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कविता

भंवर
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भंवर

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* एक ऐसे समय में जब काला सूरज ड़ूबता नहीं दिख रहा है और सुर्ख़ सूरज के निकलने की अभी उम्मीद नहीं है एक ऐसे समय में जब यथार्थ गले से नीचे नहीं उतर रहा है और आस्थाएं थूकी न जा पा रही हैं एक ऐसे समय में जब अतीत की श्रेष्ठता का ढ़ोल पीटा जा रहा है और भविष्य अनिश्चित अति असुरक्षित दिख रहा है एक ऐसे समय में जब भ्रमित दिवाःस्वप्नों से हमारी झोली भरी है और पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक रही है एक ऐसे समय में जब लग रहा है कि पूरी दुनिया हमारी पहुंच में है और मुट्ठी से रेत का आख़िरी ज़र्रा भी सरकता सा लग रहा है एक ऐसे समय में जब सिद्ध किया जा रहा है कि यह दुनिया निर्वैकल्पिक है कि इस रात की कोई सुबह नहीं और मुर्गों की बांगों की गूंज भी लगातार माहौल को खदबदा रही है एक ऐसे समय म...
मिथ्या फड़फड़ाहट
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मिथ्या फड़फड़ाहट

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** क्यों? अब टूट गया अहम का वहम तुम तो कहते थे सब कुछ मैं ही हूं। मेरे इशारे पर ही सब चलता है मैं न चाहूं तो यहां पत्ता भी न हिलता है क्या ? अब भी कोई पूछता मांगता है? शायद नहीं क्योंकि जिद्दी व्यक्तित्व हर किसी को रास नहीं आता है। बीत गया न वक्त चली गई न सत्ता आहत कर रहे है न अपने क्या अब भी बचा है अहम का वहम? परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित क...
उस पार
कविता

उस पार

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** क्या होगा मृत्यु के बाद उस पार जब बुझ जायेंगें आँखों के दिए क्या उजाला दिख पाएगा उस पार?? जब धड़कने शांत हो जाएंगीं, जितना जीवन जी लिया, क्या उतना ही मरना होगा, क्या जिया जीवन साथ ले जाना होगा उस पार?? क्या कर्म किया क्या धर्म था, यह सब भी निभाना होगा उस पार? क्या यात्रा की तैयारी कर जाना होगा जैसे जीवन भर सहेजते रहे, बटोरते रहे, समान बांधते रहे जरूरी चीजों के हर यात्रा पर कुछ जरूरी बाँध कर ले जाना होगा उस पार?? बही खाता, हिसाब-किताब में जीवन बिताया कुछ थोड़ा खुद मरे कभी कोई निर्दोष मरा ये सारी वसीयत भी ले जाना होगा उस पार?? सच-झूठ, राग द्वेष की परिभाषा नासमझ बन समझता रहा ये जीवन क्या इसका अर्थ समझ आएगा उस पार? जीवन के बाद मृत्यु तय है किसकी जीत होगी किसकी हार जीत परमा...
बंधन की मोहताज नहीं
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बंधन की मोहताज नहीं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** भाई बहन का रिश्ता अटूट होता है, इस रिश्ते को किसी धागे के बंधन की आवश्यकता नहीं होती, जब मुसीबत में हो भाई तो बहन की आंखों में नींद नहीं होती, बहन-भाई का रिश्ता दिल का होता है जिन्हें जगवालों को दिखाने की जरूरत क्यों, यह भावनात्मक जुड़ाव इतना खूबसूरत क्यों, नैतिकता से परिपूर्ण इस रिश्ते में दुराव, छिपाव, साम-दाम-भेद के लिए रत्ती भर जगह नहीं होता, जगह होता है तो प्यार दुलार अपनत्व की, यह संबंध है पंचरत्न सी, बहन कभी जान नहीं मांगती मगर भाई जान लुटाने को भी तैयार रहता है, गर हो भरोसा चाहत की बयार होता है, इस ताउम्र के बंधन के बीच किसी धागे का खुमार मत लाओ, किसी के मंत्र या किसी के व्यापार के ओछी सोच को परवाज दे न फैलाओ। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत...
मां तुम्हे प्रणाम
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मां तुम्हे प्रणाम

