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पद्य

अलमारी में रखे पुराने खत
कविता

अलमारी में रखे पुराने खत

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** घिर आई तनहाई, मन को मैं कुछ इस कदर बहलाई अलमारी में रखे पुराने खतों से नज़रें मेरी टकराई याद आया गुज़रा ज़माना, समेट लाया यादों का ख़ज़ाना क्या दौर था मीठी यादों का, सिलसिला खतों का आना जाना सगाई के बाद पिया जी की आती, प्रीत भरी पाती हुई शर्म से लाल, मन की हर कली कली खिल जाती आज बांचन बैठी प्रीत भरे खत, मन फिर गुलज़ार हुआ रोम-रोम हो उठा रोमांचित, खत ने दिल का तार छुआ शादी के बाद पिता का पहला खत, खत में आशीष बसा मां बाबा के घर आंगन को भूल, बेटी पिया का आंगन सजा सास ससुर है मां बाबा तेरे, बाबा ने खत में लिखा दो ड्योढ़ीयों से बंधी, दो घर की लाज मै, ये बाबा से सीखा मां का खत पढ़ते ही, मैं आंसुओं से सराबोर हुई कलेजा निकाल रख दिया मां ने खत में, मै हर अक्षर को छुई मां के खत में हर अक्षर पर थी आंसुओं की स्याह...
तबीयत उदास है
ग़ज़ल

तबीयत उदास है

मुकेश शर्मा कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) ******************** दूर हर लम्हा मुझसे मेरी होशो-हवास है, आ भी जा बहारे-ज़िंदगी तबीयत उदास है। बहार है अपनी शबाब पे, हर मंज़र हसीं है, मगर आता हसरतों को कुछ भी नहीं रास है। दर्दों में ही सिमट कर रह गयी है ज़िन्दगी मेरी, सिर्फ़ ग़मों का जहाँ ही आजकल मेरे पास है। उदासियों के दौर में सुकून नज़र आता नहीं है, एक मुद्दत से ज़हन बे-सुकून है, बदहवास है। भूले से भी नहीं आती हैं अब बहारें दर पे मेरे, राब्ता वीरानियों से ही आजकल मेरा ख़ास है। परिचय :- मुकेश शर्मा पिता : स्व. श्री रामदयाल शर्मा माता : श्रीमती किस्मती देवी जन्म तिथि : १५/९/१९९८ शैक्षिक योग्यता : स्नातक निवासी : ग्राम- डुमरी, पडरौना जनपद- कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
झरोखे के नज़दीक
कविता

झरोखे के नज़दीक

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वो झरोखे के नज़दीक बैठी रही बारिश की बूँदों के इंतज़ार में, प्रीतम के दीदार में। उम्मीद कि जब बौछारें आएँगी तो उसका मुरझा चुका प्रेम, उन बारिश की बूँदों से फिर पनप जाएगा, लहलहा उठेगा उसका मन प्रीतम के आगमन पर। पर बूँदों ने भिगोया सिर्फ़ उसके आँचल को धोया उसकी आँखों के काजल को। मन पर बेरहम एक बूँद भी न पड़ी, और उसका मुरझाया हुआ प्रेम सूखता रहा। फिर भी झरोख़े के नज़दीक बैठी रही वो, बारिश की बूँदों के इंतज़ार में, प्रीतम के दीदार में।। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रका...
क्यूं नहीं आए सपने में
कविता

क्यूं नहीं आए सपने में

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मेरे लाड़ले भगवान, कल क्यूं नहीं आए मेरे सपने में... आते तो जीवन खिल जाता, मेरा सखा मुझको मिल जाता, मैं तरस गई तेरे दरशन को। बडा सुरम्य दृश्य था..., पवन थी ठंडी ठंडी सी, और मोगरे की गंध भी, चमक रही थी चांदनी, और रातरानी की सुगंध भी, केसर की कई क्यारीयां थी, शोभा भी वहां की न्यारी थी, झूला था, बगिया सलोनी थी, वहां बस बिटिया मैं तुम्हारी थी। आते ही तुमको झुला देती, मां बनकर लोरी सुना देती, चिंताए तुम्हारी हर लेती, खुद को भी धन्य मैं कर लेती। भटका इंसान जा रहा कहीं, कोई चिंता तुझको हैं कि नहीं, लेकिन तुझको अब भी है विश्वास, मानवता रहेगी जिंदा इसीलिए तेरे होठों पर शरारती मुस्कान है, ले रहा है परीक्षा अपने भक्तों की, पर हरदम उनके साथ हैं। क्यों नहीं आए कल सपने में... आते तो जीवन महक जाता, मेरे सखा, सपना मेरा ...
आँधियाँ-तूफ़ान आए
गीत

आँधियाँ-तूफ़ान आए

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आँधियाँ-तूफ़ान आए, फँस गए मझधार में सब। है विनय प्रभु से यही नित, हों सुखी संसार में सब। छा गई है महा मारी, कौन अब पीड़ित नहीं है? वेदनापूरित कहानी, किस हृदय अंकित नहीं है? कष्ट के कारण दुखी हैं, मेदिनी परिवार में सब। है विनय प्रभु से यही नित, हों सुखी संसार में सब। रोक है, पाबन्दियाँ हैं, बन्द सब अपने घरों में। रास्ते सूने पड़े हैं, शून्य जन हैं दफ्तरों में। रुक गए व्यवसाय सारे, थम गए व्यापार में सब। है विनय प्रभु से यही नित, हों सुखी संसार में सब। फिर सजें बाज़ार सारे, फिर खुले हर पाठशाला। तिमिर जाए आपदा का, लौट आए सुख-उजाला। कब तलक जीवित रहेंगे, लटकती तलवार में सब। है विनय प्रभु से यही नित, हों सुखी संसार में सब। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०...
हनुमत् भजन
भजन

हनुमत् भजन

स्वरा त्रिपाठी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अंजनी के लाल, श्री राम का दुलार। करते सभी का ये कल्याण, करते सभी का ये कल्याण।। अंजनि के... सीता का पता लगाये, श्री राम के काज बनाये। भक्तों पर आया दुख महान. दुख हरो अब हे हनुमान। करदो सभी का अब कल्याण अंजनी के... तुम हो सेवक राम के, हम तो सेवक आपके। हाथों मे नैया आपके, नैया पार करो प्यारे हनुमान। कर दो सभी का अब कल्याण। अंजनी के... संकट मोचन कृपा निधान, जग के कष्ट हरो हनुमान, हम भक्त हैं बड़े अज्ञान, विनती करती "स्वरा" नादान करदो सबका अब कल्याण, अंजनी के लाला... परिचय :-स्वरा त्रिपाठी उम्र : ७वर्ष कक्षा : ३ निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
पूछती हूँ रब से
कविता

पूछती हूँ रब से

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पूछती हूँ रब से अकसर, मेरे ही साथ क्यों??? जब भी किसी को दिल से चाहा, उसी को मुझ से जुदा कर दिया। जब भी किसी का भरोसा किया, उसी में मुझसे छल किया। जब भी किसी का भला किया, बदले में सिर्फ अपयश ही मिला। जितना दूसरों को पास लाये, अपने से उतनी ही दूर हो गए। इतनी बड़ी इस दुनिया में, आखिर ये सब मेरे ही साथ क्यों? रब ने भी क्या खूब कहा, तूने जो भी सब किया, उसमें बस एक ही गुनाह किया,, क्यों बदले में दूसरों से उम्मीद करि? यहाँ कोई किसी का नही है रुचि!! तू कुछ भी कर, पर किसी से कुछ उम्मीद न कर। चाहे बदले में तुझे कुछ भी मिले, तू बस निःस्वार्थ कर्म कर, और उसी के पथ पर चल। मत सोच कभी की मेरे ही साथ क्यों? क्योंकि तेरे साथ ईश्वर है रुचि! तेरे साथ ईश्वर है परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप...
तूफान है…..!!
कविता

तूफान है…..!!

