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पद्य

माता सीता सी कोई नहीं
कविता

माता सीता सी कोई नहीं

अमित प्रेमशंकर एदला, सिमरिया, चतरा (झारखण्ड) ******************** राधा बनने को सब चाहे माता सीता सी कोई नहीं! सब कृष्ण के प्रेम में भटक रही संग राम के वन में कोई नही!! ये क्यों कहते हैं धोका खा गई रो-रो वक़्त गुज़ार रही सब ढुंढ़ती रही है राजभवन सीता सा वन पथ कोई नहीं।। फिर कहां मिलेगा सत्य प्रेम जो कर्तव्यों से जूझी नहीं। वो जनक सुता महलों की ज्योति वन आकर भी बूझी नहीं।। बीता दिया कांटों में जीवन फिर भी लंका की हुई नहीं।। राम हुए बस सीता के..... वो और किसी की हुई नहीं।। राधा बनने को सब चाहे माता सीता सी कोई नहीं! सब कृष्ण के प्रेम में भटक रही संग राम के वन में कोई नही!! परिचय :- अमित प्रेमशंकर निवासी : एदला, सिमरिया, चतरा (झारखण्ड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
जिगर के ख़ून
ग़ज़ल

जिगर के ख़ून

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ग़ज़ल - १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ अरकान- मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन जिगर के ख़ून से लिखना वही तहरीर बनती है। इन्हीं कागज़ के टुकड़ों पर नई तक़दीर बनती है।। ग़ज़ल इतनी कही फिर भी न समझा हम भी शायर हैं। मेरी भी ज़िंदगी गुमनाम इक तस्वीर बनती है।। किसी को जीते जी शोहरत किसी को मरने पर मिलती। कहीं ग़ालिब बनी किस्मत कहीं ये मीर बनती है।। तुम्हारी सोच कैसे इतनी छोटी हो गई यारों। हमारे नर्म लहजे से भी तुमको पीर बनती है।। 'निज़ाम' अपनी क़लम रखकर दुबारा क्यों उठाई है। बुढ़ापे में बता राजू कहीं जागीर बनती है।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो ...
माँ
कविता

माँ

काकोली बिश्वास सिमुलतला (बिहार) ******************** मन का इक कोना है सूना आखिर अब काहे को रोना चित्कार में दफन उस मासूम को किया था मैंने ही अनसुना सिसकियाँ भर जब उसने कहा था न कर मुझको खुद से दूर पत्थर सा मन ना पिघला था न बहा था नेत्र से नीर निठुर खाली गोद अब बिलख रही है मन विसादित है गम से चूर क्यूं आयी कुछ पल के खातिर और आकर अब क्यूं गयी वो दूर? जब हम थे एक ही जाति के फिर क्यूं ये क्रूरतम भेदभाव? सुलगन मन के बुझे न बुझती तन से गहरा मन का घाव तीन महीने का ही रिश्ता वो थी बड़ी निश्चल बड़ा अटूट जाने किसकी थी लगी नज़र क्षण में छन्न से गया वो टूट मन से निकली आह निकली थी पर जुबां तक सिमटकर रह सी गयी तन जख़्मों से तिलमिला उठा आंखों से लहू बह सी गयी रिश्ता था एक माँ बेटी का जो थी मेरे खुन से पली समाज की कुत्सित रूढ़ियों की चढ़ गयी मेरी नवजात शिशु बली मूढ समाज की बेहयाई का इससे बुरा और क्या प...
बिन बोले कुछ, चल दिए
दोहा

बिन बोले कुछ, चल दिए

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** खल जाता है कुछ लोगों का इस दुनिया से जाना यादें इतनी मन में ताज़ा मुश्किल बहुत भुलाना बिन बोले कुछ चल दिए मन कर गए उदास अभी तो आकिल आप से हमें बहुत थी आस इतनी जल्दी क्या थी भाई छोड़ गए क्यों साथ ताक़त दुगुनी हो जाती थी मिलता था जब हाथ राष्ट्रवाद सद्भाव समन्वय के थे प्रबल समर्थक कर्तव्यों प्रति सदा समर्पित बातें सदा सार्थक हर मज़हब से देश बड़ा है था उनका आदर्श राष्ट्र प्रेम पर उनकी बातें करती दिल स्पर्श सरल सहज इंसान कहाँ मिलते है दुनिया में ग़ैरों का दुःख देख द्रवित हो आँसू नयनन में डाकी नही लक्ष्मण रेखा निज सुख की ख़ातिर प्यार मोहब्बत की भाषा सद्भाव प्रेम में माहिर परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी :जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि ...
शिवनाम माला
भजन

