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पद्य

एक अनोखा ग्रह
कविता

एक अनोखा ग्रह

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सौरमण्डल का अनोखा यह ग्रह जल] थल] वायु का इच्छित संगम जन जीवों का रहवासी ये स्थल पंच तत्वों में प्रमुख इसका स्थान ये गोल ग्रह परिक्रमा करे रवि की चंदा मामा थामके पल्लू धरा का अंग-संग रहता है नन्हें मुन्नू जैसा भूमध्य रेखा मध्य से है गुज़रती सूरज दद्दू की किरणें सीधी पड़ती ज्यों-ज्यों केंद्र से दूर होते जाते ठिठुरन ज़्यादा ही कपकपाती है दोनों ध्रुवों पर तो बर्फ़ जम जाती उत्तरी व दक्षिणी ये दो गोलार्ध हैं ठन्डों में भारत मनाता क्रिसमस आस्ट्रेलिया में सेंटा गर्मी में आते कहीं नदियाँ ताल, कहीं पठार हैं कहीं हरे मैदान कहीं रेगिस्तान हैं रहते हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई हैं प्रभु की ये रचना बड़ी करिश्माई है परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह र...
आंखे
कविता

आंखे

सुरभि शुक्ला इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** कमाल होती हैं आंखे बिन बोले सब कह देती हैं दिल में छिपे सारे राज़ खोल देती हैं सच और झूठ से पर्दा उठा कर एक-एक रहस्य उजागर करती हैं आंखे क्या कहें इनके बारे में रोज‌ नई कहानी सुनाती हैं हर किरदार का नया रंग दिखाती हैं ये, अपने और परायों की असली पहचान कराती हैं आंखे जिनसे हम अन्जान होते हैं उन्ही किताबों के पन्ने खोलती हैं और एक नया सबक सिखाती हैं हर आदमी के अध्याय को बार-बार समझ कर पढ़ने को कहती हैं आंखे परिचय :-   सुरभि शुक्ला शिक्षा : एम.ए चित्रकला बी.लाइ. (पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान) निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) जन्म स्थान : कानपुर (उत्तर प्रदेश) रूचि : लेखन, गायन, चित्रकला सम्प्रति : निजी विद्यालय में पुस्तकालयाध्यक्ष आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
श्रृद्धांजलि
कविता

श्रृद्धांजलि

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** जब कोई सिपाही होता है शहीद मेरी आंखें होती हैं नम एक आंसू टपक कर बनता है अविरल धारा शहादत की वो अपूर्व गाथा। भले ही मेरा कुछ ना लगता हो वो अनजाना सा अपरिचित, फिर क्यों मेरे ज़हन में उठती है इक मायूसी और टीस बलिदान हमारे लिए देगया वीर। छह महीने पहले जिसकी सधवा बिलखती बन गई विधवा, नैतृत्व करते अपनी टुकड़ी तेलंगाना शूर हुआ शहीद बेहिचक नन्ही बेटी जलाती है दीप उसकी स्मृति में असमंजस। वो बीस सिपाही दस्त-बदस्त लड़े डंडे पत्थरों के ज़ख्मों से आहत, गवां गए अपने प्राण, कभी ना सोचा अपना स्वार्थ जान हथेली पर ले तत्पर। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित...
प्रदूषण का पिंजरा
कविता

प्रदूषण का पिंजरा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** झर-झर बहते झरने कल-कल बहती नदियों की आवाजें मानो गुम सी हो गई हो या हम बहरे हो गए ये समझ में नहीं आता। सोचता हूँ कैद कर लिए होंगे इन्हें प्रदूषणों के पिंजरों में किसी ने इनके मीठे शोरों को। पर्यावरण को बचाने हेतु शुष्क कंठ लिए मृगतृष्णा सा भटकता इंसान क्या इन्हे प्रदूषण मुक्त कर पाएगा। श्रमदान से नदियों को पुनर्जीवित करके इंसान माँग ले यदि वरदान भागीरथ सा तो फिर से झर-झर बहते झरने कल-कल बहती नदियों की आवाजें इस धरा पर पा सकता है। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशि...
साथ उसके हबीब है कोई
ग़ज़ल