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** काँप रही प्रकृति और 'वो' बिना काँपे, लगे है जुगत में, 'जीवन' की..... क्योंकि दोनो पर है जिम्मेदारी, कुटुम्ब' की किन्तु..... उसके लिए 'भविष्य' उजला है क्योंकि, वो पेड़ नहीं.... वो काँपता नहीं बल्कि देख रहा है अपने कुटुम्ब रूपी पेड़ के हरे पत्तों को उसके मासूम बच्चों को परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से लेखन रचना प्रकाशन : साहित्यिक पत्रिकाओं में, कविता, कहानी, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल आदि का प्रकाशन, आकाशवाणी से प्रसारण। प्राप्त सम्मान : अभिव्यक्ति विचार मंच नागदा से अभियक्ति गौरव सम्मान तथा शब्दप्रवाह उज्जैन द्वारा प्राप्त लेखनी का उद्देश्य : जानकारी से ज्ञान प्राप्त करना। घोषणा पत्र : मैं...
आजादी का मतलब क्या है
कविता

आजादी का मतलब क्या है

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** आओ ऐसा पर्व मनाए सरहद के सब भेद मिटाएं चाहत रहे न कोई बाकी उत्सव ऐसा आज मनाएं आओ ऐसा...... भाईचारे की गुहार लगाएं प्यार लुटाए हिंसा मिटाएं होगी शांति वैश्विक रूप से स्नेह का ऐसा ध्वज बनाएं आओ ऐसा................ उलझे रिश्तों के सुलझाएं पर्व ऐसा कुछ कर जाएं बैर भाव सब पीछे छूटे बीता सतयुग फिर आ जाएं आओ ऐसा पर्व मनाए आजादी के अर्थ बताए अहसास की तरंग लुटाए प्रेम प्रीत से तिरंगा लहराए ताना बाना इसका है पावन मिलकर इसका मान बढ़ाए आओ ऐसा............ नन्हा कलियों को महकाए बेटियों को है आगे बढ़ाए आजादी के अर्थ यही है अपना अपना धर्म निभाए आओ ऐसा पर्व............ नेक रास्ता सबको दिखाए अंधियारे मे दीपक बन जाए भटके राही को अपनाकर मार्ग दर्शक बन मुसकाए आओ ऐसा पर्व............ मिलकर आज शपथ उठाए कभी किसी ...
इन तबेलों में
गीत

इन तबेलों में

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** इन तबेलों में हमारा घुट रहा है दम, कुछ पलों के ही लिए आजाद तो कर दो। कल तलक चरते रहे हम, खेत बीहड़ सब। हाथ से लिखते रहे सब, भाग के करतब। रोशनी जल वायु पर भी, हुक्म चलता था, ढोल अब इस तंत्र का तो, बज रहा बेढब। धर्म की इस खाल में उन्माद तो भर दो। कुछ पलों के ही लिए, आजाद तो कर दो।। जान फूँकी पत्थरों की देह में हमने। मेह रिश्वत की कभी हमने न दी थमने। तंत्र को थोड़ा मरोड़ा कुछ घसीटा बस, निर्धनों के पाँव हम देते नहीं जमने।। फिर हमारे स्वार्थ को आबाद तो कर दो। कुछ पलों के ही लिए आजाद तो कर दो।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ...
महाभोज
कविता

महाभोज

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** संगम के तट सूने है अब! कितनी माँऐ रोती!! भूख से बच्चे बिलख रहे अब! क्यो प्रकृति मां सोती!! लाशें सडती है रेतो मे ! श्वनो का महाभोज चलता है!! आह नही मिलती अग्नि अब! भू अम्बर रोता है!! इस धरती को पावन करने! गंगा माँ आयी थी! पापियों का पाप मिटाने! निर्मल जल लायी थी!! जिनके तट पर ऋषी मुनियों ने! खुद को पावन कर डाला!! आज उसी गंगा माँ के तट का! नजारा है, विभत्स करने वाला!! भूखे बच्चे रास्ता देखें! एक निवाला रोटी का!! महामारी ने जीवन छीना! कितने ही परिवारों का!! न घर मे आग बची है! न तावे पर रोटी है!! कितनी लाशें दबी हुई! वसुंधरा अब रोती है!! ये कैसा दुर्भाग्य हुआ है! ये कैसी महामारी है! ! जिसके जबडे मे फंसकर! सारी दुनिया हारी है!! समय बडा दुर्भाग्य पूर्ण है! प्रकृति भी क्यूँ निष्ठुर है!! शवसैय्या...
कोरोना विनाश की हनुमान जी से विनती
भजन

कोरोना विनाश की हनुमान जी से विनती

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** करो कुछ करिश्मा हनुमान जी अब, तेरे भक्त मंगल को दर तेरे आएं। हैं दो बरस से जो दरस के पियासे, वे पा तेरे दर्शन नयन सुख को पाएं। करो कुछ... हमे अपने दोषों का ही फल मिला है, जो बोया था काटा न कोई गिला है। मगर तुम तो आशीष देते सभी को, जो हैं भूल से भी तेरे दर पे आएं। करो कुछ ... कॅरोना से सम्पूर्ण मानव तृषित हैं, युवा, व्रद्ध सब तेरे बच्चे ग्रषित हैं। जगो अपनी शक्ति में, हुंकार भर दो, जो मंगल को जग से कॅरोना मिटाये। करो कुछ... हैं इस वर्ष ज्येष्ठ माह में पांच मंगल, कॅरोना का वध कर करो सबका मंगल। करो "योगी" को इतना आस्वतः भगवन, कि वो भक्तों को तेरा दर्शन कराएं। करो कुछ ... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक ...
प्रेम
कविता

प्रेम

माधवी मिश्रा (वली) लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रेम का एक कठिन इतिहास रचा रचना कारों ने आज मनुज के जीवन का इतिहास बन गया कल्पित प्रेम प्रकाश किया है भाषा का श्रिंगार और काव्यों का जटिल विकास समर्पित कर डाला माधूर्य कवि ने कविता मे चुप चाप प्रेम का दे जीवन्त प्रमाण प्रकृति की बृहद छटा का राग इसी मे हरि ने ले अवतार दिया जन जन को प्रीति पराग भूमि की मूर्त कल्पना कर दिया जब माता का सम्मान तभी से राष्ट्र प्रेम का आज अभी तक गूँज रहा स्वरगान कहीं पर देश कहीं पर प्रिया कहीं माता की स्नेह प्रतीति कहीं पर वेद कहीं कूरान सभी सद्गग्रंथो मे ये गीत प्रेम है वह अनंत सी भेट दिया विधिने है जिसे समान मृत्यु से अमर लोक के बीच बना डाला इसने सोपान प्रेम है सर्व व्यापी कर्तार यही है मूर्त रूप साकार यही पाषाण सदृश्य कठोर यही निर्झरिणी निर्मल रूप ...
मीठी वाणी
कविता

मीठी वाणी

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** मीठी वाणी मीत मिलते, तीखी वाणी शत्रु पनपते। मीठी मीठी वाणी बोलिए जगत में मधुरता घोलिए। मीठी वाणी देव की जानी तीखी वाणी दैत्य निशानी। मीठी वाणी दिल मिलाए तीखी वाणी कहर बरपाए। मीठी वाणी औषधि बनती तीखी वाणी जहर उगलती। मीठी वाणी सबको भाती, जगत में सम्मान दिलाती। मीठी वाणी उपजे सुविचार, तीखी वाणी कुत्सित विचार। प्यारे तुम भी मीठा ही बोलो, पहले तोलो फिर मुख खोलो। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल पटल, र...
ये चमन में देखूँ
कविता

ये चमन में देखूँ

असमा सबा ख़्वाज लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** फिर से तारी है सितम अपने वतन में देखूँ इस वबा को तू मिटा दे, ये चमन में देखूँ ढेर लाशों का बना रूह लरज़ जाती है ज़िन्दगानी है फ़ना, मौत जिसे आती है ख़ून के अश्क हैं ग़मगीन बयाँबानी है फ़िक्र उसको है कहाँ जिसकी ये सुल्तानी है वो निगहबान है लेकिन वो हयादार नहीं जान लेवा है मगर वो तो वफ़ादार नहीं मेरे अल्लाह सबा, की ये दुआ है सुन ले ज़ालिमों को तू बना नेक, सदा है सुन ले परिचय :- असमा सबा ख़्वाज निवासी : लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, क...
सुनाइ नहीं देता अब
कविता

