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पद्य

भारतीय नववर्ष
दोहा

भारतीय नववर्ष

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** नवल किरण धारण किए, आया है नववर्ष। सदा सहायक हों प्रभो, बना रहे उत्कर्ष।। नवल वर्ष में माँ करो, हम सबका कल्याण। हरो सकल संताप-दुख, हों हर्षित मन-प्राण।। आई विपदा अब टले, भागें सारे रोग। हिल-मिल कर हम सब रहें, बना रहे संयोग।। संकट भारी आ पड़ा, सकल विश्व है त्रस्त। कोरोना की मार से, सभी हुए भय- ग्रस्त।। नवल वर्ष की माँ मिले, यह अनुपम सौगात। हम सब मिल कर दे सकें, कोरोना को मात।। करो दया हे मातु अब, सब जन हों खुशहाल। हाथ पसारे हैं खड़े, माता तेरे लाल।। परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- रा...
नया वर्ष मुबारक हो
कविता

नया वर्ष मुबारक हो

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** नये वर्ष का नया सूर्य यूं किरणे नई बिखेरे। गमके अंधियारे मिट जाएं खुशियां डाले डेरे।। सुख सागर में जीवन नौका बढे निरंतर आगे। बगियामें गुल खिलने वाले रहें न कोई अभागे।। समृद्धि की अमर बेल फिर जीवन पे छा जाये। फिरअभावकी असि नकोई जख्मकभी देपाये।। नूतन स्वर सुख के फूटे कानों में अमृत घोलें। जीवन कानन में अवसर के मोर पपीहे बोलें।। प्यारमिले सागर से गहरा मीत मिले सुखदायी। दूर रहे तन मन से दर्दों की काली परछाई।। इतनीमिले संपदा निशदिन घर छोटापड़ जाये। पांव उठानेसे पहले मंजिल चलकर खुद आये।। नवगतिनवलय अवचेतन मनको करदें स्पंदित। मनवीणा की मधुररागिनी तनकरदेआल्हादित।। आराधन करते करते आराध्य बने आराधक। फर्क मिटे दोनों में दाता कौन, कौन है याचक।। पीकर अमर प्रेम की हाला देह अमर हो जाये। जीवन मरण चक्र से जीवन ऊपर हो मुस्काये।। परिचय :- अख्तर अली ...
सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में
कविता

सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** तन में हो उत्साह और आशाएँ मन में। सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में। बाधाओं से हार न मानें। पथ की कठिनाई पहचानें। आवश्यकताओं को जानें। जो करना है मन में ठानें। विजय पताका फहराएं फिर नील गगन में। सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में। कवच सुरक्षा का हो सक्षम। रहें नहीं आशंका या भ्रम। न हो आक्रमण कोई निर्मम। चाहे कैसा भी हो मौसम। रहें सुरक्षित सभी विश्व रूपी उपवन में। सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में। हो कोई धनवान या निर्धन। आबादी हो या हो कानन। बाहर हो अथवा घर-आँगन। करें सभी नियमों का पालन। रहें मनुज सब अपने-अपने अनुशासन में। सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में। नारी हो अथवा वह नर हो। सतत् सत्य ही का सहचर हो। जो अंदर हो वह बाहर हो। सदा ध्यान में परमेश्वर हो। नित्य आचरण में, वचनों में अथवा मन में। सकारात्मक सोच रहे सबके जीवन में। भावशून्यता ...
नागरिक की अभिलाषा
कविता

नागरिक की अभिलाषा

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** अखबारों में न हो कोई सनसनीखेज खबर टी वी चैनलों पर न हो अनावश्यक मुद्दों पर निरर्थक बहस। हर सवार चलता रहे रोड पर नियमानुसार बाएं पैदल चले फुटपाथ पर सायकल दौड़े उसके ट्रेक पर हो खड़े रेहड़ी ठेले वाले अपने नियत स्थान पर निगम कर्मी ट्रैफिक कर्मी हो सच्चे जन सेवक नागरिक करे उनका अभिवादन हस हस। नेताजी के कार्यक्रम न हो सड़क पर न मने भाई साहब का जन्मदिन सड़क पर न हो दुल्हेराजा कि बारात हावी सड़क पर बे वजह न बजाए कोई हॉर्न कचरा न फेंके सड़क पर खाके पॉपकॉर्न हो जाये बंद दस बजे रात्रि में बजता जो डीजे ज्यास्ति में शहर के हर कोने में हो अनुशासन के दरस हर कोई बोल पड़े वाह वाह बरबस। सरकारी कार्यालय हो सुविधा के साथ सहयोग पूर्ण नागरिको का कार्य हो चुटकियों में पूर्ण सुशासन का सपना हो सम्पूर्ण हर हाथ को काम हो हर पेट मे अन्न हो बुझे सभी की प्यास जन जन की बस य...
अमर शब्द
कविता