शिवनाम माला

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** जय महादेव जय कैलाशपति जय शिवसंकर जय उमापति जय भोले नाथ जय त्रिपुराररी जय त्रयम्बक जय भंडारी जय महाकाल जय चंद्रशेखर जय रुद्र शम्भू जय गंगाधर जय हर, स्मरहर जय महेश जय खण्डपरसु जयगिरिश जय वामदेव जय नीलकण्ठ जय त्रिपुरान्तक जय श्रीखण्ठ जय मृत्युंजय जय व्योमेश जय वीरू पाक्ष जय ईश्वर महेश जय खण्ड परसु जय विश्वनाथ जय कृति वासा जय पशुपतिनाथ जय जय पिनाकी जय शिति कण्ठा जय अनन्त नाम जय उत्कंठा नित नाम जप जो भिनसारे भव बन्ध कटे यम के द्वारे परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२ जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित क...
रात्रि में
कविता

रात्रि में

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** निशा रात्रि में टिमटिमा रही है व्योम में तारक गण सुदूर अनन्त में। झींगुर की आवाजें गहन अंधकार को बेध रही है महाश्मशान में उठ रही है। चिता की लपटें जलती हड्डियां चटक रही है शिवा श्रृंगाल की आवाजें निशा की अपार नीरवता को भंग कर रही है। जल रही मोबतिया भी कुछ दूरियों तक महाश्मशान में जय माँ तारा की आवाजें निशा रात्रि की स्तब्धता को तोड़ रही है। तारापीठ की महाश्मसान में अमावस्या की निशा रात्रि में। साधक गण भी मग्न है अपनी साधना में कुछ क्रियाए और मंत्रोचार में। केवड़ा ,गुलाब की खुश्बू भी फैल गई है इस जाग्रत महाश्मशान में। मै भी टहल रहा हु भय मिश्रित सा माँ की चरण चिह्यो को याद कर । महान साधक वामाखेपा को प्रणाम कर। जीवन की सत्यता को तलाश रहा हु इस निशा के बीतते प्रहरो में समय के साथ अनन्त की लय में खो गया अपनी नश्वर भंगिमाओं के साथ। अनश्वर आत्म...
बारिश की आहट
कविता

बारिश की आहट

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** नभ पर काली घटा छाई, बादल गरज रहे घनघोर, देख -देख नभ की घटा, नृत्य कर रहे वन में मोर। द्युति से चमक रहा नभ, टप टप बूंदों का है शोर, दादुर जल में टेर लगाते, टिड्डे कर रहे मन विभोर। कहीं काले, कहीं नीले, कहीं लोग करे भागदौड़, कोई हँसता खिलखिला, भरेंगे अब तड़ाग,जोहड़। रेगिस्तान में उठी मतंग, मतंग ऋषि के नाम पर, बरसेंगी वो रेगिस्तान में, फिर बारिश हो घर घर। किसान हुये अब प्रसन्न, भीगा उनका तन व मन, खुशगवार होगा मौसम, सावन गया, है अगहन। बारिश की अब आहट, चकौर की बढ़ी चाहत, सूरज डूबा बादल ओट, गर्मी हटे मिलेगी राहत। चकवा चकवी मन हँसे, सीप के मुंह, बने मोती, किसानों ने ली है राहत, अब मिलेगी खूब रोटी। लहलहाएगी ये फसल, अनाज कमी मिले हल, टकटकी लगा देख रहे, ताक रहे नभ पल पल। तरुवर पर आयेगी बहार, चित चोरों की बढ़े प्यास, होगी जमकर अब बार...
होते हैं बहुत रगं सनम
कविता