सुनाइ नहीं देता अब

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** "सुनाइ नहीं देता अब, कहीं सगीत का आलाप, लोगों की प्रतिभा भी, न दिखाती, कोई प्रताप, खुलते नहीं रोज की तरह, आज घरों के दरवाजे, जनमानस के चेहरों से, झांक रहा है, शोक संताप, नगर के रास्तों पर हंसती, खेलती थी, जो जिंदगी, बागानों में पेडो की छाव तले होता था प्रेमालाप, दीमक की तेरह खोखली, हो गईं जब, सब आशायें, मूक दर्शक बन गये हम, दूर से सुनते, रुदन, प्रलाप, जब अच्छा समय न रहा, तो ये समय भी न रहेगा, परमेश्वर की असीम कृपा से दूर होगा ये अभिशाप" परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोह...
चिंगारी
कविता

चिंगारी

प्रवीण कुमार बहल गुरुग्राम (हरियाणा) ******************** आग से उठने वाली चिंगारी-- कुछ पल में बुझ जाती है-- कौन जानता है चिंगारी कहां और कैसे लगती है--- चिंगारियां से उभर कर आने वाला इंसान बहुत मजबूत होता है-- हर बार कोशिश की जिंदगी की चिंगारी देर तक ना जले इन रास्तों पर चलना नहीं सकता था फिर भी भी मत बोल मुझे चिंगारियां में धकेला जाता था-- जिंदगी काहे बर्बाद कर रही थी-- सोचा था वह आएंगे जरूर-- जिन्हें हर वक्त सहयोग देता रहा सोचता रहा वह कहां है -- क्यों नहीं आते आज इंसान दोमुंहा क्यों हो गया है यहां कुछ वहां कुछ ---- कभी खुदा को धोखा देता है कभी खुद को धोखा देने में लगेरहता है गरीबी क्या है-- कैसे आती हैं यह स्वार्थ लोगों की उपज है जो सिर्फ अपने लिए सोचते हैं-- गरीबी का मजाक उड़ाते हैं हर वक्त अपने सम्मान -- दिखावे के लिए तो हर पल दान देना चाहते हैं हर वक...
इश्क को
कविता

इश्क को

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** हरीफ़ इश्क को कुचलने मे लगे है वो मस्ती में मचलने में लगे है ** ख़्वाब हमारे सभी पलने लगे है क्यों हमें पिछे से छलने लगे है ** कामयाबी की ओर धीरे-धीरे बढे दिल ही दिल अपने जलने लगे है ** हर पल साथ रहने के वादे करते थे वो भी आज हमसे दूर रहने लगे है ** शिकायत नहीं की अब तक कहीं नजर बचा कर वो निकलने लगे है ** किस पर यकीं करूं किस पे नहीं सोच - सोच वो बुदबुदाने लगे है ** माफी भी शायद दे सकू या नही मै क्योंकि सरेआम वो कुचलने लगे है ** लाख बन जाएं भले वो गुलाब पर मेरी ऑखो मे वो अब चुभने लगै है ** जब बूलंदीयो को हम छुने लगे है मोहन हरिफ़ो के सुर बदलने लगे हे ** परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घ...
तम्बाकू: एक भूरा जहर
कविता

तम्बाकू: एक भूरा जहर

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** आया प्रचलन अमेरिका से, दुनिया में बोया जाता है। आर्यावर्त में नंबर दूसरे पर, यह पाया जाता है। हो जाती है सुगंध की कमी, जब यज्ञ पूजा में, तंबाकू ताजगी खातिर, तब सुलगाया जाता है।। मगर देखो कैसा रूप, धारण कर लिया इसने। तम्बाकू सुर्ती खैनी का बिजनेस, कर लिया जिसने। धरा पर रूप धारण करके, चूरन बनकर आया। मुखों में हम सबके घाव, कैंसर कर दिया इसने।। बीड़ी सिगरेट जैसा उपयोग, इसका धूम्रपानों में। धुँआ बन जहर भरता है, यह तो आसमानों में। तम्बाकू हुक्का चिलम की, आदत बनकर देखो। लगाता आग सीने में, श्वशन के कारमानों में।। लिखा हर पैक पर होता, तम्बाकू जानलेवा है। फिर भी हम खाते हैं इसको, जैसे सुंदर सा मेवा है। समझ आता नहीं हमको, मेधा चकरा सी जाती है। जानलेवा बिके थैली में, तो यह कैसी सेवा है।। धारा बर्बादी की ब...
सेवा
कविता

सेवा

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** रख लो सेवा भाव, मन तेरा खुश रहेगा मन तेरा खुश रहेगा । बनेंगे बिगड़े काम रख लो सेवा भाव मन तेरा खुश रहेगा। दया धर्म हृदय में रख लो दीन दुखी की सेवा कर लो कर लो कुछ उपकार मन तेरा खुश रहेगा । जैसी सेवा बने तुम कर दो तन से मन से या फिर धन से दुआ मिले भरपूर मन तेरा खुश रहेगा । संतों की करना सेवकाई गरीब से ना करना बेवफाई मिल बांट कर के तू खा ले सब मेरी जान है भाई मन तेरा खुश रहेगा। मन तेरा खुश रहेगा। अगर तेरे पास है ज्यादा उसमें से तू बात दे थोड़ा एक चेहरे पर मुस्कान तू लेआ मन तेरा खुश रहेगा मन तेरा खुश रहेगा । ना मैं मंदिर में रहता हूं ना मैं मस्जिद में रहता हूं किसी दुखियारे की कर लो सेवा मैं तो वही रहता हूं मन तेरा खुश रहेगा।। परिचय :- मधु अरोड़ा पति : स्वर्गीय पंकज अरोड़ा निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा ...
सतरंगी आसमान
कविता

सतरंगी आसमान

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** खुशनुमा जादुई रंग बिखर कर एक इन्द्रधनु बना रहे हैं | मेरे शहर की एक बहुत खूबसूरत तस्वीर सजा रहे है | सफेद रंग कण मानवता के कैनवास पर बिखर कर मसीहा बन कर अनगिनत ज़िन्दगानी बचा रहे हैं | नीले पराग अपने हाथों में असीम कर्त्तव्यता भर कर तन और मन से इंसानियत की सेवा किए जा रहे हैं | परिश्रम की आग में तपते झुलसते कुंदनी खाकी रंग अमन और चैन के फौलादी स्तंभ बनाए जा रहे हैं | नेतृत्व की काबिलियत की शक्ति से भरे अद्भुत रंग शहर को फिर एक बार से जीने काबिल बना रहे हैं | स्निग्ध स्नेह और अपनत्व के खुदरंग घुल मिल कर निस्वार्थ भाव से सेवाएँ और महादान लुटाए जा रहे हैं | सकारात्मकता के चटकीले रंग से सजे कई लाख मन हर पल हर एक के लिए जीवनी दुआएँ किए जा रहे हैं | खुशनुमा जादुई रंग बिखर कर एक इन्द्रधनु बना रहे हैं |...
भूल गई थी सच्चाई ये
ग़ज़ल

भूल गई थी सच्चाई ये

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** भूल गई थी सच्चाई ये, वो अपनी नादानी से। मछली कैसे रह पाएगी, दूर, गई जो पानी से।। मानवता तो आभूषण है, मरने तक जो साथ रहे। मानव कैसे भुला सकेगा, मानवता मनमानी से।। तर्क जीत भी जाए लेकिन, सच तो हार नहीं सकता। ज्ञानी कब हारा है लोगों, दुनिया में अज्ञानी से।। नाहक, चुपड़ी रोटी खाए, हक जेलों में सिर पीटे। आंखें देख रही है मंजर, सारा ये हैरानी से।। नम होने की देर फकत है, मिट्टी है जरखेज बहुत। जल्दी ही चहकेगा गुलशन, बाहर आ वीरानी से।। माना जान है तुझमें लेकिन, है क्या जानवरों सा तू। कब तक दूर रखेगा खुदको, तू फितरत इंसानी से।। दूर करें क्यों "अनंत" उनको, रूहें जिनकी एक हुई। मर जाता है दूर हुआ तो, दीवाना, दीवानी से।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७...
तेरा एक बार संवरना बाकी है
कविता

तेरा एक बार संवरना बाकी है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** जीवन में संवारती आई हो तुम, चेहरा तेरा लगता जैसे शाकी है, बहुत बार संवार चुकी हो प्रिय, तेरा एक बार संवरना बाकी है। पैदा हुई जब परिवार ने संवारा, रूप तेरा हर जन को था प्यारा, तेरा एक बार संवरना बाकी है, कह रहा है पागल दिल हमारा। बड़ी हुई तब बच्ची कहलाई थी, पोशाक नई-नई कई मंगवाई थी, बचपन में जब तुम संवरती रहती, दिल में तुम बहुत ही इतराई थी। मेहमान जब कभी घर में आते, नई-नई पोशाक चुनकर के लाते, पहनाकर तुम्हें बेहतर से कपड़े, परियों की कई कहानियां सुनाते। सजने संवरने का क्रम यूं चला, मां बाप का मिलता रहा दुलार, पहन पोशाक रंग बिरंगी तन पे, भाग दौड़ की नहीं मानी है हार। युवा अवस्था में जब रखा है पैर, नहीं जमाने में तब युवा की खैर, सभी अपने ही तुम्हें लगते रहे हैं, माना ना तुमने कभी कोई भी गैर। ...
कलम ही ताकत है
कविता

कलम ही ताकत है

वंशिका यादव बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) ******************** गम,खुशी, दर्द, मोहब्बत हर चीज का हिसाब रखती है। ये लेखनी है जनाब जो हम सभी के अल्फाज़ लिखती है। इस कलम के सहारे ही हमने कितना कुछ सजोया होगा। इस लेखनी के ताकत से ही हमने कितना कुछ पाया होगा। अपनी जिंदगी के पलो को लेखनी से ही सजाया है। और इस कलम के बूते ही मैंने बहुत कुछ पाया है। ये कलम लिखती है किसी की मौत या फिर जिन्दगी। मैं अपने जीवन भर करूंगी इस कलम की बन्दगी। एक आम इंसान के लिए मामूली सी चीज है कलम। मुझसे पूछो! यारा मेरे लिए जन्नत है कलम। इन्दौरी साब, गुलज़ार साब ने नाम कमाया है। मैंने अपना कलम को ताज पहनाया है। कलम मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा साया है। इसी के दम पर ही मैंने जन्नत पाया है। वैसे तो मैंने जिन्दगी में बहुत सी चीजें पायी हैं। पर मैं दुनिया की सबसे अमीर हूँ क्योंकि मेरे हिस...
मन होता है
कविता

मन होता है

मित्रा शर्मा महू, इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन होता है कभी-कभी उड़ती तितलियों को देख मेरा मन भी होता है कि उड़ जाऊँ और स्वयं को आकाश के सप्त रंगों से रंग लूँ। नदी को देख लगता है निर्मल धार बनकर कल-कल बहती रहूँ। जब मन का कोई कोना घोर अंधेरे में होता है तब निशा से पूछने का मन होता है क्यों खाली-खाली सा है मन कहीं कोई आशा का चिराग क्यों नहीं जलता है ? उगते सूरज से पूछने का मन होता है भोर के संग क्यों नहीं उठती उमंग ? मन के अंतर्द्वंद से पीछा क्यों नहीं छूटता है? चलते रहते हैं प्रश्न मन को दौड़ाती रहती हूँ। मन तो आखिर मन है कभी होता उदास कभी कहीं खुशी के पल ढूँढता है। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्र...