अमर शब्द

अमोघ अग्रवाल गढ़ाकोटा, सागर (मध्य प्रदेश) ******************** एक घर घर का एक कमरा कमरे की दीवार दीवार जिस पर टंगी है एक बड़ी तस्वीर तस्वीर में कोई मानव नहीं बस चार शब्द दिख रहे है जिसमें लिखने वाले ने लिखा है शब्द अमर रहेंगे इंतज़ार परिचय :- अमोघ अग्रवाल साहित्यिक नाम : "इंतज़ार" पिता : स्व. बी. के. अग्रवाल माता : श्रीमती आशा अग्रवाल जन्म : ०५ सितंबर १९९१ निवासी : गढ़ाकोटा, सागर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.ई. कार्यरत : निजी व्यवसाय लेखन : शांत, करुण, श्रृंगार रस, कविता, कहानी, हाइकू, टांका और अन्य सम्मान : "शतकवीर" सम्मान, "काव्य कृष्ण" सम्मान, निरंतर १२ घंटे काव्य में सम्मान, राष्ट्र कवि गुरु सत्त नारायण सत्तन जी द्वारा दो बार सम्मानित। रंजनकलश इंदौर ईकाई मीडिया प्रभारी, कई पत्र पत्रिकाओं में रचना प्रकाशित। और अन्य सम्मान। साहित्यिक गतिविधियां : वर्ष २०१२ से ...
वे सब नारी थीं
कविता

वे सब नारी थीं

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** वे सब नारी थीं फिर भी मर्दानी कहलाई कभी लक्ष्मीबाई कभी दुर्गावती के रूप में शत्रुओं को मुँह की खिलाई। तलवार लेकर खड़ी हो गई कोई भय उसे बाँध न पाया रणचंडी कहो या दुर्गा कहो कोई राक्षस बच न पाया। पन्ना धाय बन जन्मी तो पुत्र का बलिदान किया कोई क्या उससे छीनता पद्मावती ने जौहर किया। स्वतंत्रता की वीरांगना चलती रही बलि पथ पर गाती रही आग के गीत लाठी गोली से ना घबराई। भारत भूमि की वीर बेटियाँ आसमान से टक्कर लेती हैं आंधी, तूफान से खेलती देश की आन पर मरती हैं। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ह...
हिलोरे ले रहा हर्ष… आया नववर्ष…
कविता

हिलोरे ले रहा हर्ष… आया नववर्ष…

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** आया नववर्ष हिलोरे ले रहा हर्ष जो बीत गया कुछ खास नहीं अब कुछ अच्छा होने की आस नई कुछ दूर हुए तो कुछ है पास बीता कल है यादों का एहसास कुछ बिगड़ा तो कुछ गया सँवर फिर से सुख दुःख का वही भँवर नए वर्ष के नए संकल्प योजनाओं के कई विकल्प आकांक्षाओं की तुलना में समय है अल्प नववर्ष की नई सुबह मन के सारे विवादों की सुलह नये साल के आगमन पर मुरझाया मन भी जाए खिल क्योंकि समय तो है परिवर्तनशील नववर्ष का प्रथम दिवस जैसे सूखी धरती पर पावस जीवन में भर आए मधुरस सी मिठास आगाज है नए साल का पाए फतह हर क्षेत्र मे कमाल का नववर्ष का प्रथम प्रभात लाए सर्व जन के लिए खुशियों की सौगात नववर्ष का है हार्दिक अभिनंदन स्वागत परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान)...
दिलों में रहने का रास्ता ढूंढ
कविता