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मां सारे पुण्यों का परिणाम हो तुम। जीवन दिया इस संसार में। जब आया तो मेरे कोरे मन पर, पहला नाम हो तुम। तुम्हारी, ममता त्याग, तपस्या, कर्तव्यनिष्ठा का परिणाम हें हम। हमेशा रहती यादों में अब भी, भूलीं बिसरी स्मृतियों में। छोड़ दिया हमारा साथ जल्दी ही, अब यादें बाकी है‌। सब-कुछ पाकर भी, अब दिल का कोना खाली है। बीते दिनों की यादें कर, अब भी आंखें नम हो जाती है। जन्म जयंती पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि सादर चरण स्पर्श नमन ... परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...
तुम अजेय हो
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तुम अजेय हो

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सुनो! स्वयं के विश्वासों पर, ही जगती में टिक पाओगे। गांँठ बाँध लो मूल मन्त्र है, यही अन्यथा मिट जाओगे।। साहस - शुचिता से भूषित तुम, धरती माँ के दिव्य पुत्र हो। घबराहट से परे शौर्य की, सन्तानों के तुम सुपुत्र हो।। तुम अतुल्य अनुपम अजेय हो, बुद्धि वीरता के स्वामी हो। स्वर्ण पिंजरों के बन्धन से, मोह मुक्ति के पथगामी हो।। चलते चलो रुको मत समझो, जीवटता का यह जुड़ाव है। संघर्षों में मिली विफलता, मूल‌ सफलता का पड़ाव है।। करते हैं संघर्ष वही बस, पा पाते हैं मंजिल पूरी। भीरु और आलसी जीव की, रहती हर कामना अधूरी।। भरो आत्मविश्वास स्वयं में, स्वयं शक्ति अवतरण करेगी। बैशाखी पर टिके रहे तो, कुण्ठित आशा वरण करेगी।। घोर निराशा भरी कलह का, जीवन भी क्या जीवन जीना । तज कर निर्मल नीर नदी का, गन्दी नाली...
घूंघट
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घूंघट

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** सिमट गया घूंघट देहली तक, सिमत गया घूंघट घर द्वार, सिमट गया घूंघट होठों पर, सिमट गया चित्रों में आज। घूंघट में अब लाज छुपी नहीं, घूंघट में अब शान छुपी नहीं, मान सम्मान की बात छुपी नहीं, घूंघट में अब शर्म छुपी नहीं। घूंघट में अरमान छुपे नहीं , घूंघट में कुछ बात छुपी नहीं, घूंघट में अब मान छुपा नहीं, घूंघट में कुछ राज छुपा नही। घूंघट में अब मान बिक रहा, घूंघट में सम्मान बिक रहा, घूंघट अब बाजार बन रहा, घूंघट अब व्यापार बन रहा। घूंघट कवियों की वाणी मै, घूंघट कविताओं की लेखनी मै, घूंघट बड़े बूढ़ों का मान, घूंघट राजपूतो की शान, मर्यादा और सम्मान का भाव। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूम...
स्वप्न या हकीकत
कविता

स्वप्न या हकीकत

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** एक तरफ कुंआ और एक तरफ खाई है, देखो चोर चोर मौसेरे भाई है, एक पुचकारता है एक दहलाता है, मरे कटे कोई भी इनका क्या जाता है, बातों में एक उखाड़ता है एक बसाता है, एक का छुड़ाने का नाटक एक फंसाता है, हमारे जीवन की बागडोर इन्हीं ने पकड़ा है, हमारी मस्तिष्क को इनकी चालों ने जकड़ा है, एक संयम की मूरत दूजे की चालबाजी, अंत में आधा इनका और उनकी होगी आधी, चक्र का ये प्रणेता देखो धुरंधर है, शक्ल से बदसूरत और चालें भयंकर है, ये इनकी राजनीति और यही कूटनीति, देखना न चाहे एका चलाते हैं फुटनीति, बनते हैं पथप्रदर्शक और बनते पुरोधा है, ये अपनी राह बनाने घर बहुतों का खोदा है, लोगों को मूर्ख बनाना इनकी परंपरा है, पद प्रतिष्ठा इनको मिलता अनुकंपा है, सच्चाई न पास इनके और न नैतिकता है, उलजुलूल बोल है देत...
असहजता
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असहजता