साथ उसके हबीब है कोई

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** साथ उसके हबीब है कोई। शख़्स वो खुशनसीब है कोई। पास जिसकी हर दुआ उस पर, यार उसका ग़रीब है कोई। नींद के हाल मुस्कुराता है, ख़ाब उसके करीब है कोई। देखकर रह गया वहीं थमकर, वो नज़ारा अजीब है कोई। जान देने को अपनी हाज़िर है, वो परिंदा अदीब है कोई। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
ख़्वाहिशें जगने लगी
कविता

ख़्वाहिशें जगने लगी

ऋषभ गुप्ता तिबड़ी रोड गुरदासपुर (पंजाब) ******************** बूंदे बरसने लगी ख़्वाहिशें जगने लगी ठहरी-ठहरी सी ये जिंदगी फिर से चलने लगी, मौसम भी सुहाना हो गया आसमान का दीवाना ये राही हो गया पहाड़ों की चोटियों पर जब ठण्डी-ठण्डी हवाएं चलने लगी ठहरी-ठहरी सी ये जिंदगी फिर से गुनगुनाने लगी, ख्वाहिशों की मोमबत्तियां कैसे बुझ जाती एक हवा के झोंकें से ठहरे हुए समंदर में भी कश्ती चलने लगी, बेड़ियों में बंधा ये परिंदा आज़ाद हो गया राहों पर खड़ी ख़्वाहिशें जब ज़ोर से पुकारने लगी, नया दौर नई दास्तां आँखों में आशाएँ लिये वही पुरानी ख्वाहिशों को कलम की जुबानी ये नज़्म सुनाने लगी ठहरी-ठहरी सी ये ज़िंदगी फिर से कदम बढ़ाने लगी परिचय :- ऋषभ गुप्ता निवासी : तिबड़ी रोड गुरदासपुर (पंजाबप्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित ...
निशा की माया
कविता

निशा की माया

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** फैलाई निशा ने माया, चाँद सितारों की! लौट गए रवि लेकर, अपना स्वर्णिम रथ! नर्तन कर संध्या भी, चल दी अपने पथ! निशा ने सुलाया सबको जो थे थके हुए लथपथ! विरहदग्ध रहे देखते, रातभर यात्रा तारो की!....... फैल गई चांदनी गगन, में जैसे हृदय की आस! लगे दौड़ने तारे नभ में, दग्ध मन के से संत्रास! शशि अपनी शीतलता से, उर में भर रहा विश्वास! पंहुची साधना चरम पर प्रभु पथ के प्यारो की!....... गहन तिमिर में निकल, निशाचर पा रहे आहार! मिलन की इस यामिनी में, युगल कर रहे हैं विहार! अधर्मियों के लिए निशा, सुलभ करने पीत व्यापार! निशा साक्षी हर हृदय में बनती गिरती दीवारों की! फैलाई निशि ने माया, चाँद सितारों की! परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह...
शतरंजी चालें
कविता

शतरंजी चालें

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन की *शतरंजी* चालें, हरदम चलना पड़ती। जैसी चाल कोई पड़ जाए, वैसा जीवन गढ़ती। भारतवंशी *चौरंगी* ने, बौद्धिक खेल बनाया। स्वस्थ मनोरंजन होता था, यह *चतुरंग* कहाया। चौंसठ खाने इसमें होते, यह *चौपाट* कहाती। सोलह-सोलह मोहरे लेकर, भिड़ते हैं दो साथी। श्वेत- श्याम इसके पाँसे हैं, जो *मोहरे* कहलाते। इन्हें खेलने वाले जन भी, गोरे काले कहलाते। *प्यादे* सा जीवन बचपन का, धीरे-धीरे चलता । चाहे जितना पानी डालो, वृक्ष समय पर फलता। युवा काल में होता मानव, बिल्कुल *घोड़े* जैसा। कर दिन रात परिश्रम भारी, खूब जोड़ता पैसा। युवा काल जाते ही जीवन, होता जैसे *हाथी*। खाता, पीता, मौज मनाता, परिजन, संगी -साथी। इसी समय मानव जीवन में, बजे खुशी का बाजा। मानव तभी समझता खुद को, है शतरंजी *राजा*। रहता है ...
जय हनुमान
स्तुति

