हृदयतंत्र से
माधुरी व्यास "नवपमा"
इंदौर (म.प्र.)
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तेरे इस भवसागर में,
खेले तूने कितने कितने खेल।
मेरी नन्ही डूबती नैया,
जब टकराती थी पर्वत शैल।
जल तरंग से मेरी नैया,
डगमग जब हिलौरे खाती।
सन्नाटे में कभी-कभी,
मैं बेचैनी से घबराती।
कभी भँवर में घिर जाती,
कभी लहरों से वो टकराती।
तेरे होते बेफ़िक्री से,
कैसी थी मैं इतराती।
जब अचानक उमड़ घुमड़ कर,
घनघोर घटाएँ छा जाती।
नज़र घुमाकर देखूँ तो,
तब कहीं नहीं तुझको पाती।
तेरी उस अदृश्य छवि में,
महफ़ूज कहीं मैं हो जाती।
फिर चैन की सांसे लेकर ,
तुझको अपने मन में पाती।
अब तू ही बता हे! प्रभु,
कब तक ये जंजाल चलेगा।
तेरे इस भवसागर में,
मेरा कब प्रारब्ध कटेगा।
तेरे अंतर में "मैं" पूरी हूँ,
मेरे अंतर में "तेरा" कण।
दया बस अब इतनी करना,
रहे स्मरण तेरा हर क्षण।
परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा"
निवासी - इंदौर म.प्र.
सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में क...

