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** संघर्ष है तो हारने के डर से फिर विराम क्यों? राम है तो औरों से फिर काम क्यों? ज्ञान है तो फिर अज्ञानता का भार क्यों? जीत की तलब है तो फिर हार का खौफ क्यों? अजनबी हूँ तो फिर इतना अपनापन क्यों? अहम है तो फिर वहम भरी बातें क्यों? सहज हो तो फिर व्यवहार में असहजता क्यों? ज्ञात है सब तो फिर अज्ञात का बोध क्यों? जीवंत हो तो फिर मरण से भय क्यों? परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाच...
रौद्र नाद
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रौद्र नाद

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** हे पाखण्ड खण्डिनी कविते ! तापिक राग जगा दे तू। सारा कलुष सोख ले सूरज, ऐसी आग लगा दे तू।। कविता सुनने आने वाले, हर श्रोता का वन्दन है। लेकिन उससे पहले सबसे, मेरा एक निवेदन है।।१।। आज माधुरी घोल शब्द के, रस में न तो डुबोऊँगा। न मैं नाज-नखरों से उपजी, मीठी कथा पिरोऊँगा।। न तो नतमुखी अभिवादन की, भाषा आज अधर पर है। न ही अलंकारों से सज्जित, माला मेरे स्वर पर है।।२।। न मैं शिष्टतावश जीवन की, जीत भुनाने वाला हूँ। न मैं भूमिका बाँध-बाँध कर, गीत सुनाने वाला हूँ।। आज चुहलबाज़ियाँ नहीं, दुन्दुभी बजाऊँगा सुन लो।। मृत्युराज की गाज काल भैरवी सुनाऊँगा सुन लो।।३।। आज हृदय की तप्त वीथियों, में भीषण गर्माहट है। क्योंकि देश पर दृष्टि गड़ाए, अरि की आगत आहट है।। इसीलिए कर्कश कठोर वाणी का यह निष्पादन है। सुप्...
फटा बनियान
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फटा बनियान

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** फटे बनियान का राज बहुत है, पिता के मन का भाव जुडा़ है, छुपा है उसमें कहीं है राज, देखो एक पिता का त्याग। जोड़-जोड़ कर आगे बढ़ता, कंजूसी उस पर है थोपता, छिन-छिन हो जाये जब तक ना आप। बच्चों की हर उमंग तार मै, डॉक्टर इंजीनियर का राज तार मै, परिवार का हर भार तार मै, कई भोझ का भार तार मै, नहीं खरीदता पहने रहता, कोई आए उसे ढक वह लेता, कई दिल के अरमान है तार। सूरज की तपन है सहता, लाज शर्म मेहनत है तार मै, अपनी धुन अपना एक भाव, आगे बढ़ना उसका काम। अपने मन पर कंट्रोल हर वक्त है, नहीं चलेगी किसकी बात, फटी बनियान का बड़ा है राज, फिर भी जीता यथार्थ में आज। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन वि...
भटकाव
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भटकाव

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** जिंदगी में भटकाव ही भटकाव है भटकाव दर भटकाव मेला लगा है भटकावों का मन का भटकाव... तन का भटकाव... मन चंचल है न जाने कहाँ-कहाँ भटकता है.... जब मन भटकता है मनु की सोच भटकती है जब चटकती है अतृप्त महत्वाकांक्षाएं जब खटकती है पर-प्रगति लटकती है लालसायें मटकती मन-मरीचिका सोच को उद्विग्न करती है मन डूबता जाता है आकांक्षाओं के समंदर में समंदर में भांति भांति की क्रोध,मा न, माया, लोभ सरूपी मीन सुनहरी आकर्षित करती मछलियाँ मन डोल कर हो जाता है पथच्युत भटकता स्व-निर्मित जाल में.... तन जब भटकता है उद्वेलित कर काम आवेशित कर तृष्णा भटका देता है मन भी भटकती राहें तन लिप्सा की बदल जाते संदर्भ जब भटकते तन-मन कहाँ बच पाता मन भटकाव से कैसे हो पाये मन स्थित प्रज्ञ कैसे लिख पाये व्यथित मन ...
बस मन से लिखूं
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बस मन से लिखूं

