चाय गरम
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विवेक सावरीकर मृदुल
(कानपुर)
चाहे कोई मरे चाहे भाड़ ही में जाए
हमको तो मिले बस गरमागरम चाय
चुस्कियां भरें और बांचे अखबार
दोसौ मरे, दो घायल, चार बलात्कार
खुद के बचे रहने का जश्न हम मनाए।।
हादसों को देखे सिर्फ बन तमाशबीन
इमदाद की बात पर हो जाएं उदासीन
फोकट में कौन साल्ला थाने कोर्ट जाए!
हमदर्दी के चंद जुमले दोहराये
वायदों के लॉलीपॉप जन को थमाए
पांच साल के लिए फिर सबको भूल जाए
चाय गरम चाय, गरमागरम चाय।।
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लेखक परिचय :- विवेक सावरीकर मृदुल
जन्म :१९६५ (कानपुर)
शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा
हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये,
उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप ...