पुरुषों का सशक्तिकरण
अभिषेक मिश्रा
चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश)
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"अब पुरुषों का दर्द भी सुना जाएगा!"
भारत की धरा पर घिरा अंधकार,
पुरुषों पर टूटा अन्याय का भार।
कभी झूठे इल्ज़ाम, कभी मौत का डर,
दबा दिया जाता है हर एक स्वर रोज।
"अब चुप्पी नहीं, अधिकार चाहिए!"
महिलाओं को सम्मान जरूरी सही,
पर पुरुषों की व्यथा भी सुननी चाहिए।
झूठ के जाल में न फँसाओ उन्हें,
हर बेकसूर को अब बचाना चाहिए।
"पुरुष भी इंसान हैं, पत्थर नहीं!"
दिल उनका भी धड़कता है यारों,
दर्द उनके भी गहरे हैं प्यालों।
डर-डर कर जीना कैसा इंसाफ?
इंसानियत पर उठने लगे हैं सवाल।
"झूठी चीखों का अंत करो!"
गलत आरोपों का खेल बंद करो,
नारी का सम्मान हैं अनमोल सही।
पर सत्य और न्याय की भी अलख जलाओ,
हर दिल को बराबरी का हक दिलाओ!
"समाज जागे, बराबरी लाए!"
अब वक्त है न्याय का बिगुल बजाने का,
हर आहत मन को अपनाने ...


