जय हनुमान

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शुभ दिवस चैत्र पूर्णमासा, जन्म लियो है कृपा निधाना पिता केसरी अति प्रसन्ना जागे भाग अंजनी माता ठुमक-ठुमक पैंजनियाँ बाजे सर्व जगत को अति मन भावे लाँघे जंगल, पर्वत नापे मारुतिनंदन रवि ही निगले सीताहरण सुने हनुमाना लिए मुद्रिका आए लँका देखि दूत हर्षित है माता मीठे फल दीनी सौगाता अजब गजब ये वानर आया तहस नहस भई स्वर्णलंका महा कहर चहुँ ओर बरपा खंडहर भए महल चौबारा लखन ह्रदय तीर जब लागा अमृत जड़ ले आए वीरा दशानन का हुआ संहारा विभीषण हुए लंका राजा रामकथा वाचन नित होवे रघुनाथ नाम की जोत जले मन वचन कर्म से शुभ सोचे सर्व काज त्याग हनु विराजे परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...
परमप्रीय
कविता

परमप्रीय

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** हर मन में तुम्ही बसे हो सब ग्रंथो का अर्थ हो तुम हर धर्म का आधार हो तुम सब पंथो ने किया तुम्हे वर्णित सब संतो ने किया तुम्हे प्रणीत सब शास्त्रों के हो तुम्ही कर्णित निराकार साकार तुम्ही हो सृष्टि का आभास तुम्ही हो जीवन का आधार तुम्ही हो जो पुकारे तुम्हे दिल से होते हो तुम उसे सहाई फिर चाहे हो वो कोई प्रणाई जो प्रेम करे तुम्हें अंतर से जो प्रेम करे तुम पे ह्रदय से सुनते हो तुम उसकी दुहाई फिर चाहे वो तुम्हे किसी रूप में फिर देखे वो तुम्हे किसी रूप में आते हो पास उसी रूप में भूला के उसके सारे अवगुण लगा लेते हो उसे ह्रदय से भाग्य उसका किया न जाये वर्णित ईश्वर पुकारो, अल्लाह कहो बुलाओ चाहे उसे जिजस राम कहो, रहीम कहो कन्हैया कान्हा मनमोहन पुकारो रसुलुल्लाह कहो चाहे महबुबे खुदा कहो चाहे...
चिंता…. चिंतन
दोहा

चिंता…. चिंतन

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चिंता चिंता कभी न कीजिए यह है चिता समान सेहत तन मन की हरे रखो सदा यह भान चिंता से कुछ ना बने तन दुर्बल हो जाय सुख व चैन मन का लुटे काज न कोई भाय चिंतन चिंता से चिंतन भला मन हर्षित हो जाय राम नाम का सिलसिला बन्धन मुक्त कराय शुभ चिंतन करो मनवा सभी पाप मिट जाय बिन पानी साबुन बिना मन निर्मल हो जाय परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindir...
तू… मेरी जां है…!
कविता

तू… मेरी जां है…!

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** तू..., मेरी जां है, जां है..., तू भूल गया..., मेरा..., तू जहां था, जहां था..., तू भूल गया...। तू भूल गया...।। तू..., मेरी जां है, जां है..., तू भूल गया..., मेरा..., तू जहां था, जहां था..., तू भूल गया...। तू भूल गया...।। तू सांचा था क्यूं, गैर हुआ, अपना रिश्ता क्यूं, गैर किया। दर्द भरी यादें, तू दे गया, सुना जहां मेरा, तू कर गया।। "दुआ मैं करूं..., तू खुश रहे सदा..., मुझे प्यार में..., धोखा मिल गया..., बेवफा तू..., क्यों हो गया.., बेवफा तू...।" तू भूल गया..., तू भूल गया...। तू..., मेरी जां है...।। खुला आसमां है, तू उड़ जा, संग मेरी यादें, सब भूल जा। सपने संवर गए, जो अब तेरे, कैसे बिखर गए, जो थे अपने।। "जिंदगी तुझपर मेरी..., कुर्बान हो जाए सदा..., मुझे प्यार में..., ...
मर्यादा
कविता