दिलों में रहने का रास्ता ढूंढ

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** दिलों में रहने का रास्ता ढूंढ पास तो पराए भी बैठ जाते हैं खुशबू बनकर कर महक ने की कोशिश कर फूल तो कागज के भी खिल जाते हैं ताउम्र साथ चलने की कोशिश कर हमसफ़र एक मिल चलने वाले तो हजारों मिल जाते हैं दो कदम चल कर मंजिल तक पहुंच मुश्किलों से हार कर बैठे जाने वाले तो हजारों मिल जाते किताबों से दिल लगा कर देखो यार लोग तो दिल लगाने वाले लाखो मिल जाते हैं अपने सपनों को पूरा कर सपने देखने वाले तो हजारों मिल जाएंगे प्रकृति की तरह कुछ देना सीख बाहे फैलाकर लेने वाले तो हजारों मिल जाएंगे स्वयं खुश रहकर औरों को हंसाने की कोशिश कर बेवजह रुलाने वाले तो हजारों मिल जाते हैं खुशबू बनकर महक गुलाब की तरह फूल तो कागज के भी खिल जाते हैं हो सके तो सच्चा प्यार कर साथी बेवजह धोखा देने वाले तो लाखों मिल जाते नदी की तरह ताउम्र चल मु...
सत्कर्म
कविता

सत्कर्म

रेखा दवे "विशाखा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** द्वन्द भरे इस जीवन में, कुछ पाया, कुछ ना पाया। जो पाया वह प्रसाद बना, ना पाया वह अवसाद बना। द्वन्द भरे इस जीवन में, कुछ पाया, कुछ ना पाया। कभी राग मिला, कभी विराग मिला। कभी जीत मिली, कभी हार मिली। जब जीत मिली तब प्रीति मिली। जब हार मिली, तब रिक्त रही। जब रिक्त रही, तब सत्कर्मो कि सुध मिली। जब सुध मिली, तब दृढ हुई। दृढ़ हुई, संकल्प लिए। संकल्प लिए, कटिबद्ध हुई। सत्कर्म को स्वीकार किया। स्वीकार किया, सत्कर्म किये। यही जीवन का आधार बने। आधार बने, अविराम रहे। अविराम रहे, अनुराग बढ़े। अनुराग बढ़े, आनंद मिले। आनंद जीवन का ध्येय बने। द्वन्द भरे इस जीवन में, कुछ पाया, कुछ ना पाया। परिचय :- श्रीमती रेखा दवे "विशाखा" शिक्षा : एम.कॉम. (लेखांकन) एम.ए. (प्राचीन इतिहास एवं अर्थ शास्त्र) निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान में : श्री माधव ...
सलाम लिखता है शायर तुझे
कविता

सलाम लिखता है शायर तुझे

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सलाम लिखता है शायर तुझे, तुम्हारे हौसले रखेंगे सदा याद, महामारी २०२० की झेली मार, फिर भी ना की कोई फरियाद। सलाम लिखता है शायर तुझे, युद्ध के नायक तुम कहाते हो, दुश्मन का सीना तुमने चीरा है, तुम दुश्मन का खून बहाते हो। सलाम लिखता है शायर तुझे, तुमने काव्य लिख डाला बड़ा, सुनकर दुश्मन हौसले है पस्त, दुश्मन के इरादे हुये है ध्वस्त। सलाम लिखता है शायर तुझे, तुम्हारी मेहनत रंग लाई जगत, कोरोना की खोज डाली दवाई, कितने लोगों की जान बचाई। सलाम लिखता है शायर तुझे, तुमने जन में अलख वो जगाई, दिन रात सेवा कर की भलाई, भूखे नंगों की कई जान बचाई। सलाम लिखता है शायर तुझे, युद्ध में तुमने न पीठ दिखाई, मारे दुश्मन एक एक हजारों, दिखा डाली जग की सच्चाई। सलाम लिखता है शायर तुझे, खेतों में करता रहता है काम, मेहनत के आगे कायल नाम, किसान को मिले सच्...
पास होकर भी आशकार नहीं
ग़ज़ल

पास होकर भी आशकार नहीं

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** पास होकर भी आशकार नहीं। जिंदगी तुझ सा राज़दार नहीं। तेरा वुजूद है सब यहाँ लेक़िन, ख़ास तेरा किसी से प्यार नहीं। जितनी मर्जी तेरी, सफ़र तेरा, तुझपे साँसों का इख़्तियार नहीं। जिस जगह तू शुमार रहती है, कोई उस हद के आर-पार नहीं। वक़्त के साथ ही रज़ा तेरी, इसलिए तेरा एतबार नहीं। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
नववर्ष पर ‘रजनी’ के दोहे
दोहा

नववर्ष पर ‘रजनी’ के दोहे

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** १ स्वागत नूतन वर्ष का, भले विदेशी चाल। वसुधा ही परिवार है, रहें सभी खुशहाल।। २ बदल गया है साल फिर, मत बदलो तुम यार। संग तुम्हारे ही बँधी, जीवन की पतवार।। ३ देते रहना तुम पिया, साथ साल दर साल। मिले तुम्हारे संग में, खुशी मुझे हर हाल।। ४ नए साल में कर रही, प्रियतम यह मनुहार। बाँह तुम्हारी थाम कर, करूँ प्रेम विस्तार।। ५ नवल वर्ष में माँ करो, हम सबका कल्याण। हरो सकल संताप- दुख, हर्षित हों मन-प्राण।। ६ आई विपदा अब टले, भागें सारे रोग। हिल- मिल कर हम सब रहें, बना रहे संयोग।। ७ संकट भारी आ पड़ा, सकल विश्व है त्रस्त। कोरोना की मार से, सभी हुए भय-ग्रस्त।। ८ नवल वर्ष की अब मिले, यह अनुपम सौगात। हम सब मिल कर दे सकें, कोरोना को मात।। ९ करो दया अब मातु तुम, सब जन हों खुशहाल। हाथ पसारे हैं खड़े, माता तेरे लाल।। परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्र...
यह जिन्दगी है जनाब
कविता

यह जिन्दगी है जनाब

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** यह जिन्दगी है जनाब, ऐसे ही नहीं महकेगी, इन फूलों की खुशबू से फूलों की खुशबू से, महक सकता है वातावरण पर जिंदगी तो महकेगी इन काटो की सूलो से, यह जिन्दगी है जनाब तन मन को प्रसन्न कर देगे, यह फूलो की सुंदरता पर जिंदगी को प्रसन्न नहीं कर पाएंगे यह फूलो की कोमलता यह जिंदगी है जनाब इसे फूलों की शया से नहीं सवारी जा सकती है, इन्हें तो काटो की शया से सजाना होगा, यह जिन्दगी है जनाब, कभी तो खुशियां समाई नहीं जाती, कभी तो खुशियां मनाई नहीं जाती, यह जिन्दगी है जनाब, झाड़े की रजाई छोड़ के, सूर्य की गर्मी तोड़ के, खड़े हो जावो अपने सपनों पर, जब तक ना झुको तब तक सपने अपने न हो जाएं। यह जिन्दगी है जनाब, कभी अपनों की तनहाई सताएगी कभी इश्क के लम्हें तड़पपाएंगे, यह जिन्दगी है जनाब, यह रीट के ख़्वाब बोहत बड़े है, इसे पाने के लिए बोहत खड़े है, छोड़ दो अपनी...
वर्ष २०२०- कुछ खोया, कुछ पाया
कविता

वर्ष २०२०- कुछ खोया, कुछ पाया

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** वर्ष २०२०- कुछ खोया, कुछ पाया। कहते हैं बड़ा बुरा था ये साल। लोग घरों में बंद, आवाजाही पर, पार्टी पर, घूमने-घुमाने पर व्यर्थ के दिखावे में बर्बाद होती जिंदगानी पर रोक। यार ऐसे भी कोई जीता है? सच में बड़ा बुरा था ये साल। सच में बुरा तो था पर गरीबों के लिए, यतीमों के लिए उन रोज कमाकर खाने वालों के लिए। क्योंकि रोजगार बंद, रोजगार के साधन बंद। जिंदगी उनकी उलझकर रह गई थी। लेकिन सच पूछिए तो यही वह साल भी था जब परिंदे जी भर कर बिना डर आसमान में उड़े। न धुआं, न शोर। पशु भी आदमी नामक प्राणी से कुछ समय के लिए मुक्ति पाए। प्रकृति ने नई दुल्हन-सा श्रृंगार किया। नदियां नहाई, स्वच्छ हुई। पेड़-पौधे जैसे नवजीवन पाए, धरा ने फिर अपना धवल रूप धरा। मनुष्य भी मनुष्य के करीब आया, न जाने कितने हाथों ने दूसरों के घर आशा का दीप जलाया। घर गुलज़ार हुए, ...
विनती
कविता

विनती

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** ओ नववर्ष! है तुझसे ये इल्तिजा... करना तुम ये दिल से दुआएँ : नववर्ष में समूल मिटे कोरोना! मिले सबको हर्ष अपार!! मिटें सारे कल्मष-तम-अंधकार! मिटें सबके क्लेश दुख औ मनोविकार!! और हो सबका सर्वतोभावेन उत्कर्ष!!! सूखे पपराते होठों पर भी आए मुस्कान औ तरावट! दुखियों और गरीबों की झोली भी भरी हो खुशियों के खनकते सिक्कों से!! धानी संग पिया बिताए कुछ जज्बाती पल! दिनभर टकटकी लगाए बूढ़े मांँ-बाप संग... गुजारे बेटे-बहुएंँ कुछ खुशनुमा लम्हें!! आदमी का आदमी पर बढता जाए विश्वास! न तोड़े कोई पीड़ितों के मन की सुख-आस! भोली आंँखों से कोई छीन न ले पावन-उजास!! महामारी के वैश्विक घोंसले सारे जाएँ उजड़... अनैतिकता औ घृणा सब मन के जाएँ समूल उखड़... मिटे चहुँओर फैली हिंसा-प्रतिहिंसा ... मिटे दुर्भावना व्यभिचार का हर मनसूबा! हिलें छल-वैमनस्य की सब चूलें! ईर्ष्या-प...
आ अब लौट चले …
कविता

आ अब लौट चले …

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ना शेष रहा कहने सुनने को, क्यो व्यर्थ ठिठौली करते हो ? गर जाना ही था दुर समय से, क्यो पल पल जीते मरते हो ? हर पग पर बिछते स्वप्न मेरे, क्यो राह कंटीली करते हो ? चुन रहा नादा था कंकर पत्थर, क्यो बाण शब्द से भेदते हो ? था हिमशिखर-सा मौन ओढ़े, बन रविकर क्यों बिखराते हो ? हिम विचरता अपने जल में ही, तत्वों को क्या पृथक कर पाते हो? श्रद्धा-भक्ति-तप और मुक्ति, जीव दर्शन किसको समझाते हो ? प्रेम-तृषा प्रथम जग में प्रियवर, पुर्ण आहुति विलय तभी पाते हो... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प...
सुख के नगमे ही गाए हैं
गीत

सुख के नगमे ही गाए हैं

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस, इसीलिए सुख के नगमे ही गाए हैं। वक्त चाल से अपनी ही चलता हरपल, हमको तो बस अपने फर्ज निभाने थे। जैसा आया मौसम भोग लिया हमने, आलस ने पर ढूंढे कई बहाने थे।। अपने मन का होतो सुख ना हो तो दुख, मन पर अंकुश ने ही सुख बरसाए हैं। जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस, इसीलिए सुख के नगमे ही गए हैं।। अलविदा बीस, इक्कीस विदाई देता है, नहीं शिकायत तुमसे तुम इतिहास बने। याद करेंगे लोग तुम्हें ना भूलेंगे, वे सारे तुम जिनके खातिर खास बने।। कुछ व्यक्ति भगवान बने जीवन देकर, कुछ ने सेवा कर जीवन उजलाए हैं। जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस, इसीलिए सुख के नगमे ही गए हैं।। घर में रहकर जीने का आनंद लिया, छोड़ी भागम भाग तो राहत पाई है। काम "अनंत" दूसरों के आए तब ही, दूर गई दु:ख दर्दो की परछाई है।। जनहित से जो भटक गए रहबर अपने,...
आगंतुक
कविता