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** सुबह जागते ही आते ख्याल दिनभर कुछ लिखूं सोचकर समझकर लिखकर सचेत सबको करूँ, क्या लिखूं, कैसा लिखूं लिखकर ना कागज में रखूं लिफाफे में बंद कर ना रखूं, मनगढ़त चुभती बातें ना लिखूं मन के उपजे सवालों में, लिखकर विचारों से, जीवन का सार बदल दूँ,।। कभी घर में, कभी बाहर कभी जमीन में, कभी आसमां में, झांकता हूँ, सोचता हूँ, समझता हूं, उत्साहित, उदासीन मन को लगता है मुझे चुप क्यों फिर रहूँ, लिखने की शक्ति भरूँ इनपर भी मन की बातों का मन को स्पर्श करने सा मनभावन विचार क्यों न मन से लिखूं।। देश, समाज, जाति, की बातें मन में कैसे रखूं, मन करता है हर रोज मुसीबतों में भी मुसीबतों से लड़ने की बेधड़क मन की उपजी बातों को कलम से कागज में अविराम एकांत लिखूं।। परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, ड...
नील गगन में विजयी तिरंगा
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नील गगन में विजयी तिरंगा

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** नील गगन में विजयी तिरंगा, उन्मुक्त लहराता रहे। वसुंधरा पर हो रहे शत्रु प्रबल। मां भारती तुम्हें पुकारती, बढ़े चलो अपने लहू से, विजय तिलक करे चलो। कहती मां भारती बिना डरे, गोलियों से उतार दो इनकी आरती। भारत माता की जयकार करो, शत्रु सिरों का संहार करो। तिरंगे का परचम फहरायेजा। शूरवीर गुरु गोविंद,वीर शिवाजी राजपुताना की लाज बढ़ायेजा। हाथों में तिरंगा शान से लहरायेजा। नील गगन में विजयी तिरंगा, विश्व गुरु बनकर उन्मुक्त फहराता रहे। मेरे वतन के सीने पर हमेशा, तिरंगा लहराता रहे। जन्मों तक वतन हो हिंदुस्तान, हाथों में तिरंगा शान से लहराता रहे। जय हिंद जय मां भारती।। भारत माता की जय, वंदे मातरम। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार ...
कर्म से किस्मत
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कर्म से किस्मत

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** जंग अपनी थी जंग लड़े हम लड़ के खुद सम्हल गए हम..!! दर्द था दिल में जताया नहीं अश्क आँखों से बहाया नहीं..!! राहें अपनी खुद गड़कर हम बाधाओं से खुद लड़कर हम..!! लक्ष्य मार्ग पर बढ़कर हम सफल हुए मेहनत कर हम..!! किस्मत पर भरोसा किए नहीं कर्म से किस्मत लिखें हम..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
तानाशाह के पास
कविता

तानाशाह के पास

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* अपने वफ़ादार वर्दीधारी सैनिक थे, अपने चुने हुए जन-प्रतिनिधि थे, अपने अमले-चाकर थे, अफ़सर-मुलाज़िम-कारकुन थे, अपनी न्यायपालिका थी, अपने शिक्षा-संस्थान थे जहाँ टैंक खड़े रहते थे और तानाशाही तले जीने की शिक्षा दी जाती थी। पर तानाशाह की सबसे बड़ी ताक़त हिंसक भेड़ियों के झुण्ड जैसी वह भीड़ थी जो तानाशाह के लोगों ने बड़ी मेहनत से तैयार की थी। इसमें समाज के अँधेरे तलछट के लोग थे और सीलन भरे उजाले के पीले-बीमार चेहरों वाले लोग थे और जड़ों से उखड़े हुए सूखे-मुरझाये हुए लोग थे। यह भीड़ तानाशाह के इशारे पर किसीको बोटी-बोटी चबा सकती थी, सड़कों पर उन्माद का उत्पात मचा सकती थी, बस्तियों को खून का दलदल बना सकती थी। सम्मोहित-सी वह भीड़ हमेशा तानाशाह के पीछे चलती थी और तानाशाह के इशारे का इंतज़ार करती थी। त...
पे बैक
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पे बैक

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जरा बता देना मेरे शूरवीरों जिनसे खुलकर लिए हो, उन्हें कब-कब, क्या-क्या और कितना वापस किये हो, लिया हुआ तो वापस करना पड़ता है, बहुतों ने किया है और बहुत कर रहे हैं, जिससे समाज संवर और सुधर रहे हैं, जिस समाज से आते हो, जिस समाज का खाते हो, भई बताओ उन्हें कैसे भूल जाते हो, भूलने की यह बीमारी समाज को गड्ढे में धकेल सकता है, हमारा विरोधी साम- दाम-दंड-भेद अपना बड़ी आसानी से हमें नकेल सकता है, ये मत भूलो हमारे महापुरुषों ने,साहब ने, हमारे लिए कितने कष्ट उठाए थे, प्रतिबंधों के लावों से अधिकार निकाल लाए थे, क्या हाथ बढ़ाकर किसी का हाथ नहीं खींच सकते, जागने, जगाने के लिए आंख नहीं मींच सकते, यदि खुद को बड़ा व बढ़ा समझते हो तो बड़ा दिल भी दिखाओ, कुछ जरूरतमंदों के लिए पे बैक कर जाओ। ...
स्वतंत्रता दिवस मनायेंगे
कविता