मर्यादा

अमित डोगरा कांगड़ा, (हिमाचल प्रदेश) ******************** मर्यादा एक परंपरा है मर्यादा एक आभूषण है। मर्यादा एक पहचान है मर्यादा स्वर की झंकार है। मर्यादा जीवन का संघर्ष है मर्यादा सच की कसौटी है। मर्यादा कुछ पाने की कसक है मर्यादा अस्तित्व की झलक है। मर्यादा जीवन का सारांश है मर्यादा परमसत्ता का अहसास है। परिचय :- अमित डोगरा निवासी : जनयानकड़ कांगड़ा, (हिमाचल प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने ...
शब्द नहीं उस माँ के लिए
कविता

शब्द नहीं उस माँ के लिए

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने है तुम्हें जन्म दिया | उपकार को उस कुल के लिए, सुधार तुमने मेरा है जन्म दिया || निर्वहन पतिव्रत धर्म के लिए, ऐसा अद्भुत कर्म किया | शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने तुम्हें है जन्म दिया || निर्वहन मातृत्व धर्म के लिए, ऐसी करुणा का ज्ञान दिया | शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने तुम्हें है जन्म दिया || शिव शक्ति की उपासना के लिए, इ, इ, इति में बदल दिया | शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने है तुम्हें जन्म दिया || निराकरण अपनी बाधाओं का, जिस पिता मातु ने दान दिया | शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने तुम्हें है जन्म दिया || सदा सिंदूर की रक्षा के लिए, जिसने चूड़ियों का नहीं ज्ञान दिया | शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने तुम्हें है जन्म दिया || स्वकुल के उपकार के लिए, स्व- सुता कुल ...
ये दुनिया सारी है जिनकी शरण में
कविता

ये दुनिया सारी है जिनकी शरण में

विकास कुमार औरंगाबाद (बिहार) ******************** ये दुनिया सारी है आज जिनकी शरण में, हमारा नमन है अपने उन बाबा के चरण में। पूजा के योग्य है बाबा हम सबकी नजर में, सब मिलकर फूल बरसायें बाबा के चरण में। जिनके नियम पर चलता रहेगा ये भारत सादा, ऐसा ही एक संविधान बनाए अपने भीम दादा। इस हिन्दुस्तान की धरती पर हम सबको चलना आया, बाबा ने इक नया संविधान लिखकर हमे लिखना बताया। देश प्रेम में जिसने आराम को दिए ठुकराए, गिरे हुए इंसान को अपना स्वाभिमान सिखाये। जिसने हमको अपने मुश्किलों से लड़ना सिखलाया, इस जमीन पर ऐसा दीपक बाबा साहब कहलाया। शिक्षा संगठन के थे अपने बाबा बड़ा पुजारी, अधिकार हेतु किए लाखो लोगो से संघर्ष भारी। मानव मे भी है रक्त एक, एक भाँति है सब आये, अपने स्वारथ के चक्कर में लोग जाति–पाति बनायें। युगो–युगो में यह पीड़ा रमी थी तब होता था दर्द ऐसा, छुवा-छूत...
बातों का मेरी तुझपे गर-असर दिखाई दे।
ग़ज़ल

बातों का मेरी तुझपे गर-असर दिखाई दे।

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** बातों का मेरी तुझपे गर-असर दिखाई दे। तब जा के मुझे तुझमें भी अनवर दिखाई दे।। मज़हब की सियासत ही है इंसान की दुश्मन। नीयत से मुझे इसकी सरासर दिखाई दे।। फ़िरते हैं हवस अपनी मिटाने को भेड़िये। बेशक़ न अभी तुमको ये मंज़र दिखाई दे।। उड़तीं हैं गरम रेत से जो झिलमिलाहटें। मुमक़िन है तुम्हें ये भी समंदर दिखाई दे। अब क़त्ल के सारे वो तऱीके बदल गये। वाज़िब कि नहीं हाथों में खंज़र दिखाई दे। शैतां ने तिलिस्मात बिछाया सियासतन। हर सर है खूँ-ब-खूं नहीं पत्थर दिखाई दे। बस ज़िस्म पे शैदा न हुआ कर ऐ नित्यानंद। हो सकता क़े चूनर में दु-नश्तर दिखाई दे।। हे! हरि के अवतंस प्रभो तुम, हो करुणा निधि श्री भगवान।। परिचय :- आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” जन्म तिथि : ३० जुलाई १९८२ पिता : भगवद्विग्रह श्री जय ज...
ऊफ ! ये गर्मी
कविता

ऊफ ! ये गर्मी

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** तेज हवा के थपेड़ों से सीहर उठा ये बदन। चारों तरफ सन्नाटा हैं खौफ हैं, कपड़े की परतों से झांकती कोमल ये आंखें, कितनी सूर्ख और लाल हैं। चलना दुस्वार हुआ पैदल बाहर पेट्रोल की मार हैं। दुबके कब तक रहेगें हम रोज रोटी कि तलाश हैं। अनगिनत पेड़ों की लाशों से सबक नहीं सीखा हमने आज चिलचिलाती धूप में ठंडे पानी कि सबको तलाश हैं। किससे गिला शिकवा करें, यहां हमाम में सब बेनकाब हैं। पेड़ लगाया एक पीढ़ी ने दूसरों ने उसे उजाड़ दिया। आंखें खुली तो याद आया धरा को किसने नरक बनाया। अबभी समय हैं संभलनें का जल जमीन को बचा लीजिए, इन तेज थपेड़ों से सबको पेड़ लगाकर राहत दीजिए। कर सको कोई पुनित काम तो पक्षियों को पानी दीजिए इस तेज गर्म धूप में कोई मिले उस भूखें नंगे को भी सहारा कीजिए। ये समय भी यूं ही गुजर जाएगा। बस! समय ब...
कायनात
कविता

कायनात

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन कमल के पराग, आकाश कुसुम क्या कहूं क्या कहूं, इस निर्विकार पृथ्वी को प्रकृति को जीवन महक गया जिंदगी संवर गई शरीर को नहलाया उसने आत्मा को अमृत ने। तुम मेरी दिशा दर्शक हो कैसे कहूं होंठ खुल नहीं पाते तुम से बतिया ने को इच्छाएं जागृत होकर पुनः सुप्त हो जाती हैं इस ओस भरी कायनात में दिल डूब गया जैसे चांद से मुखड़े को अमृत ने नहलाया मेरा रोम-रोम शीतल हो गया पवन के झोंकों से। आत्मा अभिमानी हो गई तुम्हारे दुलार से। क्या हुआ, कैसे हुआ क्या कहें जीवन आंगन सुना था आकर किसी ने फूल खिला दिए देखो फूल खिल गए प्रातः किरण से अपना पराग लुटाने अपना अमृत लुटाने। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती ह...
घायल
कुण्डलियाँ, छंद

घायल

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** कुंडलियां छंद घायल की गति जानकर, करें त्वरित उपचार। मानवता का धर्म है, यह है शुभ ब्यवहार।। यह है शुभ ब्यवहार, इसे है सदा निभाना। खुद सहकर के कष्ट, उसे है तुम्हें बचाना।। कहे *राम* कवि राय, जमाना होगा कायल। मिटे सकल संताप, स्वस्थ होगा जब घायल।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानिया...
तुम्हें ग़म देने वाला
कविता

तुम्हें ग़म देने वाला

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम्हें ग़म देने वाला तो तुम्हारा हो नहीं सकता कलेजा जो दुखाए वो सहारा हो नहीं सकता कहां है इस ज़िंदगी में सब को अपना ख़्वाब मिलता है तुम्हारा था जो अब फिर से दोबारा हो नहीं सकता हमेशा ही तुम्हें मौका मिलेगा सच नहीं है ये तेरी तक़दीर में ऐसा सितारा हो नहीं सकता यहां तक़दीर के मारे ज़हां में और हैं देखो अकेला तू मुसीबत का भी मारा हो नहीं सकता फ़िज़ा में फूल कितने हैं इन्हें हंसते हुए देखो ख़िज़ाओं को मगर सब कुछ गंवारा हो नहीं सकता परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में ...
फागुन ने आलाप भर …
दोहा