आगंतुक

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** आइए श्रीमान आशा करते है आप वैसे न होंगे जैसे बिता साल था वो साक्षात काल था। आपसे हमे बस इतना चाहिए सुख, शांति, सद्बुद्धि सहयोग, उन्नति के साथ भाईचारा चाहिए। मत लाना अपने साथ राग, द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध जगाए जो मन मे वितृष्णा का बोध। पवन स्वच्छ हो धरती उगले सोना समय पर आए ऋतुएँ प्रकृति का संतुलन रहे बना । माना कि हम स्वार्थी व उदण्ड है मिल चुका हमे कर्मो का दण्ड है। कण-कण में जीवन हो हर आत्मा पावन हो सभी के सामने भरी थाली हो चंहु और खुशहाली हो हर हाथ कर्मशील हो हर व्यक्ति धैर्यशील हो नूतन वर्ष स्वागत, वंदन, अभिनंदन तुम्हारा, छोटी सी आशा करना पूरी ह्रदय खंडित न करना हमारा। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान म...
आया नूतन वर्ष
कविता

आया नूतन वर्ष

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** भला मनाए कोई कैसे, दुखद समय में हर्ष। गया नहीं कोरोना जग से, आया नूतन वर्ष। लाखों लोग हुए हैं पीड़ित, लाखों गए सिधार। लाखों कारोबार हुए ठप, लाखों हैं बेकार। अवरोधित हो गया धरा पर, सभी ओर उत्कर्ष। गया नहीं कोरोना जग से, आया नूतन वर्ष। वैक्सीन की खोज हो रही, विविध चल रहे शोध। मास्क और नियम पालन का, सबसे है अनुरोध। महारोग से विश्व कर रहा, अविरल है संघर्ष। गया नहीं कोरोना जग से, आया नूतन वर्ष। कैसे प्रेषित करें बधाई, कैसे हो सुखगान। तन-मन दोनों मलिन हुए हैं, खड़े कई व्यवधान। कोरोना से हुआ जगत में, कहाँ नहीं अपकर्ष। गया नहीं कोरोना जग से, आया नूतनवर्ष। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्द...
नया साल
कविता

नया साल

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** बीत गया जो पल उसे भूल जाते है, आने वाले कल का जश्न मनाते है, अरमान है दिल मे पुड़ी और मीठाई का, पर सुखी रोटी पर संतोष कीए जाते है, मिले खुशबू बेली और चमेली का, पर रजनीगंधा की ओर बढे जाते है, हम जानते है प्रेम एक मर्ज हुआ करता है, फिर देवदास की तरह शराब पिये जाते है, कुछ गलतिया हम जानकर ही करते है, फिर भी गलतियो पे पश्चाप कीये जाते है, हम आशा और उम्मीद पर समाज बदलते है, पर देखते ही सबकुछ बदल जाते है, कल रो रहे थे 'रूपेश' गुजरे हूए ज़माने पर, आज नववर्ष पर उल्लास मनाये जाते है ! परिचय :- रूपेश कुमार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास - चैनपुर, सीवान बिहार सचिव - राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य सं...
वो खूबसूरती की निशानी
कविता

वो खूबसूरती की निशानी

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** वो खूबसूरती की निशानी वो पूनम का चाँद, आज सुबह जैसे उतर आया मेरी खिड़की पर लगा जैसे कुछ कह रहा है मुझसे... वो मंद मंद मुस्कुराता रहा और कहने लगा कि देख मुझे... आज सबको रोशन कर रहा कल से फिर खत्म हो जाऊंगा फिर खुद को बनाऊंगा, और सम्पूर्णता को पाऊंगा रुचि!!! सुन यही जीवन है... मैं तो सदियों से हर माह जीता मरता हूं लेकिन हर बार इस दुनिया को शीतल रोशनी से भरता हु लाखों तारे है मेरे साथ... फिर भी तो मैं अकेला हूँ।। लेकिन जब मैं चमकता हु, तो सिर्फ मैं ही दिखता हु... मेरी चाँदनी की रोशनी में ही प्रकृति खूबसूरती पाती है।। बस यही सीखाने आया तुझको, कि हर बार नई शुरुआत होती है हर बार पूर्णता आती है, बस चलते चलते तू कर्मपथ पर हर अमावस के बाद पूर्णिमा ही आती है पूर्णिमा ही आती है परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता ल...
मुझे समझौता ही रहने दो…
कविता

