगार त्यौहारो का संगम, अतिथि का सम्मान लोकगीतो की गूँज संग तानपुरे की तान घूंघट की मर्यादा और पगड़ी की शान शौर्य, साहित्य, कला, संगीत की है यहाँ खान मेरे रंगीले राजस्थान का अनंत है गुणगान ...
कहने को सब कुछ है अपना
कविता

कहने को सब कुछ है अपना

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** रहा अधूरा सारा सपना कहने को सब कुछ है अपना किया समर्पित सब कुछ लेकिन सूना है पर मन का अंगना सिमट चुके हैं रिश्ते सारे हैं अतीत अब सभी सहारे फंसे तिमिर के चक्रव्यूह में सम्भव लगता नहीं निकलना गूँगा बहरा हुआ ज़माना सच हो जाता यहाँ फ़साना न्याय यहाँ गूँगा बहरा है क्या अनशन क्या देना धरना सावन भी पतझड सदृश है मन अधीर तन निःशेषित है मन ही अगर अशान्त रहे तो कैसा सजना और संवरना दुनिया का दस्तूर अजब है सही झूँठ में फ़र्क़ खतम है कौन रक़ीब है कौन है साहिल दुष्कर अब हो रहा परखना परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तकें प्रका...
मोक्ष पथ के सूत्र
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मोक्ष पथ के सूत्र

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** दर-दर का मारा भी प्रभु भक्ति से बन गया। सभी की आंखों का तारा। और प्रभु भक्त कहलाया।। सवाल यह नहीं है कि भगवान है या नहीं ? अपितु सवाल यह है कि तुम्हारे हृदय में भगवान को। विराजमान के लिये क्या कुछ स्थान है या नहीं।। दुराग्रह एवं आलस्य से मूर्खता तथा दुर्भाग्य का जन्म होता है। गुरुभक्ति और प्रभुभक्ति से शुभफल का उदय होता है। तभी घर में सुखशांति और धर्म की प्रभावना बहती है। और घर का वातावरण फिर स्वर्ग जैसा बन जाता है।। सीखना कभी न छोड़िये, क्योंकि जिंदगी में हमेशा। परीक्षा देना पड़ती है इसलिए स्वाध्यावी बने। विध्दमानों के प्रवचन सुने और नियमित मंदिर जाये। आपका पुण्य उदय बढ़ेगा और जीवन सफल बनेगा। जो पाप से संचित किया जाता है वह परिग्रह है और। जो पुण्योदय से प्राप्त होता है वह सम्पदा है। इसलिए पाप से बचे और पुण्य के लिए परिग्रह को त्यागे। और ...
सजल
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सजल

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** धरती पर कुछ लोग अभागे मारे-मारे फिरते हैं। शरण नहीं मिल पाती उनको बिना सहारे फिरते हैं। परिणय बंधन के शुभ अवसर कहाँ सभी को मिल पाते यहाँ-वहाँ जग में कितने ही युवा कुआँरे फिरते हैं। नहीं विश्व में साध सभी की पूरी होने पाती है अगणित नर-नारी मन में अभिलाषा धारे फिरते हैं। माता-पिता दुखी होते हैं वे छिप-छिपकर हैं रोते इधर-उधर जग में नित भूखे उनके प्यारे फिरते हैं। एक इंदु है फिर भी उसका मान बहुत है सब कहते गगन पटल पर यूँ तो प्रति क्षण अगणित तारे फिरते हैं। अब असत्य की बाढ़ धरा पर सभी ओर आ पहुंची है सत्य खोजने दिशा-दिशा में नयन हमारे फिरते हैं। 'रशीद' अविरल पूछ रहा है तनिक आप उत्तर तो दें "सकल धरा पर युगों-युगों से क्यों बंजारे फिरते हैं?" परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़...
उड़ी रे पतंग
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उड़ी रे पतंग

