मही हो स्वर्ग सी मेरी
ओम प्रकाश त्रिपाठी
गोरखपुर
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मही हो स्वर्ग सी मेरी, यही बस कामना दिल मे
महक बिखरे सदा यू ही, यही बस भावना दिल मे।
लडी मोती की न टूटे, यही बस है मेरी ख्वाहिश
न जीते न कोई हारे, प्यार ही प्यार हो जग मे।।
उत्तर में हिमालयसे, समन्दर तक ये बोलेगा
सुनो ऐ दुनिया वालों तुम, तेरे आखों को खोलेगा।
राज्य हो राम के जैसा, नहीं हो दीन अब कोई
धरा का जर्रा जर्रा फिर, वसुधैव कुटुम्बकम बोलेगा।।
नहीं हो फिर कोई हिटलर, नहीं मूसोलिनी जैसा
जगत के मूल में न हो, कभी रुपया और पैसा।
मिले दिल एक दूजे से, न हो कोई गिला शिकवा
बनाये आओ मिलकर के, हमारा विश्व एक ऐसा।।
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लेखक परिचय :- ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर
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