होते हैं बहुत रगं सनम

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** जिन्दगी में तो वक्त के होते हैं बहुत रगं सनम कभी गम के, कभी खुशियों के होते हैं बहुत रगं सनम मेरे जख्मी दिल के घाव पढ़कर तुम कभी तो देखो कभी दर्द तो आँखों में टूटे ख्वाबों के होते हैं बहुत रगं सनम कैसे-कैसे तूफां को हमने थामा है जीवन में ओ खुदा कभी-कभी अपने अरमानों के पंखों के होते हैं बहुत रगं सनम जिन्दगी को कोई खिलौना समझे कैसे हैं नादान लोग कभी रंगीन फिजा उस तबाही के होते हैं बहुत रगं सनम रात पहरों में बदलती है शमा, परवानों तुम तो कुछ समझो कभी जिन्दगी के भी हसीन लम्हों के होते हैं बहुत रगं सनम परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परि...
रात-रात भर
गीत

रात-रात भर

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला !! एक छौंछियाहट-सी बनी हुई क्यों रहती है, किर्च-किर्च शीशे सी व्यथा कथानक कहती है; पल-पल यूँ ही दहते रहना भी है बुरी बला !! रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला !!१!! कचनारों-से बिम्ब उभरते मौसम, बेमौसम, मन में सौ तूफान मचलते रहते हैं हरदम; भितरमार यूँ सहते रहना भी है बुरी बला! रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला!!२!! मन, अनन्त के अन्त तलक उसकी राहें ताके, जिसने मीठी सुधियों तक के बन्द किये नाके; सपनों में यूँ बहते रहना भी है बुरी बला!! रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला !!३!! अब कोई कौतूहल नहीं कहानी-किस्से में, ठहरी झीलों के जल-सा जीवन है हिस्से में; इससे, उससे कहते रहना भी है बुरी बला !! रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला !!४!! परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह...
एकता का रूप है हिंदी
कविता

एकता का रूप है हिंदी

उषा शर्मा "मन" बाड़ा पदमपुरा (जयपुर) ******************** वंदे मातरम की शान है हिंदी। देश की माला का स्वरूप, भारत मां का मान है हिंदी।। अन्य भाषाओं से बढ़कर है हिंदी। भारत भारतीयों के साथ, संविधान का गौरव है हिंदी।। हिंदुस्तान के नाम में है हिंदी। कड़ी से कड़ी जोड़ने वाली, देश को एक मुठ्ठी में करने वाली है हिंदी।। भारत की आत्मा, चेतना है हिंदी। एकता की नित्य परम्परा, भारत वासियों की पहचान है हिंदी।। अन्य भाषाओं पर विजय पाने वाली है हिंदी। जन-जन की विरासत भाषा, भारत मां की बेटी का रूप है हिंदी।। आदर्शों की मिसाल है हिंदी। हिंदी से ना कोई बढ़कर, वक्ताओं की शक्ति है हिंदी।। कालरूपी अंग्रेजी करती है दबाने को हिंदी। अंग्रेजी को पीछे कर बलवती, दिन-दिन बलवान हो जाती है हिंदी।। फूलों-सी खुशबू महक रही है हिंदी। साहित्य की मन, आत्मा का, जन्मों-जन्मों का साथ है हिंद ।। कवि-लेखकों का मान है ह...
इंतजार
कविता

इंतजार

डाॅ. अहिल्या तिवारी रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** दहलीज़ को इंतजार है किसी अपने का जो पार कर गया है सदियों पहले, किसी की आशा किसी की उम्मीद को किसी की झोली राह तकती है दिन-रात, और वो दहलीज़ मैं ही तो हूँ। आंगन को इंतजार है किसी पहुना का जो आने वाला है खुशियों की गठरी लिए, सदियों पहले आई थी एक पाती उसकी चौंरे के तुलसी में पानी चढ़ाते समय और वो आंगन मैं ही तो हूँ। खेतों को इंतजार है उस मालिक का जिसके कंधे पर फसल पकते थे, खलिहानों के जमीन की सोंधी खुशबू अब भी मुझसे पूछती उसका पता वो खेत और खलिहान मैं ही तो हूँ। चौराहे को इंतजार है उस मुसाफिर का जो बसा गया था एक गांव जाते-जाते, उस गांव की धरती फिर से बुलाती हैं पीपल के छांव तले गुनगुनाने के लिए सदियों से खड़ी हूँ आंखें बिछाए, वो चौराहा मैं ही तो हूँ.....। . परिचय :-  डाॅ. अहिल्या तिवारी जन्म : २१ अक्टूबर निवास : रायपुर, छत...
सुंदरता
कविता