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** उड़ी रे पतंग, मेरी उड़ी रे। हुए डोर पर सवार, उड़ी रे।। इठलाती, बलखाती है झूमती संग पवन हंसी ठिठौली है करती। उड़ी रे पतंग, मेरी उड़ी रे। हुए डोर पर सवार, उड़ी रे।। पहन चटकीले रंग के परिधान, बनाती उड़ी हसीन रंगीन निशान। उड़ी रे पतंग, मेरी उड़ी रे। हुए डोर पर सवार, उड़ी रे।। लायी है मस्ती का आलम छांटी है काले घनेरे बादल। उड़ी रे पतंग, मेरी उड़ी रे। हुए डोर पर सवार, उड़ी रे।। परिचय  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवा...
अबकी बार होली ऐसे
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अबकी बार होली ऐसे

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** इन आस्था की लकड़ियों से वर्षों से जलती आई है होली सच भी है ,और सचाई भी है लकड़ियां जल राख हो जाती है। कब तक लकड़ियां जलाएंगे जंगल भी उदास हो जाएंगे संकल्प लें,वृक्ष अबकी नहीं काटेंगे अब तो प्रतीकात्मक होली मनाएंगे। हमारे मन का कल्मष जलाएं। अबकी बार होली ऐसे मनाएं।। वर्षों से खेल रहे हैं पानी से हम होली न जाने कितना पानी व्यर्थ ही कर देते हैं। पानी की एक-एक बूंद से किसी की जान बच सकती है इस बार हम होली ऐसे खेलें एक - एक बूंद पानी बचाएं। पानी की हम कीमत जाने। अबकी बार होली ऐसे मनाएं।। भौतिकता की दौड़ में पीछे छूट रहे हैं रिश्ते रिश्तों में आई कड़वाहट को आपसी सद्भाव से बचाएं। स्नेह की गुलाल लगा कर आपसी बैर भाव को भुलाएं समाज में बढ़ते तमस को आपसी प्रेम की ज्योत से हटाएं। अपनों के इत्र की खुशबू लगा। अबकी बार होली ऐसे मनाएं।। सत्य का बोलबाला हो...
कहां चल दिए
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कहां चल दिए

अनूप कुमार श्रीवास्तव "सहर" इंदौर मध्य प्रदेश ******************** अभी घर में रह लेनें की हिदायत है, कहां जाएंगे वो अभी जो रास्तें में है। किसी तरह से न सोनें देंगी, आज की यें तस्वीर भी कहीं । गुजार सका ना कुनबा मजूर का एक रात शहर के किसी कोनें में। दावे बड़े दिल के सब धरें रह ग‌एं जो दिल्ली बनातें कहां चल दिएं। है जेब खाली खाली है पेट खाली, ये ठहरा हुआ वक्त कितना मवाली। प्यास कैसी कैसी प्रार्थनाएं भी कैसी चलें संग परिवार, सड़क है बिछौनें। गुजार सका ना कुनबा मजूर का एक रात शहर के किसी कोनें में। परिचय :- अनूप कुमार श्रीवास्तव "सहर" निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच ...
तू सुकून थी
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तू सुकून थी

पूनम शर्मा मेरठ ******************** मां ! तू तो सारे सुकून लेकर फुर्र से उड़ गई, अब वो सुकून नहीं मिलता जो तुझसे जिद करके, लड़ के मिलता था, मुझे जिताने को तू हार जाती थी, पर मैं विजया कहां हुई तू तो मुझे जिताने के लिए हारती थी ना, मेरी झूठी मां, हर अच्छी चीज मेरी तरफ सरका देती थी, "मुझे पसंद नहीं है" ये कहकर, ये कैसा लाड़ था तेरा जो तू अपने साथ ले गयी, अपना वो दुलार, अपने झुर्रियों पड़े गिलगिले हाथों में समोसा दबाए रखना, कहना, "मिर्च बहुत है", मुझे तब समोसा बहुत पसन्द था, अब समझी तेरी चालाकियां, तू मेरा स्वाद ले गयी, स्वाद तो तेरे झुर्रियों भरे हाथों का और प्यार के कसीदों का था, समोसे तो आज हर नुक्कड़ पर मुंह तिकोना किए राह ताकते हैं, तू रोज धमकाती थी "मैं चली जाऊंगी" पर ये मेरी सोच से परे था, तू चली गई, मैं घर की चौखट पर आज भी तुझे खड़ा पाती हूं अपनी राह तकते, मनुहार भरी आंखों से इंत...
आत्मदाह
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आत्मदाह

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** जिंदगी आसान नहीं, लेकिन मर कर, क्या हासिल होगा, मरने के बाद भी जलना है, फिर जिंदा जल कर, क्या हासिल होगा, अगर जलना है, तो ऐसे जलो, परेशानियां जल कर, भस्म हो जाय, कर्म पथ पर नित्य यूं आगे बढ़ो, सारे विघ्न हल हो जाय, कौन रखेगा याद तुम्हें, इस मेले में रोज की यही कहानी है, अंतिम सांस तक, जिसने किया यहां संघर्ष, दुनियां उसी की दिवानी है, मूर्खता में उठा कर, यह मूर्खतापूर्ण कदम, करके तूने अपना अंग भंग, जीवन खुद का नरक बनाया है, क्षणिक आक्रोश में सब कुछ गंवा कर, बता तूने क्या पाया है... परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित कर...
टूटी है सिंदूर दानी
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टूटी है सिंदूर दानी

अनन्या राय पराशर संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) ******************** पैरों में गाढ़ा महावर हाथ में मेहंदी रची है और माथे पर चमकती रेख कुमकुम की बची है बोलती बिंदिया सलोनी और होंठो पे है लाली पलकों पे सपने हजारों हाथ में पूजा की थाली आंसूओं से आचमन कर और जलाकर के दिए मांगती है वर कि पति मेरा जुग जुग जिए बस यही है कामना वो जल्द आए और क्या बीती है कैसे सब सुनाए हाथ से अपने मेरा श्रृंगार करते और मेरी मांग भी खुद ही से भरते पर नियति का खेल भी है क्या निराला ऐसे कैसे भाग्य का सिक्का उछाला एक चिट्ठी आई है लेकर कहानी टूटी है सिंदूर दानी... एक पल में है लुटा संसार सारा बेंदी बेसर और नथनी को उतारा कानो से बालों को खुद ही नोच डाला और कुमकुम हाथ से ही पोछ डाला आंख में बस आंसूओं की लड़ी थी मौन होकर एक कोने में खड़ी थी चित्र पर बस हाथ अपने धर रही थी और पति के साथ ही में ...
बेफ़िक्री का नायक
कविता

बेफ़िक्री का नायक

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** जाने किस दौर में ये जग प्रवेश कर गया मानो बुराई अंत हेतु अति निवेश कर गया। होली तो आस्था मित्रता की परिचायक रही होली-पर्व तो बेफिक्री का नायक बन गया। घुसपैठ, साजिशें नित्य सुना रही चाप है शातिर 'वाज़े' के नगाड़े की मूक थाप है चुनावी-हिंसा मानव रंगों से बना नाप है उमड़ती भीड़ से कोरोना बम फट गया गुबारमय गुलाल उड़ाना चाहत बन गया जाने किस दौर में ये जग प्रवेश कर गया होली-पर्व तो बेफिक्री का नायक बन गया। चुनावी दम दिखाने नेता सत्ता हाजिर हैं बनावट मिलावट रंग से हो जाते जाहिर हैं हृदय परिवर्तन ढकोसला रंगों में माहिर हैं घूमना आना जाना दिवा स्वप्न सा बन गया सम्मान का तिलक गुलाल सवाल बन गया जाने किस दौर में ये जग प्रवेश कर गया होली-पर्व तो बेफिक्री का नायक बन गया। बसंत पतझड़ उपरांत होली त्योहार प्रसंग है पतन का पर्याय रूप तीज त्योहार उमंग गिरग...
अप्रैल फूल
कविता