स्वतंत्रता दिवस मनायेंगे

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आज हम स्वतंत्रता दिवस मनायेंगे, गर्व से लालकिला में तिरंगा फहरायेंगे। आजादी के लिए जिन्होंने बलिदान दिये हैं, उन वीरों के जय -जयकार हम लगायेंगे। हम भारत माँ की संतानें देश का मान बढ़ायेंगे, मातृभूमि की रक्षा खातिर अपना शीश भी कटायेंगे। सरहद ही ओर आँख उठाकर देखे जो दुश्मन, सीमा के उस पार ही मार उसे गिरायेंगे। ये धरती है मर-मिटने वाले बलिदानों की, आने वाले पीढ़ी को याद हम दिलायेंगे। कभी सोने की चिड़िया कही जाती थी, देश की गौरवशाली इतिहास भी बतायेंगे। देश के वीरों और वीरांगनाओं को नमन करेंगे, नतमस्तक होकर श्रद्धा-सुमन अर्पण करेंगे। शहीदों के सम्मान में आरती सजायेंगे, आज हम स्वतंत्रता दिवस मनायेंगे। परिचय :-  हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ - बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र :...
समय का फेरा
कविता

समय का फेरा

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** किसी ने कहाँ अच्छा हूँ मै, किसी ने कहा बुरा हूँ मै, अच्छा बुरा कोई नही होता? बस समय का बदलाव है रहता। अच्छे मै सब अच्छा लगता, बुरे मे सब बुरा दिखता, सोच-सोच का फर्क है मन मै, यही समय का फेरा रहता। बुरा वक्त है मौन हो जाओ, अच्छे मै आगे बढ़ जाओ, नही तो समय को चूक जाओगे। यही शतरंज की चाल है भय्या। बिखर गयी है गोटी सारी, राजा, वजीर, घोडा़ और हाथी, जाओगे तब सिमट जायेगी, एक डिब्बे मै बन्द सब भाई। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौ...
आभा
कविता

आभा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शान की सिन्दुरी आभा मे तरू परछाई दैत्य सी लगती है खपरेलो से निकलता धुंआ तुफानी आभास देता है। क्षितिज से मिलती सिन्दुरी आभा को निलाम्बर ताकता रह जाता है सोचता है यह मिलन क्षणिक है फिर तो मैं अपने स्थान पर ठीक हूँ। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान २०२३" से सम्मानित हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्...
मेरे माधव
कविता

मेरे माधव

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** माधव तेरे शहर के लोग अक्सर मोहब्बत का नाम लेकर डसते हैं। माधव तेरे शहर के लोग नाम तो तेरा लेते है पर तुम जैसी प्रेम प्रीति न करते हैं। माधव तेरे शहर के लोग कान्हा-कान्हा तो करते हैं मगर तुम जैसा रण में साथ न देते हैं। माधव तेरे शहर के लोग प्रेम तो बहुत करते हैं मगर तुम जैसे निभाने से डरते हैं। माधव तेरे शहर के लोग सत्यता का गुणगान तो करते है मगर तुम जैसे सत्य के लिए लड़ने से डरते हैं। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
ये कैसी आजादी है
कविता

ये कैसी आजादी है

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** ये कैसी आजादी है भूखा पेट, नंगा बदन मन-घाव सारे मवादी है ये कैसी आजादी है गांधी ने कब सोचा था देश जलेगा पेट की आग में जात-धर्म नाम पर लड़ेंगे क्या यही लिखा था भाग में रहे भूखा या फिर नंगे बदन करने काम जेहादी है ये कैसी आजादी है कलमकार लिखते सच्चाई पर उस से क्या पेट भरेगा जिनके सपनों में सत्ता हो जनता हेतु वो क्या करेगा मुफलिसी से जुझते जन को हालात बनाते फसादी है ये कैसी आजादी है बहुत काम हुआ अमृत काल में सब छिपा कागदों मे, दिखे कहाँ जनता पाती है दस बीस पैसा बाकी जाने जाता है कहाँ बँदर बाँट हो जाती है ऊपर जनता तो फरयादी है ये कैसी आजादी है उद्योग लगे, पुल-बाँध बने फैला सीमेंट कंक्रीट का जंगल अमीर,अमीर और गरीब,गरीब ठेकेदारों का हुआ बस मंगल जड़ें गहराई बस भ्रष्टाचार की बजट की...
बीर सपूत रइ हंव न
कविता

बीर सपूत रइ हंव न

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) मैं तो देस के बीर सपूत रइ हंव न, दाई के पूत हंव पूत रइ हंव न, कचरा हम उठाथन रे संगी भुइयां ल सफा बनाथन, कचरा बगराने वाला मन के मुंह ले कचरा वाला कहाथन, हमर पीरा ल नइ समझय कोनो कुहरतसे पीरा म कमाथन, का घाम अउ का पियास रे संगी दिन भर सेवा ल बजाथन, बड़े स्कुल म पढ़े बर हम तो लइका ल बस सपना देखाथन, दु ठो मीठ गोठ कहिके अपन लइका ल धीरज धराथन, मान झिन मान हीरा बेटा कस सबूत रइ हंव न, मैं तो देस के बीर सबूत रइ हंव न, हमर करे बिना साग नइ उपजय, हमर मेहनत बिना धान, काबर हमला देखे नइ सकच आनी बानी बोलियाथस, हमरे लहू पसीना के कमाई खाथस हमी ल आंखी देखाथस, तोर गरभ ल तोरे जगा रखबे अब नइ रहिस तइहा जमाना, मुठा भर तैं हावस इहां घेरी बेरी झन खोभियाना, जवाब देहे ल सीख गय हन हमु बनके नहीं बुत र...
शहीदों की कुर्बानी
कविता

शहीदों की कुर्बानी

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आजादी का ये पल शहीदों की मेहरबानी है, शीश कटाने वाले देशभक्तों की कुर्बानी है। सदियों तक अमर रहेगी स्वतंत्रता की ये कहानी है , तिरंगे की लाल रंग बलिदान की अमर निशानी है। स्वतंत्रता के लिए वीरों का वर्षों तक संघर्ष हुआ, तब जाकर देश में आजादी का सूर्योदय हुआ। आजादी के खातिर कितनों ने दी अपनी कुर्बानी है, मातृभूमि के खातिर जिन्होंने दी अपनी जवानी है। आजादी की एक-एक सांस की कीमत चुकायी है, मातृभूमि के वीर सपूतों ने मौत को गले लगायी है। उनके कर्जों को जीवन भर चुकाया नहीं जायेगा, उनके एहसानों को कभी भुलाया नहीं जायेगा। लालकिला पर जब-जब तिरंगा लहरायेगी, तब-तब उन वीर शहीदों की याद आयेगी। परिचय :-  हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ - बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं...
गांव से ग्लोबल तक
कविता

गांव से ग्लोबल तक

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** धान की खुशबू, मिट्टी की सौंधी, पगडंडी का मीठा गान, बरगद, पीपल, नीम की छाया, झोंपड़ियों में सपनों का मान। बैलगाड़ी की धीमी चाल में, कच्चे आँगन का था सिंगार, हाट-बाज़ार की चहल-पहल में, गूँजते थे लोक-पुकार। पर आई जब गुलामी की आँधी, सूख गए खेतों के गुलाल, माँ के आँचल में लहराते सपने, टूट गए जैसे मिट्टी के लाल। लाठी, गोली, कोड़े, जंजीरें, रोटी आधी, भूख का गाँव, फिर भी भारत–माँ के बेटों ने, प्राण दिए, पर न झुकाया नाम। चंपारण में उठी जो आंधी, नमक सत्याग्रह ज्वाला बनी, भगत, सुखदेव, आज़ाद की कुर्बानी, जन-जन की मिसाल बनी। सुभाष के नाद गगन में गूँजे, "तुम मुझे ख़ून दो" का गीत, वीर जवानों के रक्त से फिर, लाल हुआ भारत का मीत। १५ अगस्त की भोर आई जब, सूरज ने सोने रंग बिखेरा, स्वतंत्र ध्वज नभ में लहराया,...