सुंदरता

संजय जैन मुंबई ******************** नही होती सुंदरता किसी के भी शरीर में। ये बस भ्रम है अपने अपने मन का। यदि होता शरीर सुंदर तो कृष्ण तो सवाले थे। पर फिर भी सभी की आंखों के तारे थे।। क्योंकि सुंदरता होती है उसके कर्म और विचार में। तभी तो लोग उसके प्रति आकर्षित होकर आते है। वह अपनी वाणी व्यवहार और चरित्र से जाना जाता है। तभी तो लोग उसे अपना आदर्श बना लेते है।। जो अर्जित किया हमने अपने गुरुओं से ज्ञान। वही ज्ञान को हम दुनियाँ को सुनता है। जिससे होता है एक सभ्य समाज का निर्माण। फिर सभी को ये दुनियां, सुंदर लगाने लगती है। इसलिए संजय कहता है, जमाने के लोगो से। शरीर सुंदर नही होता सुंदर होते उसके संस्कार।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन मे...
माता का आंचल
कविता

माता का आंचल

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** माँ की पल्लु पकड़ आज रो रहा हूँ मैं।। प्यार भरी ममता आंचल मे सौ रहा हूँ मैं।। सपने में आया उड़ता परिन्दा काट रहा था हाँथ मेरे।। मानो माँ से कह रहा हो छोड़ इसे चल साथ मेरे।। माँ की ममता बहक गई,, आँसु आँखो-से छलक गई।। दूर खड़ी थी माँ मेरी छूने से मुझको तरस गई।। उड़ गया परिंदा नीले गगन में ले गया माँ को साथ मेरे आँख खुली तो पाया में कोई नहीं अब साथ मेरे।। परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17...
प्रेम का सौन्दर्य
कविता

प्रेम का सौन्दर्य

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** प्रेम जज्बा है दिलों का मिलन है रूहो का कुछ पलों का आकर्षण नहीं गूढ़ता लिये है चाहतों का सीप में मोती का बनना बागों में कलियों का खिलना प्रेम की कोई सीमा नहीं मूरत में श्रद्धा की होना कृष्ण की मुस्कान है प्रेम राधा का देदीप्यमान है प्रेम प्रेम की कोई बंदिश नहीं मज़हब का इमान है प्रेम प्रेम पलकों पेे सजता है नयनो से झलकता है लबों पे तरन्नुम लिये बन रागिनी बज उठता है सुदामा का स्वाभिमान है आत्मा का अभिमान है सब विधाओं से अलग अध्यात्म का सोपान है मीरा की आन है द्रोपदी का सम्मान है भक्ति और शक्ति का सूचक सौन्दर्य का प्रतिमान है "मधु" से मधुर ध्यान है प्रेम माँ का दिया ग्यान है प्रेम आत्मा को परमात्मा से मिला दे पूजा का ऐसा विधान है प्रेम परिचय :-  मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्...
बरसात में भी कागज कमाने है।
कविता

बरसात में भी कागज कमाने है।

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** घटाएं आ गई, आसमा छा गई, और दिन भी आये सुहाने हैं, घटाएं आ गई, आसमा छा गई, और दिन भी आये सुहाने हैं, और एक पापा है, साहब जिन्हें आज भी इस बरसात में कागज कमाने है। घर आकर बच्चों को जब पापा ने खाना खिलाया होगा, हम बच्चों को क्या पता, पापा ने आज किस हाल में कमाया होगा। बच्चों के सपने पूरे हो, और रहने के लिए सुंदर घर भी बनाने है, बच्चों के सपने पूरे हो, और रहने के लिए सुंदर घर भी बनाने है, और एक पापा है, साहब जिन्हें आज भी इस बरसात में कागज कमाने है। आज फिर किसी ठीकेदार के आगे, पापा ने हाथ फैलाया होगा । पूरे दिन अपने लहू को जिसने, पसीने के रूप में बहाया होगा । बच्चों के लिए सुंदर कपड़े, और ढ़ेर सारे खिलौने लाने हैं, बच्चों के लिए सुंदर कपड़े, और ढ़ेर सारे खिलौने लाने हैं, और एक पापा है, साहब जिन्हें आज भी इस बरसात में कागज कमाने है। उन्हीं...
विरह की वेदना
कविता

विरह की वेदना

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ********************         रस- करुण, शांत। भाषा- तत्सम हिन्दी शब्द संयोजन। समर्पित- शास्वत पौराणिक पात्र हेतु। कर धर भटकते मौन कम्पित स्वर, दशा ज्यों मार्मिक। सती देह मृत स्थूल शिव, वो शास्वत भी पार्थिव।। मधुकर लताकर वट समूहों से व्यथा निज गा रहे। श्री राम सिय की वेदना सह अश्रु जनित सुना रहे।। प्रियतम पुनः मधुमास में आकर हमारी स्वास में। वंशी की देकर तान वृन्दावन सुसज्जित रास हो।। अनिमेष अपलक राधिका कुछ यूँ वो विरहाधीन है। निष्ठुर नियति के सामने मछली ज्यों नीर विहीन है।। विक्षिप्त, गिरती सी संभलती कौंध कहती हे!वरा । सर पीटती रोती विलापित भाव बेसुध उत्तरा।। दावाग्नि ज्वलित प्रतीत श्रावण की घटा प्रिय क्षोभ में। देवों के हित ले प्रीत भस्म, रति; अति विकल विक्षोह में।। व्यापक अनादि देव विह्हल, द्रवित अंतर श्री पतैय। व्याकुल विहंगम हंस, निर्झर नयन कालिन...
गणनायक गणराज
दोहा

गणनायक गणराज

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** एकदंत मूषक वाहन, गणनायक गणराज। गणपति वंदन आपको, सकल सुधारों काज। बुद्धि विधाता कृपाशर, गजानन महाराज। महागणपति लम्बोदर, गौरीसुत अधिराज। विघ्न विनाशक उमापुत्र, शुभ गुणकानन कविश। सिद्धि विनायक चतुर्भुज, भालचंद्र अवनीश। मंगलकरण क्षेमकरी, विघ्नहर विघ्नराज। प्रथम निमंत्रण नाथ को, पूरे करना काज। बाल गणपति महाकाय, बुद्धिनाथ गणराज। पहला वंदन आपको, विनायक विघ्नराज। विद्यावारिधि हेरम्ब, मंगलमूर्ति प्रमोद। वीरगणपति सिद्धिदाता, भीम भूपति सुबोध। रिद्ध-सिद्ध के दातार, नाव लगा दो पार। कृपा कर नाथ दीन पर, हो भवसागर पार। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
कान्हा की कृपादृष्टि
कविता

कान्हा की कृपादृष्टि

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** जब छोटी छोटी बातों से ही, महाभारत हो जाती है तनिक द्वैष मोह त्रुटियों से ही, महाभारत हो जाती है, मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती है जब फलीभूत हो अहंकार, मानवता होती तार तार अवशेष ना हो कोई उपचार, भूचाल तमस में करुण पुकार उत्ताल उफनती लहरों में भी, नौका पार हो जाती है मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती है धृष्ट सृष्ट अदृष्ट अणु, सृष्टि को आँख दिखाता है गुण तत्व विक्षोभ भय, प्रलय की अलख जगाता है उत्कृष्ट पृष्ठ में शक्ति कोई, सीमारेखा समझाती है मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती है भूलो मत तिल्ली चिनगारी से, बडी आग लग जाती है सहज मिलन मन ...
सत्यवादियों की बस्ती
कविता

सत्यवादियों की बस्ती

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सत्यवादियों की बस्ती में, झूठे भी मिल जाते हैं। देते अपने तर्क अनोखे, सच को झूठ बताते हैं। शब्दों के होते जादूगर, कथनों से मोहित करते। अपनी निजी कुटिल कल्पना, मानव-अंतस में भरते। मायावी शैली से मन में, सबके धाक जमाते हैं। देते अपने तर्क अनोखे, सच को झूठ बताते हैं। पत्थर को हीरा कहते वे, पीतल को कहते सोना। खांसी को क्षय रोग मानते, ज्वर को कहते कोरोना। अपने संभाषण के द्वारा, शब्द बाण बरसातें हैं। सत्यवादियों की बस्ती में, झूठे भी मिल जाते हैं। उनकी हाँ में हाँ कहते हैं, सीधे-सादे भोले जन। वे झूठी क़समें खाते हैं, जतलाते है अपनापन। चिकनी-चुपड़ी बातों से वे, सबके मन को भाते हैं। सत्यवादियों की बस्ती में, झूठे भी मिल जाते हैं। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•...
ऐसा क्यों, कब तक…???
कविता

ऐसा क्यों, कब तक…???

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मैं देख रहा हूँ युगों से कभी तुम पत्थर की शिला बन जाती हो तो कभी देकर अग्निपरीक्षा धरती में समा जाती हो कभी काट दी जाती है तुम्हारी गर्दन तो कभी अंगभंग की शिकार हो जाती हो। कभी भरी सभा में अपमानित की जाती हो तो कभी स्वार्थ वश हर ली जाती हो। कभी सधवा हो कर भी विधवा सा जीवन जीती हो तो कभी वरदान को श्राप सा झेल जाती हो। कभी बनती हो खिलौना लम्पटों का तो कभी स्वाभिमान के लिए जलती चिता पर बैठ जाती हो। कभी कुचल कर जला दिया जाता है तुझे तो कभी गर्भ में ही मार दी जाती हो। कब तक बनी रहोगी विनीता क्यो नही करती हो तुम, प्रश्न अहल्या, सिया, रेणुका मीनाक्षी, द्रौपदी, अम्बिका उर्मिला, कुंती, उर्वशी पद्मिनी, वामा। ऐसा क्यों, कब तक? ऐसा क्यों, कब तक? कितने सुंदर रूप है तुम्हारे माँ, बहन, बेटी पत्नी, सखी। फिर भी तुम स्त्री, होने का दंड पाती हो। परिच...
बाल विवाह
कविता

बाल विवाह

रुमा राजपूत पटियाला पंजाब ******************** एक नन्ही सी कली। एक गांव में पली। घर की अट इक लौटी बेटी, जहां बाल-विवाह की प्रथा चली। हो ग‌ई थोड़ी-सी बड़ी, आ गई मुसीबत की घड़ी। गुड़िया के साथ खेलती, अपनी सखियों के साथ, रहती कुछ न बोलती, जो कहते, वो करती। दस वर्ष की आयु में, बैठा दिया विवाह के मंडप में, खेल कहकर करा दिया विवाह, उस लड़के के साथ में दोस्त कहकर। भेज दिया माता-पिता ने अपनी बेटी को, जहां नहीं जानती थी किसी को, कह दिया माता-पिता ने अपनी बेटी को, मिलेगी बहुत खूब सारी खुशियां तुझ को। पता नहीं थी उस को कोई दुनियादारी, जो सौंप दी इतनी बड़ी जिम्मेदारी। कर दी उसकी शादी, हो गई जिंदगी की बरबादी। परिचय :- रुमा राजपूत निवासी : पटियाला पंजाब घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
बाबाओं के चक्कर में…
कविता

बाबाओं के चक्कर में…

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** भगवान बनकर दुनिया हिलाने की बात करते है। आत्मा को परमात्मा से मिलाने की बात करते है। बड़े बड़े आश्रम है जो कई एकड़ में समाया है। आलीशान बंगले जिसमे स्वमिंग पूल बनाया है। कई बड़े शहरों में इनके वीआईपी तो फ्लेट है। जिसमे लगे कैमरे वो लेडीज़ के टॉयलेट है। कुछ अंधभक्त मूर्खता की तो हद पार करते है। खुदका ईश्वर छोड़ बाबाओ पे ऐतबार करते है। पता नही क्या मिलता है वहां क्या लेने जाते है। सत्संग के नाम पर हजारों खर्च करके आते है। ज्ञान लेने के लिए क्या दान भी ज़रूरी होता है। ईश्वर को पाने के लिए केवल ध्यान ज़रूरी होता है। स्वयं के लिए आस्था आपके दिल मे जगा देते है। और धीरे धीरे वो आपके ईश्वर को ही भुला देते है। आप गए तो तो पूरे परिवार को भी बुला लेते है। मनको परिवर्तित करने में ये जगजाहिर होते है। ये मूर्ख बनाने में तो जबरजस्त माहिर हो...
अपना-अपना करता है मन
कविता