मुझे समझौता ही रहने दो…

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी से , मैंने सौदे तो नही कियें। सच का सामना करने के लिए, मुखौटे भी नही लिए।। मेरा सच, मेरे साथ रहने दो। मुझे समझौता ही रहने दो....... जिंदगी से,प्यार किया। छल तो नही किया।। शब्दों की सलाखों को, मेरे दिल के आर-पार ही रहने दो। मुझे समझौता ही रहने दो......... शिकवे और शिकायतों पर, अब न वक्त जाया कर। शिकायतें सब मेरी, मेरे साथ रहने दो। मुझे समझौता ही रहने दो........ मैं किसी का , अपना कहाँ हो पाया। पराया था, पराया ही रह गया। मुझे अपना तो...रहने दो। मुझे समझौता ही रहने दो....... देख लिया चेहरा दुनिया का, मकसदों और सियासतों का है। मेरा चेहरा, बस मेरा ही रहने दो। मुझे समझौता ही रहने दो। मुझे समझौता ही रहने दो।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
इक्कीसवीं सदी
कविता

इक्कीसवीं सदी

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** इक्कीसवीं सदी को लगा इक्कीसवां साल। आपको हृदय से मुबारक हो यह नया साल। अभिनंदन नववर्ष नव उमंग उम्मीद किरण, करूं अलविदा शत्-शत् नमन पुराने साल। यह काल याद रखेंगी मानव तेरी पीढ़ियां, चंद्रमा का कलंक सदी में यह बीसवां साल। घबराया महामानव प्रकृति चित्कार उठीं, जैसे- तैसे गुजर गया दानव कातिल साल। सदी में यम का जाल कोरोना काल, समय भी याद रखेगा यह बीसवां साल। आओ पधारों सुस्वागतम नूतन वर्ष, तुझे अंतिम सलाम अलविदा रुग्ण साल। हे प्रभु नववर्ष में हर जन खुशहाल रहे, प्रकृति भी संभलें भूलकर यह बीता साल। इक्कीसवीं सदी को लगा इक्कीसवां साल, आपको हृदय से मुबारक हो यह नया साल। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत...
प्रकृति के त्रैमासिक ‘नूतन वर्ष’
कविता

प्रकृति के त्रैमासिक ‘नूतन वर्ष’

अर्चना "अनुपम क्रान्ति" जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** दे भेंट धरा पर दिव्य गगन चहुँओर छत्र बिखराता है। जैसे अवनि में स्वयं उतर नववर्ष मनाने आता है।। नटखट खग छोड़ देश अपना यहां कलरव गान सुनाते हैं। और घास-पात की ओसों से करतब कर खुशी जताते हैं।। इस धुँध में भी मकरंद पुष्प की हो सुगंध भीनी भीनी। वाह सुबह खिले जब धूप; ताप सुखमय प्रकृति धीमी-धीमी।। सरसों के पियरे बलखाकर नृत्य जता कुछ कहते हैं। आलिंगन गेहूँ की बाली का कर बधाई संग रहते हैं।। और चने मटर की छीमी की उस नोक-झोक के क्या कहने। गेंदा गुलाब और सुमन कई अवतरित हुये जिम संग रहने।। हम भी ऐसे ही मिलजुलकर खुशियाँ हरएक मनायेंगे । इन मूक जीव अथ प्रकृति के नियमों को सतत् निभायेंगे।। है धन्य धरा यह भारत की जहाँ हर मौसम खिल जाते हैं। एक नहीं यहाँ त्रैमासिक; नूतन वर्ष सदा सुख लाते हैं।। परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम साहित्यिक उपना...
प्रेम दीप
गीत

प्रेम दीप

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में। दंभ द्वेष छल तम मिट जाये, नय अभिनंदन में।। दीप्त देह से, फिर उजियारा, कर्मों का फैले। धुल जाये आबद्ध चित्त जो, भ्रम में है मैले।। ज्योतित हो फिर करुण प्रेमरस, उर के दर्पण में।। प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में।। (१) आलोकित पुरुषार्थ पुंज से, भू परिमंडल हो। चिर प्रदीप से, दिग दिगंत तक कणकण उज्ज्वल हो।। कुटिल वृत्तियों, के चंचल पग, जकड़े बन्धन में।। प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में।। (२) विषम तटों के, तट बन्धों से, दीवारें जोड़े। कलुष भेद के, निंदित बंधन आओ हम तोड़े।। रुचिर प्रेम की, सघन उर्मियाँ, थिरके चिंतन में।। प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में।। (३) परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचन...