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गीत

मैं माँटि हूँ हिन्द वतन की
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मैं माँटि हूँ हिन्द वतन की

बबिता चौबे शक्ति माँगज दमोह ******************** मैं माँटि हूँ हिन्द वतन की बेटी हिंदुस्तान की में नारी हिंदुस्तान की हु नारी हिंदुस्तान की।। मैं झलकारी मैं ही झांसी की रानी हूँ बलिदान की । मैं माँटि हूँ हिन्द वतन की बेटी हिंदुस्तान की।। देश के खातिर लड़ी वीरनी मैं ही अवंति बाई हूँ।। दुर्गावती के शौर्य की गाथा तलवारों से लिखाई हूँ ।। विजयलक्ष्मी पंडित जैसी वीरबाला के गुमान की।। चिन्नमा बेगम हजरत हूँ ऐनी भीकाजी बलदाई हूँ।। ।रानी पद्मावती सिंगनी करुणावती जीजा बाई हूँ ।। कमला नेहरू दुर्गा बाई देशमुख के भान की ।। सरोजनी नायडू हु मैं अरुणा आसिफ के नाम की सारन्धा रानी विरवाला चंपा के सुखधाम की शीला दीक्षित शुष्मा स्वराज इंदिरा के सुनाम की ।। मातंगिनी दुर्गा भावी बरुआ कनकलता हूँ मैं ।। रानी दुर्गावती रूप धर दुश्मन की दुर्गता हूँ मैं ।। सरगम हूँ मैं सात सुरों की पावन महिमा गान क...
धरती का आंगन महका दो : गीत
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धरती का आंगन महका दो : गीत

धरती का आंगन महका दो : गीत ================================================ रचयिता : लज्जा राम राघव "तरुण" द्वेष दिवारें मिटा दिलों से, मिलजुल कर रहना सिखला दो। । धरती का आंगन महका दो .... नहीं खिले गर फूल कहो फिर, कहां चमन की प्यास बुझेगी। बोल नहीं होंगे मनभावन, कैसे मन की प्यास बुझेगी। अधर रहे गमगीन कहीं यदि, कैसे जीवन प्यास बुझेगी। पुलकित हो अंतर्मन सबके, सरस मधुर संगीत सुना दो। धरती का आंगन महका दो .... फूल शूल मिलकर आपस में, रहे हमेशा पूरक बनकर। धार कुल मिल बने सरित अब, हिलमिल मीत सहोदर बनकर। पवन कराये सैर मेघ को, व्योम थाल में बांह पकड़ कर। भेदभाव हो लुप्त धरा से, परिवर्तन का बिगुल बजा दो। धरती का आंगन महका दो .... कामुकता से ध्यान हटा कर, मानवता का मान करो तुम। कुचले और दबे तबके के, जन-जन का अरमान बनो तुम। सुधरे देश व्यवस्था कैसे, कुछ इसका अनुमान करो तुम...
आओ मिल कर देश बचाऐं … गीत
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आओ मिल कर देश बचाऐं … गीत

रचयिता : लज्जा राम राघव "तरुण" =========================================== आओ मिल कर देश बचाऐं ... आओ मिल कर देश बचाऐं। देश बंटा वादों के अन्दर, ठाठें मारे द्वेष समंदर, अन्तर्मन की प्रीत निचोडें, देश-प्रेम की ज्योति जलाऐं। आओ मिलकर देश बचाऐं। मत पड़ाव को समझो मंजिल, लक्ष्य न हो आंखों से ओझल, राह दिखाने घोर तिमिर में, बुझी मसालों को सुलगाऐं। आओ मिलकर देश बचाऐं। फिर पीछे से वार किया है, मां का दामन तार किया है, अटल विजय का वज्र बनाने, बन दधिचि हड्डियां गलाऐं। आओ मिलकर देश बचाऐं। बैठो मत कर लो तैयारी, दिल पर चोट लगी है भारी, सब्र नहीं मत रखो उधारी, रिपु को सूद सहित लौटाऐं। आओ मिलकर देश बचाऐं। उठो देश के वीर जवानो, अपनी ताकत को पहचानो, बिन आहुति के यज्ञ अधूरा, बलिवेदी पर शीचढ़ाऐं। आओ मिलकर देश बचाऐं। लेखक परिचय :-  नाम :- लज्जा राम राघव "तरुण" जन्म:- २ मार्च १९५४ ...
तेरा प्यार
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तेरा प्यार

रचयिता : मोहम्मद सलीम रज़ा ===================================================================================================================== तेरा प्यार दिल में बसा है तेरा प्यार गोरिए कर लेने दे मुझे दीदार गोरिए सपनो में आके क्यूँ मुझे तड़पती हो अपना बनाले दिलदार गोरिए                     oo जाना तेरे दिल को बेक़रार करूँगा जी भर के तुझे आज प्यार करूँगा तेरे लिए चांदनी का सेज लगा दूँ चाँद सितारों से तेरी मांग सजा दूँ तुझपे ये ज़िंदगी निसार गोरिए                      oo पतली कमर मत ऐसे बल खा सोंडा सोंडा मुखड़ा न बांहों में छुपा सजनी दीवानी यूँ न अँखियाँ चुरा तेरे सुने जियरा में हमको बसा प्यार करूँगा बे - सुमार गोरिए                      oo सोड़े-सोड़े मुखड़े पे जादू तेरे जाना तेरे पीछे पड़ गया सारा ज़माना मुझ सा दीवाना न तू पाएगी दीवानी तुझपे निसार किया सारी ज़िंदगानी किया...
गीत
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गीत रचयिता : मोहम्मद सलीम रज़ा ===================================================================================================================== हँस दे तो खिले कलियाँ गुलशन में बहार आए वो ज़ुल्फ़ जो लहराएँ मौसम में निखार आए oo मदहोश हुआ दिल क्यूँ बेचैन है क्यूँ आँखें रंगीन ज़माना क्यूँ महकी हुई क्यूँ सांसें हूँ दूर मय-ख़ाने से फिर भी क्यूँ ख़ुमार आए oo बुलबुल में चहक तुम से फूलों में महक तुम से तुम से ये बहारे हैं सूरज में चमक तुम से रुख़्सार पे कलियों के तुम से ही निखार आए oo बस इतनी गुज़ारिश है बस इतनी सी चाहत है जिन जिन पे इनायत है जिन जिन से मोहब्बत है उन चाहने वालो में मेरा भी शुमार आए oo गुलशन में बहारों की इक सेज लगाया है फूलों को सजाया है पलकों को बिछाया है ऐ बाद-ए-सबा कह दे अब जाने बहार आए oo मिल जाए कोई साथी हर ग़म को सुना डालें जीवन के हर इक लम्हें खुशिओ...
हिस्से में माँ
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हिस्से में माँ

रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' अब मुझे किस बात, की तन्हाई है जब मेरे हिस्से में, मेरी माँ आई है जब भी कोई मुसीबत मुझे सताने लगे माँ के चरणॊ में मेरा ध्यान जाने लगे, घर का कोना-कोना मेरी माँ से सजा देखकर मेरे मन ने ये खुशी से अँगड़ाई ली है अब मुझे किस बात, की,तन्हाई है जब मेरे हिस्से में मेरी माँ आई है आसमाँ भी खुशी और जहाँ भी खुशी मस्ती में झूमे पवन और रवि अब फिर माँ की चर्चाएं दुनियाँ में शुरू हुई हैं अब मुझे किस बात, की तन्हाई है जब मेरे हिस्से में, मेरी माँ आई है लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म 07 जुलाई सन् 1998 को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :-...