अपना-अपना करता है मन

अमित प्रेमशंकर एदला, सिमरिया, चतरा (झारखण्ड) ******************** अपना-अपना करता है मन कुछ नहीं है अपना रे। धन दौलत और गाड़ी बंगला ये सब है एक सपना रे।। समझ रहा तू अपना जिसको होगा कभी ना अपना रे। हो जाए ग़र तेरा तो फिर आकर मुझसे कहना रे।। दो ग़ज कफ़न, दो बांस की डंडी कुछ दुर तक हीं अपना रे। दुश्मन तो दुश्मन हीं ठहरे अपने हुए ना अपना रे।। पिता, पुत्र हो भाई-बंधू कोई नहीं है अपना रे। छोड़ तुझे वो निर्जन थल में लौटेंगे वो दफ़ना रे कहे अमित की कलम हमेशा राम नाम बस अपना रे। अपना-अपना करता है मन कुछ नहीं है अपना रे....।। परिचय :- अमित प्रेमशंकर निवासी : एदला, सिमरिया, चतरा (झारखण्ड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्र...
आओ सब मिलकर बनाएं- “राष्ट्रवादी सरकार”
कविता

आओ सब मिलकर बनाएं- “राष्ट्रवादी सरकार”

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** जब जब होता, झूठ स्वीकार, तब तब होता, सच का शिकार, आम आदमी आज भी लाचार, आम आदमी था कल भी लाचार, मुद्दे से भटकना इनका संस्कार, मुद्दे से भटकाना उनका कारोबार, एक खैरात पाने को बेइंतहा बेकरार, दूजा इसे बांट करता सत्ता पर अधिकार, समस्या जटिल लेकिन सरल उपचार, सबसे पहले आओ बदलें अपना विचार, देश हमारा, हमें किसका इंतजार, जाति धर्म की बेड़ियों पर करना होगा वार, नफरत फैलाने वालों का करना होगा बंटाधार, सबको शिक्षा, हर हाथ में रोजगार, कानून का राज, फले फूले व्यापार, सीमा सुरक्षित, राष्ट्रीय अखंडता रहे बरकरार, तुष्टिकरण का नहीं हो घृणित संस्कार, रिश्वतखोरी पर हो अंकुश, बन्द करे कालाबाजार, सेवा की आड़ में नहीं करे भ्रष्टाचार, आओ सब मिलकर बनाएं, ऐसा राष्ट्रवादी सरकार... परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : ...
तस्वीरें… राजनीति की
कविता

तस्वीरें… राजनीति की

दुर्गादत्त पाण्डेय वाराणसी ******************** सियासत की, ये राहें उलझी हुई है, एक दूसरे से ठीक वैसे ही, जैसे रेलों की पटरियां, एक दूसरे से कश्मकश जैसी उलझी हो दावे किए गए, भर-भर के इतने बड़े-बड़े कि विशाल महासागर उस विशालता से शर्मा जाये पर, हकीकत की, ये बुनियाद उतनी ही कमजोर है जितनी एक गरीब, देख ले अपने छत का ख्वाब आज के वक़्त में.. नवीनीकरण का नशा इतना तेज चढ़ा उन्हें अपने घर, पुराने लगने लगे पुरानी, वो तस्वीरें इस कदर बेकार हो गए अब उनपर डिजिटल, तस्वीरें सजने लगे गुलामी की बेड़ियां जकड़ी थी, इस कदर जैसे लोहे को जंग, जकड़े रहता है पर, वो गुलामी की जंजीरें तोड़ दी गयी आज, हुआ भारत लेकिन, इस आजादी की आड में विषैली, वो नफ़रतें घोल दी गयी आत्मनिर्भरता बहोत चर्चा है, आजकल इसकी असहायों की, लाठी तोड़कर उन्हें, आत्मनिर्भर बनाया जा रहा.... उन लाचार...