फागुन ने आलाप भर …

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन ने आलाप भर, पढ़े प्रीति के छंद। बढ़ा समीरण में नशा, पुष्प-पुष्प मकरंद।।१ मन्मथ पर मधुमास का, ज्यों ही पड़ा प्रभाव। खारिज यौवन ने किया, पतझड़ का प्रस्ताव।।२ तन कान्हा की बाँसुरी, मन राधिका मृदंग। बजा स्वयं नित झूमता, 'जीवन'हुआ मलंग।।३ मन के गमले में खिला, दुर्लभ प्रीति गुलाब। झुककर स्वागत में खड़ा, इस तन का महताब।।४ देख रहा है स्वर्ग से, जब से मरा कबीर। भेदभाव की हो रही, गहरी और लकीर।।५ सड़कों पर आएँ निकल, घर के पूजन-पाठ। शिक्षित हो कर बन गया, हृदय हिन्द का काठ।।६ शकुनि चित्त जब-जब चले, छल चौसर के दाँव। दुख का आतप जीतता, हारे सुख की छाँव।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपन...
साथ अपने …
ग़ज़ल

साथ अपने …

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** साथ अपने क़िताब रखते हो। फ़लसफ़ा लाज़वाब रखते हो। रोशनी की तुम्हें कमी कैसी, पास जब माहताब रखते हो । है यहाँ और है वहाँ कितना, सब जुबाँ पर हिसाब रखते हो। हो जहाँ तुम समाँ महक जाए, साँस अपनी गुलाब रखते हो। हम इसी बात के रहे क़ाइल, दोस्ती बेहिसाब रखते हो। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
सादगी
कविता

सादगी

प्रो. डॉ. द्वारका गिते-मुंडे बीड, (महाराष्ट्र) ******************** सादगी से सुंदरता जीवन की पहचान हो। आदर्श का प्रतिक ये आचरण का परिमाण हो। खुल कर बोलो बात दिल की, डालो आदत मेहनत और निष्ठा की। स्वार्थ छल कपट से रहना दूर- बात बन जाएगी सम्मान एवं प्रतिष्ठा की। अनमोल जीवन की, अनमोल ख्याति हो, सीधा जीवन उच्च विचार की नीति हो। देश दुनिया में फैला दो विचारों की सादगी- एक दूजे के प्रति उच्चकोटि की प्रीति हो।। परिचय :-  प्रो. डॉ. द्वारका गिते-मुंडे निवासी - बीड, (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
युद्ध विभीषिका
छंद

युद्ध विभीषिका

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** मनोरम छंद युद्ध भीषणता कहूँ क्या। मौत का तांडव सहूँ क्या।। निज कलम आक्रोश करती। नित मनुज हिय जोश भरती।। हाल सब के अस्त से है। आम जन सब त्रस्त से है।। पीर वो किसको बताए। बन सहारा कौन आए।। रक्त की नदियाँ बहाती। फिर कथा सदिया सुनाती।। रोक लो गर हो सके तो। शांति माला पो तके तो।। विश्व सारे मौन क्यों है। सोच सबकी पौन क्यों है।। क्या समझ अब मर गई है। या किसी से डर गई है।। विश्व संकट तीव्र शंका। भीषिका का वज्र डंका।। एशिया पर डौलता है। वक्त भी अब बोलता है।। शांति की दरकार कर लो। राष्ट्र मिल करतार धर लो।। दूर सारी भ्रांति हो जब। एशिया में शांति हो अब।। परिचय :- रेखा कापसे "होशंगाबादी" निवासी - होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित म...
प्रेम की गली
कविता

प्रेम की गली

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** प्रेम की गली हमें दिखाई तो होती इश्क़ क्या हे हमें सिखाई तो होती फिजाओं में बिखरे हे रंग तेरे जो एक बारगी हमें दिखाई तो होती ज़ज़्बातो का महल हमने बनाया खूशबू कहीं-कहीं तो उड़ाई होती तेरे दर पर सजदे करने आते रोज काश हमारी दुनिया सजाई होती वादा जो बकाया चल रहा हमारा पूरा होता तो ये, न, रूसवाई होती तन मन मे अनुराग भर गया यारो सूरत उसकी हमे भी दिखाई होती कितने लोग पूछ गए पते हमसे भी मोहन प्यार की पाती लिखाई होती परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...