अप्रैल फूल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अप्रैल फूल कही नहीं खिलता मगर खिल जाता एक अप्रैल को क्या, क्यों, कैसे? अफवाओं की खाद से और मगरमच्छ के आँसू से सींचा लोगो ने इस अप्रैल फूल को। इसीलिए ये झूठ का पौधा एक अप्रैल के गमले में फल फूल रहा वर्षो से। लोग झूठ को भी सच समझने लगे झूट के बाजारों में क्या अप्रैल फूल के बीज मिलते जब पूछे, तो लोग कहते-हाँ बस एक अप्रैल को ही दुकानों पर मिलते है। आप को विश्वास हो तो आप भी लगाए घर की बालकनी में और आँगन में लोगो को जरूर दिखाए कहे कि हमारे यहाँ एक अप्रैल का फूल खिला ताकि उन्हें कुछ तो विश्वास हो। एक अप्रेल को भी सुंदर सा फूल खिलता है जैसे वर्षों बाद खिलता ब्रह्म कमल जिसे देखा होगा सबने मगर अप्रैल फूल कभी देखा नहीं शायद एक अप्रैल को हमारे द्वारा बोया ही हमे देखने का सौभाग्य प्राप्त हो। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतील...
होली गीत
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होली गीत

शिव कुमार रजक बनारस (काशी) ******************** अवधपुरी काशी से लेकर ब्रज में बाल गोपाल के रंगे जा रहे गाल सभी के रंगों और गुलाल से।। प्रेम के रंग में राधा नाचें प्रीत के रंग में सखियाँ बाल सखा संग मोहन नाचें वृंदावन की गलियाँ लट्ठमार की रीति अमर है, होली के त्योहार से रंगे जा रहे गाल सभी के, रंगों और गुलाल से।। ढोल मृदंग की ताल पर थिरकें अवधपुरी के वासी अंग से रंग लगाकर भागे देवर से सब भाभी गीत फाग के गाए जाएं सुबह शाम चौपाल से रंगे जा रहे गाल सभी के, रंगों और गुलाल से।। मंदिर में कैलाश सज रहे घाटों पर सन्यासी भांग के मद में मस्त पड़े हैं मुक्तिद्वार के वासी चिता के भस्म की होली होवे काशी के श्मशान में रंगे जा रहे गाल सभी के, रंगों और गुलाल से।। परिचय :- शिव कुमार रजक निवासी : बनारस (काशी) शिक्षा : बी.ए. द्वितीय वर्ष काशी हिंदू विश्वविद्यालय घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ क...
आओ रंजोगम दूर भगाये
कविता

आओ रंजोगम दूर भगाये

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** आओ रंजोगम दूर भगाये!....... खुशियों के संग होली मनाये!..... हैं नई फ़िज़ा और नया जमाना, गाये सब खुशियो का तराना करे काष्ठ छोड़ कर्कट दहन, भीतर बाहर सब शुद्ध बनाये, सपनो के संग होली मनाये!...... अमन चैन की हवा सुस्त हैं, बाकी तो सब कुछ दुरुस्त हैं दिल से सब को लगा गले, आओ गीत सौहार्द के गाये, अपनो के संग होली मनाये!..... चहुँ ओर हो हँसी व ठिठोली, खेले मिल-जुल कर सब होली, लेकर ढोल मंजीरे व ताशे, नाच-नाच कर फ़ाग सुनाये, रंग रंगीली सब होली मनाये!.... है खिल उठे जंगल मे पलाश, जागी मन मे मीत की आस, देख सजनी के सराबोर वसन, तन मन मादकता भर जाए, प्रिय संग खूब होली मनाये!..... जलाये जो हैं अशुभ असुंदर, और सृजन करे नूतन निरंतर, यह पर्व हैं नव पल्लवो का, युवा नव पथ पर पग बढ़ाये, संकल्पो के संग होली मनाये!.... रंगों से भर कर के प...
पहली होली
कविता

पहली होली

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** खेलूंगी-खेलूंगी मै तो पहली होली कान्हा जी के संग...। खेलूंगी-खेलूंगी मै तो पहले होली कान्हा जी के संग....। कान्हा जी के संग कान्हा जी के संग छोड़-छाड़ मे सबको आई ढोल बजाऊ ओर चंग नाचूंगी गाऊगी मेतो कान्हा जी के संग....। थोड़ा इठलाऊगी थोड़ा शरमाऊगी कभी मुस्काऊगी रंग लगवाउंगी देखो गाल गुलाबी करवाउंगी ओर मालवाउंगी सब अंग हंस कर बोले कान्हा रंग खेलोगे मेरे संग उड़ान गुलाबी रंग बुलाओ तुम सखियाँ .........। खेलूंगी-खेलूंगी मै तो कान्हा जी के संग पहली होली कान्हा जी के संग ...। इत इत देखूं उत उत देखूं पाऊ ग्वाल बाल संग कान्हा बजाने बासूरिया सखा बजावे चंग सखा बजावे चंग खेलूंगी खेलूंगी मै तो कान्हा जी के संग मौका पाकर कान्हा आये खूब उठाये रंग गाल मले हे ओर मले सब अंग खेलूंगी खेलूंगी मै तो कान्हा जी के संग अंग अंग मेरो योवन झूमे र...
सितारों से आगे …
कविता

सितारों से आगे …

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** मचा हुआ जहां अति शोर भी है, रात कभी बीतती होती भोर भी है, पतंग जब उड़ती साथ डोर भी है, सितारों से आगे जहां और भी हैं। हिम्मत जिसमें होती आसमां तोड़े, निठल्ले उड़ाते रहते हैं कागजी घोड़े, इंसान वो जो काम से थकता थोड़े, देव वो है जो कष्ट में मुख ना मोड़े। झुक जाता है आसमान जो झुकाता, छुपता नहीं झूठ बेशक लाख छुपता, महान है जो हँसकर समय बीताता, राक्षसी लोगों से संत इज्जत बचाता। कभी अपनों पर भरोसा अधिक नहीं, चलते चलते मिल जाये प्रभु भी कहीं, दर्द होता है दिल से आंसू भी हैं बही, शुभ कर्म करते रहो मिलता दूध दही। हिम्मत जिसमें हो तो किनारा मिलता, पतझड़ जब गुजर जाये फूल खिलता, बिछुड़ा हो अगर एक दिन है मिलता, पवन के झोंके जब चले पर्वत हिलता। सांझ बीत जाये तब सवेरा भी आएगा, बल दिल में हो तो सुबह भी आयेगा, करने की तमन्ना हो तो, जरूर पाए...
जीवन के रंग
कविता

जीवन के रंग

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** जिंदगी तो हर पल ही रंगीन है, एक रंग में रंगना, इसकी तौहीन है।। तरह तरह के रंग है इसमें हर रंग के अनुभव है इसमें हर उम्र की एक नई है भाषा, हर उम्र में एक नूतन अभिलाषा, हर भाव का अपना विशेष रंग चलो हम भी भीगे उसके संग, बचपन, जवानी और बुढ़ापा, जैसे लाल, गुलाबी और जामुनिया।। हर रंग अपना असर दिखलाता वक़्त के साथ बदलता जाता।। तरह तरह के अनुभवों ने जीवन मे अनेक रंग है बिखराये।। कभी गुलाबी खुशीयों की बहार आई, कभी गहरे आँसुओं के सैलाब आये।। कभी सुनहरा पल आया जब क़ामयाबी ने कदम चूमे, तो कभी अंधियारे राहों पर चलते सीधे कदम भी डगमगाए।। कभी हर तरफ लाली छाई, जब खुशियों के क्षण है आये तो कभी श्वेत रंग में डूब गए, जब अपने हम से रूठ गए।। हर सुबह नारंगी धूप एक नई शुरुआत है लाई।। हर शाम की नीलिमा एक नया परिणाम है लाई। हर एक पल बस बीत गया ऐसे, चित्र पटल पर च...
रिश्तों को लगी नजर
कविता

रिश्तों को लगी नजर

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** बड़े आराम की थी रिश्तों भरी जिंदगी लग गयी हैं अब रिश्तों को भी नजर। किसने की ये हिमाकत दूर करने की अपनों से ही अपनों ने फेर ली नजर। हर कोई निश्चंत था संबंधों को लेकर आनाजाना भी सरल था बैखौफ होकर मस्ती में मस्त थे सब खुशियां थी भरपूर कोरोना ने लील लिया बनकर एक नासूर। हवा कुछ ऐसी चली दुनिया बदल गई मुंह तो ढक लिया पर नजरें बदल गई पास पास थे हम जितने अब दूर हो गये कुछ बोलने के लिए मुंह से मजबूर हो गये । हर कोई पूछ रहा हैं कब तक रहेगें ऐसे सरकारें भी मौन हैं जो जी रहा हैं जैसे बारबार के लाकडाउन ने कमर तोड़ दी उम्मीदों की महफिल ने आशाऐं छोड़ दी जब भी जरा सी उम्मीद नजर आती हैं दूर से फिर गम की यह खबर आती हैं। चला गया रिश्तों का एक रिश्ता भी हमसे अब कोरोना के डर में हर रात गुजर जाती हैं। सुबह कोई अखबार हमें फिर डरा देता हैं। चैन...
गाँव की होली
कविता

गाँव की होली

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** होली आते ही मुझे याद गाँव की आ गई। कैसे मस्ती से गाँव में होली खेला करते थे। और गाँव के चौपाल पर होली की रागे सुना थे। अब तो ये बस सिर्फ यादे बनकर रह गई।। क्योंकि मैं यहां से वहां वहां से जहां में। चार पैसे कमाने शहर जो आ गया।। छोड़कर मां बाप और भाई बहिन पत्नी को। चार पैसे कमाने शहर आ गया। छोड़कर गाँव की आधी रोटी को। पूरे के चक्कर में शहर आ गया। अब न यहाँ का रहा न वहाँ का रहा। सारे संस्कारो को अब भूल सा गया।। चार पैसे कमाने....। गाँव की आज़ादी को मैं समझ न सका। देखकर शहर की चका चौन्ध को। मैं बहक कर गाँव से शहर आ गया। और मुँह से आधी रोटी भी मानो छूट गई।। चार पैसे कमाने...। सुबह से शाम तक शाम से रात तक। रात से सुबह तक सुबह से शाम तक। मैं एक मानव से मानवमशीन बन गया। फिर भी गाँव जैसा मान शहर में न पा सका।। चार पैसे कमाने यहाँ वहाँ भटकता रहा...
होली का हुड़दंग
कविता

होली का हुड़दंग

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** फागुन का मास लाया गीतो और रंगों भरा उल्लास होलिका के संग दहन हो आलोचना, ईर्ष्या, अंतर्द्वंद आज न माने दिल कोई प्रतिबंध मन मे हिलोरे लेती तरंग पिया लगाये गौरी को प्रीत का पक्का रंग अनुबंध मे बहके, जैसे चढ़ी प्रेम की भांग परंपरागत व्यंजनों की सजी रंगोली फागुन के गीतों ने, कानों मे है मिश्री घोली जात्त-पात, ऊँच-नीच के भिन्न-भिन्न गुब्बारे एकता का रंग बरसाते हुए जैसे भाईचारे के चले फव्वारे बोल रहा हर एक इंसान, बस मस्ती की बोली हास्य रंग से भरी पिचकारी, छोड़े हँसी ठिठोली इन्द्रधनुष-सा मनमोहक समाँ, उड़ा जो महकता अबीर तन भीगा, अंग रंगीन, जो बरसा रंगोंं से सरोबार नीर गूँज रहे ढोल, मँजीरे और संग में बज रहा मृदंग हर दिल बचपने में रंगा, मचा रहा होली का हुडदंग परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्...
होली आई रे
कविता

होली आई रे

रूपेश कुमार चैनपुर, सीवान (बिहार) ******************** होली आई रे आई रे होली आई रे, जीवन को रंगों से रंगायी रे, मन मे पुलकित पंख लगायी रे, लाल हरा रंग रंगाई रे ! होली आई रे आई रे होली आई रे, मन तन के दिल मे आग लगायी रे, जीवन को मदहोश करायी रे, मन में बसंत बहार लायी रे ! होली आई रे आई रे होली आई रे, जीवन को सातों रंगों से रंग मे मिलाई रे, प्यार और भाईचारे का नदियाँ बहाई रे, हिंदू-मुस्लिम का भेदभाव मिटायी रे ! होली आई रे आई रे होली आई रे, रिश्ते नाते को एक डोरे मे बाधि रे, मंदिर मस्जिद को अपनाई रे, दिल मे दुनिया-जहान को समाई रे ! होली आई रे आई रे होली आई रे ! परिचय :- रूपेश कुमार शिक्षा : स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डिप्लोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास : चैनपुर, सीवान बि...
होली में
कविता

होली में

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ईर्ष्या द्वेष को मिटा दे होली में, नफरत की दीवार गिरा दें होली में, प्रेम सहिष्णुता को अंगीकार करें, जीवन को रंगीन बना दे होली में। जीवन के वृंदावन में, रंगों की बौछार, हवा के रथ पर रंग अबीर, उड़ते घर- घर द्वार, सत्यम शिवम -सुंदरम सा, सुंदर हो विचार, सुदृढ़ एकता के बंधन में, बंध जाए संसार, रंग-भंग और मस्ती के संग, फाग गाएं होली में, जीवन को रंगीन, बना दे होली में। सुख समृद्धि हो जीवन में, चारों ओर प्रकाश, ढोल नगाड़ों के संग नाचे, मन में हो उल्लास, तन-मन केशरिया हुआ, जीवन हुआ मधुमास, आसमान रंगीन हुआ, धरती हुई पलाश, अहं के पर्वत को पिघला दे होली में, जीवन को रंगीन बना दे होली में। परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्मदिन - ३०/०६/१९५७ जन्मस्थान - बिलासपुर छत्तीसगढ़ शिक्षा - एम.ए समाजश शास्त्र, बी...
बसंत
कविता

बसंत

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** सुमन सुवास सुरभित उपवन, मन को अतिशय भाया है। तन हर्षित है, मन हर्षित, मौसम बासंती आया है।। माँ भगवती को करूँ नमन, रोली कुमकुम और चंदन। धूप दीप अक्षत अर्पण, हाथ जोड़ करूँ मैं वंदन।। विद्या वाणी सुरों का दान, वरद मुझे दो बनूँ गुणवान। वास करो माँ कंठ मे मेरे, बनूँ मैं जग में सदा महान।। भक्तिमय सकल संसार, बुद्धि भंडार समाया है। तन हर्षित और मन हर्षित, मौसम बासंती आया है।। लहराती गेहूँ की बाली, फूली सरसो पीली वाली। बौर सजे है अमुआ डाली, कोयल कूके है मतवाली।। धरा कर रही है श्रृंगार, बहे बाग में शीत बयार। शीत ऋतु की करे विदाई, दिनकर ने थामी तलवार।। पीली धरणी पीला अंबर, पीत वर्ण ही भाया है। तन हर्षित और मन हर्षित, मौसम बासंती आया है।। रसमय फूलों के मकरंद, तितली भरती अपने रंग। प्रेम प्रीत बरसाती अपना, ले जाती हैं अपने सं...